
Aalochak Ke Notes
Author:
Ganesh PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 320
₹
400
Available
‘आलोचक के नोट्स' गणेश पाण्डेय की आलोचना की नई किताब है। उनकी आलोचना अपने समय के साहित्यक परिदृश्य पर एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। आलोचना से रचना और रचना से आलोचना का काम लेना लेखक की ख़ूबी है। उनके लिए आलोचना का मतलब पाठकों के भीतर ज़रूरी बेचैनी और सवाल पैदा करना है। इसीलिए अपनी आलोचना में सुन्दर कविता बरक्स मज़बूत कविता का सवाल उठाते हैं। वे अपने समय की रचना और आलोचना की दुनिया की निर्मम चीरफाड़ करना साहित्य के सुदीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए ज़रूरी मानते हैं। रचना और आलोचना, दोनों की प्रवृत्तियों और विचलन पर नज़र रखते हैं। यह बताना ज़रूरी है कि कवि के रूप में भी गणेश पाण्डेय एक पल के लिए भी आलोचक के दायित्व से मुक्त नहीं होते। जैसे उनके दिमाग़ में कोई पेंसिल है, आप से आप नोट करती रहती है, कवि और आलोचक की कारस्तानी। उनकी आलोचना हिन्दी की प्रशंसामूलक आलोचना का विकास ऩहीं है। वे आलोचना में उद्धरणों की कबूतरबाज़ी और क़तरनबाज़ी में विश्वास नहीं करतें हैं, बल्कि उसका जमकर विरोध करते हैं, उसे आलोचना की मुंशीगीरी कहते हैं। आलोचना अपने विस्तार में नहीं, कई बार सूत्रों में ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है। आलोचना में छोटी और लक्ष्य-केन्द्रित टिप्पणियाँ ज़्यादा मूल्यवान होती हैं। रचना और आलोचना के कोने-अन्तरे में छिपे अँधेरे पर आलोचक की उठी हुई एक उँगली, किसी किताब, लेखकों की किसी पीढ़ी, किसी समूह, किसी सूची की आँख मूँदकर की गई महाप्रशंसा को चीर देती है। पाठक अनुभव करेंगे कि ‘आलोचक के नोट्स’ के लेख और नोट्स उन्हें अपनी तर्कशीलता, सर्जनात्मकता और चुम्बक जैसी भाषा से अपना बना लेंगे; ऐसी पठनीयता विरल है।
ISBN: 9789388211222
Pages: 206
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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विचार का आईना शृंखला के अन्तर्गत ऐसे साहित्यकारों, चिन्तकों और राजनेताओं के ‘कला साहित्य संस्कृति’ केन्द्रित चिन्तन को प्रस्तुत किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय जनमानस को गहराई से प्रभावित किया। इसके पहले चरण में हम मोहनदास करमचन्द गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, राममनोहर लोहिया, रामचन्द्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा, सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ और गजानन माधव मुक्तिबोध के विचारपरक लेखन से एक ऐसा मुकम्मल संचयन प्रस्तुत कर रहे हैं जो हर लिहाज से संग्रहणीय है।
स्वतंत्रता आन्दोलन की कोख से जन्मे राममनोहर लोहिया ऐसे विचारक राजनेता हैं जिन्होंने अपने लिए लोकतंत्र की आत्मा यानी एक सक्षम और निडर विपक्ष की भूमिका चुनी। जवाहरलाल नेहरू जैसे लोकप्रिय जननेता की असफलताओं को खुलकर सामने रखते हुए उन्होंने दिखाया कि विपक्ष को सरकार की तथ्यात्मक आलोचना करते हुए किस कदर निर्मम होना चाहिए। समाजवाद का भारतीयकरण करते हुए उसे उन्होंने संस्कृति और परम्परा से जोड़ा। धर्म और संस्कृति के अनेक मिथकों को डिकोड करते हुए उन्होंने परम्परा के जरूरी हिस्सों को पुनर्नवा बनाने का काम किया। हमें उम्मीद है कि उनके प्रतिनिधि निबन्धों की यह किताब उन सबको रास्ता दिखाएगी जो अपनी सुदीर्घ परम्परा और संस्कृति से प्रेम करते हैं और धर्म के राजनीतिक दुरुपयोग और लोकतंत्र को संकुचित करने वाली शक्तियों के हावी होने के खतरों से समाज को बचाना चाहते हैं।
