Europe Mein Darshanshastra : Marx Ke Baad
Author:
Shankari Prasad BandyopadhyayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789394902978
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Nootan Sadi Ke Navneet Shriguruji
- Author Name:
Dr. Dhananjay Giri
- Book Type:

- Description: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी द्वैत भी हैं, अद्वैत भी हैं। शैव भी हैं, शाक्त भी हैं। करुणा भी हैं और क्रांति भी हैं। ज्ञान भी हैं और कर्म भी हैं। साधना भी हैं और संघर्ष भी हैं। सपने भी हैं और सत्य भी हैं। श्रीगुरुजी धर्म और अध्यात्म की सामासिक अभिव्यक्ति हैं। परंपरा और प्रगति के प्रेरणापुंज हैं। उनका धर्म-कर्म, पूजा-पाठ केवल पौरोहित-प्रकल्प नहीं, बल्कि राष्ट्र-यज्ञ में जीवन को समिधा बना देने की संकल्प-साधना है। उनकी साधना इतिहास का एक सुंदरकांड है। संघ-कार्य की नींव संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने डाली, संघ को गढ़ा श्रीगुरुजी ने; डॉ. हेडगेवार ने संघ को सांगठनिक सूत्र दिया, शाखा-पद्धति दी, श्रीगुरुजी ने संघ को सिद्धांत और विस्तार दिया। आज संघ एक विराट् संगठन बन गया है; भारत का एक नियामक तत्त्व बन गया है। इसे नकारकर देश और समाज-जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती है—संघ के इस स्थिति में पहुँचने में श्रीगुरुजी की दूरदृष्टि और आध्यात्मिकता की विशेष भूमिका है। श्रीगुरुजी भाव के वो सागर हैं, जहाँ भाव की हर नदी आकर विलीन हो जाती है; सारी भावनाएँ जहाँ अभिव्यक्त हो जाना चाहती हैं, जहाँ सारे संपर्क, संबंध और संबोधन आकर मिल जाते हैं। यह पुस्तक ऐसे आध्यात्मिक शिखरपुरुष, समाजधर्मी और पथ-प्रदर्शक श्रीगुरुजी के प्रेरणाप्रद जीवन की एक झलक मात्र है।
Gandhi Ke Desh Mein
- Author Name:
Sudhir Chandra
- Book Type:

-
Description:
विवेक, सन्मति और सदाशयता के धनी चिन्तक, विख्यात इतिहासकार सुधीर चन्द्र की निबन्ध पुस्तक।
‘‘सत्य, अहिंसा, प्रेम, अस्तेयादि एक झटके में और कायमी तौर पर लोगों की ज़िन्दगी में परिवर्तन ला देनेवाले गुण नहीं हैं। ख़ुद गांधी सारी ज़िन्दगी अपने को गांधी बनाने में लगे रहे थे। पर गांधी के नाम पर सब कुछ निछावर करनेवालों ने क़ुर्बानियाँ जो भी की हों, उन लोगों ने अपने को वैसा बनाने की कोशिश नहीं की जैसा बनकर ही गांधी का स्वराज हासिल हो सकता था।’’
‘‘गांधी की हमारी समझ गम्भीर रूप से अपूर्ण रहेगी जब तक हम अहिंसा के परिप्रेक्ष्य में उस हिंसा के स्वरूप और परिस्थितियों को समझने की शुरुआत नहीं करते, जिसे नैतिक हिंसा कहा जा सके।’’
‘‘समलैंगिकता को अप्राकृतिक या अस्वाभाविक मान लेने का आधार क्या है? इसी से जुड़ा एक बुनियादी सवाल भी उठता है : क्या किसी कर्म का अप्राकृतिक होना काफ़ी है उसे दंडनीय अपराध बनाए जाने के लिए? किसी कर्म का प्राकृतिक या अप्राकृतिक होना—जिस हद तक इस तरह का निर्धारण सम्भव है—उसे अपराध की श्रेणी में न तो लाता है और न ही उससे बाहर रखता है। हिंसा और वासना से जुड़े तमाम अपराधों को प्राकृतिक कृत्यों के रूप में देखा जा सकता है। दूसरी तरफ़ सभ्यता और संस्कृति का विकास उत्तरोत्तर हमें प्रकृति से दूर लाता आया है।’’
‘‘जो मैं नहीं समझ पाता वह है बहुत सारे लोगों का विश्वास, देरीदा की मिसाल देते हुए कि, ‘डीकंस्ट्रक्शन’ और परिणामस्वरूप उत्तर-आधुनिकतावाद ‘एमॉरल’—नैतिक-अनैतिक से परे—है। देरीदा को, न कि देरीदा के बारे में, थोड़ा ही सही, पढ़े बगै़र कुछ प्रचलित भ्रान्तियों को मान लेना बौद्धिक आलस है।’’
देश के गतिशील समकालीन यथार्थ को समझने के लिए एक ज़रूरी पाठ।
Charles Darwin
- Author Name:
Vinod Kumar Mishra
- Book Type:

