Doosare Shabdon Mein
Author:
Nirmal VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
निर्मल वर्मा के लिए निबन्ध हमेशा ऐसी विधा रही जिसके माध्यम से उन्होंने सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और रचनात्मकता के मूलभूत प्रश्नों पर सोचते हुए जितनी बाहर, उतनी ही अपने भीतर भी यात्रा की। किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से ज़्यादा सत्य के पीछे एक सजग यात्रा।</p>
<p>इस पुस्तक में शामिल निबन्ध इस लिहाज से और भी विशेष हैं। भाषा, अस्मिता, परम्परा और आधुनिकता के बार-बार चिह्नित प्रश्नों को यहाँ उन्होंने एक बार फिर से अपने चिन्तन का विषय बनाया है।</p>
<p>इसमें कुछ साक्षात्कार भी संकलित हैं जिनके प्रश्नों ने निर्मल वर्मा को पुन: एक अवसर दिया कि वे अपने सोचे और कहे गए को नए ढंग से व्यक्त करें। इस बहाने उनके कुछ अप्रत्याशित पहलू भी उजागर हुए।</p>
<p>स्वतंत्रता के समय देश को नए सिरे से रचने के जो स्वप्न हमने देखे, ख़ासकर सांस्कृतिक सन्दर्भ में, क्या वे हमारे साथ बने रहे या धीरे-धीरे हमारे हाथ से छूट गए? हमारी प्राथमिकताओं ने हमें क्या दिया, और अगर कोई नई शुरुआत करनी ज़रूरी है तो वह कहाँ से हो?</p>
<p>ऐसे अनेक प्रश्नों पर मनन-रत ये निबन्ध हमारी वर्तमान दुविधाओं और दुश्चिंताओं के लिए भी उपयोगी कहे जा सकते हैं।
ISBN: 9789360862503
Pages: 334
Avg Reading Time: 11 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Bhumandalikaran Aur Hindi Upanyas
- Author Name:
Pushppal Singh
- Book Type:

-
Description:
भूमंडलीकरण सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तनों का समुच्चय है; यानी यह हमारे भीतर और बाहर, जीवन के दोनों पक्षों को प्रभावित करता है, कर रहा है।
साहित्य भी इससे अछूता नहीं रह सकता, वह भी उपन्यास जो जीवन का सर्वांगीण अंकन करता है। वरिष्ठ आलोचक पुष्पपाल सिंह की यह पुस्तक हिन्दी उपन्यासों के सन्दर्भ में भूमंडलीकरण और भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में हिन्दी की औपन्यासिक कृतियों की विवेचना करती है। एक ओर इसमें भूमंडलीकरण और उसके आनुषंगिक प्रश्नों-विचारों का, उसके आर्थिक व सांस्कृतिक पक्षों का विशद और स्पष्ट विवेचन किया गया है, दूसरी ओर 1985 से लेकर मार्च-अप्रैल 2009 तक प्रकाशित अधिकांश महत्त्वपूर्ण उपन्यासों का भी अध्ययन प्रस्तुत कि गया है। हिन्दी उपन्यासों का इतना बृहत् अध्ययन भूमंडलीकरण के सन्दर्भ में पहली बार हुआ है।
निरपेक्ष और स्पष्ट समीक्षा के लिए ख्यात पुष्पपाल सिंह ने इस पुस्तक में समीक्षित उपन्यासों पर अपनी राय का निर्धारण उनकी रचनात्मकता के आधार पर ही किया है, किसी अन्य कारण से नहीं। साथ ही एक नई समीक्षा-पद्धति और कथा-समीक्षा की एक नई शाखा विकसित करने का भी प्रयास उन्होंने यहाँ किया है। अकादमिक और उबाऊ आलोचना से हटकर यह पुस्तक निश्चय ही पाठकों को एक नया पाठ-सुख प्रदान करती है और समकालीन साहित्य-परिदृश्य पर एक नई दृष्टि विकसित करने का अवसर भी देती है।
Nirala Ki Sahitya Sadhana : Vol. 1-3
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

