Mahaveer Prasad Dwivedi Aur Hindi Navjagaran
Author:
Ramvilas SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 1116
₹
1395
Unavailable
द्विवेदी जी ने अपने साहित्यिक जीवन में सबसे पहले अर्थशास्त्र का गहन अध्ययन किया और बड़ी मेहनत से ‘सम्पत्ति शास्त्र’ नामक पुस्तक लिखी। इसीलिए द्विवेदी जी बहुत-से ऐसे विषयों पर टिप्पणियाँ लिख सके जो विशुद्ध साहित्य की सीमाएँ लाँघ जाती हैं। इसके साथ उन्होंने राजनीतिक विषयों का अध्ययन किया और संसार में हो रही राजनीतिक घटनाओं पर लेख लिखे।</p>
<p>राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ उन्होंने आधुनिक विज्ञान से परिचय प्राप्त किया और इतिहास तथा समाजशास्त्र का अध्ययन गहराई से किया। इसके साथ भारत के प्राचीन दर्शन और विज्ञान की ओर ध्यान दिया और यह जानने का प्रयत्न किया कि हम अपने चिन्तन में कहाँ आगे बढ़े और कहाँ पिछड़े हैं। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी प्रदेश में नवीन सामाजिक चेतना के प्रसार के लिए वह सबसे उपयुक्त व्यक्ति सिद्ध हुए। उनके कार्य का मूल्यांकन व्यापक हिन्दी नवजागरण के सन्दर्भ में ही सम्भव है।</p>
<p>डॉ. रामविलास शर्मा द्वारा रचित इस कालजयी पुस्तक के पाँच भाग हैं। पहले भाग में भारत और साम्राज्यवाद के सम्बन्ध में द्विवेदी जी ने और ‘सरस्वती’ के लेखकों ने जो कुछ कहा है, उसका विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। दूसरे भाग में रूढ़िवाद से संघर्ष, वैज्ञानिक चेतना के प्रसार और प्राचीन दार्शनिक चिन्तन के मूल्यांकन का विवेचन है। तीसरे भाग में भाषा-समस्या को लेकर द्विवेदी जी ने जो कुछ लिखा है, उसकी छानबीन की गई है। चौथे भाग में साहित्य-सम्बन्धी आलोचना का परिचय दिया गया है। पाँचवें भाग में द्विवेदी-युग के साहित्य की कुछ विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है।</p>
<p>बहुत-सी समस्याएँ जो द्विवेदी जी के समय में थीं, आज भी विद्यमान हैं। इसीलिए आज के सन्दर्भ में भी इस पुस्तक की सार्थकता और उपयोगिता अक्षुण्ण है।
ISBN: 9788126703753
Pages: 405
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रोफ़ेसर कृष्णमुरारि मिश्र आधुनिक हिन्दी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। हिन्दी में आद्यबिम्बात्मक आलोचना के प्रवर्तन का श्रेय उन्हें प्राप्त है। साहित्यिक कृतियों की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिए उन्हें विशेष ख्याति मिली है। ‘आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन’ शीर्षक उनका प्रस्तुत ग्रन्थ इस आलोचना के सिद्धान्त और सम्प्रयोग से सम्बद्ध है। ग्रन्थ में तीन शीर्षक ग्रंथित हैं—'आद्यबिम्ब', 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' तथा ' आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप'।
'आद्यबिम्ब' शीर्षक के अन्तर्गत आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सैद्धान्तिक विवेचन है। इसमें फ़्रायड और युग की धारणाओं के मूलभूत अन्तर का हिन्दी में पहली बार उद्घाटन है। साथ ही आद्यबिम्ब की युगीय धारणा का सारभूत आख्यान है जिसमें यौगपत्य के अल्पज्ञात वैज्ञानिक सिद्धान्त की भी चर्चा है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : आधार' शीर्षक से मुख्यतया युग के कला-चिन्तन का विवेचन है। आद्यबिम्बात्मक आलोचना की सैद्धान्तिकी के इस विवेचन से सिद्ध है कि युग का कला-चिन्तन हमारे भारतीय साहित्य-चिन्तन के लिए विजातीय नहीं है। वह भारतीय साहित्यशास्त्र के