- Description: This Books doesn’t have a description
Bharat Mein Darshanshastra
- Author Name:
Mrinal Kanti Gangopadhyay
- Book Type:

-
Description:
‘दर्शनशास्त्र : पूर्व और पश्चिम’ ग्रन्थमाला की यह तीसरी पुस्तक है, जिसके लेखक डॉ. मृणालकान्ति गंगोपाध्याय की गणना भारतीय संस्कृति और दर्शन के विशिष्ट विद्वानों में की जाती है।
ऋग्वैदिक काल से लेकर ईसा की पहली शताब्दी तक लगभग डेढ़ हज़ार वर्ष के दौरान भारतीय दर्शन में ईश्वरवादी-विचारवादी चिन्तन से लेकर लोकायत जैसी भौतिकवादी दर्शनिक धाराएँ देखने को मिलती हैं। प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक ने इन समस्त धाराओं का मन्थन करते हुए भारतीय दर्शन की प्रकृति और अन्तर्वस्तु का यथार्थवादी परिचय दिया है।
पुस्तक की प्रस्तावना में भारतीय दर्शन की कुछ मूलभूत विशेषताओं की सामान्य विवेचना की गई है, और उसके पश्चात् प्रमुख सम्प्रदायों—उनके प्रणेताओं और ग्रंथों के साथ-साथ उनके बुनियादी सिद्धान्तों की चर्चा की गई है। भारतीय विचारकों ने दर्शन की महत्त्वपूर्ण समस्याओं पर अपने-अपने तरीक़े से जो तर्क-वितर्क किया था, उसकी विवेचना भी प्रस्तुत पुस्तक में है।
निस्सन्देह इस विषय पर अनेक पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध हैं, परन्तु डॉ. गंगोपाध्याय ने वस्तुनिष्ठता बनाए रखने के लिए पुरानी लीक पीटने के स्थान पर विवेचना की नई विधि अपनाई है और भारतीय दर्शन को, पांडित्य का प्रदर्शन किए बिना, ऐसे सरल शब्दों में प्रस्तुत किया है कि यह पुस्तक उन सामान्य पाठकों के लिए भी उपयोगी हो गई है, जिनमें से कुछ के लिए, सम्भव है, यह अपने विषय की पहली पुस्तक हो। तथापि, हम आशा करते हैं कि दर्शन के विद्यार्थियों के लिए भी यह पुस्तक विचारोत्तेजक और ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी।
Sadhu Se Sevak
- Author Name:
Manjeet Negi
- Book Type:

- Description: ‘साधु से सेवक’ पुस्तक मोदी के युवा अवस्था के उन दो वर्षों की कहानी है, जब युवा नरेंद्र सांसारिक मोहमाया से दूर हिमालय में साधु बनने की खोज में भटक रहा था। कोलकाता में रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ से होते हुए ऋषिकेश के दयानंद आश्रम और फिर बाबा केदार की शरण में जाकर नरेंद्र मोदी की तृष्णा शांत हुई। ऋषिकेश के स्वामी दयानंद गिरि से पी.एम. मोदी का पुराना रिश्ता था। स्वामी दयानंद का मोदी के जीवन पर गहरा प्रभाव है। प्रचारक जीवन में मोदी जब ऋषिकेश आए और 1981 में स्वामी से जुड़ गए, तब से स्वामीजी मार्गदर्शन में सेवा-स्वच्छता को अपने जीवन में आत्मसात् किया। बाल्यकाल से ही हिमालय के प्रति नरेंद्र मोदी के मन में विशेष आकर्षण था। वह आए दिन साधु-संतों और श्रद्धालुओं से बाबा केदार, बदरीधाम, कैलाश मानसरोवर समेत हिमालयी क्षेत्र के पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा में आनेवाले सभी पावन धार्मिक तीर्थों के विषय में रुचि लेकर सुनते थे। इन तीर्थों की महिमा और वहाँ के सौंदर्य की चर्चा सुनकर नरेंद्र मन-ही-मन में वहाँ की यात्रा कर लेते थे। यह पुस्तक नरेंद्र मोदी के आध्यात्मिक जीवन से जुड़े अनसुने पहलुओं को उजागर करने का प्रयास है। ‘साधु से सेवक’ पुस्तक युवावस्था में दो वर्षों की उस आध्यात्मिक यात्रा का सार है, जो साधु बनने की खोज में उन्हें यहाँ ले आई थी। यहीं से मिली प्रेरणा ने उनके व्यक्तित्व को हिमालय सा दृढ़ बनाया है।
Stree Kavita : Pahachan Aur Dwandwa -2-Hardcover
- Author Name:
Rekha Sethi
- Book Type:

- Description: एक मानवीय इकाई के रूप में स्त्री और पुरुष, दोनों अपने समय व यथार्थ के साझे भोक्ता हैं लेकिन परिस्थितियाँ समान होने पर भी स्त्री-दृष्टि दमन के जिन अनुभवों व मन:स्थितियों से बन रही है, मुक्ति की आकांक्षा जिस तरह करवटें बदल रही है, उसमें यह स्वाभाविक है कि साहित्यिक संरचना तथा आलोचना, दोनों की प्रणालियाँ बदलें। स्त्री-लेखन स्त्री की चिन्तनशील मनीषा के विकास का ही ग्राफ़ है जिससे सामाजिक इतिहास का मानचित्र गढ़ा जाता है और जेंडर तथा साहित्य पर हमारा दिशा-बोध निर्धारित होता है। भारतीय समाज में जाति एवं वर्ग की संरचना जेंडर की अवधारणा और स्त्री-अस्मिता को कई स्तरों पर प्रभावित करती है। स्त्री-कविता पर केन्द्रित प्रस्तुत अध्ययन जो कि तीन खंडों में संयोजित है, स्त्री-रचनाशीलता को समझने का उपक्रम है, उसका निष्कर्ष नहीं। पहले खंड, 'स्त्री-कविता : पक्ष और परिप्रेक्ष्य' में स्त्री-कविता की प्रस्तावना के साथ-साथ गगन गिल, कात्यायनी, अनामिका, सविता सिंह, नीलेश रघुवंशी, निर्मला पुतुल और सुशीला टाकभौरे पर विस्तृत लेख हैं। एक अर्थ में ये सभी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य में विविध स्त्री-स्वरों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। उनकी कविता में स्त्री-पक्ष के साथ-साथ अन्य सभी पक्षों को आलोचना के केन्द्र में रखा गया है, जिससे स्त्री-कविता का बहुआयामी रूप उभरता है। दूसरा खंड, 'स्त्री-कविता : पहचान और द्वन्द्व' स्त्री-कविता की अवधारणा को लेकर स्त्री-पुरुष रचनाकारों से बातचीत पर आधारित है। इन रचनाकारों की बातों से उनकी कविताओं का मिलान करने पर उनके रचना-जगत को समझने में तो सहायता मिलती ही है, स्त्री-कविता सम्बन्धी उनकी सोच भी स्पष्ट होती है। स्त्री-कविता को लेकर स्त्री-दृष्टि और पुरुष-दृष्टि में जो साम्य और अन्तर है, उसे भी इन साक्षात्कारों में पढ़ा जा सकता है। तीसरा खंड, 'स्त्री-कविता : संचयन' के रूप में प्रस्तावित है...। इन सारे प्रयत्नों की सार्थकता इसी बात में है कि स्त्री-कविता के माध्यम से साहित्य और जेंडर के सम्बन्ध को समझते हुए मूल्यांकन की उदार कसौटियों का निर्माण हो सके जिसमें सबका स्वर शामिल हो।
Encyclopaedia Of Humanities (Psychology)
- Author Name:
Nagendra
- Book Type:

