Amir Khusro : Vyaktittva, Chintan Aur Sampoorna Hindavi Kalam
Author:
Zakir Hussain ZakirPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
अमीर ख़ुसरो जिन्हें दो बड़ी सभ्यताओं के सम्मिलन का प्रतिनिधि व्यक्तित्व कहा जाता है; और चौदहवीं सदी में रचा गया जिनका कलाम आज भी अपनी जगह कायम है, वे एक बड़े कवि तो थे ही, राजनीतिज्ञ, संगीतकार और भाषाविद भी थे।
‘अमीर ख़ुसरो : व्यक्तित्व, चिन्तन और सम्पूर्ण हिन्दवी कलाम’ पुस्तक उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की लगभग सम्पूर्ण प्रस्तुति है। पुस्तक दो खंडों में विभक्त है। पहले खंड में खुसरो की भाषा और उनकी हिन्दवी रचनाओं पर शोधपरक विवेचना के साथ उनकी रचना ‘ख़ालिक़ बारी’ और उससे जुड़े विवादों पर विचार, तसव्वुफ़ की उनकी धारणा और उनके व्यक्तित्व में तसव्वुफ़ की भूमिका पर केन्द्रित शोध के अलावा जिन सुल्तानों और सूबेदारों के आश्रय में वे रहे उनकी जानकारी भी विस्तारपूर्वक दी गई है।
अमीर ख़ुसरों ने अपने जीवनकाल में बारह युद्ध-अभियानों में भाग लिया था, इस खंड में उनकी चर्चा भी ऐतिहासिक संदर्भों के साथ की गई है। एक संगीत-सृजक के रूप में उन्होंने जहाँ नए रागों की रचना की, वहीं नए संगीत वाद्यों का भी आविष्कार किया। एक विस्तृत आलेख इस विषय पर भी इसी खंड में शामिल है।
किताब के दूसरे हिस्से में उनके अब तक उपलब्ध हिन्दवी काव्य को प्रस्तुत किया गया है। उनकी पहेलियों, कहमुकरियों, दोहों, कविताओं, गीतों, कव्वालियों, ग़ज़लों और ‘ख़ालिक़ बारी’ को यहाँ आप एक साथ देख सकते हैं।
कहने की जरूरत नहीं कि अमीर खुसरो के साथ यह पुस्तक उनके समय, तत्कालीन इतिहास और उस दौर की सांस्कृतिक विशेषताओं पर भी प्रकाश डालती है।
ISBN: 9789348157041
Pages: 368
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ शृंखला की इस सातवीं पुस्तक में डॉ. सुमन गुप्ता ने समकालीन दार्शनिक चिन्तन की दो मुख्य प्रवृत्तियों—भाषिक दर्शनशास्त्र और अस्तित्ववाद—का मार्क्सवादी दृष्टि से अध्ययन किया है। इन दोनों विचारधाराओं को उनके सही सामाजिक-ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए, डॉ. गुप्ता ने इनकी प्रचलित व्याख्याओं पर प्रश्नचिह्न लगाया है। उनका तर्क है कि गूढ़ पारिभाषिक शब्दावली के आवरण में इन विचारधाराओं की अमूर्त तत्त्वमीमांसी प्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है, जो एक सही विश्व-दृष्टि प्रस्तुत करने के स्थान पर यथार्थ को विरूपित करती है। भाषिक दर्शनशास्त्रियों और अस्तित्ववादियों के दृष्टिकोण के विपरीत, डॉ. सुमन गुप्ता ने एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया है, जो न केवल इन चिन्तनधाराओं के विविध पक्षों का एकीकरण करता है बल्कि उनके सामाजिक यथार्थ की जड़ों में भी जाता है। सुमन गुप्ता ने स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि भाषिक दर्शनशास्त्रियों और अस्तित्ववादियों द्वारा प्रतिपादित मनुष्य की संकल्पना मनुष्य को एक ऐसे अमूर्त रूप में चित्रित करती है जो अपने सामाजिक क्रियाकलाप से अपना या अपने चारों ओर की दुनिया का रूपान्तरण करने में असमर्थ है।
डॉ. गुप्ता ने समकालीन दर्शन की इन दोनों प्रवृत्तियों की न केवल समीक्षा प्रस्तुत की है, बल्कि वह विश्व-दृष्टि भी सामने रखी है जिसे वे सही मानती हैं।
