Hind Swaraj
Author:
Mohandas Karamchand GandhiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
'हिन्द स्वराज’ पाठक और सम्पादक के बीच बातचीत की शैली में लिखा गया है। लन्दन प्रवास के दौरान गांधी जिन क्रान्तिमार्गी अराजकतावादियों से मिले थे उनमें दामोदर विनायक सावरकर, टी.एस.एस. राजन, वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय, वी.वी.एस. अय्यर और डॉ. प्राणजीवन मेहता प्रमुख थे। वस्तुत: 'हिन्द स्वराज’ स्वयं गांधी के शब्दों में डॉ. प्राणजीवन मेहता से हुई बातचीत की लगभग जस की तस प्रस्तुति है। इस रहस्य का उद्घाटन उन्होंने 21 फरवरी, सन् 1940 को बंगाल की मलिकंदा की बैठक में किया था। डॉ. प्राणजीवन दास जगजीवन दास मेहता (1864-1932) बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के स्नातक थे। बू्रसेल्स से एम.डी. और लन्दन से बैरिस्टरी की उपाधियाँ अर्जित करने के बाद सन् 1889 में हिन्दुस्तान लौट आए थे। यहाँ गुजरात के ईडर रियासत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और बाद में दीवान के पद पर रहने के बाद वह रंगून (बर्मा) चले गए थे।</p>
<p>जब सन् 1909 में गांधी लन्दन पहुँचे थे तो डॉ. मेहता संयोग से वहीं थे। एक महीने दोनों साथ एक होटल में रहे थे। गांधी से डॉ. मेहता लगभग पाँच साल बड़े थे और उनके प्रति गहरा स्नेह भाव रखते थे। स्वयं गांधी के शब्दों में वह उन्हें (गांधी को) मूर्ख और भावुक मानते थे। अपने समय की चिकित्सा और क़ानून की उच्चतम उपाधियों से लैस डॉ. मेहता एक प्रबल बुद्धिवादी तार्किक थे। गांधी उन्हें क्रान्तिकामी अराजकतावादियों में प्रमुख मानते थे। जो विचार बिन्दु 'हिन्द स्वराज’ के विषय बने, उन पर दोनों के बीच लगभग एक माह तक विचार-विमर्श चलता रहा। अन्तत: डॉ. मेहता गांधी के विचारों से सहमत हो गए। गांधी को पहले मूर्ख और भावुक समझनेवाले उन्हीं डॉ. प्राणजीवन मेहता ने 28 अगस्त, सन् 1912 को रंगून के लिए पोर्ट सईद पर जहाज़ की प्रतीक्षा करते हुए हिन्दुस्तान में गोपाल कृष्ण गोखले को लिखा कि मनुष्यता और मातृभूमि के उत्थान के लिए गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर यदा-कदा ही अवतरित होते हैं।</p>
<p>—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
ISBN: 9789389577181
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: यह पुस्तक योगी सरकार द्वारा प्रदेश के समावेशी व सतत विकास हेतु विशेष रूप से “महिलाओं, किसानों तथा युवाओं” के लिए उठाए गए कदमों की चर्चा करती है। साथ ही कानून-व्यवस्था, सामाजिक, आर्थिक व अवसंरचनात्मक स्तर पर होने वाले कार्यो, प्रगति व उपलब्धियों का विवरण तथा केंद्र व राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ की गई योजनाओं की प्रगति को सारगर्भित रूप से प्रस्तुत करती है। वर्ष 2017 से पूर्व व मार्च 2017 के बाद प्रदेश की स्थितियों के तुलनात्मक तथ्यों, आँकड़ों एवं सूचनाओं का विश्लेषण भी पुस्तक की विशेषता है। यह पुस्तक योगी सरकार के 5 वर्ष व 100 दिन के कार्यों, नीतिगत निर्णयों, योजनाओं, कार्यक्रमों तथा सभी वर्गों व क्षेत्रों के लिए की जा रही नवाचारी पहलों को व्यवस्थित ढंग से पूर्ण तटस्थ होकर प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक गतिमान उत्तर प्रदेश का आईना है जो कि योगी सरकार के द्वितीय कार्यकाल ( 2022-2027 ) के विकास मॉडल के ब्लू प्रिंट को भी समाहित किए हुए है।
1942 Ki August Kranti
- Author Name:
Fanish Singh
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Description:
भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद से मुक्ति–संघर्ष की गाथा है। स्वाधीनता आन्दोलन के संघर्ष में 1857 का मुक्ति-संग्राम उल्लेखनीय है। इसमें हर वर्ग, ज़मींदार, मज़दूर और किसान, स्त्री और पुरुष, हिन्दू और मुसलमान–सभी लोगों ने अपनी एकता एवं बहादुरी का परिचय दिया।
‘अगस्त क्रान्ति’ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति-संग्राम कह सकते हैं जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आज़ादी मिली। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आन्दोलन न होकर आम जनता का आन्दोलन था जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’
‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के सात दशक बाद आज भी भाषा, धर्म, क्षेत्रीयता के तत्त्व भारत को निगल जाने को आतुर हैं। राष्ट्रीय एकीकरण देश के समक्ष एक दु:खजनक समस्या बन गई है। इसका मुख्य कारण स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी का राष्ट्रीय आन्दोलन के बलिदानी इतिहास से परिचित न होना है। इसी पृष्ठभूमि में यह आवश्यक समझा गया कि नई पीढ़ी विशेषकर नवयुवकों के लिए एक ऐसी पुस्तक की रचना की जाए जिससे वे स्वाधीनता आन्दोलन की कड़ियों से परिचित हो सकें। इन कड़ियों में जहाँ सर्वप्रथम भारत के जाने–माने इतिहासकार विपिनचंद्र, ताराचंद, डॉ. के.के. दत्त के विचारों को प्रस्तुत किया गया है, वहीं डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पं. जवाहरलाल नेहरू, पी.सी. जोशी, मधु लिमये, आदि के विचारों के साथ आज के इतिहासविज्ञ प्रो. भद्रदत्त शर्मा, प्रो. सुमन्त नियोगी आदि के भी विचार ‘अगस्त क्रान्ति’ के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालते हैं ।
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