-
Description:
कबीर का फक्कड़पन, तुलसी का लोक-मांगल्य और रवीन्द्र का सौन्दर्यबोध की त्रयी निराला में न केवल विलीन होती है बल्कि उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को ऐसी ऊँचाइयाँ प्रदान करती है जिसका उदाहरण हिन्दी साहित्य में विरल है। यही स्थापना है ‘निराला की साहित्य साधना’ की। डॉ. रामविलास शर्मा की तीन खंडों में उपलब्ध ऐसी कृति है जिसमें हिन्दी आलोचना के विभिन्न आयामों का उद्घाटन हुआ है।
रामविलास शर्मा अरसे तक निराला के साथ रहे थे और वे उनकी रचना-प्रक्रिया तथा जीवन-शैली के तटस्थ द्रष्टा थे। उन्होंने अपना पहला निबन्ध निराला पर ही लिखा था और उनकी पहली आलोचनात्मक पुस्तक भी निराला पर केन्द्रित होकर आई, मगर इससे रामविलास शर्मा का जी नहीं भरा। अनवरत-शोध और अध्ययन के परिणामस्वरूप उनकी अविस्मरणीय कृति ‘निराला की साहित्य साधना’ हमारे सामने आई। यह कृति निराला का जीवन-चरित भी है और उनके साहित्य का मूल्यांकन भी।
‘निराला की साहित्य साधना’ में निराला के अनेक अल्पज्ञात अथवा अज्ञात तथ्यों का उद्घाटन हुआ है। निराला के व्यक्तित्व के जटिल और सूक्ष्म अन्तर्विरोधों से निःसृत कृतित्व का इस पुस्तक में मर्मस्पर्शी मूल्यांकन हुआ है जो अत्यन्त दुर्लभ तो है ही, बेमिसाल भी है।
Hindi : Aakansha aur Yatharth
- Author Name:
Shrinarayan Sameer
- Book Type:

-
Description:
हमारी सभ्यता चाहे जितनी विकसित हो जाए, इलेक्ट्रॉनिक संवाद (SMS) का स्वरूप चाहे जितना लघुतम बन जाए, परम्परा, परिवर्तन और प्रगति के लक्षणों, विचारों तथा संकल्पनाओं को व्यक्त करने का माध्यम भाषा ही रहेगी। इसलिए भाषा से जुड़े प्रश्न, यक्ष-प्रश्न की तरह हर देश और काल में ध्यान आकृष्ट करते हैं और करते रहेंगे। भाषाओं के विपुल और बहुरंगे संसार में हिन्दी की सहजता, सर्वग्राहिता और सामूहिकता वाली भावना उसे विलक्षण बनाती है और इन्हीं की बदौलत यह दूसरे भाषा-भाषियों को भी प्रीतिकर लगती है। हिन्दी के व्यापक प्रसार का यही मूल कारण है।
भूमंडलीकरण और सूचनाक्रान्ति के मौजूदा दौर में भी यह सच ग़ौर करने लायक़ है कि हिन्दी का जो भाषा-रूप पहले मात्र बोलचाल तक सीमित था और स्वाधीनता आन्दोलन के दिनों में राजनीतिक आलोड़न से जुड़कर लोक का कंठहार बना, वह अब प्रशासनिक, वाणिज्यिक, तकनीकी, मीडिया आदि प्रयोजनमूलक स्वरूप में भी निखर आया है। इस पुस्तक के निबन्ध हिन्दी की इसी बहुविध और व्यापक शक्ति तथा सामर्थ्य को लेकर जिरह करते हैं। इस जिरह में हक़ीक़त और फ़साने, अस्ल और ख़्वाब तथा बहुत कुछ कहे-बुने गए हैं। और यही है हिन्दी की आकांक्षा और हिन्दी का यथार्थ जो भूमंडलीकरण और सूचनाक्रान्ति के लाख दबावों के बावजूद जस-का-तस है, बल्कि पुनर्नवा है और निरन्तर प्रसार पा रहा है।
हिन्दी भाषा के इस अस्ल और ख़्वाब को लेकर डॉ. श्रीनारायण समीर ने इस किताब में विमर्श का जो ठाठ खड़ा किया है, वह क़ाबिले-तारीफ़ है, क़ायल करता है और हिन्दी के प्रशस्त भविष्य की प्रस्तावना रचता है।
Hindi Ki Shabd Sampada
- Author Name:
Vidhyaniwas Mishra
- Book Type:

-
Description:
ललित निबन्ध की शैली में लिखी गई भाषाविज्ञान की यह पुस्तक अपने आपमें अनोखी है। इस नए संशोधित-संवर्द्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ पुराने अध्यायों में भी छूटे हुए पारिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़-बकरी पालन, पर्व-त्योहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनौषधि तथा कारख़ाना शब्दावली जैसे ज़रूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है। अनुक्रमणिका में भी शब्दों की संख्या बढ़ा दी गई है।
बकौल लेखक : “यह साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विभिन्न अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है : न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिङ्मात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द-समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा और पैनी बनाने के लिए उपालम्भ मिले, देहात के रहनेवाले पाठक को हिन्दी के भदेसी शब्दों के प्रयोग की सम्भावना से हार्दिक प्रसन्नता हो, मुझे बड़ी खुशी होगी।’’
Hindi Sahitya Aur Nari Samaj
- Author Name:
Nagratna Rao
- Book Type:

- Description: संसार के समस्त प्राणियों में 'स्त्री' मानव समाज की अपनी दुनिया है। यह जानने, समझने के बावजूद स्त्री घर के भीतर और बाहर समाज में उपेक्षित, अपमानित और प्रताड़ित होती रही है। कभी उसने प्रतिरोध किया तो कभी विरोध। हर हाल में झेलना स्त्री को ही पड़ा है। कभी परिस्थितियों की प्रतिकूलता ने उसे संघर्षमय बनाया तो कभी अपनों की अनाकुलता के कारण उसे विषमताओं को झेलना पड़ा। यदि वह उनसे उभरती तो कोई न कोई कलंक उसे कलुषित करता। मानो स्त्री कोई वस्तु है, जिसे प्रत्येक स्तर पर अपने आपको ढालना है। स्त्री, स्त्री है तभी वह ऐसा करने में सक्षम है। नारी मानव समाज का अभिन्न अंग है। समाज की ही भाँति साहित्य में भी नारी को लेकर कई विचारधाराएँ हैं। समय चाहे कोई भी रहा हो नारी के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। परिणामस्वरूप समय-समय पर नारी की स्थिति में परिवर्तन आया। सामाजिक रूप से नारी की स्थिति में आए परिवर्तन का प्रभाव हिन्दी साहित्य पर भी पड़ा, क्योंकि साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब होता है। साहित्य मानव जीवन की ही प्रतिछाया है। समाज में नारी की गतिविधियों, चित्तवृत्तियों के अनुरूप हिन्दी साहित्य में भी नारी का चित्रण मिलता है। इस पुस्तक में नारी की सामाजिक और साहित्यिक स्वरूप को समझने और समझाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक समाज और साहित्य दोनों दृष्टियों से नारी के स्वरूप को एकत्र करने का सत्प्रयत्न है।
Hindi Alochana Ka Punah Path
- Author Name:
Kailash Nath Pandey
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी आलोचना के इस पुन:पाठ में आलोचना को लेकर उठनेवाली भोली जिज्ञासाओं का अत्यन्त संवेदनशीलता से दिया गया उत्तर मौजूद है। हिन्दी में आलोचना के लिए ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ शब्द चलते हैं। इसको लेकर कभी-कभी भ्रम की स्थिति होती है। किताब की शुरूआत ही इस भ्रम के निराकरण से हुई है। ‘आलोचना’, ‘समालोचना’ और ‘समीक्षा’ की व्युत्पत्ति और उनके बीच के बारीक अन्तर पर विचार किया गया है।
आलोचना और रचना का सम्बन्ध, आलोचक के दायित्व, आलोचक के कार्य, आलोचना की ज़रूरत या उपयोगिता, आलोचना के मान ही नहीं बल्कि आलोचक बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या होनी चाहिए, यह सब इस किताब में मिल जाएगा।
यह पुस्तक तीन पर्वों में प्रस्तुत है। पहले पर्व में आलोचना की अवधारणा, आधुनिक हिन्दी आलोचना की आरम्भिक स्थिति, आलोचना के विविध प्रकार से लेकर हिन्दी आलोचना की वर्तमान स्थिति का लेखा-जोखा मौजूद है। पुस्तक केवल आलोचक और आलोचना का महिमा-मंडन ही नहीं करती, बल्कि उस महिमा को बनाए और बचाए रखने के गुण-सूत्रों की खोज भी करती है। पुस्तक के द्वितीय पर्व में हिन्दी ओलाचना के शिखरों; यथा—रामचन्द्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नरेन्द्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा और नामवर सिह आदि के अवदान का आकलन किया गया है। इसी प्रकार तीसरे पर्व में हिन्दी आलोचना के विविध सन्दर्भ जैसे आलोचना के सरोकार, नई सदी में हिन्दी आलोचना, आलोचना प्रक्रिया आदि पर विचार किया गया है।
1857 Aur Bihar Ki Patrakarita
- Author Name:
Md. Zakir Hussain
- Book Type:

- Description: बिहार शुरू से ही विभिन्न आंदोलनों का केंद्र रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार में लगभग आठ सौ लोगों को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। हजारों लोगों पर मुकदमा चलाया गया, सैकड़ों गाँव जलाए गए। इसमें शामिल विद्रोहियों की जमीन-जायदाद जब्त कर ली गई और उसे गद्दारों में बाँट दिया गया था। वैसे तो बिहार में 1857 के महायुद्ध पर कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, पर मो. जाकिर साहब की इस पुस्तक की विशेषता है कि उन्होंने 1857 के दौरान उर्दू पत्र-पत्रिकाओं में इस विद्रोह के बारे में जो कुछ लिखा गया, उसे सिलसिलेवार ढंग से संकलित किया है। किसी भी विद्रोह या आंदोलन को तब की उपलब्ध रपटों और खबरों का अध्ययन कर समझा जा सकता है। इसमें अखबार-ए-बिहार, दिल्ली उर्दू-अखबार, अखबार-अल-जफर, सादिक-अल-अखबार और नदीम के बिहार विशेषांक में प्रकाशित 1857 से संबंधित खबरों और लेखों को शामिल किया गया है। सन् सत्तावन के विद्रोह के दो साल पहले पटना से ‘हरकारा’ प्रकाशित हुआ था और सन् 1856 में ‘अखबार-ए-बिहार’ प्रकाशित होने लगा था। लेखक ने उर्दू की पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन कर 1857 के गदर से जुड़ी सामग्रियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। ऐसे में यह पुस्तक अधिक प्रामाणिक और उपयोगी बन गई है।
Jayasi : Ek Nai Drishti
- Author Name:
Raghuvansh
- Book Type:

-
Description:
प्रस्तुत पुस्तक जायसी साहित्य के अध्ययन-चिन्तन में एक नई दृष्टि की शुरुआत करती है। धर्म, दर्शन और आचरण की मूल्यपरक रचना-प्रक्रिया मानवीय संस्कृति की आन्तरिक प्रकृति है—इस ज्ञान के साथ उन्होंने पाया है कि इसी की अभिव्यक्ति मनुष्य की कलाओं और साहित्य में होती है।
प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न प्रकरणों में जायसी के जीवन, दार्शनिक चिन्तन, उनकी आध्यात्मिक दृष्टि, साधना की भाव-भूमि, मानवीय जीवन के सारे परिवेश के साथ उसके मूल्य प्रक्रिया के विविध पक्षों को विवेचित करने में लेखक ने सर्वथा नई दृष्टि से काम लिया है।
जायसी साहित्य के अध्येताओं के लिए डॉ. रघुवंश की यह पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है।
Prasad Ki Kavyabhasha
- Author Name:
Rachna Anand Gaur
- Book Type:

-
Description:
‘प्रसाद की काव्यभाषा' शीर्षक से प्रकाशित इस पुस्तक में जहाँ एक ओर प्रसाद की काव्यभाषा का विकासात्मक और प्रतीतिपरक मूल्यात्मक विवेचन किया गया है, वहीं दूसरी ओर संवेदना या जनता की चित्तवृत्ति में होनेवाले परिवर्तनों के कारण खड़ीबोली के काव्यभाषा के रूप में विकास का भी अत्यन्त व्यवस्थित वर्णन है। इस दृष्टि से यह पुस्तक दोहरी अर्थवत्ता रखती है।...
प्रसाद की प्रारम्भिक कृतियों से अनेक उदाहरणों द्वारा डॉ. गौड़ ने यह सिद्ध किया है कि कैसे अन्तत: एक बड़े कवि की खोज भाषा की ही खोज होती है।
मेरा मानना है कि इस पुस्तक के द्वारा केवल छायावाद और प्रसाद की काव्यभाषा की क्षमता को ही नहीं समझा जा सकता है, बल्कि खड़ीबोली की सम्भावना को भी रेखांकित किया जा सकता है।...पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है।
— सत्यप्रकाश मिश्र
Prasad ki sampoorn kahaniyan evam Nibandh
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Pracheen Bharat Ke Kalatmak Vinod
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

