Himalaya Ka Itihas
Author:
Madan Chandra BhattPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
हिमालय का गहरा नाता भारत के इतिहास और संस्कृति से है। लेकिन अपनी विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति और अनूठी सांस्कृतिक महत्ता के कारण, यह जन-सामान्य के लिए इतिहास का विषय उतना नहीं रहा है जितना गौरव और श्रद्धा की वस्तु। वास्तव में एक मानवीय पर्यावास और सभ्यता के केन्द्र के रूप में हिमालय का इतिहास अब भी काफी कुछ अजाना है। इस सन्दर्भ में मदन चन्द्र भट्ट की यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण पाठ है, जिसमें भारत के उत्तरी, दुर्गम पर्वतीय क्षेत्र का सारगर्भित ऐतिहासिक आकलन प्रस्तुत किया गया है।</p>
<p>लेखक ने हिमालय क्षेत्र में मौजूद शैलचित्रों, अभिलेखों, स्थापत्य और शिल्प अवशेषों, ताम्रपत्रों, सिक्कों जैसे पुरातात्त्विक साक्ष्यों को ही नहीं, बल्कि प्राचीन ग्रन्थों, लोक अनुश्रुतियों और राजस्व विवरणों में उल्लिखित विवरणों को आधार बनाकर एक सिलसिलेवार चित्र उकेरा है। उसका जोर सम्पूर्ण और प्रामाणिक लेखा प्रस्तुत करने तथा सर्वमान्य निष्कर्षों को प्रमुखता देने पर रहा है। जो तथ्य-निष्कर्ष विवादित रहे हैं उनका भी यथास्थान उल्लेख किया गया है।</p>
<p>सुदूर अतीत में अन्य क्षेत्रों की तरह हिमालय क्षेत्र में भी छोटे राज्यों ने आंचलिक और जनपदीय संस्कृतियों का निर्माण किया था। स्वाभाविक ही उनमें स्थानीयता का दृष्टिकोण विकसित हुआ, जब-तब सामाजिक-सांस्कृतिक संकीर्णता के कतिपय तत्त्व भी पनपे। लेकिन अन्य राज्यों और संस्कृतियों से वे कटे नहीं रहे और भारतवर्ष की बुनियादी एकता को मजबूत बनाने में उनका भी योगदान रहा। इस तथ्य को सप्रमाण बतलाते हुए यह पुस्तक एक तरफ उपेक्षित,ओझल पक्षों को सामने लती है, तो दूसरी तरफ भारत के इतिहास में हिमालय क्षेत्र के इतिहास को यथोचित स्थान देने का प्रस्ताव करती है।</p>
<p>इतिहास के अध्येताओं, शोधार्थियों, विद्यार्थियों से लेकर आम पाठक तक के लिए समान रूप से पठनीय और संग्रहणीय कृति!
ISBN: 9788119989850
Pages: 312
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
जब गांधी जी बर्बरीकरण की बात करते हैं तो वह केवल स्थूल हिंसा तक सीमित नहीं है। उसमें हिंसा के वे सब रूप और आयाम शामिल हैं, जिन्हें संरचनागत हिंसा, सांस्कृतिक हिंसा और पीड़ितोन्मुख अप्रत्यक्ष हिंसा कहते हैं। प्रत्यक्ष हिंसा भी इस संरचनागत हिंसा का ही प्रतिफलन होती है, जिसे सांस्कृतिक हिंसा एक वैधता प्रदान करने की कोशिश करती है।
महात्मा गांधी के विचार-सूत्रों में यदि इस प्रकार की सभी समस्याओं के प्रति एक अद्भुत जागरूकता तथा एक नैतिक-तार्किक संगति दिखाई देती है तो इसका कारण शायद यही है कि उनका सारा जीवन और चिन्तन अहिंसा-प्रेम के नियम से प्रेरित रहा है। विस्मय इस बात का होता है कि उनके नैतिक आग्रहों में कहीं भी अर्थशास्त्रीय सवालों की अनदेखी नहीं है। वह यह मानते हैं कि 'सच्चा अर्थशास्त्र कभी उच्चतम नैतिक मानकों का विरोधी नहीं होता, ठीक उसी प्रकार सच्चा नीतिशास्त्र वही माना जा सकता है, जो नीतिशास्त्र होने के साथ-साथ एक अच्छा अर्थशास्त्र भी हो...।
