Gandhi-Drishti Ke Vividh Aayam
Author:
Shambhu JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
जब गांधी जी बर्बरीकरण की बात करते हैं तो वह केवल स्थूल हिंसा तक सीमित नहीं है। उसमें हिंसा के वे सब रूप और आयाम शामिल हैं, जिन्हें संरचनागत हिंसा, सांस्कृतिक हिंसा और पीड़ितोन्मुख अप्रत्यक्ष हिंसा कहते हैं। प्रत्यक्ष हिंसा भी इस संरचनागत हिंसा का ही प्रतिफलन होती है, जिसे सांस्कृतिक हिंसा एक वैधता प्रदान करने की कोशिश करती है।</p>
<p>महात्मा गांधी के विचार-सूत्रों में यदि इस प्रकार की सभी समस्याओं के प्रति एक अद्भुत जागरूकता तथा एक नैतिक-तार्किक संगति दिखाई देती है तो इसका कारण शायद यही है कि उनका सारा जीवन और चिन्तन अहिंसा-प्रेम के नियम से प्रेरित रहा है। विस्मय इस बात का होता है कि उनके नैतिक आग्रहों में कहीं भी अर्थशास्त्रीय सवालों की अनदेखी नहीं है। वह यह मानते हैं कि 'सच्चा अर्थशास्त्र कभी उच्चतम नैतिक मानकों का विरोधी नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सच्चा नीतिशास्त्र वही माना जा सकता है, जो नीतिशास्त्र होने के साथ-साथ एक अच्छा अर्थशास्त्र भी हो...।</p>
<p>अब तो मेजारोस, लेबो विट्ज और टेरी इगल्टन जैसे नए मार्क्सवादी विचारक भी विकेन्द्रीकृत प्रौद्योगिकी और उत्पादन की बात करने लगे हैं, जिस पर न कॉरपोरेट का नियंत्रण हो, न राज्य का। यह उन उत्पादन-शक्तियों के विकल्प से ही हो सकता है, जो उत्पादन के साथ-साथ मुनाफ़े के वितरण की समस्या का भी समाधान अन्तर्निहित किए हैं। लेकिन विकेन्द्रीकृत तकनीक पर ही, जिसे गांधी जी 'स्वदेशी' कहते हैं, विकेन्द्रीकृत स्वामित्व का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय अथवा बहुराष्ट्रीय, किसी भी प्रकार के पूँजीवाद और उसके अनिवार्य प्रतिफलन साम्राज्यवाद का विकल्प इसलिए 'स्वदेशी' तकनीकी और उत्पादन-व्यवस्था ही हो सकती है, जिसके अन्तर्गत मानवीय स्वातंत्र्य और व्यक्तित्व भी पोषित होता है और प्राकृतिक विनाश का ख़तरा भी नहीं रहता।</p>
<p>इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गांधी-दृष्टि के विविध आयामों को उनके साध्य सत्य तथा साधन अहिंसा अर्थात प्रेम के बीज से पल्लवित सिद्ध करने का स्तुत्य प्रयास किया गया है।...यह पुस्तक जहाँ सामान्य पाठकों को गांधी-विचार की प्रामाणिक जानकारी दे सकेगी, वहीं अध्येताओं, छात्रों और अध्यापकों के लिए भी अतीव उपयोगी साबित होगी। </p>
<p>—नन्दकिशोर आचार्य
ISBN: 9789388183802
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारत से लेकर सम्पूर्ण विश्व के शक्तिहीन, दबे-कुचले, सामाजिक रूप से पिछड़े और सताए हुए लोग और उनके समूह जब आपस में मिलकर शक्ति सम्पन्न होने का संकल्प लें, तो इसे बड़े बदलाव के भावी संकेत के रूप में लिया जाना चाहिए। इतिहास बनने की शुरुआत ऐसे ही होती है। जो इसकी अगुआई करते हैं, उन्हें इतिहास अपने सिर माथे बैठाता है, क्योंकि अगर वे आगे नहीं बढ़ते तो यात्रा अपने अन्तिम चरण पर पहुँचती ही नहीं। दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण की यात्रा शुरू हो चुकी है। इस यात्रा का ध्येय है शक्तिहीन, दबे-कुचले, और सामाजिक रूप से भेदभाव के शिकार दलितों और अल्पसंख्यकों को शक्ति सम्पन्न करना व उनके सामाजिक आधार को मज़बूत करते हुए उन्हें नेतृत्व के लिए तैयार करना।
पुस्तक का महत्त्वपूर्ण अंश है डॉ. मनमोहन सिंह का कथन। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने शक्तिहीनों को शक्ति सम्पन्न बनाने तथा दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के प्रयास को अपना पूरा समर्थन देने की घोषणा की। भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने साफ़ कहा कि अब सहूलियत देने से काम नहीं चलेगा, वंचितों को शिरकत भी देनी होगी।
