Aalochana Aur Samvad
Author:
Namvar SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
उनका अध्ययन असीम है, स्मृति अथाह और वैचारिक व्याकुलता अविराम। नामवर सिंह के रूप में हिन्दी के पास एक ऐसा व्यक्तित्व है जो सतत चिन्तनशील है, सतत सृजनरत है, सदैव मुखर है। आलोचक या लेखक होना उनके लिए सिर्फ़ एक औपचारिक बाना नहीं है जिसे अवसर देखकर पहना और उतारा जा सके। उनका होना वही होना है जैसा हम उन्हें देखते हैं। जब वे नियमपूर्वक नहीं लिख रहे थे, और ज़्यादातर भाषणों और व्याख्यानों में अपनी बात रख रहे थे तब भी उन्होंने बहुत लिखा : कभी किसी पुस्तक की भूमिका के रूप में, कभी किसी आयोजन के लिए और कभी स्वतंत्र किसी पत्र-पत्रिका के लिए।</p>
<p>इस पुस्तक में उनके ऐसे ही असंकलित और कुछ अप्रकाशित आलेखों को संकलित किया गया है। इनमें से जो आलेख किसी पुस्तक की भूमिका के तौर पर लिखे गए, वे भी सिर्फ़ पुस्तक की प्रशस्ति नहीं हैं, उनमें समीक्षा-आलोचना के उन्हीं मानदंडों का निर्वाह किया गया है, जो नामवर सिंह के चिन्तन की पहचान हैं। रचना को अनेक कोणों से जानने की कोशिश और उसके उस मूल तत्त्व को रेखांकित करने का प्रयास जो उस रचना या उस लेखक को विशिष्ट बनाता है।</p>
<p>इस संकलन में हम भारत और विश्व के कुछ ऐसे रचनाकारों को नामवर जी की निगाह से देखेंगे जो निसन्देह अपरिचित नाम नहीं हैं। उन्हें हमने पढ़ा भी है, समझा भी है लेकिन यहाँ नामवर जी की व्याख्या के साथ उन्हें जानना बेशक एक उपलब्धि है। साथ ही भाषा सम्बन्धी विमर्श और अंग्रेज़ी में लिखित कुछ व्याख्यानों का अनुवाद भी यहाँ संकलित है जो पाठकों के लिए निश्चित ही संग्रहणीय है।
ISBN: 9788126730636
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘छायावाद के वसन्त वन की सबसे मधुर, भाव-मुखर पिकी’ महादेवी वर्मा के काव्य का सन्तुलित मूल्यांकन जितना उपेक्षित है, उतना ही उपेक्षित रहा है। इनके काव्य के सम्बन्ध में अनेक असंगत धारणाएँ भी रूढ़ हो चुकी हैं, अनेक भ्रान्तियाँ फैल चुकी हैं।
सवाल उठता है कि क्या महादेवी वर्मा का रचनात्मक व्यक्तित्व विभाजित है जो इनकी गद्य-रचनाओं में सामाजिक चेतना को आत्मसात् किए हुए है और काव्य-रचनाओं में पलटा खाकर असामाजिक या आध्यात्मिक रूप धारण कर लेता है? क्या इनका व्यक्तित्व अद्वैतवाद और बौद्धमत के परस्पर-विरोधी तत्त्वों से निर्मित है? क्या महादेवी की सृजन-प्रक्रिया इन विपरीत स्थितियों के तनाव में गतिशील है? इन तमाम सवालों, भ्रान्तियों आदि का सार्थक निराकरण करने की दिशा में पहला और प्रमुख कदम है यह पुस्तक।
इनकी कविता के रूढ़िगत मूल्यांकन से छुटकारा पाना इसलिए भी आवश्यक है कि युगबोध बदल चुका है और इसके बदलने पर हर कृति या हर कृतिकार को फिर से आँकने की आवश्यकता अनुभव होने लगती है।
‘राधाकृष्ण मूल्यांकन माला’ की इस पुस्तक में अधिकारी सम्पादक ने ऐसी अमूल्य सामग्री का संयोजन किया है जो अलग-अलग आलोचना-पुस्तकों, पत्रिकाओं तथा शोध-ग्रन्थों में बिखरी हुई थी और जिसे एकत्र पाना दुर्लभ था। इसमें विद्वान रचनाकारों ने महादेवी वर्मा के रचनात्मक व्यक्तित्व, उनके चिन्तन व कला पक्षों का समग्रता से आत्मीयतापूर्वक मूल्यांकन किया है।
