
Adikal: Purani Hindi
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
218
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
436 mins
Book Description
हिन्दी साहित्य के इतिहास का आदिकाल उसका स्वरूय-विकास एवं नामकरण विवादास्पद रहा है। इसका आरम्भ छठी शती से बारहवीं शती तक सिद्ध किया गया है। इसे अनेक नाम दिए गए हैं. जैसे- वीरगाथा काल, उदूभवकाल, उत्पत्तिकाल बीज बपन काल, सन्धिकाल, सिद्ध सामन्त काल, चारणकाल आदि। किन्तु अब 'आदिकाल' नाम ही बहुमान्य हो गया है।</p> <p>प्राचीन हिन्दी भाषा के भी कई नाम सुझाए गए हैं, जैसे—परवर्ती अपभ्रंश प्रकृताभास भाषा, संघाभाषा, हिन्दवी, पुरानी हिन्दी, अवहट्ट अवहंस, देसिलबयनर, डिंगल, पुरानी राजस्थानी गूजरी, पिंगल, भाखा, कोसली, दक्खिनी हिन्दी, देशभाषा आदि। किन्तु अब राहुलजी और गुलेरीजी के द्वारा स्थापित 'पुरानी हिन्दी संज्ञा ही तर्क संगत लगती है।</p> <p>आदिकाल में सिद्धनाथ, जैन, सन्त, सूफी रामकृष्णाश्रयी भक्त, चारण, लोककवि, नीतिकार वीरकाव्य परम्परा के प्रशस्तिकार, जीवनीकार, शृंगारी कवि, वैयाकरण गद्यकार सभी का योगदान रहा है।</p> <p>आदि हिन्दी कवि के रूप में पुष्य, पुण्ड, पुष्पदंत, विमलसूरि आदि की अपेक्षा सरहपाद- सरह (स्थितिकाल-750-769) को मागधी-सौरसेनी अपभ्रंश से विकसित 'पुरानी हिन्दी' के सर्वाधिक सन्निकट होने के कारण यह श्रेय देना ज्यादा तथ्याश्रित होगा।</p> <p>यह उल्लेखनीय है कि साहित्य की प्रायः प्रत्येक प्रवृत्ति के बीज इस अवधि में अंकुरित हुए हैं। इतिहास लेखन करते हुए जिन्हें पहले मध्यकालीन माना गया था, अब उनमें से कुछ आदिकाल में गणनीय हैं।