बाबा साहेब अम्बेडकर ने ग़रीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों के सशक्तीकरण की लड़ाई को वैज्ञानिक विचार का आधार दिया तथा उसे हथियार बनाया। उसी कड़ी में यह एक प्रयास है ताकि आज दलित, अल्पसंख्यक सशक्तीकरण के लिए लड़नेवाले लोग न केवल अपना वैचारिक आधार मज़बूत कर सकें, बल्कि उसे हथियार के रूप में भी इस्तेमाल कर
सकें।यह पुस्तक उन सबके लिए उपयोगी है जो ग़रीबों और वंचितों की लड़ाई में या तो शामिल होना चाहते हैं या उन्हें सहयोग देना चाहते हैं। राजनीति और समाजशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक भारत के परिवर्तन की इस लड़ाई को समझने का आधार है।
Nai Bhajapa Ke Shilpakaar
- Author Name:
Ajay Singh +1
- Book Type:

- Description: "अपनी स्थापना के लगभग 40 वर्षों में भारतीय जनता पार्टी विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है और भारतीय राजनीति में अपनी स्थिति को निरंतर अधिक सुदृढ़ बनाती जा रही है। इस पार्टी का ऐतिहासिक अभ्युदय कुछ लोगों को सहज और स्वत:स्फूर्त लग सकता है, लेकिन 18 करोड़ सदस्यों के इस संगठन का मार्ग प्रशस्त करने के पीछे गहन आंतरिक विचार-विमर्शों और योजनाओं का योगदान रहा है। गहरे शोध तथा ठोस उदाहरणों के माध्यम से 'नई भाजपा के शिल्पकार' में पिछले दशकों के दौरान हुए पार्टी के कायाकल्प की व्याख्या की गई है। इस प्रसंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐसे योगदानों पर प्रकाश डाला गया है, जिनके बारे में लोग कम जानते हैं। संगठन निर्माण के पारंपरिक तरीकों से परे जाकर किए गए उनके प्रयोग, सूक्ष्मता के साथ हर आयाम पर उनकी पैनी नजर और पार्टी के जनाधार का विस्तार करने के लिए उनकी अभिनव पद्धतियों को यह पुस्तक उजागर करती है। पार्टी के संस्थापकों द्वारा सन् 1951 में अपनाई गई दृष्टि पर आधारित अतीत के विश्लेषण के साथ-साथ अजय सिंह ने भाजपा के भविष्य की झलक भी दिखाई है। अनेक पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं और समीक्षकों के साथ विस्तृत साक्षात्कारों पर आधारित विवरणों से पता चलता है कि किस प्रकार कैडर पर आधारित इस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए एक नितांत भारतीय मॉडल को विकसित किया, जिसके आधार पर अंतत: भाजपा चुनाव जीतने वाली एक मशीन के रूप में स्थापित हो गई है।"
Aadi Turk Kaleen Bharat (1206-1290)
- Author Name:
Saiyad Athar Abbas Rizvi
- Book Type:

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Description:
आदि तुर्क वंश के इस इतिहास में 1206 ई. से 1290 ई. तक समस्त प्रमुख फ़ारसी तथा अरबी इतिहास ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद है। इसमें मिनहाज सिराज की ‘तबक़ाते नासिरी’ तथा ज़ियाउद्दीन बरनी की ‘तारीख़े फ़ीरोज़शाही’ को मुख्य आधार माना गया है।
दूसरे भाग में समकालीन इतिहासकारों की कृतियों का अनुवाद है। इनमें फ़ख़रे मुदब्बिर की ‘तारीख़े फ़ख़रुद्दीन मुबारकशाह’, ‘आदाबुल हर्ब वश्शुजाअत’, सद्रे निजशमी की ‘ताजशुल मआसिर’, अमीर ख़ुसरो के ‘दीवाने वस्तुल हयात’ एवं क़ेरानुस्सादैन के संक्षिप्त तथा परमावश्यक अंशों का अनुवाद भी सम्मिलित है। बाद के भी दो प्रमुख इतिहासकारों की रचनाओं के अनुवाद किए गए हैं—एसामी की ‘फ़ुतूहुस्सलातीन’ का और अरबी में लिखी हुई इब्ने बतूता की यात्रा के वर्णन का।
मध्यकालीन भारतीय इतिहास पर प्रामाणिक रोशनी डालनेवाले इन ग्रन्थों का अनुवाद कुछ विद्वानों ने अंग्रेज़ी में भी किया था, लेकिन उनमें पारिभाषिक शब्दों के अंग्रेज़ी अनुवादों में दोष रह गए हैं। इस कारण अनेक भ्रम-पूर्ण रूढ़ियों को आश्रय मिल गया है। इस प्रकार की त्रुटियों से बचने के उद्देश्य से प्रस्तुत ग्रन्थ में पारिभाषिक और मध्यकालीन वातावरण के परिचायक शब्दों को मूल रूप में ही ग्रहण किया गया है और उन शब्दों की व्याख्या पाद-टिप्पणियों में कर दी गई है।