- Description: “भारतवर्ष में एक समय ऐसा बीता है जब इस देश के निवासियों के प्रत्येक कण में जीवन था, पौरुष था, कौलीन्य गर्व था और सुन्दर के रक्षण-पोषण और सम्मान का सामर्थ्य था। उस समय के काव्य-नाटक, आख्यान, आख्यायिका, चित्र, मूर्ति, प्रासाद आदि को देखने से आज का अभागा भारतीय केवल विस्मय-विमुग्ध होकर देखता रह जाता है। उस युग की प्रत्येक वस्तु में छन्द है, राग है और रस है।’’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की प्रस्तुत कृति उसी छन्द, उसी राग, उसी रस को उद्घाटित करने का एक प्रयास है। इसमें उन्होंने गुप्तकाल के कुछ सौ वर्ष पूर्व से लेकर कुछ सौ वर्ष बाद तक के साहित्य का अवगाहन करते हुए उस काल के भारतवासियों के उन कलात्मक विनोदों का वर्णन किया है जिन्हें जीने की कला कहा जा सकता है। काव्य, नाटक, संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला से लेकर शृंगार-प्रसाधन, द्यूत-क्रीड़ा, मल्लविद्या आदि नाना कलाओं का वर्णन इस पुस्तक में हुआ है जिससे उस काल के लोगों की ज़िन्दादिली और सुरुचि-सम्पन्नता का परिचय मिलता है।
Hindi Kriyaon Ki Roop-Rachana
- Author Name:
Badrinath Kapoor
- Book Type:

- Description: हिन्दी के आरम्भिक व्याकरण यूरोपीय विद्वानों ने लिखे थे। इन व्याकरणों को लिखने में उन्होंने वही पद्धति अपनाई, जिसमें उनके अपने व्याकरण लिखे गए थे। लौटिन पद्धति के उन व्याकरणों में पदों का वर्गीकरण अर्थमूलक आधार पर ही होता था। बाद में जब हिन्दी भाषाभाषी विद्वानों ने व्याकरण लिखे तो उन्होंने भी जाने-अनजाने पूर्वलिखित व्याकरणों को आधार बनाया। भारतीय प्राचीन पद्धति पदों का विवेचन तथा वर्गीकरण उनकी रूप-रचना के आधार पर ही करती थी। विश्वविख्यात ‘अष्टाध्यायी’ इसका ज्वलन्त प्रमाण है। प्रस्तुत पुस्तक में क्रियापदों के सभी वर्गीकरण पदों की रूप-रचना पर ही आधारित हैं। एकपदीय और द्विपदीय क्रियापद, विकारी और अविकारी क्रियापद, कर्तृ अनुगामी और कर्मादि-अनुगामी क्रियापद, कर्तृवाच्य और कर्मादिवाच्य क्रियापद आदि सभी वर्गीकरणों का आधार पूर्णतः उनकी रूप-रचना ही है।
Vichar Prawah
- Author Name:
Hazariprasad Dwivedi
- Book Type:

-
Description:
‘विचार प्रवाह’ आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबन्धों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। अपने निबन्धों के माध्यम से द्विवेदी जी मनुष्य जाति के प्रत्येक अनुभव, उसकी सांस्कृतिक उपलब्धि और प्रकृति के हर विवर्तन का रेखांकन करते हैं। मनुष्य के विकासमान परम्परा-बोध और देश-कालगत परिस्थितियों में उसके मूल्यांकन की आवश्यकता पर उनका बराबर आग्रह रहा है। लोक-विमुख धर्म, दर्शन, साहित्य और कला-संस्कृति उनके लिए मूल्यहीन हैं। जड़ शास्त्रीयता से उनका गहरा विरोध है। यही कारण है कि द्विवेदी जी के कितने ही शोधपरक निबन्ध हमारे चेतन-अवचेतन के वैचारिक कुहासे को छाँटने का कार्य करते हैं।
अपने ललित निबन्धों में द्विवेदी जी आद्यन्त कवि हैं। प्रकृति जैसे उनकी सहचरी बनकर आती है। अकुंठ भावोद्रेक और अप्रस्तुतों के भावोचित व्यंजक प्रयोग, सजीव बिम्बात्मकता और अपनी सहजता में बेजोड़ भाषा-शैली उनके इन निबन्धों को विश्वसाहित्य की अनमोल सम्पदा बना देती है। इनमें अवगाहन करता पाठक एक ओर आचार्य जी की कल्पनाशील भावप्रवणता से अभिभूत हो उठता है, तो दूसरी ओर ऐसे ज्ञान-कोश से परिचित होता है, जिसमें उदात्त जीवन-मूल्यों के राशि-राशि रत्न सुरक्षित हैं।
Bhartiya Bhakti Sahitya Mein Abhivayakt Samajik Samarasta
- Author Name:
Sunil Baburao Kulkarni
- Book Type:

-
Description:
धार्मिक और दार्शनिक दृष्टि से भक्ति साहित्य का विवेचन एवं विश्लेषण जितनी पर्याप्त मात्रा में मिलता है, उतनी पर्याप्त मात्रा में सामाजिक दृष्टि को ध्यान में रखकर किया गया विश्लेषण नहीं मिलता। उसमें भी ‘समरसता’ जैसी अधुनातन अवधारणा को केन्द्र में रखकर भक्ति साहित्य का विवेचन तो आज तक किसी ने नहीं किया। दूसरी बात कि समरसता की अवधारणा को लेकर लोगों में असमंजस का भाव है। उसे दूर करना भी एक युग की आवश्यकता थी। पुस्तक में इन्ही बातों को विद्वानों ने अपने शोध-आलेखों में सप्रमाण सिद्ध किया है।
पुस्तक का विषय निर्धारण करते समय इस बात पर भी विचार किया गया है कि साहित्य में भक्ति की सअजस्र धरा प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक प्रवाहित रही है, उसे मध्यकाल तक सीमित मानना तर्कसंगत नहीं। मध्यकाल के पहले और मध्यकाल के बाद भी साहित्य में हम भक्ति के बीजतत्त्वों को आसानी से फलते-फूलते देख सकते हैं। इस कारण ‘आदिकालीन भक्ति साहित्य में अभिव्यक्त सामाजिक समरसता’ और ‘आधुनिककालीन सन्तों और समाजसुधारकों के सहित्य में अभिव्यक्त सामाजिक समरसता’ जैसे विषय विद्वानों के चिन्तन व विमर्श के मुख्य केन्द्र में हैं।
आदिकाल से लेकर आधुनिककाल के भारतीय भक्ति साहित्य के पुनर्मूल्यांकन की दृष्टि से यह पुस्तक निस्सन्देह एक उपलब्धि की तरह है।
Kis Prakar Ki Hai Yah Bhartiyata ?
- Author Name:
U.R. Ananthamurthy
- Book Type:

-
Description:
भारतीय मूल्यों के प्रति अगाध निष्ठा और अपने व्यक्ति के स्तर पर विकट आत्मालोचन यू.आर. अनन्तमूर्ति के लेखक के विशिष्ट गुण हैं। ‘संस्कार’, ‘अवस्था’ और ‘भारतीपुर’ जैसे उपन्यासों में जिस प्रकार उन्होंने आधुनिक युग की चुनौतियों को कथा के भावालोक में समझा है, वैसी ही गहनता के साथ इस पुस्तक में संकलित निबन्धों में उन्होंने उन पर विचार किया है। ‘मैं अपने भीतर का आलोचक हूँ’, वे कहते हैं। परम्पराओं पर प्रश्न करते हैं और विकास की प्रश्नाकुल द्वन्द्वात्मकता में विश्वास रखते हैं।
‘किस प्रकार की है यह भारतीयता’ कुछ चुने हुए भाषणों, लेखों और साक्षात्कारों का संकलन है। दलित साहित्य, विकेन्द्रीकरण और संस्कृतिपरक कई आलोचनात्मक लेख इस पुस्तक में संकलित हैं। इन लेखों में लेखक क्षेत्रीय पवित्रता क़ायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उनका मानना है कि उपनिवेशविरोध की राजनीति से उपजी हुई अपनी संस्कृति की रक्षा अपनी भाषा में ही सृजन करने से सम्भव है। अनन्तमूर्ति ने अभिव्यक्ति के प्रगटीकरण के लिए अपनी मातृभाषा कन्नड़ का ही इस्तेमाल किया है। ज्ञान का आगार होने के नाते वह अंग्रेज़ी का समर्थन करते हैं, लेकिन उसके आक्रमणकारी तेवर का विरोध भी करते हैं।
Hindi Bhasha Ka Samajshastra
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