सुमन गुप्ता ने भाषिक दर्शनशास्त्र और अस्तित्ववाद का विवेचन साधारण कुशलता से किया है लेकिन उनकी पद्धति निस्सन्देह विवादमूलक है, जिसके फलस्वरूप यह पुस्तक दर्शनशास्त्र के प्रति एक नई दृष्टि विकसित करने में सहायक होगी और जो पाठक दर्शनशास्त्र की सार्थकता को जीवन की यथार्थ समस्याओं से जोड़कर देखना चाहते हैं, उनके लिए यह निश्चय ही रोचक और पठनीय सिद्ध होगी।
Mega-Tantrums Of Mamata : The Wailing Bengal
- Author Name:
Sanjay Rai Sherpuria
- Book Type:

- Description: West Bengal is known for its rich, glorious, and historic heritage. However, over the last ten years, Mamata Banerjee of Trinamul Congress has converted this land of ‘VandeMataram’ and ‘Jana Gana Mana,’ the birthplace of cultural reawakening, into a sanctuary for the terrorists, illegal immigrants, and Rohingya refugees. These traitorous elements, fostering under the protective shield of Mamata, are posing a big threat to internal security. This is a matter of great concern for every nationalist. The deception that Mamata has subjected the citizens of the state to, under the slogan of ‘Maa, Maati and Maanush’, is a blot on the democracy. It is but necessary to re-establish the nationalistic thoughts in Bengal in order to end the evil efforts of breaking the society, reinforce the democratic values and national integrity, and blow the bugle of the reawakening of India. This book, detailing the agony of bleeding and bemoaning Bengal, makes you introspect and invokes a feeling of confidence in the socio-cultural reformation of Bengal.
Naksaliyon Ke Beech Mere Beete Dinon Ki Romanchak Gatha
- Author Name:
Alpa Shah
- Book Type:

- Description: 2010 में जब भारत सरकार देश के नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सल विरोधी अभियानों में तेजी ला रही थी, तो उस समय अल्पा शाह गुरिल्ला प्लाटून केसाथ उन्हीं इलाकों की 250 किलोमीटर लंबे सात रातों के सफर पर निकलीं। एक मानव विज्ञानी केरूप में वह समझना चाहती थीं कि एक नए भारत के उदय की पृष्ठभूम में, क्यों देश के गरीबों ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र से मुँह मोड़कर क्रांतिकारी विचारधारा के साथ एकजुटता दिखाई? गहरे हरे रंग की छापामारा वर्दी पहने, पुरुष के वेश में अल्पा प्लाटून में एकमात्र महिला और एकमात्र ऐसी इनसान थीं जिसके पास बंदूक नहीं थी। कष्टों से भरी उनकी इस यात्रा ने यह खुलासा किया कि क्यों विभिन्न पृष्ठभूमियों केलोग, दुनिया को बदलने के लिए हथियार उठाकर एक साथ इकट्ठा हो गए थे; और साथ ही किन वजहों से फिर उनमें बिखराव हुआ? अल्पा शाह सालों के शोध के साथ ही नक्सलियों के गढ़ में आदिवासी समुदायों के साथ, उनके रोजमर्रा के जीवन में इतना घुलमिल गई थीं कि उनकी पुस्तक ‘नक्सलियों के बीच मेरे बीते दिनों की रोमांचक गाथा’ में वह गइराई और घनिष्ठता साफ नजर आती है और पुस्तक एक थ्रिलर की तरह हमारी आँखों के सामने से गुजरती है। इसी गहन अध्ययन और शोध से पुस्तक में आदिवासी जीवन और उसका संघर्ष जीवंत हो उठता है। यह कृति समकालीन भारत के बीचोबीच आर्थिक वृद्धि, बढ़ती असमानता, विस्थापन और संघर्ष का प्रतिबिंम्ब प्रस्तुत करती है।
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