
Kashmir Ka Sahitya
Publisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
History-and-politics0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
भारत की बहुभाषिकता भारत की शक्ति है तो भारतीय सृजनधर्मी साहित्य का सौंदर्य भी। कश्मीर का साहित्य वहां के जन की सृजनधर्मिता में विकसित हुई। लगभग 40 वर्षों से कश्मीर को दूर से देखा जा रहा था। इस दूर से देखने का असर कश्मीर में प्रस्फुटित साहित्य को देखने-जानने पर भी हुआ।
परिणामतः कश्मीरी साहित्य विशेषतः कश्मीरी भाषा में लिखा गया। कश्मीर में रहकर जो कश्मीरी भाषा में लिखा जा रहा था, वह सब अपरिचित-सा हो गया। विस्थापित कश्मीरी समूह जहां विस्थापन की पीड़ा में सिमटकर रह गया, वही कश्मीर के अंदर जो लोग लिख रहे थे, घाटी में जो लोग लिख रहे थे, उनमें जाने-अनजाने कश्मीरियत की पहचान, ऐसी पहचान जो शेष भारत से अलग, अलहदा यह देखने लगा। और कश्मीर के लेखन में भारत अनुपस्थिति-सा हो गया। साहित्य में भारत लोग की और लोक मन की उपस्थिति है।
स्वतंत्रता के पूर्व यहां तक की बीसवीं सदी में नब्बे के दशक के पूर्व तक के सृजनात्मक लेखन में यह लोक मन सर्वत्र परिलक्षित होता है और कश्मीर के वैशिष्ट्य के साथ भारतीयता का अनुरणन करता है पर नब्बे के बाद अलग, अलहदा कश्मीर और उस पर पांथिक उन््माद तथा आतंक की छाया ने सबकुछ खत्म कर दिया। संवेदना और सद्भाव, जो कुछ लिखा जा रहा था, उससे तिरोहित हो गया। नेह छोह नाते लुप्त हो गए। पर काल का परिवर्तन हुआ है।
भारत का भारत के लिए कश्मीर का भाव जम्मू कश्मीर की आवोहवा में प्रसारित हुआ है। भारत के साथ एकात्म और अभिन्न भाव जम्मू कश्मीर के स्वर सब ओर गुंजरित हो रहे हैं। ऐसे में कश्मीर के साहित्यिक संसार का एक सम्यक् आकलन आवश्यक और अपरिहार्य प्रतीत हो रहा है। इस अपरिहार्यता को दृष्टिगत कर प्रस्तुत ग्रंथ कश्मीर के साहित्य संसार की संक्षिप्त समीक्षा है। कविता, कहानी, साहित्य, कश्मीर की भाषा की विशिष्टताओं को प्रतिनिधि तौर पर प्रस्तुत करने की यह कोशिश है.
ISBN: 9789355212559
Pages: 276
Avg Reading Time: 9 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘विकल्पहीन नहीं है दुनिया’ किशन पटनायक के राजनैतिक चिन्तन का पहला प्रतिनिधि संकलन है। इस पुस्तक के अधिकांश निबन्ध पिछले दो दशकों में लिखे गए हैं जब देश और दुनिया के बदलते चेहरे को समझने में स्थापित विचार की अक्षमता ज़ाहिर हो गई है। स्थापित राजनैतिक विचारधाराएँ जड़ तथा अप्रासंगिक होती जा रही हैं और बुद्धिजीवी आज की दुनिया के सवालों से पलायन कर रहे हैं। बढ़ती विषमता और नैतिक पतन के सवालों को उठाने की इच्छा, सामर्थ्य और भाषा तक ख़त्म होती जा रही है। विचार के इस संकट के दौर में यह पुस्तक एक नया युगधर्म ढूँढ़ने की कोशिश करती है।
इस नए युगधर्म को यहाँ कोई नाम नहीं दिया गया है। यह किंचित् अनगढ़ देशीय चिन्तन गांधी और समाजवादी विचार परम्परा के साथ–साथ जनान्दोलनों के अनुभव से प्रेरणा ग्रहण करता है, लेकिन किसी इष्ट देवता या वैचारिक बाइबिल का सहारा नहीं लेता है। समता और नैतिकता की कसौटियों का पुनरुद्धार करने के इस प्रयास की परिधि में एक ओर आधुनिक सभ्यता के संकट, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के चरित्र और नैतिकता के स्रोत जैसे अमूर्त सवाल शामिल हैं। दूसरी ओर यह चिन्ता अपने मूर्त रूप में सोमालिया के अकाल से कालाहांडी की भुखमरी तक फैली है, नाइजीरिया में सारो वीवा की हत्या और मणीबेली की डूब को एक सूत्र में पिरोती है, शूद्र राजनीति की सम्भावनाओं और धर्मनिरपेक्षता के भविष्य के रिश्ते की शिनाख़्त करती है।
इस पुस्तक के ‘प्रवक्ता’ किशन पटनायक राजनीति में वैचारिक स्पष्टता, चारित्रिक शुद्धता और बुद्धि तथा मन के बीच मेल के लिए जाने जाते हैं। अकादमिक पांडित्य के बोझ और राजनैतिक वाक् युद्ध के गाली–गलौज से अलग हटकर यह पुस्तक वैचारिक बारीकी और राजनैतिक प्रतिबद्धता को गूँथने की एक नई शैली प्रदान करती है।
