Vivah Ki Museebaten
Author:
Ramdhari Singh DinkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
यह पुस्तक राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के चिन्तनपूर्ण, लोकोपयोगी निबन्धों का श्रेष्ठ संकलन है। दिनकर जी के चिन्तन-स्वरूप का विस्मयकारी साक्षात्कार करानेवाले ये निबन्ध पाठक के ज्ञान-क्षितिज का विस्तार भी करते हैं। इन निबन्धों में जहाँ एक ओर विवाह, प्रेम, काम, नैतिकता और शिक्षा जैसे विषयों पर विद्वान कृतिकार का सन्तुलित दृष्टिकोण उद्घाटित होता है, वहीं दूसरी ओर लोकतंत्र, धर्म और विज्ञान तथा मूल्य-ह्रास जैसे ज्वलन्त प्रश्नों पर उनकी प्रगतिशील दृष्टि मार्गदर्शक की भूमिका निभाती है।</p>
<p>भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति-पद पर कार्य करते हुए दिनकर जी ने जो अनुभव किया, उसका लेखा-जोखा प्रस्तुत है ‘शिक्षा : तब और अब’ निबन्ध में इस चेतावनी के साथ कि ‘शिक्षा का स्तर अभी भी बहुत नीचा है। अगर वह और भी नीचे लाया गया तो बेकारों की फ़ौज बढ़ेगी और उनकी फ़ौज भी, जिन्हें कोई भी काम नहीं सौंपा जा सकता।’</p>
<p>इसी तरह ‘पुरानी और नई नैतिकता’, ‘लोकतंत्र : कुछ विचार’, ‘धर्म और विज्ञान’, ‘मूल्य-ह्रास के पच्चीस वर्ष’ निबन्धों में सारगर्भित विचार-सूक्तियाँ ही नहीं, एक प्रबुद्ध विचारक की सामयिक चेतावनी भी है।</p>
<p>ये निबन्ध राष्ट्रकवि दिनकर के व्यक्तित्व को भी समझने में सहायक सिद्ध होते हैं।</p>
<p>समाज में अनन्त काल से प्रेम के प्रति सन्तों, चिन्तकों और शास्त्रकारों का व्यवहार पुलिस का-सा रहा है। और उन्हीं के भय से मनुष्य ने अपने चेहरे पर पवित्रता का नक़ाब लगाना मंज़ूर कर लिया, यद्यपि इस नक़ाब का उसे अभ्यास नहीं था। अथवा यों कहें कि यह नक़ाब जितने अच्छे सूत का है, उतने बारीक और महीन सूत आदमी की भीतरी ज़िन्दगी में नहीं काते जाते।
ISBN: 9789389243079
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Doosari Parampra Ki Khoj
- Author Name:
Namvar Singh
- Book Type:

-
Description:
‘दूसरी परम्परा की खोज’ में नामवर सिंह आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति और साहित्य की उस लोकोन्मुखी क्रान्तिकारी परम्परा को खोजने का सर्जनात्मक प्रयास करते हैं जो कबीर के विद्रोह के साथ ही सूरदास के माधुर्य और कालिदास के लालित्य से रंगारंग है।
आठ अध्यायों वाली इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय का प्रस्थान-बिन्दु आचार्य द्विवेदी की कोई-न-कोई कृति है, किन्तु यह पुस्तक उन कृतियों की व्याख्या मात्र नहीं है और न उनके मूल्यांकन का प्रयास है बल्कि उनके माध्यम से उस मौलिक इतिहास-दृष्टि के उन्मेष को पकड़ने की कोशिश की गई है जिसके आलोक में समूची परम्परा एक नए अर्थ के साथ उद्भासित हो उठती है।
‘दूसरी परम्परा की खोज’ से एक ऐसा व्यक्तित्व उभरता है जो अपनी सहजता में मोहक है, अपने संघर्ष और पराजय में भी गरिमामय है और अपनी मानव-आस्था में परम्परा के सर्वोत्तम मूल्यों का साक्षात् विग्रह है—कुटज के समान साधारण होते हुए भी मनस्वी और देवदारु के समान मस्ती से झूलते हुए भी अभिजात तथा अपनी ऊँचाइयों में एकाकी। आलोचना कितनी सर्जनात्मक हो सकती है, इसका उदाहरण है—‘दूसरी परम्परा की खोज’।
Hindi Aalochana Ka Vikas
