Hamari Sanskritik Ekta
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘हमारी सांस्कृतिक एकता' भाषणों और लेखों का संग्रह है। प्रायः सबका विषय भाषा और संस्कृति है। पुस्तक अपने विवेचन-विश्लेषण में दिनकर जी के गहन चिन्तन का द्योतक है। राष्ट्रकवि ने अपनी इस पुस्तक में भारत की विविधता में एकता पर विचार करते हुए भाषा और संस्कृति की भूमिका को वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के सन्दर्भ में रेखांकित करने की जिस तार्किक दृष्टि का परिचय दिया है, वह एक मिसाल है। उन्होंने उन कारणों की भी तलाश करने की कोशिश की है जिनसे भारतीय एकता अपने भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, भाषिक आदि स्तरों पर प्रभावित होती रही है।</p>
<p>'संस्कृति है क्या?', 'यह देश एक है', 'भारतीय जनता की रचना', 'आर्य और आर्येतर संस्कृतियों का मिलन', 'बुद्ध से पहले का हिन्दुत्व', 'हिन्दुत्व से विद्रोह', 'वैदिक धर्म से विद्रोह', 'हिन्दुत्व का खरल', 'प्राचीन भारत और बौद्धिक उत्कर्ष' पाठों के माध्यम से दिनकर जी ने भारतीय भाषा और संस्कृति पर एक सम्पूर्णता की खोज में अपना जो आख्यान प्रस्तुत किया है, वह पाठकों-अध्येताओं को समृद्ध करनेवाला है।</p>
<p>एक अत्यन्त महत्त्पूर्ण और संग्रहणीय पुस्तक।
ISBN: 9789389243758
Pages: 176
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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साथ कई तरह के क्रूर और अनैतिक सम्बन्धों के अंधड़ भी इस देश में आ गए हैं। यही समय-समय पर
हिन्दी से ताल ठोंक उसे चुनौती देते रहते हैं। अत: ऐसी स्थिति में आज ज़रूरत है, हमें यह सोचने की, कि
स्वतंत्रता संग्राम की सांस्कृतिक, भू-राजनैतिक और आर्थिक स्तर पर तेज़ आवर्त्त वाली भाषा हिन्दी का
स्वरूप कैसे बचा रह सके?
Sahitya Sahchar
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: साहित्यिक पुस्तकें हमें सुख-दुःख की व्यक्तिगत संकीर्णता और दुनियावी झगड़ों से ऊपर ले जाती हैं और सम्पूर्ण मनुष्य जाति के और भी आगे बढ़कर प्राणिमात्र के दुःख-शोक, राग-विराग, आह्लाद-आमोद को समझने की सहानुभूतिमय दृष्टि देती हैं। वे पाठक के हृदय को इस प्रकार कोमल और संवेदनशील बनाती हैं कि वह अपने क्षुद्र स्वार्थ को भूलकर अशिवों के सुख-दुःख को अपना समझने लगता है। सारी दुनिया के साथ आह्लाद का अनुभव करने लगता है। एक शब्द में इस प्रकार के साहित्य को ‘रचनात्मक साहित्य’ कहा जा सकता है। क्योंकि ऐसी पुस्तकें हमारे ही अनुभव के ताने-बाने से एक नए रस-लोक, की रचना करती हैं। इस प्रकार की पुस्तकों को ही, संक्षेप में ‘साहित्य’ कहते हैं। साहित्य शब्द का विशिष्ट अर्थ यही है। प्रस्तुत पुस्तक में इस श्रेणी की पुस्तकों के अध्ययन करने का तरीक़ा बताना ही आचार्य द्विवेदी जी का संकल्प है।
Aalochana Ke Naye Pariprekshya
- Author Name:
Manoj Pandey
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Constitution, Culture and Nation
- Author Name:
Kalraj Mishra
- Book Type:

- Description: Through this book, I am handing over the articles which I had written from time to time on the issues related to the Constitution, Indian Culture, and the nation to the readers out there. The Constitution of the country that was written after the independence of the country has the echo of this very culture of the nation. The Indian Constitution is based on the values of equality and liberty to all irrespective of caste, religion, class, etc. This is our culture. The Constitution, the culture, and nation are actually intertwined. I believe that the nation becomes stronger only when its people are committed to following the values associated with the Constitution and culture. Even though we got freedom from the British in 1947, the real freedom of the country means writing our own destiny. It is also important to uphold freedom. Upholding freedom means committing to fulfilling one’s duties towards its nation and enjoying the rights written in our Constitution. I like to call the ‘Indian Constitution’ a ‘global document of human rights’. The reason being the perfect blend of rights and duties consisting the lofty values allied with life on which the development of humanity is founded.
Jaishankar Prasad
- Author Name:
Nandulare Vajpeyi
- Book Type:

- Description: ‘जयशंकर प्रसाद’ सन् 1939 में प्रकाशित आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की प्रारम्भिक कृति है जो नए संस्करण के साथ साहित्य प्रेमियों, छात्रों के लिए उपलब्ध है। इसमें प्रसाद जी पर लम्बी भूमिका के साथ पन्द्रह निबन्ध हैं। कथा-साहित्य, उपन्यास, काव्य और नाटकों पर प्रसाद जी के विराट व्यक्तित्व का यह समाकलन है। रचनाकार की अन्तःप्रेरणा, अनुसन्धान का परिचय इस पुस्तक में प्राप्त है। इस पुस्तक में कवि, कथाकार, नाटककार प्रसाद को सम्पूर्ण परिवेश में परखा गया है। एक व्यक्ति के इन विभिन्न रंगों में कितनी शालीनता, संस्कार, भाषागत सौष्ठव हमें प्राप्त है, इस पर विस्तृत विवेचन है। अतीत के विशाल चित्रफलक पर पचास वर्षों के लम्बे समय तक उनका साहित्य जगत पर एकच्छत्र एकाधिकार निःसन्देह गौरव का विषय है।
Rukh
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

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Description:
वरिष्ठ कवि कुँवर नारायण घनीभूत जीवन-विवेक सम्पन्न रचनाकार हैं। इस विवेक की आँख से वे कृतियों, व्यक्तियों, प्रवृत्तियों व निष्पत्तियों में कुछ ऐसा देख लेते हैं जो अन्यत्र दुर्लभ है। समय-समय पर उनके द्वारा लिखे गए लेख आदि इसका प्रमाण हैं। ‘रुख़’ कुँवर नारायण के गद्य की छठी पुस्तक है। पुस्तक के सम्पादक अनुराग वत्स के शब्दों में ‘पहला हिस्सा स्वभाव में समीक्षात्मक, दूसरा संस्मरणात्मक और वक़्त-वक़्त पर लिखी गई टिप्पणियों का है।’
कुँवर जी विभिन्न कृतियों को पढ़ते हुए समीक्षात्मक अभिव्यक्तियों के बहाने अपने तर्कों की जाँच करते हैं। उन पद्धतियों पर भी प्रकाश डालते हैं जिन पर चलकर किसी कविता, उपन्यास या आलोचना के अन्त:पाठ तक पहुँचा जा सकता है। अपने समकालीनों या सहयात्रियों पर कुँवर जी संकोच मिश्रित आत्मीयता के साथ लिखते हैं। संक्षिप्त किन्तु महत्त्वपूर्ण। यह भी कि संस्मरणशीलता के बीच में कई बार अनेक ज़रूरी सूत्र रेखांकित हो गए हैं। नामवर सिंह पर लिखते हुए वे कहते हैं, ‘साहित्य मुख्यत: राजनीतिक समाज नहीं है—कला और संस्कृति की दुनिया है। यह दुनिया बहुत बड़ी भी हो सकती है और बहुत संकुचित भी।
एक ऐसे समय में जब राजनीति की नैतिकता का ख़ुद का चेहरा विकृत हो चुका है, उसके संस्कारों की छाया साहित्य पर पड़ना शुभ लक्षण नहीं दीखता।’
छोटी टिप्पणियाँ आगे कहीं विस्तार से लिखने या बोलने के सूत्र सरीखे हैं। या, किसी को लिखे गए पत्र के हिस्से। ये टिप्पणियाँ कई बार चकित कर देती हैं। मर्म को छूती हुई। कृष्णा सोबती के लेखन पर कुँवर जी की टिप्पणी है, ‘कृष्णा सोबती के अन्दर अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े होने की जो एक दृढ़ता और मज़बूती है, वह उनकी भाषा के लगभग चुनौती-भरे मुहावरे में प्रतिबिम्बित होती है।’
समग्रत: एक विशिष्ट भाषिक संस्कार में व्यक्त यह पुस्तक सन्दर्भित विषयों के साथ स्वयं कुँवर नारायण के अन्तर्मन को बूझने का अनूठा अवसर है।
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