Nagarjun : dabi doob ka roopak
Author:
Kamlanand JhaPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 287
₹
350
Available
आधुनिक हिन्दी कविता में निराला की पीढ़ी के बाद के प्रगतिशील कवियों में नागार्जुन सर्वाधिक लोकप्रिय रहे। उनकी लोकप्रियता ने हिन्दी के प्रबुद्ध जन में उन्हें परिचित तो बनाया लेकिन उनका अतिपरिचय ही उनकी गम्भीर विवेचना में बाधा बन गया। बहुभाषाविद नागार्जुन बौद्ध दर्शन की सर्वोच्च उपाधि से अलंकृत थे। उनकी रचनात्मकता इतनी प्रबल है कि उनका चिंतक अलग से नजर ही नहीं आता। कवि के बतौर वे प्रबल विद्रोही थे इसलिए अपनी कविता के लायक हिन्दी पाठक का भावबोध निर्मित करने में उन्हें कठिन परिश्रम करना पड़ा। यात्री उनका उपनाम ही नहीं था। देश और समाज के प्रत्यक्ष अनुभव से उनका लेखन विपुल समृद्ध हुआ। कमलानंद झा नागार्जुन की देसी संस्कृति के जानकार हैं। उनके विश्लेषण में इस जानकारी ने अतिरिक्त रोचकता पैदा की है। भाषा के समान ही नागार्जुन के लेखन की विधागत विविधता भी इसमें मुखर हुई है। नागार्जुन के भावबोध को लोकानुरागी प्रतिहिंसा कहकर लेखक ने उनकी विस्फोटक रचनात्मकता का असली स्रोत समझने का प्रयास किया है। नागार्जुन की रचना में अंतर्निहित विचार के साथ उसके सौंदर्य को उद्घाटित करना इस किताब का मुख्य सरोकार है। यथास्थिति की निर्मम और प्रचंड आलोचना साहित्य का अपना धर्म है। इस धर्म का पालन करने में साहित्य कलात्मक मार्ग अपनाता है। नागार्जुन के साहित्य के इस मार्ग की परख का यह गम्भीर प्रयास अत्यंत समयानुकूल है। नागार्जुन की सहजता का अनुगमन भी इस किताब में दिखायी देता है। —गोपाल प्रधान
ISBN: 9789391925857
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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ब्लॉग-जगत में भाषा के प्रेमियों के बीच अजित वडनेरकर का एक बहुत रसीला ब्लॉग, शब्दों का सफ़र, अर्से से लोकप्रिय रहा है। अजित जी ने आम बोलचाल के शब्दों के रहस्य खोलकर भाषा की अन्तरराष्ट्रीय और संस्करण की जटिल और लम्बी प्रक्रिया से भी पाठकों का परिचय कराया है। इसका पुस्तकाकार प्रकाशन देखना सुखद है।
—मृणाल पाण्डे; वरिष्ठ कथाकार-पत्रकार
अजित वडनेरकर प्रमाण हैं कि हिन्दी रुकेगी नहीं। कम से कम लेकिन रोचक शब्दों में अधिक से अधिक कह देना उनके शब्दों के सफ़र की पहचान है। उनकी छोटी-छोटी ललित लोल रचनाओं में रवानी, प्रवाह, लय का आस्वाद है। सच तो ये है कि यह मानवता के विकास का महासफ़र है।
—अरविन्द कुमार; ख्यात कोशकार
बहुत शोधपरक, उपयोगी और महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ। हिन्दी में इतनी संलग्नता के साथ ऐसा परिश्रम करनेवाले विरले ही होंगे। तपस्या कहूँ कि लगन कि साधना....or a passionate pursuit...? Whatever, you are doing a very useful job...kudos! big...big...kudos
—उदय प्रकाश; वरिष्ठ कवि-कथाकार
Jayashankar Prasad : Mahanta Ke Aayam
- Author Name:
Karunashankar Upadhyay
- Book Type:

-
Description:
जयशंकर प्रसाद के रचनात्मक लेखन में भारतीय वाङ्मय की सम्पूर्ण प्रतिभा बोलती है जो भारतीय जन को बड़े स्वप्न देखने और उन्हें सत्य साकार करने के लिए प्रेरित करती है। वे अपने जीवन-दर्शन और जीवन-स्वप्न का प्रमाणीकरण करने वाले कलाकार हैं। उनके विराट एवं बहुआयामी व्यक्तित्व में जो आत्मप्रसार और आत्मपरिष्कार का भाव है वह भारत तथा हिन्दी जाति का समवेत सांस्कृतिक अवचेतन है।
अपने समन्वयात्मक चिन्तन के माध्यम से प्रसाद ने कविता में आत्मज्ञान एवं आन्तरिक संगति के माध्यम से मानव-जीवन में आनन्दवाद की प्राण-प्रतिष्ठा की। उन्होंने जिस कौशल के साथ आत्म-वेदना को विश्व-वेदना में रूपान्तरित किया, वह अपनी संवेदना को सांस्कृतिक धरातल एवं इतिहास-बोध द्वारा सर्जनात्मक सार्थकता प्रदान करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
प्रसाद का सम्पूर्ण लेखन साहित्य, संगीत और कला की एकता का उज्ज्वलतम विग्रह है। उनका कृतित्व मानव जाति को सत्य, शिव और सौन्दर्य के समन्वय द्वारा पूर्ण सत्य, उदात्त प्रेम, अनन्त रमणीय सौन्दर्य और अखंड आनन्द तक ले जाता है। वे बड़ी चिन्ता के रचनाकार हैं और उनके चिन्तन के केन्द्र में भारतीय अस्मिता-बोध और विश्व-मनुष्यता का मंगल है। इसके लिए वे भारत-बोध का एक अभिनव प्रतिमान निर्मित करते हैं, साथ ही विश्वजीवन तथा सभ्यता के प्रति अतिशय गहन विमर्श प्रस्तुत करते हैं। इसीलिए उनके साहित्य को सम्पूर्णता में समझना और उसकी सम्यक् व्याख्या करना अपेक्षाकृत कठिन रहा है।
इस ग्रन्थ में विद्वान लेखक ने अन्तर्दृष्टि और विश्व-संदृष्टि के बल पर भारत-बोध को आत्मसात् करके उनके कृतित्व से आन्तरिक संलग्नता स्थापित करते हुए उसके वस्तुनिष्ठ विश्लेषण का गहन प्रयास किया है। इसमें गीता के अठारह अध्यायों की तरह महाकवि जयशंकर प्रसाद की महानता के अठारह प्रतिमान निर्मित किए गए हैं जिनके आधार पर विश्व के महत्तम कलाकारों की रचनात्मकता का विश्लेषण भी सहज संभाव्य है। प्रसाद के जीवन और व्यक्तित्व के अनछुए सन्दर्भों को भी इसमें देखा जा सकता है।
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