Aadhunik Bharat Ka Aarthik Itihas : 1850-1947
Author:
Sabyasachi BhattacharyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
<span style="font-weight: 400;">प्रो. सब्यसाची भट्टाचार्य देश के जाने-माने इतिहासकार हैं, जिनके अध्ययन का मुख्य क्षेत्र औपनिवेशिक भारत रहा है। उनकी पुस्तक ब्रिटिश राज के वित्तीय आधार चर्चित और प्रशंसित पुस्तकों में से है।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">आधुनिक भारत के आर्थिक विकास पर रमेशचंद्र दत्त तथा रजनी पाम दत्त की पुस्तकें काफी पहले प्रकाशित हुई थीं, लेकिन प्रस्तुत पुस्तक उनकी पुस्तकों से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें इस विषय पर किए गए अद्यतन शोधों तथा अभिलेखागार में उपलब्ध सामग्री का भरपूर उपयोग किया गया है। यह सामग्री उपर्युक्त पुस्तकों के लेखन के समय उपलब्ध नहीं थी।</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">प्रो. भट्टाचार्य ने अपनी इस पुस्तक में औपनिवेशिक भारत के आर्थिक विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की है। लेकिन यह एक जटिल कार्य था और औपनिवेशिक भारत के आर्थिक इतिहासकारों के जो कई घराने हैं, उनके विकास और वैशिष्ट्य का मूल्यांकन किए बिना प्रतिपाद्य विषय के साथ न्याय नहीं किया जा सकता था। अतएव प्रो. भट्टाचार्य ने इस शताब्दी की सीमाओं में विभिन्न ऐतिहासिक विचारधाराओं का आकलन करते हुए अनेक बुनियादी सवाल उठाए हैं और बाद के अध्यायों में उन सवालों पर विस्तार से विचार किया है। भारत का अर्थनीतिक उपनिवेशीकरण कैसे हुआ, इस प्रश्न को उन्होंने विभिन्न कोणों से देखा-परखा है और इस प्रसंग में ब्रिटिश सरकार की विभिन्न नीतियों के अच्छे या बुरे परिणामों को सामने रखा है। साथ ही, उन नीतियों की संपूर्ण रूप से और साम्राज्यवादी राष्ट्र के चरित्र को साधारण रूप से समझने की चेष्टा भी की है। उल्लेखनीय है कि प्रो. भट्टाचार्य ने उपनिवेशवादी शोषण के चरित्र और विद्रूपित आर्थिक विकास को विशेष रूप से रेखांकित किया है।</span>
ISBN: 9788126700806
Pages: 198
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: संकलित लेख स्वातंत्र्योत्तर भारत के लगभग सभी पहलुओं पर मंत्रणा करते दिखते है। फिर चाहे मुद्दा साहित्य, संस्कृति और भाषा का हो, कांग्रेसवाद बनाम मार्क्सवाद का हो, या एक नयी वैश्विक व्यवस्था में भारत की छवि और कर्तव्यों का हो। यहाँ एक ऐसी विस्तृत और समावेशी तस्वीर उभरती है जिसे किसी एक उपन्यास या कई कहानियों में भी समेटना नामुमकिन है। इस लिहाज़ से 'विप्लव' का चौथा भाग भारत के बौद्धिक इतिहास की प्रस्तावना उकेरता है—एक ऐसी पृष्ठभूमि जो आजादी से लेकर अबतक हमारे सामाजिक जीवन को प्रभावित-पोषित करता आई है। इन लेखों में यशपाल एक दुस्साहसी संपादक के रूप में निखरते हैं जो अपनी लेखनी में तटस्थ पत्रकारिता, तथ्यपरक विवेचना और साहित्यिक स्वायत्तता की एक अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। शैली और भाषा का एक ऐसा नमूना जो आज के दौर में बेहद प्रासंगिक है। यह कहना उचित होगा कि यशपाल का साहित्य और उनकी पत्रकारिता, दोनों क्रांतिकारी संघर्ष की बौद्धिक उपज हैं। और एक दूसरे के पूरक भी हैं। इसलिए यह किताब हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए अनिवार्य है।
Vikasit Bihar Ki Khoj
- Author Name:
Nitish Kumar
- Book Type:

- Description: सन् 1957 में प्रधानमंत्री नेहरू ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संदर्भ में लोकसभा में कहा था-' ' बोलने के लिए वाणी की जरूरत होती है, किंतु मौन के लिए वाणी और विवेक दोनों की जरूरत पड़ती है। '' बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के विषय में भी शायद पंडित नेहरू का यह वाक्यांश सटीक बैठता है। मुख्यमंत्री नीतीश बाबू चाहे प्रतिपक्ष में रहे या पक्ष में, सदन के एक-एक पल का उपयोग किया, ताकि संसदीय जनतंत्र मजबूत हो एवं जन- भागीदारी का यह मुखर मंच अपने मकसद में कामयाब हो। वे कर्पूरी ठाकुर की राजनीति के कायल रहे हैं। उन्होंने राजनीति में सिद्धांतों और मूल्यों की पैरवी की और इन्हें सही मायनों में अपनाया भी। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनके कार्यकाल में बिहार राज्य का कायाकल्प हो गया है। प्रस्तुत पुस्तक में नीतीश बाबू के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कार्यों का विवेचन किया गया है। एक राजनेता के रूप में वे अपनी वाणी से कुछ न कहकर अपना उत्तर रचनात्मक कार्यो के रूप में देते हैं। उनकी मान्यता है कि सुशासन का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। राजनीति में शुचिता और पारदर्शिता का प्रमाण देनेवाले इन लेखों से आम आदमी का राजनीतिज्ञों में और विकास के कामों में विश्वास बढेगा।
Bharat Mein Angrezi Raj Aur Marxvaad : Vol. 2
- Author Name:
Ramvilas Sharma
- Book Type:

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Description:
सुविख्यात समालोचक, भाषाविद् और इतिहासवेत्ता डॉ. रामविलास शर्मा प्रणीत अप्रतिम इतिहासग्रन्थ ‘भारत में अंग्रेज़ी राज और मार्क्सवाद’ का यह दूसरा खंड है। अपनी महत्ता में यह ग्रन्थ लेखक की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृतियों—‘निराला की साहित्य साधना’ तथा ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी’—के समकक्ष ऐतिहासिकता लिए हुए है।
पुस्तक के पहले खंड की तरह रामविलास जी ने इस खंड को भी छह अध्यायों में नियोजित किया है। इसके पहले दोनों अध्याय क्रान्ति और सामाजिक विकास के सन्दर्भ में मार्क्स की स्थापनाओं का विवेचन करते हैं और तीसरे अध्याय में मार्क्स की उन धारणाओं का विश्लेषण है, जो भारत में अंग्रेज़ी राज से सम्बद्ध हैं। चौथा अध्याय फ़्रांसीसी यात्री बर्नियर से लेकर रजनी पाम दत्त तक कई भारतीय चिन्तकों के उन विचारों को रेखांकित करता है; जो भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास पर प्रामाणिक प्रकाश डालते हैं। पाँचवाँ अध्याय भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन के विभिन्न उतार-चढ़ावों का बेबाक विश्लेषण करता है, जिससे वर्तमान स्थितियों पर भी सार्थक सोच की शुरुआत की जा सकती है। छठे अध्याय में सत्ता-हस्तान्तरण तथा भारत-कॉमनवेल्थ-सम्बन्धों का गम्भीर विवेचन हुआ है।
संक्षेप में, यह ग्रन्थ भारतीय इतिहास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और विवादास्पद कालखंड का सर्वथा नया मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। भारत के वर्तमान और भावी स्वरूप के सन्दर्भ में इससे हमें जो दृष्टि प्राप्त होती है, उससे आज तक का जाना हुआ इतिहास अपने मिथ्या की अनेकानेक केंचुलियाँ उतारकर पूरी तरह निरावरण हो उठता है। यह प्रक्रिया पाठक को न सिर्फ़ लेखक के विराट वैज्ञानिक इतिहासबोध के मूल तक ले जाती है, बल्कि अर्थतंत्र से लेकर भाषा, संस्कृति और स्वदेशी को धुरी बनाकर एक नए भारत के निर्माण की आकांक्षा को भी अनुभूत कराती है।
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