- Author Name:
Madhuresh
- Book Type:

-
Description:
मधुरेश की प्रस्तुत पुस्तक ‘हिन्दी आलोचना का विकास’ सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ही आलोचना की मुख्य प्रवृत्तियों और आलोचकों के मूल्यांकन का प्रयास करती है। हिन्दी आलोचना में लोगों के अपने कुछ प्रिय आलोचक और युग रहे हैं।
मधुरेश वस्तुनिष्ठ और विश्वसनीय रूप में समूची हिन्दी आलोचना और आलोचकों का मूल्यांकन करते हैं। न उनका कोई प्रिय युग है, न ही आलोचक। वे सदैव सामाजिक विकास के सन्दर्भ में आलोचना को देखते-परखते हैं और कैसी भी चयनवादी दृष्टि से बचते हैं। हिन्दी में मार्क्सवादी और समकालीन आलोचना पर कदाचित् पहली बार यहाँ इतने सम्पूर्ण रूप में विचार हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी आलोचना और आलोचकों के लिए अनिवार्य और उपयोगी है।
Aalochana Se Aagey
- Author Name:
Sudhish Pachauri
- Book Type:

- Description: उत्तर-आधुनिकतावाद हिन्दी में अब एक निर्णायक विमर्श बन चला है और उत्तर-संरचनावादी ‘पाठ’ की रणनीतियाँ हिन्दी साहित्य की उपलब्ध व्याख्याओं में नए-नए विपर्यास और उपद्रव पैदा कर रही हैं। विखंडनवादी पाठ-प्रविधियों ने हिन्दी में नव्य-समीक्षा को रिटायर कर दिया है। ‘आलोचना’ पद भी, अपनी व्यतीत आधुनिकतावादी प्रकृति और उत्तर-संरचनावादी रणनीतियों की मार के चलते, संकटग्रस्त होकर संदिग्ध हो चला है। ये दिन आलोचना के ‘विमर्श’ में बदल जाने के दिन हैं। विमर्श जो ‘अर्थ’ का ‘उत्पादन’ ही नहीं करते, उन्हें ‘संगठित’ भी करते हैं और अनिवार्यत: सत्तात्मक होते हैं। विमर्श वस्तुत: आलोचना का विखंडन है, इसीलिए आलोचना से आगे है। सुधीश पचौरी ने उत्तर-आधुनिकतावादी और उत्तर-संरचनावादी विमर्शों को हिन्दी में स्थापित किया है। लगभग दो दशक के सभी अग्रगामी विमर्श, इन उत्तर-आधुनिकतावादी और उत्तर-संरचनावादी पदावलियों से उलझते-सुलझते चलते हैं। समाजशास्त्रों में इन्हें लगातार जगह मिल रही है। साहित्य अध्ययन में, पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों में और शोधों में ये विमर्श निर्णायक होने लगे हैं। ये वर्तमान की माँग हैं और उसका भवितव्य भी। सुधीश पचौरी की यह किताब हिन्दी के जागरूक पाठकर्ताओं के लिए एक ज़रूरी किताब है।
Anuvad : Avadharna evam vimarsh
- Author Name:
Shrinarayan Sameer
- Book Type:

- Description: नवोन्मेष तथा सृजनशीलता को अनुवाद का स्वभाव घोषित करनेवाली यह किताब अनुवाद को दो भिन्न समुदायों, राष्ट्रीयताओं और देशों को समझने एवं उनके मत-मतान्तरों को जानने का ज़रूरी औजार मानती है। फलस्वरूप यह अनुवाद को भाषा-संवाद मानने की प्रचलित मान्यता से आगे बढ़कर उसे सभ्यता-संवाद मानने का तर्क रचती है। इसमें अनुवाद को आधारभूत पहलुओं से समझने और विवेचित करने का प्रयास है। इस प्रयास में अनुवाद की अवधारणा को विखंडनवादी विमर्श के धरातल पर भी रखकर जाँचा-परखा गया है। विवेचन में इस बात की ख़ास सावधानी बरती गई है कि अत्याधुनिकता की चकाचौंध में अनुवाद का कला-कौशल धूमिल न हो जाए, बल्कि उसमें सृजन की लौ सर्वत्र जलती रहे। अक्सर अनुवाद को भाषा-कर्म कहा जाता है, मगर यह भाषा-कर्म कोई सामान्य कर्म नहीं है। मनुष्य-समाज की संवेदना, परम्परा, संघर्ष और सम्पूर्ण