Hind Swaraj
- Author Name:
Mohandas Karamchand Gandhi
- Book Type:

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Description:
'हिन्द स्वराज’ पाठक और सम्पादक के बीच बातचीत की शैली में लिखा गया है। लन्दन प्रवास के दौरान गांधी जिन क्रान्तिमार्गी अराजकतावादियों से मिले थे उनमें दामोदर विनायक सावरकर, टी.एस.एस. राजन, वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय, वी.वी.एस. अय्यर और डॉ. प्राणजीवन मेहता प्रमुख थे। वस्तुत: 'हिन्द स्वराज’ स्वयं गांधी के शब्दों में डॉ. प्राणजीवन मेहता से हुई बातचीत की लगभग जस की तस प्रस्तुति है। इस रहस्य का उद्घाटन उन्होंने 21 फरवरी, सन् 1940 को बंगाल की मलिकंदा की बैठक में किया था। डॉ. प्राणजीवन दास जगजीवन दास मेहता (1864-1932) बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के स्नातक थे। बू्रसेल्स से एम.डी. और लन्दन से बैरिस्टरी की उपाधियाँ अर्जित करने के बाद सन् 1889 में हिन्दुस्तान लौट आए थे। यहाँ गुजरात के ईडर रियासत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और बाद में दीवान के पद पर रहने के बाद वह रंगून (बर्मा) चले गए थे।
जब सन् 1909 में गांधी लन्दन पहुँचे थे तो डॉ. मेहता संयोग से वहीं थे। एक महीने दोनों साथ एक होटल में रहे थे। गांधी से डॉ. मेहता लगभग पाँच साल बड़े थे और उनके प्रति गहरा स्नेह भाव रखते थे। स्वयं गांधी के शब्दों में वह उन्हें (गांधी को) मूर्ख और भावुक मानते थे। अपने समय की चिकित्सा और क़ानून की उच्चतम उपाधियों से लैस डॉ. मेहता एक प्रबल बुद्धिवादी तार्किक थे। गांधी उन्हें क्रान्तिकामी अराजकतावादियों में प्रमुख मानते थे। जो विचार बिन्दु 'हिन्द स्वराज’ के विषय बने, उन पर दोनों के बीच लगभग एक माह तक विचार-विमर्श चलता रहा। अन्तत: डॉ. मेहता गांधी के विचारों से सहमत हो गए। गांधी को पहले मूर्ख और भावुक समझनेवाले उन्हीं डॉ. प्राणजीवन मेहता ने 28 अगस्त, सन् 1912 को रंगून के लिए पोर्ट सईद पर जहाज़ की प्रतीक्षा करते हुए हिन्दुस्तान में गोपाल कृष्ण गोखले को लिखा कि मनुष्यता और मातृभूमि के उत्थान के लिए गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर यदा-कदा ही अवतरित होते हैं।
—वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
Maharaja Surajmal
- Author Name:
Kunwar Natwar Singh
- Book Type:

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Description:
18वीं सदी में जब मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर था, मराठों, सिखों और जाटों ने न केवल अपनी-अपनी प्रभावशाली राजसत्ता स्थापित कर ली थी, बल्कि दिल्ली सल्तनत को एक तरह से घेर लिया था। उन दिनों इन रियासतों में कुछ ऐसे शासक पैदा हुए जिन्होंने अपनी बहादुरी तथा राजनय के बल पर न केवल उस समय की सियासत, बल्कि समाज पर भी गहरा असर डाला। भरतपुर के जाट नरेश महाराजा सूरजमल इनमें अव्वल थे।
महज़ 56 वर्ष के जीवन-काल में उन्होंने आगरा और हरियाणा पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार ही नहीं किया, बल्कि प्रशासनिक ढाँचे में भी उल्लेखनीय बदलाव किए। जाट समुदाय में आज भी उनका नाम बहुत गौरव और आदर के साथ लिया जाता है।
विद्वान राजनेता कुँवर नटवर सिंह ने प्रामाणिक सूचनाओं और दस्तावेज़ों को आधार बनाकर महाराजा सूरजमल की सियासत और संघर्ष की महागाथा लिखी है। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो चुकी इस पुस्तक का यह अनुवाद हिन्दी के पाठकों के सामने उनके प्रेरणादायी व्यक्तित्व को रखने का अपनी तरह का पहला उपक्रम है।
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