Bhartiya Sahityashatra
Author:
Brahma Dutt SharmaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
प्रस्तुत पुस्तक में डॉ. ब्रह्मदत्त शर्मा ने हिन्दी समीक्षा के मूल तक जाने का प्रयत्न किया है और अग्निपुराणकार, भरत, दंडी, आनन्दवर्द्धन, वामन, कुन्तक एवं क्षेमेन्द्र की मान्यताओं और मतों को बोधगम्य बनाने का प्रयास किया है। भारतीय चित्त एवं मानस में ये मान्यताएँ इतनी रची-बसी हैं कि सामान्य पाठक भी कविता पढ़ते समय स्वभावतः यह प्रश्न करता है कि कविता किस रस की है, इसमें कौन से अलंकार हैं, कौन-सी वक्रता है तथा उससे क्या व्यंजित हो रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में सभी भारतीय सम्प्रदायों की मान्यताओं का विवेचन उपरोक्त प्रश्नों के सन्दर्भ में किया गया है।
किस प्रकार का लेखन साहित्य है और उसकी क्या विशेषताएँ हैं? साहित्यकार किस प्रकार चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग कर अपनी अनुभूति को सार्वजनीन व सार्वकालिक बनाता है? किस प्रकार वह अपने भावावेगों का सम्प्रेषण कर उनका साधारणीकरण कर देता है? किस प्रकार अपने विषयों को चुनता है व उनमें अपनी अनुभूति का संचार करता है? उसे साहित्य रचना की प्रेरणा कहाँ से मिलती है तथा उसमें उसकी प्रतिभा का क्या योगदान है? काव्य-सृजन का हेतु एवं प्रयोजन क्या है? इन गम्भीर प्रश्नों का विवेचन भी सभी भारतीय साहित्य सम्प्रदायों के परिप्रेक्ष्य में इस पुस्तक में पाठकों को मिलेगा।
ISBN: 9789389742107
Pages: 180
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
मीराँ के जीवन में रुचि रखनेवाले पाठकों के लिए यह पुस्तक न केवल मीराँ की एक प्रामाणिक जीवनी है वरन् यह जीवनी इतिहास-दृष्टि से परिपूर्ण एवं महत्त्वपूर्ण शोध निष्कर्षों का समन्वित परिणाम है।
यह पुस्तक बताती है कि मीराँ के लिए कृष्ण भक्ति एक साधन थी न कि साध्य। कृष्ण भक्ति का सहारा लेकर मीराँ ने मध्यकालीन सामन्ती समाज में व्याप्त सती-प्रथा जैसी तमाम सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया एवं स्त्री-स्वतंत्रता के पक्ष में विद्रोह का स्वर बुलन्द किया।
यह पुस्तक ब्राह्मण कथाकारों एवं परवर्ती आलोचकों द्वारा निर्मित मीराँ की उस पारम्परिक छवि को तोड़ती है जो उसे केवल प्रेम-दीवानी कवयित्री की परिधि में सीमित कर देना चाहते थे। निश्चय ही, मीराँ को समग्र रूप से समझने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।
Vidyapati
- Author Name:
Shivprasad Singh
- Book Type:

-
Description:
विद्यापति सौन्दर्य और प्रेम के कवि थे। सौन्दर्य के बारे में उनकी क्या धारणा थी,
अथवा उनके सौन्दर्यबोध का क्या स्तर था—आदि प्रश्नों पर काफ़ी विस्तार से विचार किया गया है।
गीत-काव्य के बारे में, उसके रूप और आत्मा को दृष्टि में रखकर बिलकुल नए ढंग से विचार किया
गया है। अन्त में विद्यापति के अवहट्ट-काव्य का भी संक्षिप्त मूल्यांकन दे दिया गया है। क्योंकि
यह उनके कृतित्व का एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है।
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