Hindi Ka Sanganakiya Vyakaran
Author:
Dhanji PrasadPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 956
₹
1195
Available
भाषा की आन्तरिक व्यवस्था अत्यन्त जटिल है। इसके दो कारण हैं—भाषा व्यवस्था का विभिन्न स्तरों पर स्तरित होते हुए भी सभी स्तरों का एक दूसरे से सम्बद्ध होना तथा मानव मस्तिष्क द्वारा किसी भी प्रकार से अभिव्यक्ति का निर्माण करना और उसे समझ लेना। अत: भाषा में प्राप्त होनेवाली विभिन्न प्रकार की जटिलताओं के कारण कम्प्यूटर पर संसाधन की दृष्टि से किसी पुस्तक का लेखन अत्यन्त चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। फिर भी हिन्दी को लेकर यह आरम्भिक प्रयास किया गया है। यह पुस्तक हिन्दी के पूर्णत: मशीनी संसाधन का दावा करते हुए प्रस्तुत नहीं की जा रही है, बल्कि यह उस दिशा में एक क़दम मात्र है। इसके माध्यम से प्राकृतिक भाषा संसाधन (NLP) के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को हिन्दी का मशीन में संसाधन करने को एक दृष्टि (Sight ) प्राप्त हो सके, यही लेखक का उद्देश्य है। वैसे हिन्दी के मशीनी संसाधन को लेकर 1990 के दशक से ही कार्य हो रहे हैं, और पर्याप्त मात्रा में यह कार्य हो भी चुका है, किन्तु आम विद्यार्थियों, शोधार्थियों और इस क्षेत्र में रुचि रखनेवाले विद्वानों के लिए उसकी तकनीकी उपलब्ध नहीं है, जिससे कोई नया व्यक्ति इस दिशा में कार्य कर सके। हिन्दी माध्यम से तो ऐसी सामग्री का पूर्णत: अभाव है। विभिन्न प्रकार के शोधों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि कोई भी व्यक्ति अपनी मातृभाषा में मौलिक कार्य अधिक दक्षतापूर्वक कर सकता है। इसलिए हिन्दी के मशीनी संसाधन की सामग्री किसी भी अन्य भाषा के बजाय हिन्दी में ही होनी चहिए। इस पुस्तक को प्रस्तुत करने का एक मुख्य उद्देश्य इस कथन की पूर्ति करते हुए हिन्दी को इस दिशा में यथासम्भव आत्मनिर्भर बनाना भी है। </p>
<p>—भूमिका से
ISBN: 9789388933032
Pages: 448
Avg Reading Time: 15 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी में कहानी-आलोचना पर्याप्त समृद्ध और बहुआयामी होते हुए भी आलोचना की मुख्यधारा में अनादृत ही रही है। हिन्दी में केवल कथाकार या कहानीकार तो बहुत-से मिल जाएँगे लेकिन केवल कथा या कहानी का आलोचक ढूँढ़ने पर बहुत मुश्किल से ही मिल पाएगा। जो दो-चार कहानी-आलोचक हमारे यहाँ रहे या हैं भी तो उनका कार्य इतना सीमित और कालबद्ध रहा है कि उससे कहानी-आलोचना की कोई सामान्य सैद्धान्तिकी निर्मित हो पाना सम्भव नहीं हो पाया।
हिन्दी की कहानी-समीक्षा पर अधिकांशतः एक आरोप यह लगाया जाता रहा है कि उसके प्रतिमान कविता-समीक्षा के क्षेत्र से आयत्त किए जाते हैं, हिन्दी-आलोचना के पास कहानी-समीक्षा के ऐसे प्रतिमान लगभग न के बराबर हैं, जो कहानी को कहानी की तरह देख सकें, जो नितरां कहानी-विधा के और उसी के लिए हों। फ़िलहाल यह कहना पर्याप्त होगा कि एक कहानी की समीक्षा एक कहानी की तरह ही की जानी चाहिए, उसे कविता या उपन्यास की तराजू में नहीं चढ़ा देना चाहिए।
कविता और उपन्यास के प्रतिमानों से यदा-कदा मदद तो ली जा सकती है, एक सप्लीमेंट के रूप में उनका उपयोग तो किया जा सकता है लेकिन कहानी-समीक्षा की असल ज़मीन तो स्वयं कहानी-विधा के संघटक तत्त्वों से ही निर्मित की जा सकती है। परम्परा में इस असल ज़मीन की पहचान कई बार की भी गई है। जहाँ नहीं है, या कहीं कोई चीज़ छूट गई है तो नए प्रयोगों द्वारा उसकी सम्भावनाओं की तलाश की जा सकती है। इससे परम्परा का मूल्यांकन भी होगा और आगे के नए रास्ते भी खुलेंगे।
Hindi Ka Gadhyaparv