कालसिद्ध निकषों का पोषक है। युग की कलाविषयक धारणाएँ रससिद्धान्त और ध्वनिसिद्धान्त के बहुत निकट हैं। भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य-हेतु के रूप में प्रतिभा के जिस स्वरूप की स्थापना की गई है, वह सामूहिक अचेतन की युगीय धारणा के निकट है। सर्जक के व्यक्तित्व की असाधारणता को भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी मुक्त कंठ से स्वीकार किया है। भारतीय आचार्यों के समान युग ने भी काव्य की लोकमंगलकारिणी शक्ति पर बल दिया है। उन्होंने सर्जक, भावक और समाज के सन्दर्भ में काव्य के माध्यम से जिस आत्मोपलब्धि का उल्लेख किया है, उसमें आनन्द और लोकमंगल दोनों का समावेश है। 'आद्यबिम्ब और साहित्यालोचन : स्वरूप' शीर्षक के अन्तर्गत हिन्दी की आद्यबिम्बात्मक आलोचना के स्वरूप की सम्यक् विवृत्ति है।
आशा है, यह ग्रन्थ भी उनके पूर्व प्रकाशित ग्रन्थों की तरह हिन्दी में समादृत होगा।
Aadhunikata Aur Hindi Aalochana
- Author Name:
Indranath Madan
- Book Type:

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बीसवीं सदी में आलोचना की अनेक धारणाओं का विकास हुआ है जिनमें भाषागत और शैलीगत आलोचना, अस्तित्ववादी आलोचना, मिथकीय आलोचना को गिना जाता है। इनके मूल में आधुनिकता की चुनौती है और इनमें आपसी विरोध भी है। हर धारणा की अपनी-अपनी उपलब्धियाँ और सीमाएँ भी हैं जिनका विश्लेषण और विवेचन अनेक दृष्टियों से किया गया है।
आलोचना की इन धारणाओं और दृष्टियों का अपना-अपना इतिहास और विकास है जिनकी राह से गुज़रकर एक बात रोशन होने लगती है कि इनका विकास कविता को लेकर अधिक हुआ है, उपन्यास, कहानी और नाटक को लेकर कम। यह शायद इसलिए कि कविता में आधुनिकता की चुनौती का अधिक सामना किया गया है और इसकी आलोचना की परम्परा भी अधिक लम्बी है। नाटक की आलोचना की परम्परा भी काफ़ी पुरानी है। उपन्यास और कहानी की विधा हाल की है और हाल में उपन्यास और कहानी की आलोचना के अन्दाज़ और मिज़ाज भी बदले हैं।
आधुनिकता के बोध ने अरस्तू आदि के सिद्धान्तों पर नई रोशनी भी डाली है; लेकिन भारतीय काव्यशास्त्र पर रोमांटिक बोध की छाप तो लग चुकी है, आधुनिकता की दृष्टि से इसका फिर से आँका जाना अभी शेष है। इस तरह आलोचना फिर से अपने अस्तित्व को क़ायम रखने के लिए, अपनी अस्मिता को जानने-पहचानने के लिए अनेक दिशाओं में भटकने की गवाही दे रही है।
इस पुस्तक में समकालीन आलोचना में आधुनिकता की खोज, उसे समझने और रेखांकित करने के प्रयासों का जायज़ा लिया गया है। चार प्रमुख साहित्यिक विधाओं की आलोचना का ऐतिहासिक और वैचारिक विश्लेषण करते हुए यह जानने की कोशिश की गई है, कि हिन्दी की आलोचना आधुनिकता को किस रूप में और किस हद तक पहचान पा रही है।
Ramchandra Shukla
- Author Name:
Malayaj
- Book Type:

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विस्मरण के इस हाहाकारी उत्सवी दौर में भुला दिए गए विलक्षण कवि-आलोचक मलयज और उनकी पुस्तक ‘रामचन्द्र शुक्ल’ की पुनर्प्रस्तुति का साहित्यिक और अकादमिक महत्त्व निर्विवाद है। मलयज की आलोचना पद्धति के कायल वे सब लोग हैं, जिन्होंने उनका लिखा कुछ भी पढ़ा है। भौतिक रूप से मिले छोटे से जीवन में मलयज ने सृजन के कई मानक स्थापित किए। यह पुस्तक भी अपने संक्षिप्त कलेवर में ही एक प्रतिमान की तरह है। मलयज ने एक अपूर्व आलोचक-चिन्तक के रूप में रामचन्द्र शुक्ल का जिस प्रकार मूल्यांकन किया है, उसका सानी कोई दूसरा नहीं है। यह अकारण नहीं है कि इस पुस्तक को सम्पादित करने वाले