जीवन-राग भाषा के नियामक तत्त्व होते हैं। स्वाभाविक है कि अनुवाद के चिन्तन और सरोकार भाषा के नियामक तत्त्वों से जुड़कर गहन और व्यापक हो जाते हैं। शायद इसीलिए अनुवाद में मूलवत् होने की आकांक्षा और वास्तविकता के बीच टकराव मिलता है। किन्तु इस तरह के टकराव को यह किताब भाषा, संस्कृति और सभ्यता के विभाजक छोरों के हवाले नहीं करती, किसी क़िस्म की जिरह से उसका महिमामंडन भी नहीं करती; बल्कि अनुवादकर्ता के कौशल और क़ाबिलियत का विमर्श रचती है। अकारण नहीं, यह किताब अनुवाद को सृजन मानती है—किसी भाषा-सृजन का दूसरी भाषा में सृजन—अनुरचना की शक्ल में मूल रचना की परवर्ती रचना। अनुवाद को रचना का अनश्वर उद्यम घोषित करना निस्सन्देह इस किताब का मौलिक और सर्वथा नया विमर्श माना जाएगा।
Marxvadi, Samajshastriya Aur Aitihasik Alochna
- Author Name:
Pandeya Shashibhushan 'Shitanshu'
- Book Type:

-
Description:
साहित्य की आलोचना केवल अन्तर्लक्ष्यी (Intrinsic) अथवा पाठ-केन्द्रित (Text Centered) आलोचना नहीं होती, अपितु वैसी बहिर्लक्ष्यी (Extrinsic) आलोचना भी होती है, जो पाठ से बाहर-पाठ के सम्यक् अवबोध के लिए रचनाकार के जीवनवृत्त, उसके जीवन-दृष्टिकोण, उसके युग, उसके सामाजिक यथार्थ, उसकी परम्परा, उसकी संस्कृति आदि को सामाजिक सन्दर्भों में रखकर देखती-परखती और साहित्य का मूल्यांकन करती है। ऐसी आलोचना शब्दों के जोड़-मात्र से बनी वैसी हर रचना को, जिसके पीछे ठोस वास्तविकता नहीं होती, वायवीय मानती है—‘शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प:’ (योगसूत्र)।
हिन्दी में अब तक इसके सिद्धान्त पर तात्त्विक विवेचन और सार्थक बहस प्रस्तुत करनेवाली एक भी पुस्तक नहीं है। ऐसे में पाश्चात्य साहित्य-सिद्धान्त के प्रति डॉ. शीतांशु के वर्षों के गहरे लगाव, सम्यक् अध्ययन और अनवरत चिन्तन से परिणामित उनकी यह पुस्तक हिन्दी में पहली बार बहिर्लक्ष्यी आलोचना-सिद्धान्तों का तथ्यपूर्ण, प्रामाणिक उप-स्थापन करती क्रमश: मार्क्सवादी, समाजशास्त्रीय, साहित्येतिहास बनाम ऐतिहासिक और ऐतिहासिक आलोचना की स्वरूपगत मान्यताओं का समीचीन विवेचन प्रस्तुत करती है। पूर्वग्रहहीन सैद्धान्तिक निरूपण के साथ-साथ प्रतिमानों और निदर्शनों की बोध-व्याख्या इस पुस्तक की विशेषता है, जिससे बहुमुख अनुप्रयोग की दिशा भी सहज ही उजागर हो उठी है।
प्रस्तुत पुस्तक यदि एक ओर मार्क्सवादी आलोचनात्मक चिन्तन को रूढ़िवादी विवेचन-सीमा से आगे लाकर उसके उत्तरपक्षीय सैद्धान्तिक स्वरूप तक को निरूपित-व्यवस्थित करती है, तो दूसरी ओर समाज में साहित्य की स्थितिगत पहचानवाली चकाचौंध से निकलकर समाजशास्त्रीय आलोचना के बतौर साहित्य मे निरूपित समाज की पहचान-प्रक्रिया की भी गम्भीर विवेचना करती है; यदि एक ओर साहित्येतिहास बनाम ऐतिहासिक आलोचना की प्रकृति, सैद्धान्तिकी और प्रकार्य-प्रक्रिया को आलोचित-प्रत्यालोचित करती है, तो दूसरी ओर उस ऐतिहासिक आलोचना को भी सावयव और सप्रमाण उपस्थापित करती है, जिसे कभी हिन्दी के एक वरिष्ठ आलोचक ने फतवा देते हुए आलोचना के क्षेत्र से ही ख़ारिज कर दिया था। तथ्यत: ‘बहिर्लक्ष्यी आलोचना-सिद्धान्तों को जानने, पहचानने और मापने; साथ ही साहित्य को समझने और समझाने की दृष्टि से डॉ. शीतांशु की यह पुस्तक एक अनिवार्य पठनीय पुस्तक है, जिससे हिन्दी के एक बड़े अभाव की महत्त्वपूर्ण पूर्ति हो जाती है।