Chuppi Ki Guha Mein Shankh Ki Tarah
- Author Name:
Prabhat Tripathi
- Book Type:

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Description:
चन्द्रकान्त देवताले की सर्जनात्मकता बहुआयामी और विविधवर्णी है। उसे पढ़ते हुए, उस पर किसी एकरैखिक सार की तरह सोचना, सम्भव ही नहीं हो पाता। ख़ासकर तब, जब पाठक उसे अपने आस्वाद और अनुभव की उत्कट निजता में पढ़ रहा हो। वह सुझाने, रिझाने या समझाने-बुझाने वाली कविता से भिन्न, अन्तरात्मिक और ऐन्द्रिक अनुभूति की एक ऐसी कविता है, जो अपनी लयात्मक विविधता से, सामान्य शब्दों, रोज़मर्रा की घटनाओं, स्थिरबुद्धि, सीमित विचारों और आधुनिक तथा प्राचीन काव्य-संस्कारों का कायाकल्प करती सी लगती है। उसे पढ़ने के दौरान, मैं यह लगातार महसूस करता रहा हूँ, कि ठंडी वस्तुपरकता के साथ, उस पर विचार करना मेरे लिए कभी सम्भव नहीं हो पाता है। इस अर्थ में, इन निबन्धों को आत्मपरक निबन्ध ही कहा जा सकता है। ये निबन्ध, एक ऐसे कवि के रचना-संसार से जुड़े हैं, जो असम्भव आत्मविस्तार के निरन्तर प्रयत्नों का कवि है। इसलिए इन निबन्धों में भी, आस्वादक आत्म की दुनिया से कहीं, बहुत बड़ी और गतिमान दुनिया गतिशील है।
चन्द्रकान्त देवताले स्वभाव-कवि है। कविता उसके अस्तित्व का अविभाज्य हिस्सा है। उसकी कविता के संस्कार और उसके जीवन के संस्कार भी, हिन्दी की देशज कविता और लोकजीवन के संस्कार हैं। यही नहीं, उसकी कविता में प्राय: सर्वत्र सक्रिय प्रकृति भी, उसकी सर्जनात्मकता के देशज संस्कारों को ही जीवित करती है। उसकी कविता के रचाव में आदिमता और देशज आधुनिकता की अनुगूँजें ही नहीं, बल्कि मानवीय और पारिवारिक रिश्तों की एक गझिन दुनिया है।
चन्द्रकान्त देवताले पर लिखे गये इन निबन्धों में मैंने इस बात की कोशिश की है कि अपने आस्वाद के अनुभवों को इस तरह लिख सकूँ, कि उनकी रचना के मुक्त विन्यास को, पाठक अपनी तरह से पढ़ने का खुला अवकाश पा सकें।
—प्रस्तावना से
''आलोचना सच्चा-गहरा साहचर्य भी होती है। हिन्दी कवि चन्द्रकान्त देवताले और कवि-आलोचक प्रभात त्रिपाठी सिर्फ़ कविता में सहचर नहीं थे, मुक्तिबोध को लेकर सहचर-पाठक नहीं थे, वे कई बरस भौतिक रूप से साथ रहे थे। यह पुस्तक उस साहचर्य का किंचित् विलम्बित प्रतिफल है। हमें विश्वास है कि चन्द्रकान्त देवताले की कविता को समझने में इसकी निर्णायक भूमिका होने जा रही है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।’’
—अशोक वाजपेयी
Hindi Sahitya Aur Nari Samaj
- Author Name:
Nagratna Rao
- Book Type:

- Description: संसार के समस्त प्राणियों में 'स्त्री' मानव समाज की अपनी दुनिया है। यह जानने, समझने के बावजूद स्त्री घर के भीतर और बाहर समाज में उपेक्षित, अपमानित और प्रताड़ित होती रही है। कभी उसने प्रतिरोध किया तो कभी विरोध। हर हाल में झेलना स्त्री को ही पड़ा है। कभी परिस्थितियों की प्रतिकूलता ने उसे संघर्षमय बनाया तो कभी अपनों की अनाकुलता के कारण उसे विषमताओं को झेलना पड़ा। यदि वह उनसे उभरती तो कोई न कोई कलंक उसे कलुषित करता। मानो स्त्री कोई वस्तु है, जिसे प्रत्येक स्तर पर अपने आपको ढालना है। स्त्री, स्त्री है तभी वह ऐसा करने में सक्षम है। नारी मानव समाज का अभिन्न अंग है। समाज की ही भाँति साहित्य में भी नारी को लेकर कई विचारधाराएँ हैं। समय चाहे कोई भी रहा हो नारी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। परिणामस्वरूप समय-समय पर नारी की स्थिति में परिवर्तन आया। सामाजिक रूप से नारी की स्थिति में आए परिवर्तन का प्रभाव हिन्दी साहित्य पर भी पड़ा, क्योंकि साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब होता है। साहित्य मानव जीवन की ही प्रतिछाया है। समाज में नारी की गतिविधियों, चित्तवृत्तियों के अनुरूप हिन्दी साहित्य में भी नारी का चित्रण मिलता है। इस पुस्तक में नारी की सामाजिक और साहित्यिक स्वरूप को समझने और समझाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक समाज और साहित्य दोनों दृष्टियों से नारी के स्वरूप को एकत्र करने का सत्प्रयत्न है।
Shabdon Ka Mandal
- Author Name:
Renata Czekalska
- Book Type:

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Description:
यह पुस्तक हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ लेखक अशोक वाजपेयी के कृतित्व की प्रमुख काव्यात्मक स्पेसों का भाष्यपरक (हर्मेन्यूटिक) विश्लेषण है। पुस्तक के चार अध्याय उन महत्त्वपूर्ण नृतात्त्विक प्रश्नों पर केन्द्रित हैं जो इस कवि के सन्दर्भ में साधनभूत हैं, इस कवि के सन्दर्भ में विश्व के साथ एकत्व के सिद्धान्त की खोज की प्रक्रिया में भाषा को अस्तित्व के एक रूप और विस्तार में बदल देता है। लेखिका ने दर्शाया है कि किस तरह वाजपेयी भारतीय और पाश्चात्य सांस्कृतिक परम्पराओं का सहयोजन करते हुए अपनी कविता को ‘सभ्यताओं के बीच’ स्थित करते हैं, जहाँ वह काव्यात्मक सम्प्रेषण के मौलिक और आकर्षक पैटर्नों का रूप लेते विमर्श का आत्मनिर्भर विमर्श बनती है। यह पुस्तक आधुनिक वैश्वीकृत दुनिया में पूरब और पश्चिम की सांस्कृतिक मुठभेड़ के एक महत्त्वपूर्ण प्रकरण को चित्रित करती है।
मूर्धन्य आलोचक मदन सोनी द्वारा किया गया पुस्तक का हिन्दी अनुवाद मूलतः पोलिश भाषा में लिखी गई पुस्तक के (स्वयं रेनाता चेकाल्स्का द्वारा किए गए) अंग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित है।
Hindi Ka Sanganakiya Vyakaran
- Author Name:
Dhanji Prasad
- Book Type:

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Description:
भाषा की आन्तरिक व्यवस्था अत्यन्त जटिल है। इसके दो कारण हैं—भाषा व्यवस्था का विभिन्न स्तरों पर स्तरित होते हुए भी सभी स्तरों का एक दूसरे से सम्बद्ध होना तथा मानव मस्तिष्क द्वारा किसी भी प्रकार से अभिव्यक्ति का निर्माण करना और उसे समझ लेना। अत: भाषा में प्राप्त होनेवाली विभिन्न प्रकार की जटिलताओं के कारण कम्प्यूटर पर संसाधन की दृष्टि से किसी पुस्तक का लेखन अत्यन्त चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। फिर भी हिन्दी को लेकर यह आरम्भिक प्रयास किया गया है। यह पुस्तक हिन्दी के पूर्णत: मशीनी संसाधन का दावा करते हुए प्रस्तुत नहीं की जा रही है, बल्कि यह उस दिशा में एक क़दम मात्र है। इसके माध्यम से प्राकृतिक भाषा संसाधन (NLP) के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को हिन्दी का मशीन में संसाधन करने को एक दृष्टि (Sight ) प्राप्त हो सके, यही लेखक का उद्देश्य है। वैसे हिन्दी के मशीनी संसाधन को लेकर 1990 के दशक से ही कार्य हो रहे हैं, और पर्याप्त मात्रा में यह कार्य हो भी चुका है, किन्तु आम विद्यार्थियों, शोधार्थियों और इस क्षेत्र में रुचि रखनेवाले विद्वानों के लिए उसकी तकनीकी उपलब्ध नहीं है, जिससे कोई नया व्यक्ति इस दिशा में कार्य कर सके। हिन्दी माध्यम से तो ऐसी सामग्री का पूर्णत: अभाव है। विभिन्न प्रकार के शोधों द्वारा यह प्रमाणित हो चुका है कि कोई भी व्यक्ति अपनी मातृभाषा में मौलिक कार्य अधिक दक्षतापूर्वक कर सकता है। इसलिए हिन्दी के मशीनी संसाधन की सामग्री किसी भी अन्य भाषा के बजाय हिन्दी में ही होनी चहिए। इस पुस्तक को प्रस्तुत करने का एक मुख्य उद्देश्य इस कथन की पूर्ति करते हुए हिन्दी को इस दिशा में यथासम्भव आत्मनिर्भर बनाना भी है।
—भूमिका से
Nai Kahani Ki Bhumika
- Author Name:
Kamleshwar
- Book Type:

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'एक शानदार अतीत कुत्ते की मौत मर रहा है, उसी में से फूटता हुआ एक विलक्षण वर्तमान रू-ब-रू खड़ा है—अनाम, अरक्षित, आदिम अवस्था में। और आदिम अवस्था में खड़ा यह मनुष्य अपनी भाषा चाहता है, आस्था चाहता है, कविता और कला चाहता है, मूल्य और संस्कार चाहता है; अपनी मानसिक और भौतिक दुनिया चाहता है...।'
यह है नयी कहानी की भूमिका—इस कहानी को शास्त्र और शास्त्रियों द्वारा परिभाषित करने की जब-जब कोशिश हुई है, कहानी और कहानीकार ने विद्रोह किया है। इस कहानी को केवल जीवन के सन्दर्भों से ही समझा जा सकता है, युग के सम्पूर्ण बोध के साथ ही पाया जा सकता है।
नयी कहानी के प्रमुख प्रवक्ता तथा समान्तर कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर ने छठे दशक के कालखंड में जीवन के उलझे रेशों और उससे उभरनेवाली कहानी की जटिलताओं को गहरी और साफ़ निगाहों से विश्लेषित किया है। साहित्य का यह विश्लेषण बिना स्वस्थ सामाजिक दृष्टि के सम्भव नहीं है।
कमलेश्वर की यह पुस्तक इसलिए ऐतिहासिक महत्त्व की है कि यह समय और साहित्य को पारस्परिक समग्रता में समझने की दृष्टि देती है। 'नयी कहानी की भूमिका' अपने समय के साहित्य की अत्यन्त विशिष्ट दस्तावेज़ है; पाठकों, लेखकों और अध्येताओं के लिए अपरिहार्य पुस्तक है।
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