Nai Kahani Ki Bhumika
- Author Name:
Kamleshwar
- Book Type:
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Description:
'एक शानदार अतीत कुत्ते की मौत मर रहा है, उसी में से फूटता हुआ एक विलक्षण वर्तमान रू-ब-रू खड़ा है—अनाम, अरक्षित, आदिम अवस्था में। और आदिम अवस्था में खड़ा यह मनुष्य अपनी भाषा चाहता है, आस्था चाहता है, कविता और कला चाहता है, मूल्य और संस्कार चाहता है; अपनी मानसिक और भौतिक दुनिया चाहता है...।'
यह है नयी कहानी की भूमिका—इस कहानी को शास्त्र और शास्त्रियों द्वारा परिभाषित करने की जब-जब कोशिश हुई है, कहानी और कहानीकार ने विद्रोह किया है। इस कहानी को केवल जीवन के सन्दर्भों से ही समझा जा सकता है, युग के सम्पूर्ण बोध के साथ ही पाया जा सकता है।
नयी कहानी के प्रमुख प्रवक्ता तथा समान्तर कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर ने छठे दशक के कालखंड में जीवन के उलझे रेशों और उससे उभरनेवाली कहानी की जटिलताओं को गहरी और साफ़ निगाहों से विश्लेषित किया है। साहित्य का यह विश्लेषण बिना स्वस्थ सामाजिक दृष्टि के सम्भव नहीं है।
कमलेश्वर की यह पुस्तक इसलिए ऐतिहासिक महत्त्व की है कि यह समय और साहित्य को पारस्परिक समग्रता में समझने की दृष्टि देती है। 'नयी कहानी की भूमिका' अपने समय के साहित्य की अत्यन्त विशिष्ट दस्तावेज़ है; पाठकों, लेखकों और अध्येताओं के लिए अपरिहार्य पुस्तक है।
Kahani : Vastu Aur Antarvastu
- Author Name:
Shambhu Gupt
- Book Type:
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Description:
हिन्दी में कहानी-आलोचना पर्याप्त समृद्ध और बहुआयामी होते हुए भी आलोचना की मुख्यधारा में अनादृत ही रही है। हिन्दी में केवल कथाकार या कहानीकार तो बहुत-से मिल जाएँगे लेकिन केवल कथा या कहानी का आलोचक ढूँढ़ने पर बहुत मुश्किल से ही मिल पाएगा। जो दो-चार कहानी-आलोचक हमारे यहाँ रहे या हैं भी तो उनका कार्य इतना सीमित और कालबद्ध रहा है कि उससे कहानी-आलोचना की कोई सामान्य सैद्धान्तिकी निर्मित हो पाना सम्भव नहीं हो पाया।
हिन्दी की कहानी-समीक्षा पर अधिकांशतः एक आरोप यह लगाया जाता रहा है कि उसके प्रतिमान कविता-समीक्षा के क्षेत्र से आयत्त किए जाते हैं, हिन्दी-आलोचना के पास कहानी-समीक्षा के ऐसे प्रतिमान लगभग न के बराबर हैं, जो कहानी को कहानी की तरह देख सकें, जो नितरां कहानी-विधा के और उसी के लिए हों। फ़िलहाल यह कहना पर्याप्त होगा कि एक कहानी की समीक्षा एक कहानी की तरह ही की जानी चाहिए, उसे कविता या उपन्यास की तराजू में नहीं चढ़ा देना चाहिए।
कविता और उपन्यास के प्रतिमानों से यदा-कदा मदद तो ली जा सकती है, एक सप्लीमेंट के रूप में उनका उपयोग तो किया जा सकता है लेकिन कहानी-समीक्षा की असल ज़मीन तो स्वयं कहानी-विधा के संघटक तत्त्वों से ही निर्मित की जा सकती है। परम्परा में इस असल ज़मीन की पहचान कई बार की भी गई है। जहाँ नहीं है, या कहीं कोई चीज़ छूट गई है तो नए प्रयोगों द्वारा उसकी सम्भावनाओं की तलाश की जा सकती है। इससे परम्परा का मूल्यांकन भी होगा और आगे के नए रास्ते भी खुलेंगे।
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