Kargil Girl
- Author Name:
Flt Lt Gunjan Saxena
- Book Type:

- Description: सन् 1994 में बीस साल की गुंजन सक्सेना पायलट कोर्स के लिए चौथे शॉर्ट सर्विस कमिशन (महिलाओं के लिए) की चयन प्रक्रिया में शामिल होने के लिए मैसूर जानेवाली ट्रेन पर सवार होती है। चौहत्तर सप्ताह की कमरतोड़ ट्रेनिंग के बाद वह डिंडीगुल स्थित एयरफोर्स एकेडमी से पायलट ऑफिसर गुंजन सक्सेना के रूप में पास आउट होती है। 3 मई, 1999 को स्थानीय चरवाहों ने कारगिल में पाकिस्तानी घुसपैठ की खबर दी। मध्य मई तक घुसपैठियों को खदेड़ने के मकसद से हजारों भारतीय सैनिक पहाड़ पर लड़े जानेवाले युद्ध में शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ का आगाज किया, जिसमें उसके सभी पायलट मोर्चे पर थे। महिला पायलटों को जहाँ अब तक युद्ध क्षेत्र में नहीं उतारा गया था, वहीं उन्हें घायलों के बचाव, रसद गिराने और टोह लेने के लिए भेजा गया। गुंजन सक्सेना को अपनी क्षमता प्रमाणित करने का यह स्वर्णिम अवसर था। द्रास और बटालिक क्षेत्रों में बेहद जरूरी आपूर्ति को हवा से गिराने और लड़ाई के बीच से घायलों का बचाव करने से लेकर, पूरी सावधानी से दुश्मनों के ठिकानों की जानकारी अपने सीनियर अधिकारियों तक पहुँचाने और एक बार तो अपनी एक उड़ान के दौरान पाकिस्तानी रॉकेट मिसाइल से बाल-बाल बचने तक, सक्सेना ने निर्भीकतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाया, जिससे उन्होंने यह नाम अर्जित किया—कारगिल गर्ल। महिलाओं की सामर्थ्य, क्षमताओं और अद्भुत जिजीविषा की कहानी है गुंजन सक्सेना की यह प्रेरणाप्रद पुस्तक
Etihasik Bhashavigyan Aur Hindi Bhasha
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
रामविलास जी ने भाषा की ऐतिहासिक विकास-प्रक्रिया को समझने के लिए प्रचलित मान्यताओं को अस्वीकार किया और अपनी एक अलग पद्धति विकसित की।
वे मानते थे कि कोई भी भाषापरिवार एकान्त में विकसित नहीं होता, इसलिए उसका अध्ययन अन्य भाषापरिवारों के उद्भव और विकास से अलग नहीं होना चाहिए। वे चाहते थे कि प्राचीन लिखित भाषाओं की सामग्री का उपयोग करते समय जहाँ भी समकालीन उपभाषाओं, बोलियों आदि की सामग्री प्राप्त हो, उस पर भी ध्यान दिया जाए, इसी तरह आधुनिक भाषाओं पर काम करते हुए उनकी बोलियों के भाषा-तत्त्वों को भी सतत ध्यान में रखा जाए। भाषा की विकास-प्रक्रिया के विषय में उनकी मान्यता थी कि भाषा निरन्तर परिवर्तनशील और विकासमान है। विरोध और भिन्नता के बिना भाषा न गतिशील हो सकती है, न वह आगे बढ़ सकती है। इसलिए किसी भी भाषा के किसी भी स्तर पर, विरोधी प्रवृत्तियों और विरोधी तत्त्वों के सहअस्तित्व की सम्भावना के लिए हमें तैयार रहना चाहिए।
इन तथा कुछ और बातों, जो रामविलास जी की भाषावैज्ञानिक समझ का अनिवार्य अंग थीं, को ध्यान में रखते हुए ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के क्षेत्र में अनुसन्धान नहीं किया गया, अगर ऐसा किया जाता तो निश्चय ही कुछ नए निष्कर्ष हासिल होते। रामविलास जी ने विरोध का जोखिम उठाकर भी यह किया, जिसके प्रमाण इस पुस्तक में भी मिल सकते हैं।
Premchand
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
