Hindi Kahani : Prakriya Aur Path
Author:
Surendra ChaudharyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
कहानी को रचनाकर्म के साथ-साथ जीवन से जुड़ा मानकर लेखक एक निरन्तरता में इन्हें देखने की चेष्टा करता है। बदलती हुई प्रवृत्तियों और प्रक्रियाओं को वह इसका बाधक भी नहीं मानता है। उसका विश्वास है कि अनुभव की संश्लिष्टता ही रचना में आकर अपना अर्थ भी खोलती है और स्वयं उस अनुभव को भी बड़ा बनाती है।</p>
<p>अपनी प्रथम पुस्तक में उसकी यह शुरुआत हिन्दी आलोचना में चर्चा का विषय बन गई थी। ‘नई कहानी’ के उस दौर में इस पुस्तक के सम्बन्ध में यह चर्चा कम उत्साहवर्द्धक न थी।</p>
<p>वर्षों बाद भी लेखक की यह पुस्तक अपनी प्रासंगिकता ही बनाए नहीं रखती, बल्कि बदलते हुए इस कथा-दौर में कुछ पूर्वाशित प्रश्न खड़े करने के लिए भी स्मरण की जाती रही है। पाठ भाग में एक कहानी भी जोड़ी गई है। संक्षेप में कहा जाए तो हिन्दी कहानी की रचना-प्रक्रिया पर यह एक मुकम्मल किताब है।
ISBN: 9788171192465
Pages: 164
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
भूमंडलीकरण सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का समुच्चय है; यानी यह हमारे भीतर और बाहर, जीवन के दोनों पक्षों को प्रभावित करता है, कर रहा है।
साहित्य भी इससे अछूता नहीं रह सकता, वह भी उपन्यास जो जीवन का सर्वांगीण अंकन करता है। वरिष्ठ आलोचक पुष्पपाल सिंह की यह पुस्तक हिन्दी उपन्यासों के सन्दर्भ में भूमंडलीकरण और भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में हिन्दी की औपन्यासिक कृतियों की विवेचना करती है। एक ओर इसमें भूमंडलीकरण और उसके आनुषंगिक प्रश्नों-विचारों का, उसके आर्थिक व सांस्कृतिक पक्षों का विशद और स्पष्ट विवेचन किया गया है, दूसरी ओर 1985 से लेकर मार्च-अप्रैल 2009 तक प्रकाशित अधिकांश महत्त्वपूर्ण उपन्यासों का भी अध्ययन प्रस्तुत कि गया है। हिन्दी उपन्यासों का इतना बृहत् अध्ययन भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में पहली बार हुआ है।
निरपेक्ष और स्पष्ट समीक्षा के लिए ख्यात पुष्पपाल सिंह ने इस पुस्तक में समीक्षित उपन्यासों पर अपनी राय का निर्धारण उनकी रचनात्मकता के आधार पर ही किया है, किसी अन्य कारण से नहीं। साथ ही एक नई समीक्षा-पद्धति और कथा-समीक्षा की एक नई शाखा विकसित करने का भी प्रयास उन्होंने यहाँ किया है। अकादमिक और उबाऊ आलोचना से हटकर यह पुस्तक निश्चय ही पाठकों को एक नया पाठ-सुख प्रदान करती है और समकालीन साहित्य-परिदृश्य पर एक नई दृष्टि विकसित करने का अवसर भी देती है।
Samkalin Laghukatha ka Samiksha Saundharya
- Author Name:
Jitendra Jeetu
- Book Type:

- Description: लघुकथा लेखन को आसान सी विधा मानकर बहुत लोग इस विधा के लेखन की ओर मुड़े और जाने–अनजाने अपनी अधकचरी बौद्धिकता और अज्ञान के बूते इस विधा का अहित करते चले गए। इन बहुत से लोगों में वे भी थे जो खालिस पाठक थे और लेखक बनना चाहते थे। जो कुछ बनना चाहते हैं उन्हें कोई नहीं रोक सकता। वे बन गए। वे बिना पढ़े लेखक बन गए। उन्होंने बस उसी तरह की लघुकथाएं पढ़ी थीं और वे उसी तरह के लघुकथा लेखक बन गए। यह विराट स्तर पर धर्म परिवर्तन से भी अधिक संगीन मामला था जिसने साहित्य को बहुत बड़े पैमाने पर चोट पहुंचाई लेकिन इसकी कोई चर्चा नहीं हुई। इस पुस्तक में लघु कथा के सौन्दर्यशास्त्र पर चर्चा की गई है और इस विधा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास ही प्रधान है।
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