अब तो मेजारोस, लेबो विट्ज और टेरी इगल्टन जैसे नए मार्क्सवादी विचारक भी विकेन्द्रीकृत प्रौद्योगिकी और उत्पादन की बात करने लगे हैं, जिस पर न कॉरपोरेट का नियंत्रण हो, न राज्य का। यह उन उत्पादन-शक्तियों के विकल्प से ही हो सकता है, जो उत्पादन के साथ-साथ मुनाफ़े के वितरण की समस्या का भी समाधान अन्तर्निहित किए हैं। लेकिन विकेन्द्रीकृत तकनीक पर ही, जिसे गांधी जी 'स्वदेशी' कहते हैं, विकेन्द्रीकृत स्वामित्व का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय अथवा बहुराष्ट्रीय, किसी भी प्रकार के पूँजीवाद और उसके अनिवार्य प्रतिफलन साम्राज्यवाद का विकल्प इसलिए 'स्वदेशी' तकनीकी और उत्पादन-व्यवस्था ही हो सकती है, जिसके अन्तर्गत मानवीय स्वातंत्र्य और व्यक्तित्व भी पोषित होता है और प्राकृतिक विनाश का ख़तरा भी नहीं रहता।
इस पुस्तक की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गांधी-दृष्टि के विविध आयामों को उनके साध्य सत्य तथा साधन अहिंसा अर्थात प्रेम के बीज से पल्लवित सिद्ध करने का स्तुत्य प्रयास किया गया है।...यह पुस्तक जहाँ सामान्य पाठकों को गांधी-विचार की प्रामाणिक जानकारी दे सकेगी, वहीं अध्येताओं, छात्रों और अध्यापकों के लिए भी अतीव उपयोगी साबित होगी।
—नन्दकिशोर आचार्य
Asamanjas
- Author Name:
Dr. Rajendra Prasad
- Book Type:

- Description: "महात्मा गांधीजी सत्य और अहिंसा को अपने सभी सिद्धांतों, विचारों और कार्यों का सारभूत मूल मानते थे। जो कुछ वह विचार करते थे और कहते थे, सबको सत्य और अहिंसा की कसौटी पर कसते थे और यदि वह खरा निकलता तो उसे स्वीकार करते थे तथा दूसरे तक उसे पहुँचाने का प्रयत्न भी करते थे। यदि कुछ संदेह हुआ तो उसे छोड़ देते थे। उन्होंने कई बार अपने जीवन में यह स्वीकार किया कि उनके द्वारा हिमालय जैसी भारी भूल हुई। --- महात्माजी का यह विचार था कि मनुष्य को उतने ही आराम के साधनों की आवश्यकता होनी चाहिए, जो जीवन-निर्वाह के लिए पर्याप्त हों और जो दूसरे पर भार डाले बगैर मुहैया किए जा सकते हों और जिनके कारण दूसरों का न तो शोषण की आवश्यकता पड़े, न दूसरों के साथ जोर-जबरदस्ती करने की आवश्यकता हो। इससे यदि अधिक आवश्यकता हुई तो या तो दूसरों का शोषण करना होगा या दूसरों के साथ जबरदस्ती करनी होगी, जो दोनों हिंसा के रूप हैं, या अन्य प्रकार से असत्य का उपयोग करना होगा। —इसी पुस्तक से देशरत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद ने गांधी-दर्शन को जितनी गहराई से समझा था और बापू के सत्य, अहिंसा एवं कर्मवाद के सिद्धांत को जितनी निष्ठा से अपने जीवन में उतारा था, वैसा शायद ही कहीं देखने को मिलता है। ¥â×¢Áâ में गांधीवाद की सच्ची व्याख्या और गांधीजी के सिद्धांतों की स्पष्ट झलक मिलती है। गांधीजी के सिद्धांतों को साकार करनेवाली पुस्तक, जिसे पढ़कर सुधी पाठकगण निश्चित ही लाभान्वित होंगे। "
Vishwa ki Mahan Krantiyan
- Author Name:
Sadanand Rai
- Book Type:

- Description: "क्रांति का अर्थ उस अवस्था को समाप्त करके, जिसमें रहना ही असहनीय होता जा रहा हो, नई व्यवस्था की स्थापना करना था। अतः जहाँ-जहाँ भी विश्व में क्रांतियाँ हुईं, वहाँ देशकाल और स्थितियों के अनुसार ही इनका सूत्रपात हुआ। दिन-प्रतिदिन बढ़ते साधनों ने क्रांति को नया रूप दे दिया था। हिंसक और अहिंसक दोनों ही रूपों ने इस क्रांति विचारधारा को प्रश्रय दिया और 17वीं शताब्दी के अंत में विश्व ने इस क्रांति से परिचय किया, जो आज 21वीं शताब्दी के घोर आधुनिक युग में भी अपनी आवश्यकता एवं प्रासंगिकता बनाए हुए हैं। विश्व का यह आधुनिक और विहंगम स्वरूप इन्हीं क्रांतियों की देन है। तानाशाहों, साम्राज्यवादियों, निरंकुश और अयोग्य शासकों के चंगुल से निकलकर जनता ने आधुनिकता की ओर कदम रखे तो इन्हीं क्रांतियों के कारण, जिनमें प्राणों की आहुति दी गई और शत्रुओं को सबक भी सिखाया गया। इस पुस्तक में विश्व की उन महान् क्रांतियों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने विश्व का भविष्य तय कर दिया; जैसे— औद्योगिक क्रांति : क्रांतियों का आधार, वैज्ञानिक क्रांति, इंग्लैंड की महान् क्रांति, फ्रांस की गौरवपूर्ण क्रांति, इटली की संघर्ष-क्रांति, भारत छोड़ो आंदोलन, जर्मनी की एकीकरण क्रांति, तिब्बत की धार्मिक क्रांति, जापान की तकनीकी क्रांति।"