‘प्रेमचन्द’ नामक यह पुस्तक डॉ. रामविलास शर्मा की पहली आलोचना-कृति है। कहा जा सकता है कि न सिर्फ़ पाठकों के लिए इसका ऐतिहासिक महत्त्व है, बल्कि स्वयं रामविलास जी के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण कृति थी।
लेकिन इसकी ऐतिहासिकता के अनेक आयाम हैं, जिनमें से एक है प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर 1935-40 के दौरान चले कई तरह के विवादों में सार्थक हस्तक्षेप। सन्दर्भतः इस पुस्तक ने उन लेखकों को भी जवाब दिया जो प्रेमचन्द-साहित्य के प्रगतिशील पक्ष को नकार रहे थे और उन प्रगतिशीलों को भी जो यूरोपीय लेखकों के प्रभाववश प्रेमचन्द की प्रगतिशील रचनादृष्टि को पिछड़ी बता रहे थे। इस संस्करण में एक लम्बी भूमिका जोड़कर डॉ. शर्मा ने गोर्की, टाल्स्टाय और दोस्तोएव्स्की के रचनाकर्म के सन्दर्भ में प्रेमचन्द-साहित्य की प्रगतिशील मूल्यवत्ता से जुड़ी अपनी मूल प्रस्थापनाओं को और भी सुदृढ़ किया है।
संक्षेप में, प्रेमचन्द-साहित्य को लेकर इस पुस्तक की विवेचना-दृष्टि को रामविलास जी के ही शब्दों में यूँ रखा जा सकता है : “समाज के विभिन्न स्तरों का व्यापक ज्ञान संसार के बहुत कम साहित्यिकों में मिलेगा। प्रेमचन्द के विचार बहुत स्पष्ट नहीं थे, परन्तु उनमें कलाकार की सचाई की कमी न थी।...आज के साहित्यिक के विचार बहुत कुछ स्पष्ट हो गए हैं; परन्तु उसके पास प्रेमचन्द का अनुभव नहीं, उनकी-सी सचाई भी कम है। प्रेमचन्द की कृतियों का हमारे लिए यह सन्देश है कि हम जनता में जाकर रहें और काम करें—रचनाओं में ‘जनता-जनता’ कम चिल्लाएँ। प्रेमचन्द ने साहित्य में कितना काम किया है और कहाँ से अपनी साहित्यिकता आरम्भ करने से लेखक प्रगतिशील बन सकता है, कम से कम इतना इस पुस्तक के पढ़ने से स्पष्ट हो जाना चाहिए।”
Bhakti Kavya Yatra
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Shreshth Lalit Nibandh : Vol. 2
- Author Name:
Krishna Bihari Mishra +1
- Book Type:

-
Description:
‘ललित निबन्ध' नाम से ख्यात व्यक्तित्व-प्रधान निबन्ध-विधा की भारतीय भाषाओं में अलग-अलग संज्ञा है, पर सबकी प्रकृति एक ही है। निबन्ध शैली में रचित ललित निबन्ध के विधा-वैशिष्ट्य को संक्षेप में रेखांकित करने की चेष्टा प्रथम खंड के सम्पादकीय वक्तव्य में की गई है।
प्रस्तुत खंड में संकलित हिन्दीतर भारतीय भाषा के निबन्धों को देखकर भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट विधा का परिचय मिल जाएगा। संक्रमण काल के जातीय परिदृश्य और संवेदना की व्यंजक अभिव्यक्ति से यह विधा अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है। इसकी उन्मुक्त प्रकृति अधिक सम्भावनापूर्ण है। हास-परिहास और गपशप के व्याज से ज्वलन्त सांस्कृतिक प्रश्नों, मनुष्य की अस्मिता और धूमायित करनेवाले मानव-प्रणीत प्रपंच-प्रदूषण और समाज के अधोमुखी प्रवाह पर तीखा व्यंग्य-कटाक्ष इन निबन्धों में ललित मुद्रा में प्रकट हुआ है।
Chhayavad Aur Uske Kavi
- Author Name:
Vijay Bahadur Singh
- Book Type:

-
Description:
महान हिन्दी आलोचक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कक्षा में बैठकर जिस एक छात्र ने अपने आचार्य की सीमाओं को आक्रामक शैली में इंगित किया उसका नाम नन्द दुलारे वाजपेयी था। उसी छात्र ने यह भी घोषित किया कि उनकी लिखी हुई पुस्तकें और उनके तैयार किए हुए विद्यार्थी, जिनमें मैं भी एक होने का गर्व करता हूँ, किन्तु मैं उनकी प्रतिध्वनि नहीं हूँ, क्योंकि प्रतिध्वनि कभी मूल ध्वनि की बराबरी नहीं कर सकती। अस्तु, मेरी अपनी ध्वनि है।
यही आलोचक नन्द दुलारे वाजपेयी अपने आचार्य शुक्ल से छायावादी काव्य को लेकर असहमत होकर इस परिभाषा और व्याख्या पर उतर आया कि कविता जिस स्तर पर पहुँचकर अलंकार-विहीन हो जाती है। वहाँ वह वेगवती नदी की भाँति हाहाकार करती हुई हृदय को स्तम्भित कर देती है। उस समय उसके प्रवाह में अलंकार ध्वनि वक्रोक्ति आदि न जाने कहाँ बह जाते हैं और सारे सम्प्रदाय न जाने कैसे मटियामेट हो जाते हैं।'
शुक्ल जी को युग प्रवर्तक आलोचक मानते हुए भी आचार्य वाजपेयी ने उनकी प्रबन्ध काव्य सम्बन्धी अवधारणा के विपरीत यह स्थापित किया कि प्रगीतों में ही कवि का व्यक्तित्व पूरी तरह प्रतिबिम्बित होता है।'
शुक्लोत्तर आलोचना के इस सर्वप्रथम आलोचक आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी ने हिन्दी में स्वच्छन्दतावादी आलोचना का प्रवर्तन किया। यह पुस्तक इसी का एक जीवन्त दस्तावेज है।विजय बहादुर सिंह
Kathin Ka Akharhebaaz Aur Anya Nibandh
- Author Name:
Vyomesh Shukla
- Book Type:

- Description: ता पढ़नेवाले अल्पसंख्यक तो हैं, लेकिन अपार हैं। उन्हें गिनती में सीमित नहीं किया जा सकता। वे कविता से रिश्ता न रखनेवाले बहुसंख्यकों से कम ज़रूर हैं, लेकिन परिमेय नहीं हैं। कविता से ख़ुद को और ख़ुद से कविता को बदलनेवाले वे लोग लगातार हैं, लेकिन भूमिगत और चुप्पा हैं। वे इस तरह छिपे हुए, बिखरे हुए, गुमशुदा और सतह के नीचे हैं कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती। दरअसल, इस आत्मलिप्त और सतही संसार में कविता की सक्रियताएँ एक ख़ास तरह की अंडरग्राउंड एक्टिविटी हैं। मेरी बात का यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि हम वृहत्तर समाज में कविता के लिए कोई स्पेस या रियायत माँग रहे हैं। हम ऐसी स्थिति से क्षुब्ध ज़रूर हैं, लेकिन मुख्यधारा का हीनतर अनुषंग बन जाने के लिए कभी कोई कोहराम नहीं मचा रहे हैं। हम उस समाज के अधुनातन स्पन्दनों की, उसके उत्थान और पतन की, उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य की मीमांसा करनेवाला गद्य लिखना चाहते हैं, जिसका हम ख़ुद बहुत छोटा हिस्सा हैं। —इसी पुस्तक
Kavi Nirala
- Author Name:
Nandulare Vajpeyi
- Book Type:

- Description: ‘कवि निराला’ पुस्तक हिन्दी आलोचना में आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी भी एक बहुमूल्य देन हैं। आचार्य वाजपेयी ने निराला को ‘शताब्दी का कवि’ और उनके काव्य को ‘शताब्दी काव्य’ कहा था। उन्होंने अपनी सूक्ष्म दृष्टि से निराला के उस महाकवि को खोज लिया था जो गत, आगत और अनागत सभी को एकाकार कर लेता है। टी.एस. इलियट ने भी महान कवि के परिचय में यही कहा था कि महान कवि वह होता है जो आत्मसात् कर, वर्तमान सन्दर्भों में जीता हुआ भावी की पदचाप भी सुन लेता है। आधुनिक हिन्दी कविता का उद्गम भारतेन्दु-द्विवेदी युग से प्रारम्भ होकर छायावाद युग में पहुँचकर नई करवट लेता है और इस युग की कवि चतुष्टयी प्रसाद, निराला, पन्त और महादेवी के चार स्तम्भों पर उस काव्य को गढ़ता है जिसको सांस्कृतिक प्रौढ़ता आगामी कवियों के लिए न केवल आधार बनती है बल्कि उनके अनुकरण और विकास में स्वयं को धन्य मानती है।
