Savarkar Par Thope Huye Chaar Abhiyog
Author:
Harindra SrivastavaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789352669653
Pages: 236
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी कविता की शीर्षक लेखनी—मुक्तिबोध। आत्मसमीक्षा और जगत-विवेचन के निष्ठुर प्रस्तावक।
उन्होंने एक दुर्गम पथ की ओर संकेत किया, जिससे होकर हमें अनुभव और अभिव्यक्ति की सम्पूर्णता तक जाना था; क्या हम जा सके?
हिन्दी की वरिष्ठतम उपस्थिति कृष्णा सोबती, जिनकी आँखों ने लगभग एक सदी का इतिहास साक्षात् देखा; और जो आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में आसपास फैले समय से उतनी ही व्यथित हैं, जितनी अपने समय और समाज में निपट अकेली, मुक्तिबोध की रूह रही होगी—मानवता विराट और सर्वसमावेशी उज्ज्वल स्वप्न के लगातार दूर होते जाने से कातर और क्रुद्ध।
यह मुक्तिबोध का एक अनौपचारिक पाठ है जिसे कृष्णा जी ने अपने गहरे संवेदित मन से किया है। भारतीय इतिहास के दो समय यहाँ रूबरू हैं।
Shabd Aur Smriti
- Author Name:
Nirmal Verma
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‘शब्द और स्मृति’ के निबन्ध निर्मल वर्मा को विशेष प्रिय थे। वे इन्हें ‘पर्सनल ब्रूडिंग’ के निबन्ध कहते थे जिनमें उन्होंने अपने आप तक लौटने की प्रक्रिया को आँकने की कोशिश की है।
आधुनिकता जिसने विक्टोरियन युग की रूढ़ियों को इतनी सफलतापूर्वक तोड़ा, धीरे-धीरे ख़ुद एक रूढ़ि बनती दीखने लगी। उसकी कोख से अपने अलग तरह के अन्धविश्वासों की उत्पत्ति हुई। इन निबन्धों में निर्मल जी उन्हीं अन्धविश्वासों, रूढ़िगत फ़ैशनों और फ़ार्मूलों पर शंका प्रकट करते हैं।
इन निबन्धों में वे भारतीय आत्म की उस दुहरी प्रकृति को भी उघाड़ने की कोशिश करते हैं, जो परम्परा और आधुनिकता के द्वैत का परिणाम है। यह प्रक्रिया एक तरह से उनकी अपनी आत्मा की पड़ताल भी हो जाती है। आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में हम इस पुनरावलोकन की ज़रूरत को और ज़्यादा महसूस करते हैं।
लम्बे यूरोप-प्रवास के दौरान अर्जित उनकी एक भिन्न दृष्टि भी यहाँ दिखाई देती है जो भारतीय चेतना के अंगीभूत अवयवों को कुछ दूर से देखती है, और उनके साथ जुड़े अपने संस्कारों को भी। पश्चिम की तार्किकता और भारत की तर्कातीत समग्रता का मुखामुखम इन निबन्धों को और रोचक बनाता है।
Rachnaon Par Chintan
- Author Name:
Zilani Bano
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आंचलिक उपन्यास ‘अलग-अलग वैतरणी’, 'सोनामाटी’ और ‘आधा गाँव’ ने यह अहसास दिया है कि जीवन की बहुरंगी प्रक्रियाओं के आत्मीय अंकन के लिए जितना उदार फलक आंचलिकता प्रदान करती है, उतना पारम्परिक, शिष्ट, तत्सम जीवन नहीं। इसकी तत्परता में व्यक्ति की पीड़ा अथवा उसके आन्तरिक संघर्षों के अंकन अथवा मूर्त ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का अंकन चाहे जितना भी हो लेकिन जीवन की वह आभा, सामान्य जीवन-प्रक्रिया में ही रचे-पचे होने का सामर्थ्य कम ही दिखता है। इसी कारण शिवप्रसाद सिंह का ‘नीला चाँद’ बौद्धिक प्रयास लगता है। ‘वे दिन’, ‘चितकोबरा’ या ‘शेखर : एक जीवनी’ शिल्प और तकनीक की दृष्टि से जो भी स्थान रखते हों, अपनी अन्तरंगता के बावजूद, ऊष्माहीन और औपचारिक लगते हैं। इनसे भिन्न ‘मैला आँचल’, ‘परती परिकथा’, ‘बलचनमा’ उपन्यास जीवन को प्रथम तल पर अंकित करते है। इनमें जीवन अधिक और चिन्तन कम है।
लेकिन ‘इतिहासेतर’ और ‘परम इतर' के आग्रही निर्मल वर्मा परम्परा और स्मृतियों की ओर लौटते हैं और उन्हें ही निकष मानकर वर्तमान की समालोचना प्रस्तुत करते हैं।
'गाँधीवाद की शव परीक्षा’ में मशीन को सभ्यता, रोज़गार और सस्ते, सर्वसुलभ उत्पादों से जोड़ा गया था, ‘चक्कर क्लब’ में इसे मनुष्यत्व अर्थात् मनुष्य के सत्त्व से जोड़ा गया है।
‘अन्धा युग’ में वर्णित सामाजिक यथार्थ तत्कालीन सामाजिक यथार्थ से मेल नहीं खाता यह मूलतः अतियथार्थवादी है।
Nagarjun Ka Gadya Sahitya
- Author Name:
Ashutosh Rai
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नागार्जुन के व्यक्तित्व, विचार और कृतित्व का परिचय देते हुए लेखक ने उनके अभावग्रस्त जीवन, पारिवारिक स्थिति और अनवरत संघर्ष को जिस तरह रेखांकित किया है, उससे स्पष्ट हो जाता है कि आरम्भ से ही वे संघर्षों के बीच रास्ता तलाशनेवाले प्राणी एवं लेखक रहे हैं। उनकी मस्ती, व्यंग्य एवं यायावरी एक तरह से उनकी जिजीविषा के प्राण रहे हैं।...
आशुतोष जी ने नागार्जुन की औपन्यासिक कला पर भी ध्यान आकर्षित किया है और उनकी आत्मकथात्मक एवं वर्णन शैली पर प्रकाश डाला है तथा हल देने की उनकी ललक के कारण आई शिल्पगत लचरता को भी रेखांकित किया है।
संक्षेप में ही सही बाबा की कहानियों, निबन्धों, संस्मरणों, यात्रावृत्त, डायरी, नाटक और आलोचना जैसी गद्य-विधाओं पर गहराई से विचार करते हुए आलोचनात्मक टिप्पणियाँ की हैं, जो सार्थक हैं तथा लेखक की तटस्थ पैनी समीक्षा-दृष्टि को आलोकित करती हैं। इस प्रकार नागार्जुन के गद्य साहित्य की समस्त विधाओं की पड़ताल करने के लिए लेखक का लेखकीय प्रयास मुकम्मल और कामयाब है।
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