-
Description:
प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव ने ‘हिन्दी भाषा का समाजशास्त्र’ पुस्तक की योजना ही नहीं, इसकी पूर्ण रूपरेखा भी अपने जीवन-काल में ही निर्मित कर ली थी। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा और उसकी बोलियों को व्यापक सामाजिक घटकों से सम्बद्ध करके देखती है। यह अध्ययन निश्चित ही हिन्दी भाषा-समुदाय से जुड़े अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करता है।
अल्पसंख्यक भाषा-समुदायों की भाषाओँ का मिश्रण, स्थिर बहुभाषिकता का विकास, भाषा का मानकीकरण और आधुनिकीकरण, भाषा-विकास में भाषा-नियोजन की भूमिका आदि कुछ ऐसे ही प्रश्न हैं, जिन्हें हिन्दी भाषा-समाज को केन्द्र में रखकर प्रो. श्रीवास्तव ने उठाया है और उनकी विवेचना-व्याख्या की है। एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं संग्रहणीय कृति।
Bhojpuri Sanskriti Ki Sant Kavita
- Author Name:
Udai Pratap Singh
- Book Type:

- Description: ित्यिक समृद्धि, सामाजिक सौहार्द और आध्यात्मिक ऊँचाई की दृष्टि से भोजपुरी भाषी क्षेत्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी भूमि पर संस्कृत में काव्य-महाकाव्य रचे गए तो पालि में भगवान बुद्ध के उपदेशों का संचरण हुआ। नदियों के प्रवाह ने इस क्षेत्र को उर्वर बनाया तो साधु-सन्तों की अध्यात्म-सनी वाणियों ने लोकहृदय में भक्ति की मशाल जला दी। राजनैतिक व वैचारिक गुलामी का दृढ़ता से मुकाबला करने वाला यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यन्त सम्पन्न रहा है। यह क्षेत्र हर कालखंड में अध्यात्म की पताका सुदूर तक फहराता रहा है। इतिहास, संस्कृति व सभ्यता के न जाने कितने अज्ञात व विस्मयकारी पृष्ठ भोजपुरी माटी में छिपे हुए हैं। यह पुस्तक उसी दिशा में एक प्रयास है। भोजपुरी बोली-बानी में सन्तों ने गाया और गुनगुनाया है। अत: भोजपुरी में सन्तों का प्रभूत साहित्य प्राप्त होता है। सन्त शिरोमणि कबीर और भक्त-शिरोमणि रैदास की यह जन्मभूमि है तो कीनाराम जैसे भक्त और योगी की तपोभूमि भी है। नाथपन्थ, रामानन्द, कबीर व रैदास पन्थ यहीं विकसित व पल्लवित हुए। दरियापन्थ, अघोरपन्थ, सतनामी सम्प्रदाय, शिवनारायणी पन्थ, सन्तमतानुयायी आश्रम, गड़वाघाट और महर्षि सदाफल देव का विहंगम योग जैसे सम्प्रदायों का प्रभाव भोजपुरी भाषी क्षेत्र में सुदूर तक विस्तृत है। सन्त बानियों की अध्यात्म वर्षा सदियों से इस क्षेत्र को हरी-भरी करती रही ह
Peechhe Firat Kahat Kabir-Kabir
- Author Name:
Mujeeb Rizvi
- Book Type:

- Description: तुलसी के राम में अनीस के हुसैन की झलक देखनी हो, कबीर में क़ुरान की आयतों का असर समझना हो, अनीस के मर्सियों में संस्कृत शेरियात की तलाश हो, तुलसी और जायसी का मुवाज़ना करना हो, हसरत मोहानी के कन्हैया को भगतों की राधा में खोजना हो, फ़िराक़ गोरखपुरी में ब्रज और अवधी कविता के रूपकों और रसों को चिन्हित करना हो, अमीर ख़ुसरो और बारहमासा को एक दूसरे के तनाज़ुर में पहचानना हो, ज़ाकिर हुसैन और मोहम्मद मुजीब के ज़रिए जामिया के तालीमी कारनामों को उजागर करना हो, या भक्ति और सूफ़ी परम्पराओं पर अज़–सरे नौ रौशनी डालनी हो, इस किताब में मुजीब रिज़वी उर्दू-हिंदी साहित्य को नए पैमानों और नए कीर्तिमानों से स्थापित और विश्लेषित करते नज़र आते हैं। एक साथ हिंदी और उर्दू के आधुनिक और मध्ययुगीन विचारों, संस्कृत और फ़ारसी सिद्धांतों, सूफ़ी और भक्ति भावनाओं को सम्मिश्रित करने वाले वे शायद आख़िरी ऐसे विद्वान थे। इसीलिए वे जायसी में रूमी को और कबीर में क़ुरान और हाफ़िज़ को खोज निकालते हैं। तुलसी में फ़ारसी सूफ़ी अल्फ़ाज़ को ढूँढ़ते हैं और हिंदी/उर्दू की संरचना में फ़ारसियत की भूमिका को इंगित कर सकते हैं। हिंदुस्तान पर मुसलमानों के असर और मुसलमानों पर हिंदुस्तान जन्नतनिशान के प्रभावों को शायद इसके पहले इतने बृहद परिप्रेक्ष्य और परिदृश्य में नहीं देखा समझा गया। यह किताब भारतीय साहित्य और हिंद-इस्लामी संस्कृति को एक नए तर्ज़ और नए अंदाज़ से हमारे सामने रखते हुए हिंदुस्तानियत की एक नई और विलक्षण परिभाषा से हमें रूबरू कराती है।
Gandhiwad Ki Shav Pariksha
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

- Description: गांधी जी ने इस देश के सार्वजनिक जीवन में राजनैतिक नेता के रूप में प्रवेश किया था। गांधी जी ने देश की राजनैतिक मुक्ति के लिए जनता के सामने जो राजनैतिक कार्यक्रम रखा था, उसे गांधीदर्शन और गांधीवाद का नाम दिया गया था। गांधीवादी नीति पर चलने का दावा करनेवाली शासन व्यवस्था देश के सर्व-साधारण के जीवन से कठिनाई को दूर करने के लिए क्या कर सकी है, यह देश की जनता अपने अनुभव से जानती है। सर्वोदय को ध्येय माननेवाले दरिद्रनारायण के पुजारी गांधीवाद की इस विफलता का कारण समझने के लिए उनके सिद्धान्तों की परख आवश्यक है। जनता के लिए यह समझना आवश्यक है कि उनकी भौतिक समस्याओं और कठिनाइयों का उपाय, गांधीवाद अध्यात्म द्वारा सम्भव है या आर्थिक और राजनैतिक प्रयत्नों द्वारा? इस विचार के प्रयोजनों से ‘गांधीवाद की शव परीक्षा’ का यह संस्करण प्रस्तुत है।
Hindi Kahani : Prakriya Aur Path
- Author Name:
Surendra Chaudhary
- Book Type:

-
Description:
कहानी को रचनाकर्म के साथ-साथ जीवन से जुड़ा मानकर लेखक एक निरन्तरता में इन्हें देखने की चेष्टा करता है। बदलती हुई प्रवृत्तियों और प्रक्रियाओं को वह इसका बाधक भी नहीं मानता है। उसका विश्वास है कि अनुभव की संश्लिष्टता ही रचना में आकर अपना अर्थ भी खोलती है और स्वयं उस अनुभव को भी बड़ा बनाती है।
अपनी प्रथम पुस्तक में उसकी यह शुरुआत हिन्दी आलोचना में चर्चा का विषय बन गई थी। ‘नई कहानी’ के उस दौर में इस पुस्तक के सम्बन्ध में यह चर्चा कम उत्साहवर्द्धक न थी।
वर्षों बाद भी लेखक की यह पुस्तक अपनी प्रासंगिकता ही बनाए नहीं रखती, बल्कि बदलते हुए इस कथा-दौर में कुछ पूर्वाशित प्रश्न खड़े करने के लिए भी स्मरण की जाती रही है। पाठ भाग में एक कहानी भी जोड़ी गई है। संक्षेप में कहा जाए तो हिन्दी कहानी की रचना-प्रक्रिया पर यह एक मुकम्मल किताब है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...