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

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Description:
नामवर सिंह न सीमित अर्थों में साहित्यकार थे और न आलोचक। वे हिन्दी में मानवतावादी, लोकतांत्रिक और समाजवादी विचारों की व्यापक स्वीकृति के लिए सतत संघर्षशील प्रगतिशील आन्दोलन के अग्रणी विचारक थे।
यह पुस्तक साक्ष्य है नामवर जी के लेखन-जीवन का—एक दस्तावेज़ी साक्ष्य। इसमें उनका पहला प्रकाशित निबन्ध है और अन्तिम निबन्ध ‘द्वा सुपर्णा...’ और ‘पुनर्नवता की प्रतिमूर्ति’ भी।
पूर्व प्रकाशित ख्यातिनाम और लोकप्रिय पुस्तकों के बावजूद इस तरह की पुस्तक का विशेष महत्त्व इसलिए भी है कि इस एक अकेली पुस्तक में नामवर जी की विकास-यात्रा के प्राय: सभी पड़ावों की झलक मौजूद है। निबन्धों के लेखन-काल की ही तरह उनके विषय भी विस्तृत क्षेत्र में फैले हैं। परन्तु इस पुस्तक के केन्द्र में है—आलोचना। वैश्विक पृष्ठभूमि वाले आलोचकों जॉर्ज लूकाच, लूसिएँ गोल्डमान और रेमंड विलियम्स से लेकर भारतीय परम्परा को पुनर्नवा करनेवाले गौरव नक्षत्रों—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा पर लिखे गए निबन्ध यहाँ एक साथ मौजूद हैं। दीर्घ सक्रियता की अवधि में नामवर जी ने पुस्तक समीक्षाएँ प्राय: नहीं लिखीं। इस पुस्तक में अलग-अलग अवसरों पर लिखी गईं पाँच समीक्षाएँ भी मौजूद हैं।
Ityadi
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

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Description:
संस्मरणों की गगन गिल की यह दूसरी किताब है। ‘दिल्ली में उनींदें’ पहली थी। वे इन्हें ‘स्मृति-आख्यान’ कहती हैं। स्मृति जिसमें जितने दूसरे रहते हैं, उतना ही हमारा बीता हुआ समय, हमारे वर्तमान से पीछे छूट गया, हमारे स्व का एक हिस्सा, जिसके चिह्न अभी भी हमारे अस्तित्व में कहीं खुबे होते हैं।
कुछ क्षण जो कभी-कभी बहुत पास आकर हमें घेर लेते हैं, और कभी-कभी इतनी दूर दिखाई देते हैं कि हम उन्हें एक फ़ासले से देखते हुए शब्दबद्ध कर पाते हैं।
गगन गिल की भाषा को स्मृति का अंकन आता है। वे उन क्षणों को, जो बीत चुके हैं, भाषा के वर्तमान में इस कौशल से पिरोती हैं कि पाठक एक तरफ़ उनके साथ समय के उस खंड में यात्रा भी करता है, और चिन्तन भी करता है, जिसकी प्रेरणा उसे लेखक के आत्म-चिन्तन से मिलती है।
‘इत्यादि’ के स्मृति-आख्यानों में आयोवा युनिवर्सिटी के इंटरनेशनल राइटिंग प्रोग्राम के संस्थापक-निदेशक पॉल एंगल से मुलाक़ात, सारनाथ में दीक्षा, कोलकाता में शंख घोष से भेंट व अन्य संस्मरणों के अलावा 1984 के सिख-विरोधी दंगों की भीषण स्मृतियाँ भी हैं जिन्हें पढ़ते हुए आप सिहर उठते हैं।
Nirala Ki Kavityan Aur Kavyabhasha
- Author Name:
Rekha Khare
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक में काव्यभाषा के संवेदनात्मक स्तर पर रचना-प्रक्रिया के जटिल और संश्लिष्ट स्वरूप के परीक्षण का प्रयत्न किया गया है। निराला की स्थिति सभी छायावादी कवियों में विशिष्ट रही है। उनका काव्य-व्यक्तित्व सबसे अधिक गत्यात्मक, प्रखर तथा अन्वेषी रहा है, जिसका जीवन्त साक्ष्य प्रस्तुत करती है उनकी काव्यभाषा। काव्यभाषा को लेकर निराला के मानस में रचनात्मक बेचैनी उनके विविध और गतिशील भाषा-स्वरों में देखी जा सकती है। व्यक्ति के रूप में तो एक लम्बे अरसे तक वे उपेक्षित रहे, कवि के रूप में भी उनकी प्रतिभा को सही रूप में बहुत समय तक नहीं पहचाना गया। बाहर मैं कर दिया गया हूँ। ‘भीतर, पर, भर दिया गया हूँ’, में कवि के इस मानसिक द्वन्द्व की ध्वनि सुनी जा सकती है।
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