सुप्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने अपनी भूमिका का शीर्षक ही दिया था—मलयज की संघर्ष मीमांसा। मलयज रामचन्द्र शुक्ल की ‘रस-मीमांसा’ के बड़े प्रशंसक थे। उनकी अन्तर्दृष्टि मलयज की अन्तर्दृष्टि में उसी प्रकार घुली है जिस प्रकार दाल में नमक घुल जाता है। लेकिन यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि दाल में नमक का बहुत महत्त्व है लेकिन वह पूरी दाल नहीं है। वह उसका एक घटक भर है। कहने की आवश्यकता नहीं कि रामचन्द्र शुक्ल के दाय को स्वीकार करते हुए मलयज ने नया बहुत कुछ जोड़ा और हिन्दी आलोचना को गहरी विश्वसनीयता भी दी। हिन्दी के युवा आलोचकों के लिए मलयज की विश्लेषण पद्धति और भाषा में सीखने के लिए बहुत कुछ है। उनकी आलोचना एक पाठशाला की तरह है।
—जितेन्द्र श्रीवास्तव
Aadhunik Urdu Kahani Ka Safar
- Author Name:
Shamim Hanfi
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मुंशी प्रेमचन्द से सुरेन्द्र प्रकाश तक की उर्दू कहानी का यह विवरण २०वीं सदी के माहौल और समाज का विवरण भी है। मैं साहित्य की किसी भी विधा को उसकी ज़मीन और ज़माने से अलग करके देखने में असमर्थ हूँ ख़ासतौर पर कथा-कहानी को। सार्त्र ने १९४८ में साहित्य की प्रतिबद्धता पर अपनी धारणा व्यक्त करते हुए कविता के मुक़ाबले में कहानी को अपने समय और भौतिक वातावरण में ज़्यादा उलझा हुआ बताया था, ज़्यादा Committed, ज़्यादा Engaged यानी ज़्यादा प्रतिबद्ध और ज़्यादा व्यस्त। इस तरह हमारे कथा-साहित्य की हदें इतिहास से जा मिलती हैं। लेकिन साहित्य, बहरहाल, इतिहास नहीं होता। साहित्य इतिहास के समानान्तर अपनी एक अलग दुनिया बनाता है। यह दुनिया इतिहास से ज़्यादा रोचक, ज़्यादा सशक्त होती है, अपनी कलात्मकता और सौन्दर्य के कारण। इसीलिए इतिहास के किसी भी युग की सीमाओं के मुक़ाबले में साहित्य और कला की सीमाएँ ज़्यादा विस्तृत और ज़्यादा दिनों तक ज़िन्दा, रोचक और पायदार रहती हैं।
—प्रस्तावना से
Aalochana Ke Naye Pariprekshya
- Author Name:
Manoj Pandey
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Mrinal Pande Ka Rachna Sansar
- Author Name:
Archana Shukla
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हिन्दी की आधुनिक लेखिकाओं में मृणाल पाण्डे अपने विशिष्ट रचना-संसार के कारण अलग पहचान बनाए हुए हैं। उनका लेखन जीवन की समग्रता का प्रस्तुतीकरण लेकर सामने आता है। उन्होंने स्त्री की पहचान, स्त्री की शक्ति, स्त्री के संघर्ष एवं स्त्री से जुड़े हुए अनेक प्रश्नों का विश्लेषण अपनी रचनाओं में किया है। मृणाल पाण्डे का भारतीय जीवन के नए परिवेश पर गम्भीर पकड़ है, जिसमें भारतीय परिवारों की व्यवस्था करती हुई नारी का यथार्थ-चित्रण है। उनके कथा साहित्य में चित्रित नारी परिवेश, स्थिति और विशिष्ट संवेदनाओं को लेकर सामने आती है।
उनकी रचनाओं में स्वाभाविकता एवं सहजता है। अनुभूति की गहराई एवं नवीन मूल्यों को उभारने का प्रयत्न भी उनकी रचनाओं की प्रमुख विशिष्टता है।
नारी का बदलता रूप, उसका आत्मविश्वास एवं विद्रोह, अपनी अस्मिता की पहचान करती नारी के तमाम नवीन रूप उनके कथा साहित्य में दृष्टिगोचर होते हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी मृणाल पाण्डे का कोई जवाब नहीं। किसी मंत्री से राजनीति पर बातचीत हो या भाषा-विवाद या महिला मुद्दा सभी पर उनकी प्रस्तुति विचारोत्तेजक होती है। पत्रकारिता का कोई भी क्षेत्र उनसे अछूता नहीं।
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