KALKI : Dasaven Avatar Ka Udaya
- Author Name:
Ashutosh Garg +1
- Book Type:

- Description: संभल गाँव का निवासी और फौज में सूबेदार बिंदेश्वरनाथ त्रिवेदी, प्रथम विश्व-युद्ध के लिए यूरोप जाता है लेकिन युद्ध खत्म होने पर भी घर नहीं लौटता। इस बीच उसके बेटे रमानाथ को संभल का एक रहस्यमयी व्यक्ति मिलता है जो रमानाथ के लापता पिता के बारे में सब जानता है। वह रमानाथ को यूरोप में फैली स्पैनिश फीवर नामक महामारी और उसका वायरस तैयार करने वाले के बारे में भी बताता है! इस घटना के सौ वर्ष बाद, सन् 2020 में म्यूविड-20 नामक एक नई महामारी फैलती है, तो वही रहस्यमयी व्यक्ति फिर प्रकट होता है। इस बार उसकी मुलाकात रमानाथ के पोते गौरव त्रिवेदी से होती है। गौरव को जब उस व्यक्ति की असलियत का पता लगता है तो उसके होश उड़ जाते हैं! कौन है संभल का वह रहस्यमयी व्यक्ति? त्रिवेदी परिवार से उसका क्या संबंध है? क्या स्पैनिश फीवर और म्यूविड-20 महामारियाँ सिर्फ संयोग हैं? या 100 साल के भीतर मानव-समाज पर आई इन दो भयानक विपदाओं के पीछे कोई अज्ञात शक्ति है? क्या भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि का जन्म हो चुका है? यदि हाँ, तो कल्कि, आधुनिक समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं? यह पुस्तक, कल्कि और कलियुग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। इसमें आशुतोष ने जहाँ अपनी परिपक्व कलम से विश्व-इतिहास, उच्च जीवन-दर्शन और पौराणिक पृष्ठभूमि के जीवंत चित्र खींचे हैं, वहीं अत्रि ने अपनी जबर्दस्त कल्पना-शक्ति से साइंस फिक्शन का रोमांचक और अनूठा संसार रचा है।
Marang Gomke Jaipal Singh Munda
- Author Name:
Ashwani Kumar 'Pankaj'
- Book Type:

- Description: कौन थे जयपाल सिंह मुंडा? इनका भारतीय स्वतंत्रता और नए भारत के निर्माण में राजनीतिक-बौद्धिक योगदान क्या था? वे जिस आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उसकी आकांक्षाएँ क्या थीं? इस बारे में आजादी के सत्तर साल बाद भी इतिहास चुप है। एक तरफ गांधी-नेहरू, जिन्ना, अंबेडकर सहित अनेक राजनीतिज्ञों पर सैंकड़ों पुस्तकें हैं, पर जयपाल सिंह मुंडा पर एक भी नहीं है। यह कितनी हैरत की बात है कि झारखंड आंदोलन में कूदने से पहले और देश के संविधान निर्माण सभा में लाखों आदिवासियों के लिए निडरता से दहाड़नेवाले जिस आदिवासी ने देश के लिए आई.सी.एस. छोड़ी, जिसकी कप्तानी में भारत ने पहला हॉकी का ओलंपिक स्वर्ण जीता, जिसने अफ्रीका और भारत के कॉलेजों में अध्यापन के दौरान अपनी शिक्षकीय योग्यता से प्रभु वर्ग को प्रभावित किया, जो गुलाम भारत में किसी ब्रिटिश कंपनी में सर्वोच्च पद पर काम करनेवाला पहला भारतीय (वह भी आदिवासी) था, जिससे पढ़ने के लिए भारत के राजा-रजवाड़े लालायित रहते थे, जो ऑक्सफोर्ड से अर्थशास्त्र में गोल्डमेडलिस्ट था, हॉकी में एकमात्र भारतीय ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ खिलाड़ी था और जो कॉलेज के दिनों में विभिन्न सभा-सोसायटियों का नेतृत्वकर्ता संयोजक-अध्यक्ष था, उसे इस लायक भी नहीं समझा गया कि उसकी चर्चा हो। —इसी पुस्तक से
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