Kavya Bhasha Par Teen Nibandh
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Rating:
- Book Type:

-
Description:
काव्य-भाषा सम्बन्धी चिन्तन समकालीन आलोचना के केन्द्र में आ गया है। हिन्दी में, इस विषय पर मौलिक दृष्टि से लिखी गई पुस्तकें बहुत कम हैं। प्रख्यात आलोचक डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के आलोचनात्मक चिन्तन का प्रमुख प्रतिमान काव्य-भाषा रही है। इस पुस्तक में उन्हीं के लिखे हुए तीन निबन्ध संकलित हैं जिनकी हिन्दी आलोचना में प्रशंसा होती रही है।
इस विषय पर इन निबन्धों का ऐतिहासिक और वैचारिक महत्त्व है।
Samkalin Hindi Upanyas : Samay Se Sakshatkar
- Author Name:
Dr. Alangvam Vijayalaxmi
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी उपन्यास और साठोत्तरी भारतीय जीवन–सन्दर्भ विशिष्ट संवाद–सूत्रों के सहारे आपस में जुड़े हुए हैं। इस जुड़ाव का विस्तार जिन कृतियों में ख़ास तौर पर विद्यमान हैं, उनमें ‘राग दरबारी’, ‘महाभोज’ और ‘जहाँ बाँस फूलते हैं’ की पहचान सबसे अलग है। साठोत्तरी भारत का कड़वा और नंगा सच इन रचनाओं की विषयवस्तु का जनक है। अपने देश और समाज के साथ–साथ अपने समय की परख करने के लिए इन उपन्यासों तथा इनके जैसी आँच रखनेवाले कुछेक अन्य उपन्यासों का अध्ययन विश्लेषण अनिवार्य है।
डॉ. ई. विजयलक्ष्मी ने अपनी इस समीक्षा–पुस्तक में मुख्यत: दस साठोत्तरी उपन्यासों को अध्ययन का आधार बनाया है और उनके सहारे अपने समय से साक्षात्कार का प्रयास किया है। उनके द्वारा चुने गए सभी उपन्यास महत्त्वपूर्ण लेखकों के हैं तथा लम्बे समय से चर्चा में रहे हैं। लेखिका ने उनके विश्लेषण व मूल्यांकन में उपलब्ध सामग्री का सदुपयोग किया है और अपने निजी अध्ययन से प्राप्त नवीन निष्कर्ष पाठकों तक पहुँचाने की कोशिश की है। डॉ. विजयलक्ष्मी का यह समीक्षा–ग्रन्थ अध्ययन की स्वस्थ एवं तटस्थ परम्परा की पहचान कराने वाला है।
Prasad nirala Ageya
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

- Description: 1989 प्रसाद की जन्मशतवार्षिकी का आरम्भ था. 1996 निराला का है। यह अवसर उचित और प्रासंगिक है कि हम इन कवियों के मूल्यांकन और परिप्रेक्ष्य में नये सिरे से रुचि लें, और उनकी रचना के जो पक्ष कहीं अब तक अनदेखे रह गये हैं उन्हें फिर से सृजित करें। साथ-ही-साथ यह अपेक्षित हो जाता है कि यत्न यह समझने का भी हो कि प्रसाद- निराला काव्य के बाद हिन्दी कविता का प्रवाह किन-किन दिशाओं में, कैसे गतिशील हुआ! एक से अधिक अर्थों में यह कहा जा सकता है कि प्रसाद-निराला काव्य के विकास का अध्ययन एक स्तर पर समूचे आधुनिक हिन्दी काव्य के विकास को समझने का यत्न है। यों, प्रसाद-निराला-अज्ञेय : इन तीन शीर्ष कवियों के माध्यम से समूची आधुनिक हिन्दी कविता का सृजनशील रूप हमारे सामने उजागर हो उठता है, और बड़ी बात यह है कि इस आलोचना के द्वारा पाठक अपने आपको इस समृद्ध काव्य-प्रक्रिया का अंग बना पाता है। काव्यालोचन का इससे अधिक स्पृहणीय रूप और क्या सम्भव है, विशेष रूप से प्रसाद निराला जन्मशतवार्षिकी जैसे अवसरों पर!