Samvidhan, Sanskriti Aur Rashtra
- Author Name:
Kalraj Mishra
- Book Type:
- Description: No Description Available for this Book
Nehru Ki 127 Aitihasik Galtiyan
- Author Name:
Rajnikant Puranik
- Book Type:
- Description: चीन की सरकार के लिए भारत पर आक्रमण करने जैसी बात सोचना भी पूरी तरह से अव्यावहारिक है। इस कारण, मैं इसे खारिज करता हूँ...जवाहरलाल नेहरू (एएस/103) किसी ने ठीक ही कहा है : नेहरू अनभिज्ञता के नवाब थे। अगर नेहरू ने तमाम किस्म की बड़ी गलतियाँ नहीं की होतीं; और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने बेहिसाब गलतियाँ कीं, नहीं तो भारत तेजी से तरक्की की राह पर होता और उनके कार्यकाल के अंत तक एक प्रभावशाली, समृद्ध, विकसित देश होता। और निश्चित रूप से ऐसा 1980 के दशक की शुरुआत में ही हो गया होता, बशर्ते, नेहरू के बाद उनका वंश सत्ता में नहीं आया होता। दुर्भाग्य से, नेहरू युग ने ही भारत में गरीबी और दरिद्रता की नींव रखी, जिसने हमेशा के लिए इसे एक विकासशील, तीसरे दर्जे का, पिछड़ा देश बनाकर रख दिया। इन मूर्खतापूर्ण भूलों का ब्योरा रखकर, यह पुस्तक दिखावे के पीछे का सच दिखाती है। इस पुस्तक में नेहरू की मूर्खतापूर्ण भूलों का प्रयोग एक सामान्य शब्द के रूप में विफलताओं, लापरवाहियों, गलत नीतियों, खराब फैसलों, निंदनीय या अशोभनीय कृत्यों, अनर्जित पदों को हड़पने आदि के लिए भी किया गया है। इस पुस्तक का उद्देश्य नेहरू की आलोचना करना नहीं है, बल्कि उन ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी को, जिन्हें अकसर तोड़ा-मरोड़ा गया या छिपाया गया या दबा दिया गया, व्यापक करना है, ताकि वही गलतियाँ दोबारा न हों, और भारत का भविष्य उज्ज्वल बन सके। हो सकता है कोई कहे : नेहरू पर हायतौबा मचाने की जरूरत क्या है? उन्हें गए तो बरसों हो गए। बरसों हो गए शारीरिक रूप से, किंतु दुर्भाग्य से उनकी अधिकतर सोच और नीतियाँ अब भी जीवित हैं। यह समझना जरूरी है कि उन्होंने गलत रास्ते को चुना। पर देश को उन विचारों से मुक्त होकर आगे बढ़ना पड़ेगा, जिनमें से अधिकांश अब भी जारी हैं।
Muslim Man Ka Aaina
- Author Name:
Rajmohan Gandhi
- Book Type:
-
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स्वस्थ हिन्दू-मुस्लिम सम्बन्धों और भारतीय जनगण के बीच सहिष्णुता के लिए यह ज़रूरी है कि मुसलमान हिन्दुओं के और हिन्दू मुसलमानों के मानस को समझें। यह पुस्तक इसी भावना को लेकर भारत और पाकिस्तान के आठ प्रसिद्ध मुस्लिम नेताओं के जीवन को रेखांकित करती है, और उनके कहे-अनकहे पहलुओं को हमारे सामने लाती है। जिन लोगों के जीवनेतिहास के माध्यम से इस पुस्तक में लेखक ने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में झाँकने का प्रयास किया है, उनमें ये नाम शामिल हैं : सैयद अहमद ख़ाँ, मुहम्मद इक़बाल, मुहम्मद अली, मुहम्मद अली जिन्ना, फ़ज़लुल हक़, अबुल कलाम आज़ाद, लियाक़त अली ख़ाँ, ज़ाकिर हुसैन।
पुस्तक हमारे मन-मस्तिष्क में बनी मुसलमानों के प्रति उन सभी भ्रान्त धारणाओं को वैचारिक स्तर पर तोड़ती है जिन्हें हम तथाकथित ‘इतिहास’ के रूप में जानते आए हैं। हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की मानसिक संरचना में कितनी एकरूपता है और कितनी भिन्नता तथा दोनों ही समुदाय हर पहलू से कितने एक-दूसरे के नज़दीक हैं, पुस्तक हमें विस्तार से बताती है।
‘अंडरस्टैंडिंग दि मुस्लिम माइंड’ अंग्रेज़ी पुस्तक से अनूदित राजमोहन गांधी की यह पुस्तक हमें अत्यन्त विनम्रता से उन ज़िन्दगियों को समझाने का प्रयत्न करती है, जिनके विषय में हम जानते हुए भी बहुत कम जानते हैं।
Itihas Ki Punarvyakhya
- Author Name:
Romila Thapar
- Book Type:
-
