Kyonki Samay Ek Shabd Hai

Kyonki Samay Ek Shabd Hai

Language:

Hindi

Category:

Language-linguistics

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इस पुस्तक में लेखक का यह प्रयास रहा है कि ज्ञान के साहित्यशास्त्र में ज्ञान का समाजशास्त्र भी सार्थक ढंग से जुड़े। इसके लिए साहित्य के साथ समय और समाज के घटक भी संश्लिष्ट होते चले गए हैं।</p>
<p>इस पुस्तक में एक अनवरत आत्मविकास और सामाजिक प्रबोध का सचेतन संयोग स्वतः होता गया है। इसीलिए इसमें प्रश्नों के हाशिए और सन्दर्भ, दोनों ही बदले हैं और परिवर्द्धित हुए हैं। आधुनिकताबोध से चर्चा की शुरुआत हुई है और कलासूत्रों के समाजशास्त्र तथा इनसान की विमुक्ति के प्रश्नों से जोड़ा भी गया है। यदि अत्याधुनिक कहानी की जटिलता को समझा गया है तो उसमें अनिवार्यताबोध की धारणा का उन्मेष प्राप्त हो गया है; यदि ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ और ‘मृगनयनी’ जैसे उपन्यासों के ऐतिहासिक कलारूपों का निर्धारण किया गया है तो उन्हें इतिहासदर्शन तथा गाथा-रोमांसों के अत्याधुनिक फलकों पर रखकर नए प्रासंगिक पारिभाषिक अर्थ हासिल किए गए हैं; ‘झूठा-सच', ‘बलचनमा’ या ‘धरती धन न अपना’ जैसे उपन्यासों की भी पुराने चौखटों से बाहर निकलकर समकालीन जीवन के स्वरूपों तथा समाज के सुपरिगठन के सन्दर्भों से तुलना की गई है। इस तरह साहित्य को सामूहिक समकालीन जीवन में हस्तक्षेप करनेवाले अभिकर्ता की असली भूमिका देकर उसे परखा गया है। इस परख और पहचान में शास्त्रीय शब्दावली झटके से विलुप्त होती चली गई है; मानो बहुत-सी लीकें पुँछ गई हैं।</p>
<p>कविता के खंड में जहाँ प्रसाद के जीवन-दर्शन की झाँकी पाने का प्रयास किया गया है, वहीं निराला के वेदान्ती तथा दार्शनिक शब्द-संसार के जीवनीमूलक तात्पर्य तथा आधुनिक अर्थ ढूँढ़े गए हैं।</p>
<p>इस ईमानदार खोज और पहचान का अनिवार्य नतीजा यही निकला है कि कई महाप्रश्न उठ आए हैं जो साहित्य, सर्जना और आलोचना के त्रिकोण से बाँधे नहीं जा सके। उनके आयत्तीकरण के लिए एक संश्लिष्ट समाज-दर्शन और एक समग्र सांस्कृतिक रूप पेश किए गए हैं। इस तरह इस पुस्तक की एक खुली हुई सार्वजनीन सृजन-प्रक्रिया है जो उन कई सही और सच्चे सवालों को उठाती है जिनके उत्तर पाने के लिए पंडिताऊ तथा प्रोफ़ेसरी आलोचना-रूढ़ियों का क्षय हो जाता है।</p>
<p>साहित्य का शब्द-संसार, कृती का अनुभवसंसार तथा समाज का घटना-संसार—ये तीनों समन्वित होकर इस पुस्तक में सही आलोचना का समाहार करते हैं, यह कहना ज़्यादा समीचीन होगा।</p>
<p>विद्वान आलोचक और साहित्य-मर्मज्ञ रमेश कुन्तल मेघ की यह कृति निश्चय ही हिन्दी आलोचना की एक उपलब्धि है।

ISBN: 9788180311710

Pages: 632

Avg Reading Time: 21 hrs

Age : 18+

Country of Origin: India

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