Uttar Aadhunikta Aur Samkalin Katha-Sahitya
- Author Name:
Lakshmi Gautam
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक ‘उत्तर-आधुनिकता व समकालीनता बोध’ को भारतीय सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का मौलिक प्रयास है। मौलिक इस दृष्टि में, क्योंकि यह विमर्श का विखंडनवादी स्वर लेकर उपस्थित होता है जो केन्द्र व हाशिया दोनों की स्थिति को एक साथ लेकर चलता है, जिसमें टकराहट की त्रासदी से उत्पन्न परिस्थितियों की निर्मिति है। यहाँ ‘महाआख्यानों के अन्त’ के साथ, नवीन लघुता बोध व हाशिए का केन्द्रवर्ती स्वर ही प्रमुखता प्राप्त करता है। इस कृति का मूल मन्तव्य यही रहा है कि हिन्दी जगत आयातित उत्तर-आधुनिक चिन्तन से बचते हुए भारतीय परिदृश्य में उत्तर-आधुनिकता को किसी पूर्वग्रह से मुक्त हो ‘स्वतंत्र विमर्श’ के रूप में उपस्थित करता है।
Hindi Ki Pahali Adhunik Kavita
- Author Name:
Sudipti
- Book Type:

-
Description:
यह पुस्तक उन बाबू महेश नारायण और उनकी कविता 'स्वप्न’ पर केन्द्रित है जिन्हें बिहार में राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और आर्थिक आन्दोलनों का अग्रदूत माना जाता है। बिहार को स्वतंत्र राज्य की हैसियत से प्रगति-पथ पर चलते देखने का सपना जिन लोगों ने सबसे पहले बुना—महेश नारायण उनमें अग्रणी थे।
लेकिन इस पुस्तक का विषय उनकी लम्बी कविता 'स्वप्न’ है जिसे लेखिका ने खड़ी बोली हिन्दी की पहली आधुनिक कविता मानते हुए न सिर्फ उसके प्रमाण प्रस्तुत किए हैं, बल्कि विस्तृत वैचारिक उद्यम से इस सन्दर्भ में पर्याप्त तर्क भी जुटाए हैं। आधुनिक हिन्दी कहाँ से अपने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात कहना शुरू करती है, इतिहास के इस मोड़ को चिह्नित करते हुए लेखिका इस बात पर जोर देती है कि भले ही अवधी और ब्रज आदि में लिखे जा रहे काव्य को इतिहासकार हिन्दी कविता मानते रहे हों, लेकिन खड़ी बोली के रूप में विकसित होनेवाली आधुनिक हिन्दी में कविता का आरम्भ कहाँ से होता है, यह जानना भी हमारे लिए अत्यन्त जरूरी है। बीसवीं सदी में जो हिन्दी सोचने-गुनने वाले हिन्दी समाज की भाषा बनी, उसके सम्मान के लिए भी ऐसा करना आवश्यक है।
'स्वप्न’ जो 'बिहार बंधु’ पत्र में 13 अक्टूबर, 1881 से 15 सितम्बर, 1881 तक धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई, वह कविता है जिसमें पहली बार न सिर्फ शिल्प के स्तर पर एक बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया, बल्कि स्वाधीनता आन्दोलन और उसके प्रिज़्म से दिखती भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक दशा को भी इसमें रेखांकित किया गया। पुस्तक में इस कविता के विभिन्न पाठों के अध्ययन के बाद एक प्रामाणिक और शुद्धतर पाठ भी प्रस्तुत किया गया है, जिसे पढ़कर पाठक स्वयं अनुमान लगा पाएँगे कि 'स्वप्न’ को हिन्दी की पहली आधुनिक कविता क्यों मानना चाहिए!
Hindi Web Sahitya
- Author Name:
Sunilkumar Lawate
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी भाषा और साहित्य की विभिन्न वेबसाइट्स पर प्रकाशित साहित्य का यह पहला व्यवस्थित अनुसन्धान है। इसके अलावा इसमें कम्प्यूटर के उद्भव, वेबसाइटों के निर्माण और पोर्टल्स की बनावट आदि की बुनियादी जानकारी भी दी गई है। सीधे इंटरनेट पर प्रकाशित हिन्दी साहित्य का व्यापक परिचय देनेवाली यह पुस्तक ज्ञानभाषा के रूप में हिन्दी की क्षमता को भी रेखांकित करती है और इंटरनेट जैसे सर्वव्यापी मंच पर हिन्दी के नए उभरते भाषा-वैज्ञानिक स्वरूप को भी स्पष्ट करती है।
यह पुस्तक उन साहित्यकारों, समीक्षकों, अध्यापकों और रचनाकारों के लिए भी ‘आई ओपनर’ का काम करेगी जो अभी तक इंटरनेट से बचते आए हैं और उसकी क्षमता तथा उपयोगिता को नज़रअन्दाज़ करते रहे हैं। हिन्दी के प्रति उपयोजित प्रतिबद्धता (Applied Commitment) की भूमिका के प्रति आगाह कर यह पुस्तक हमें संगणकीय प्रयोग के लिए प्रोत्साहन भी देती है।
हिन्दी को विश्वभाषा के रूप में चिन्हित करती यह पुस्तक इसलिए भी अनूठी है कि इसमें एक भी मुद्रित सन्दर्भ नहीं है, जो है, सब ऑनलाइन बिब्लियोग्राफ़ी है।
Vinayak Damodar Savarkar
- Author Name:
Raghuvendra Tanwar
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...