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यदि किसी राष्ट्र के वर्तमान पर उसका अतीत अथवा इतिहास अनिष्ट की तरह मँडराने लगे तो उसके कारणों की पड़ताल नितान्त आवश्यक है। इतिहास की पुनर्व्याख्या इसी आवश्यकता का परिणाम है। विज्ञानसम्मत इतिहास-दृष्टि के लिए प्रख्यात जिन विद्वानों का अध्ययन-विश्लेषण इस कृति में शामिल है, उसे दो विषयों पर केन्द्रित किया गया है। पहला, ‘भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए नई दृष्टि’, और दूसरा, ‘साम्प्रदायिकता और भारतीय इतिहास-लेखन’। सर्वविदित है कि इतिहास के स्रोत अपने समय की तथ्यात्मकता में निहित होते हैं, लेकिन इतिहास तथ्यों का संग्रह-भर नहीं होता। उसके लिए तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है और अध्ययन के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण। इसके बिना उन प्रवृत्तियों को समझना कठिन है, जो पिछले कुछ वर्षों से भारतीय इतिहास के मिथकीकरण का दुष्प्रयास कर रही हैं। इसे कई रूपों में रेखांकित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अतीत को लेकर एक काल्पनिक श्रेष्ठताबोध, वर्तमान के लिए अप्रासंगिक पुरातन सिद्धान्तों का निरन्तर दोहराव, सन्दिग्ध और मनगढ़ंत प्रमाणों का सहारा, तथ्यों का विरूपीकरण आदि। स्वातंत्र्योत्तर भारत में हिन्दू और मुस्लिम परम्परावादियों में इसे समान रूप से लक्षित किया जा सकता है। मस्जिदों में बदल दिए गए तथाकथित मन्दिरों के पुनरुत्थान-पुनर्निर्माण या फिर पुरातत्त्व विभाग द्वारा संरक्षित मस्जिदों में नए सिरे से उपासना के प्रयास ऐसी ही प्रवृत्तियों को उजागर करते हैं।
वस्तुत: ज्यों-ज्यों इतिहास और परम्परा के वैज्ञानिक मूल्यांकन की कोशिशें हो रही हैं, त्यों-त्यों उसके समानान्तर मिथकीकरण के प्रयासों में भी तेज़ी आ रही है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे प्रयासों के पीछे राजनीति-प्रेरित कुछ इतर स्वार्थों की पूर्ति भी एक उद्देश्य है, जिसका भंडाफोड़ करना आज की ऐतिहासिक ज़रूरत है, क्योंकि प्रजातीय और धार्मिक श्रेष्ठता का दम्भ संसार में कहीं भी टकराव और विनाश को आमंत्रण देता रहा है। प्रो. रोमिला थापर के शब्दों में कहें तो, “20वीं शताब्दी के प्रारम्भ में जर्मनी में सामाजिक परिवर्तन की अनिश्चितता और मध्यवर्ग का विस्तार आर्य-मिथक का उपयोग कर रहे फासीवाद के उदय के मूल कारण थे। इस अनुभव से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जातीय मूल और पहचान के सिद्धान्तों का उपयोग बड़ी सावधानी से किया जाए, वरना उसके कारण ऐसे विस्फोट हो सकते हैं, जो एक पूरे समाज को तबाह कर दें। इन परिस्थितियों में इतिहास के नाम पर वृहत्तर समाज द्वारा ऐतिहासिक विचारों के ग़लत इस्तेमाल के तरीक़ों से इतिहासकार को सावधान रहना होगा।”
कहना न होगा कि यह मूल्यवान कृति इतिहास और इतिहास-लेखन की ज्वलन्त समस्याओं से तो परिचित कराती ही है, आज के लिए अत्यन्त प्रासंगिक विचार-दृष्टि को भी हमारे सामने रखती है।
Ek Tha Doctor Ek Tha Sant
- Author Name:
Arundhati Roy
- Book Type:
- Description: वर्तमान भारत में असमानता को समझने और उससे निपटने के लिए, अरुंधति रॉय ज़ोर दे कर कहती हैं कि हमें राजनीतिक विकास और एम.के. गांधी का प्रभाव, दोनों का ही परीक्षण करना होगा। सोचना होगा कि क्यों बी.आर. आंबेडकर द्वारा गांधी की लगभग दैवीय छवि को दी गई प्रबुद्ध चुनौती को भारत के कुलीन वर्ग द्वारा दबा दिया गया। राय के विश्लेषण में, हम देखते हैं कि न्याय के लिए आंबेडकर की लड़ाई, जाति को सुदृढ़ करनेवाली नीतियों के पक्ष में, व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दी गई, जिसका परिणाम है वर्तमान भारतीय राष्ट्र जो आज ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र है, विश्वस्तर पर शक्तिशाली है, लेकिन आज भी जो जाति व्यवस्था में आकंठ डूबा है।
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