1857 Ka Swatantraya Samar
Author:
Vinayak Damodar SavarkarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
वीर सावरकर रचित ‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’ विश्व की पहली इतिहास पुस्तक है, जिसे प्रकाशन के पूर्व ही प्रतिबंधित होने का गौरव प्राप्त हुआ। इस पुस्तक को ही यह गौरव प्राप्त है कि सन् १९०९ में इसके प्रथम गुप्त संस्करण के प्रकाशन से १९४७ में इसके प्रथम खुले प्रकाशन तक के अड़तीस वर्ष लंबे कालखंड में इसके कितने ही गुप्त संस्करण अनेक भाषाओं में छपकर देश-विदेश में वितरित होते रहे। इस पुस्तक को छिपाकर भारत में लाना एक साहसपूर्ण क्रांति-कर्म बन गया। यह देशभक्त क्रांतिकारियों की ‘गीता’ बन गई। इसकी अलभ्य प्रति को कहीं से खोज पाना सौभाग्य माना जाता था। इसकी एक-एक प्रति गुप्त रूप से एक हाथ से दूसरे हाथ होती हुई अनेक अंतःकरणों में क्रांति की ज्वाला सुलगा जाती थी।
पुस्तक के लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे—सन् १८५७ का यथार्थ क्या है?क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था? क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पड़े थे, या वे किसी बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था? यदि हाँ, तो उस योजना में किस-किसका मस्तिष्क कार्य कर रहा था?योजना का स्वरूप क्या था?क्या सन् १८५७ एक बीता हुआ बंद अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवंत यात्रा?भारत की भावी पीढि़यों के लिए १८५७ का संदेश क्या है? आदि-आदि। और उन्हीं ज्वलंत प्रश्नों की परिणति है प्रस्तुत ग्रंथ—‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’! इसमें तत्कालीन संपूर्ण भारत की सामाजिक व राजनीतिक स्थिति के वर्णन के साथ ही हाहाकार मचा देनेवाले रण-तांडव का भी सिलसिलेवार, हृदय-द्रावक व सप्रमाण वर्णन है।
प्रत्येक देशभक्त भारतीय हेतु पठनीय व संग्रहणीय, अलभ्य कृति!
ISBN: 9789386300089
Pages: 424
Avg Reading Time: 14 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: "देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कार्य क्षमता, बोलने की अनूठी शैली और आम व्यक्ति के साथ हर पल जुड़े रहने की इच्छा ने उनके व्यक्तित्व को अप्रतिम बना दिया है। नरेंद्र मोदीजी आज केवल एक व्यक्तित्व भर नहीं हैं, बल्कि वे हमारे देश के एक-एक नागरिक की आँखों की चमक हैं। नरेंद्र मोदीजी केवल अपने कदम बढ़ाने में यकीन नहीं रखते हैं, बल्कि वे कहते हैं कि मेरे साथ 130 करोड़ भारतीयों के कदम साथ चलेंगे, तो देश विकास के पथ पर अग्रसर होगा और भारत की पताका सदैव विश्व में सबसे ऊपर नजर आएगी। वे सकारात्मकता से भरपूर हैं। कठिन से कठिन परिस्थिति भी उन्हें विचलित नहीं करती। वे जितना अधिक राजनीति में बेजोड़ हैं, उतने ही शब्दों और विचारों के अधिकारी। उनकी बातें और उनका लेखन हर भारतीय में ऊर्जा, जोश और आत्मविश्वास का संचार करता है। यह पुस्तक नरेंद्र मोदीजी के प्रेरक विचारों का नवनीत है। यह पुस्तक हर भारतीय की सकारात्मकता को ऊर्जावान बनाने और उन्हें राष्ट्र के लिए समर्पित होने का भाव जाग्रत् करेगी।"
1965 Bharat-Pak Yuddha Ki Anakahi Kahani
- Author Name:
R.D. Pradhan
- Book Type:

- Description: 1965 भारत-पाक युद्ध की अनकही कहानी 1965 का युद्ध वर्ष 1947 में हुए विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहला पूर्ण युद्ध था। भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री वाई.बी. चह्वाण ने 22 दिन तक चले इस युद्ध का विवरण स्वयं अपनी डायरी में दर्ज किया था। इस पुस्तक में बताई गई अंदरूनी बातों से पता चलता है— • पाकिस्तानी हमले के समय का पता करने में भारत का खुफिया विभाग बिलकुल विफल रहा। • कैसे और क्यों चह्वाण ने प्रधानमंत्री को सूचित किए बिना ही वायुसेना को हमला करने का आदेश दे दिया। • कैसे एक डिवीजन कमांडर को अभियान से अलग कर दिया गया। • कैसे एक सेना कमांडर ने अपनी ‘रेजीमेंट के महान् गौरव’ के लिए 300 से अधिक लोगों को कुरबान कर दिया। • भारतीय सेना ने लाहौर के अंदर कूच क्यों नहीं किया? • कैसे प्रधानमंत्री ने अपना धैर्य बनाए रखा और युद्ध के समय एक महान् नेता बनकर उभरे। • क्या यह युद्ध निरर्थक था, भारत ने युद्ध के मोर्चे पर जो कुछ जीता था, क्या वह सब ताशकंद में गँवा दिया था? और अंत में, राजनीतिक नेतृत्व ने कैसे रक्षा बलों के नेतृत्व के साथ फिर से अपने समुचित संबंध बहाल कर लिये और 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय पैदा हुई कड़वाहट को मिटा दिया। यह पुस्तक वायुसेना के सम्मान में लिखी गई है, जिसे स्वतंत्रता के बाद पहली बार युद्ध में लगाया गया था। यह उन बख्तरबंद रेजीमेंटों को भी श्रद्धांजलि है, जो इस युद्ध में बड़ी वीरता से लड़ीं और पैटन टैंकों के सर्वश्रेष्ठ होने के मिथक को तोड़ दिया।
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