- Description: Encyclopaedia Of Humanities (Psychology)- Comparative study of Indian and Western intentions.
Aadivasi : Shaurya Evam Vidroh
- Author Name:
Ramanika Gupta
- Book Type:

- Description: सर्वप्रथम हमें पूर्वोत्तर के इतिहास में जाना ज़रूरी है, जिससे यह पता चलता है कि वे अंग्रेज़ों, ज़ुल्मी राजाओं या किसी भी अन्याय के ख़िलाफ़ लड़े। इस पुस्तक में हमने अलग-अलग भाषा व राज्यों के वीर नायकों व नायिकाओं की कथाओं के अतिरिक्त पूर्वोत्तर के भिन्न राज्यों में हुए विद्रोहों, प्रतिरोधात्मक आन्दोलनों पर शोधपरक गाथाएँ व सामग्री प्रस्तुत की है। ये सभी गाथाएँ—लिजिन्द्रियाँ, लोककथाएँ या लोकगीत व टिप्पणियाँ पूर्वोत्तर के ही लेखकों द्वारा लिखी गई हैं। हमने इनका चयन कर हिन्दी में अनूदित कर प्रस्तुत किया है। इनके चयन और सम्पादन में काफ़ी समय लगा। चूँकि अनूदित सामग्री की भाषा को परिष्कृत भी करना पड़ा। हमने हिन्दी में कुछ गाथाएँ पूर्वोत्तर में उपलब्ध भिन्न ग्रन्थों व दस्तावेज़ों में दर्ज टिप्पणियों के आधार पर तैयार करके भी प्रस्तुत की गई हैं। एक ही नायक पर भिन्न-भिन्न लेखकों ने अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्ध सामग्री (लोकगीत, किंवदंतियों, लोककथाएँ, ऐतिहासिक दस्तावेज आदि) से लेकर अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत की है। हमने सभी को सम्मानित करने का प्रयास किया है, ताकि पूर्वोत्तर में घटित इस इतिहास को गहराई तक समझा और जाना जा सके और शेष भारत उनसे अपना दर्द का रिश्ता जोड़ कर संवाद क़ायम करे। —‘सम्पादकीय’ से
I Gaze, Therefore I Am
- Author Name:
Subramoniam Rangaswami
- Rating:
- Book Type:

- Description: We live in a visual age. I Gaze, Therefore I Am is a book on medical gaze first described by Michel Foucault, French philosopher and historian of ideas. The journey the medical gaze has taken from its archaic beginnings to our era of digital culture has been noteworthy. In this book, Rangaswami takes us through this historic journey, blending stories from the history of science and medicine with a rich collection of tales from scriptures and legends as well as iconic episodes from his personal experience, stirring them in his unique style with a wide range of topics for academic discussions. This book is a compelling narrative of the shifting optics of gaze, especially medical gaze, poised in our age of human transition from Homo visualis to Homo virtualis.
DGP Gupteshwar Pandey: Sangharsh Se Utkarsh Tak
- Author Name:
Savita Pandey
- Book Type:

- Description: रियल ‘सिंघम’, ‘रॉबिनहुड’, ‘दबंग’, ‘चुलबुल पांडेय’ जैसे नामों से नवाजे जाते रहे 1987 बैच के आईपीएस अधिकारी गुप्तेश्वर पांडेय बिहार के डीजीपी हैं। बिहार में कम्युनिटी पुलिसिंग के अगुआ, डीजीपी पांडेय बहुत लोकप्रिय हैं। लोक जागरण के लिए सोशल मीडिया का बिंदास प्रयोग और अभिव्यक्ति का उनका अंदाज जनता, खासकर युवाओं को काफी पसंद है। वे बिहार में नशामुक्ति और शराबबंदी के ब्रांड अंबेसेडर भी हैं। उनकी जीवन-शैली इतनी साधारण, सादगीपूर्ण है कि लोग कहते हैं कि लगता ही नहीं कि वे डीजीपी हैं! इस पुस्तक में लेखिका ने श्री गुप्तेश्वर पांडेय के बतौर डीजीपी और डीजीपी बनने के क्रम में किए गए उनके प्रयासों को साझा किया है। युवाओं को समर्पित यह पुस्तक गुप्तेश्वर पांडेय की मित्र पुलिसिंग के साथ सख्त कार्य-शैली का वर्णन करती ही है, साथ-ही-साथ छात्रों व युवाओं को संदेश भी देती चलती है कि विषम और विकट परिस्थितियों में भी कैसे सफलता की मंजिल पाई जा सकती है और डीजीपी जैसे पद पर पहुँचकर भी कैसे अहंकार से पार पाया जा सकता है। आमजन में पुलिस के भय और अविश्वास को कम करने के लिए सतत क्रियाशील रहे एक समर्पित जनसेवक की प्रेरक जीवनगाथा।
AIIMS Mein Ek Jung Ladte Huye
- Author Name:
Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
- Book Type:

- Description: कोरोना ‘‘हार कहाँ मानी है मैंने रार कहाँ ठानी है संघर्षों की गाथाएँ गायी है मैंने मुझे आज भी गानी है। मैं तो अपने पथ-संघर्षों का पालन करते आया हूँ। फिर कैसे पीछे हट जाऊँ मैं सौगंध धरा की खाया हूँ। क्यों आए तुम कोरोना मुझ तक अब तुमको तो बैरंग जाना है पूछ सको तो पूछो मुझको मैंने मन में क्या ठाना है। तुम्हें पता है मैं संघर्षों का दीप जलाने आया हूँ। फिर कैसे पीछे हट जाऊँ मैं सौगंध धरा की खाया हूँ। हार कहाँ मानी है मैंने रार कहाँ ठानी है। मैं तिल-तिल जल मिटा तिमिर को आशाओं को बोऊँगा, नहीं आज तक सोया हूँ अब कहाँ मैं सोऊँगा! देखो, इस घनघोर तिमिर में, मैं जीवन-दीप जलाया हूँ। फिर कैसे पीछे हट जाऊँ मैं सौगंध धरा की खाया हूँ। हार कहाँ मानी है मैंने रार कहाँ ठानी है संघर्षों की गाथाएँ गायी मुझे आज भी गानी है।’’ —रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ 6 मई, 2021, दिल्ली, एम्स कक्ष-704, प्रातः 7:00 बजे
Satta Badal
- Author Name:
Datta Desai
- Book Type:

- Description: ‘भाकरी का करपली, पान का सडलं, घोडं का अडलं' याला आपल्या लोकसंस्कृतीत एकच उत्तर आहे : ‘फिरवलं नाही म्हणून!' आपल्या प्रजासत्ताकाचे पंचाहत्तरावे वर्ष आपण पूर्ण करत असताना ‘देशात लोकशाहीची कोंडी का झाली, कल्याणकारी विकास का अडला, सामाजिक न्याय का खुंटला' याचे उत्तर शोधण्याची गरज निर्माण झाली आहे. हे उत्तर ‘सत्ता बदलली नाही म्हणून' असे असू शकेल का? मग प्रश्न येतो की ‘सत्ता' म्हणजे काय आणि ‘बदल' म्हणजे काय? देश स्वतंत्र होताना झालेला सत्ता-बदल हे ‘सत्ता हस्तांतरण' होते, ते क्रांतिकारी परिवर्तन नव्हते असे म्हटले गेले. आपली चौकट बदलली, तरी अनेक बाबतीत ती तशीच राहिली. देशाने अनेक बरीवाईट वळणे घेतली. काही प्रश्न सुटत गेले, अनेक प्रश्न तसेच राहिले, तर बरेच नवे प्रश्न उभे होत गेले. परिणामी आज आपला देश जगाच्या नजरेत भरेल अशी अफाट संपन्नता, विकासाच्या घोषणा, प्रचंड विसंगती, असह्य विषमता व घुसमटवून टाकणारे वातावरण अनुभवतो आहे. ही साधीसुधी कोंडी नाही. हा राष्ट्रीय स्वरूपाचा चक्रव्यूह आहे! हा चक्रव्यूह नेमका काय आहे? तो कसा भेदता येईल? त्यासाठी देशाच्या राजकारणाला कोणती मूलगामी वैचारिक-राजकीय कलाटणी मिळायला हवी? ‘मूलगामी कलाटणी' म्हणजे काय? त्यातून देशातील प्रत्येक व्यक्तीची अर्थपूर्ण जीवनाकडे वाटचाल कशी सुरू होईल? याची चर्चा हे पुस्तक करते. त्यामुळेच हे पुस्तक या देशावर व इथल्या विविधतेवर प्रेम करणाऱ्या प्रत्येकासाठी आहे. विषमता आणि विध्वंस यांनी अस्वस्थ होणाऱ्या भारतीय माणसासाठी हे पुस्तक आहे. विचारांचे स्वातंत्र्य आणि कृतीचे महत्त्व ओळखणाऱ्या प्रत्येकासाठी ते आहे. नवे काही घडवण्यासाठी उत्सुक असलेल्या प्रत्येक युवक-युवतीसाठी हे पुस्तक आहे. Satta Badal | Datta Desai सत्ता बदल | दत्ता देसाई
Hindu Paramparaon Ka Rashtriyakaran
- Author Name:
Vasudha Dalmiya
- Book Type:

- Description: अंग्रेज़ी में आज से उन्नीस साल पहले प्रकाशित यह पुस्तक एक ऐसे ढाँचे की प्रस्तावना करती है जो भारतेन्दु के पारम्परिक और परिवर्तनोन्मुख पहलुओं की एक साथ सुसंगत रूप में व्याख्या कर सके। इस ढाँचे में भारतेन्दु हिन्दुस्तान के उस उदीयमान मध्यवर्ग के नेतृत्वकारी प्रतिनिधि के रूप में सामने आते हैं जो पहले से मौजूद दो मुहावरों के साथ अन्तरक्रिया करते हुए एक तीसरे आधुनिकतावादी मुहावरे को गढ़ रहा था। ये तीन मुहावरे क्या थे, इनकी अन्तरक्रियाओं की क्या पेचीदगियाँ थीं, साम्प्रदायिकता और राष्ट्रवाद के सहविकास में आरम्भिक साम्प्रदायिकता और आरम्भिक राष्ट्रवाद को चिह्नित करनेवाला यह तीसरा मुहावरा किस तरह समावेशन-अपवर्जन की दोहरी प्रक्रिया के बीच हिन्दी भाषा और साहित्य को हिन्दुओं की भाषा और साहित्य के रूप में रच रहा था और इस तरह समेकित रूप से राष्ट्रीय भाषा, साहित्य तथा धर्म की गढ़ंत का ऐतिहासिक किरदार निभा रहा था, किस तरह नई हिन्दू संस्कृति के निर्माण में एक-दूसरे के साथ जुड़ती-भिड़ती तमाम शक्तियों के आपसी सम्बन्धों को भारतेन्दु के विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व में सबसे मुखर अभिव्यक्ति मिल रही थी—यह किताब इन अन्तस्सम्बन्धित पहलुओं का एक समग्र आकलन है। यहाँ बल एकतरफ़ा फ़ैसले सुनाने के बजाय चीज़ों के ऐतिहासिक प्रकार्य और गतिशास्त्र को समझने पर है। ध्वस्त करने या महिमामंडित करने की जल्दबाज़ी वसुधा डालमिया के लेखन का स्वभाव नहीं है, मामला भारतेन्दु का हो या भारतेन्दु पर विचार करनेवाले विद्वानों का। हिन्दी में इस किताब का आना एकाधिक कारणों से ज़रूरी था। नई सूचनाओं और स्थापनाओं के लिए तो इसे पढ़ा ही जाना चाहिए, साथ ही हर तथ्य को साक्ष्य से पुष्ट करनेवाली शोध-प्रविधि, हर कोण से सवाल उठानेवाली विश्लेषण-विधि और खंडन-मंडन के जेहादी जोश से रहित निर्णय-पद्धति के नमूने के रूप में भी यह पठनीय है।
Guntavnuk Darala Mahit Asayalacha Havya Ashya Sharebajarachya Yuktichya Goshti
- Author Name:
Swaminathan Annamalai +1
- Book Type:

- Description: शेअर बाजारात नवोदित आणि अनुभवी असलेल्यांसाठीही हे पुस्तक आहे. भारतीय शेअर बाजाराबद्दल फारशा माहीत नसलेल्या गोष्टी लेखकाने अत्यंत सोप्या, तरीही रोचक पद्धतीने सांगितलेल्या आहेत.’ - फिरोज व्ही. आर. वैश्विक सेवाप्रमुख, उपाध्यक्ष ‘एस.ए.पी.’ आणि इंडिया इन्क्ल्यूजन फाउंडेशनचे संस्थापक हे पुस्तक तुम्ही का वाचायला हवे? हे पुस्तक वाचून झाल्यानंतर तुम्हाला खालील गोष्टींबद्दल समजेल : 1. शेअर बाजार जितका वेळ चालू असतो तितका वेळ संगणकासमोर बसला नाहीत, तरीही पैसे कमावता येतात. 2. भरपूर नफा मिळवून देणारे शेअर्स पटकन ओळखून आपला फायदा करून घेता येतो. 3. शेअर बाजारात ज्या शेअर्सचे व्यवहार आता होत नाहीत अशा अ-सूचीबद्ध शेअर्सची हाताळणी. 4. भीडभाड न बाळगता ऑप्शन्स विकून टाकणे आणि नफ्याची टक्केवारी वाढवणे. 5. आयपीओबद्दल आणि आयपीओकरिता पैसे कसे उभे करावेत याबद्दल माहिती. 6. कागदी शेअर्सचे रूपांतरण इलेक्ट्रॉनिक शेअर्समध्ये (डिमटेरिअलायझेशन) कसे करावे. 7. बीईईएस (इशएड) म्हणजे काय, तो गुंतवणुकीचा जोखीममुक्त पर्याय आहे का? 8. स्टॉक स्क्रीनर्सशी ओळख. 9. शेअर बाजाराला कोणत्या प्रकारच्या घोटाळ्यांमुळे फटका बसू शकतो. 10. हिंदू अविभक्त कुटुंबाची (कणऋ) स्थापना करून आयकर वाचवता येऊ शकतो. Guntavnuk Darala Mahit Asayalacha Havya Ashya Sharebajarachya Yuktichya Goshti - Swaminathan Annamalai गुंतवणूकदाराला माहित असायलाच हव्या अश्या शेअरबाजारच्या युक्तीच्या गोष्टी - स्वामिनाथन अन्नामलाई
Bharatiya Kala Darshan
- Author Name:
Shashiprabha Tiwari
- Book Type:

- Description: भारत की कला बहुत गहराइयों में ले जाती है। आदमी गहराइयों में उतरता चला जाता है, यह भारतीय कला की विशेषता है। भारत की कला भारतीय संस्कृति की वाहिका है। कला संस्कृति को लेकर चलती है। हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यही खड़ा हो जाता है कि कला जिस संस्कृति को लेकर चलती है, वह संस्कृति क्या है? अंग्रेजी में हम लोग उसको कल्चर कहते हैं। कल्चर और संस्कृति दोनों समानार्थी नहीं हैं। संस्कृति अलग चीज है। संस्कृति का केंद्रबिंदु अलग है। संस्कृति का केंद्रबिंदु जो है, वह भारत में अध्यात्म है। भारत की संस्कृति अध्यात्म को लेकर चलती है।
Main Aur Tum
- Author Name:
Martin Buber
- Book Type:

-
Description:
अस्तित्ववादी चिन्तन-सरणी में सामान्यत: सार्त्र-कामू की ही बात की जाती है और आजकल हाइडेग्गर की भी; लेकिन एक कवि-कथाकार के लिए ही नहीं समाज के एकत्व का सपना देखनेवालों के लिए भी मार्टिन बूबर का दर्शन शायद अधिक प्रासंगिक है क्योंकि वह मानवीय जीवन के लिए दो बातें अनिवार्य मानते हैं : सहभागिता और पारस्परिकता।
अस्तित्ववादी दर्शन में अकेलापन मानव-जाति की यंत्रणा का मूल स्रोत है। लेकिन बूबर जैसे आस्थावादी अस्तित्ववादी इस अकेलेपन को अनुल्लंघनीय नहीं मानते, क्योंकि सहभागिता या संवादात्मकता में उसके अकेलेपन को सम्पन्नता मिलती है। इसे बूबर ‘मैं-तुम’ की सहभागिता, पारस्परिकता या ‘कम्यूनियन’ मानते हैं। यह ‘मैं-तुम’ अन्योन्याश्रित है। सार्त्र जैसे अस्तित्ववादियों के विपरीत बूबर ‘मैं’ का ‘अन्य’ के साथ सम्बन्ध अनिवार्यतया विरोध या तनाव का नहीं मानते, बल्कि ‘तुम’ के माध्यम से ‘मैं’ को सत्य की अनुभूति सम्भव होती है, अन्यथा वह ‘तुम’ नहीं रहता, ‘वह’ हो जाता है। यह ‘तुम’ या ‘ममेतर’ व्यक्ति भी है, प्रकृति भी और परम आध्यात्मिक सत्ता भी। 'मम’ और 'ममेतर’ का सम्बन्ध एक-दूसरे में विलीन हो जाने का नहीं, बल्कि ‘मैत्री’ का सम्बन्ध है। इसलिए बूबर की आध्यात्मिकता भी समाज-निरपेक्ष नहीं रहती बल्कि इस संसार में ही परम सत्ता या ईश्वर के वास्तविकीकरण के अनुभव में निहित होती है; लौकिक में आध्यात्मिक की यह पहचान कुछ-कुछ शुद्धाद्वैत जैसी लगती है।
विश्वास है कि ‘आई एंड दाऊ’ का यह अनुवाद हिन्दी पाठकों को इस महत्त्वपूर्ण दार्शनिक के चिन्तन को समझने की ओर आकर्षित कर सकेगा।
—प्राक्कथन से
Marxwad Aur Bhasha Ka Darshan
- Author Name:
V. N. Voloshinov
- Book Type:

-
Description:
मार्क्सवाद और समकालीन भाषा-विज्ञान के सम्बन्धों के मद्देनज़र, यह सवाल किया जा सकता है कि क्या ‘मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान’ जैसी कोई चीज़ मौजूद है? और इसका उत्तर देने में कोई हिचक या कठिनाई नहीं महसूस होती क्योंकि मार्क्सवाद मानव-सभ्यता के भौतिक-आत्मिक विकास का इतिहास प्रस्तुत करते हुए मानव-भाषाओं की व्याख्या के प्रति एक सुनिश्चित ‘अप्रोच’ प्रस्तुत करता है और एक सुनिश्चित पद्धति लागू करते हुए कुछ सुनिश्चित स्थापनाएँ प्रस्तुत करता है।
एक सामाजिक एवं विचारधारात्मक परिघटना के रूप में, भाषा की प्रकृति और प्रकार्यों पर मार्क्सवादी चिन्तन को 1920 और 1930 के दशक में सोवियत भाषा-वैज्ञानिकों ने बहुपक्षीय रूप में आगे बढ़ाया। 1929 में प्रकाशित वी.एन. वोलोशिनोव की पुस्तक मार्क्सवाद और भाषा का दर्शन पहली ऐसी पुस्तक थी जिसमें भाषा-विज्ञान के कुछ प्रमुख आधारभूत प्रश्नों पर मार्क्सवादी विश्व-दृष्टिकोण और पद्धति से विचार करने का प्रयास दिखाई देता है। वोलोशिनोव ने विचारधारा और भाषा के प्रति सॉस्युर के संरचनावाद और विटगेंस्टाइन के भाषायी दर्शन से सम्बद्ध परम्पराओं से सर्वथा अलग ‘अप्रोच’ अपनाया तथा संकेत-विज्ञान और विमर्श-सिद्धान्त की ऐसी प्रणालियाँ प्रस्तावित कीं जो मार्क्सवादी साहित्यिक आलोचना को कई धरातलों पर समृद्ध बनाने की सम्भावना से युक्त थीं। मार्क्सवाद और भाषा का दर्शन पहला संस्करण 1929 में और दूसरा संस्करण 1930 में प्रकाशित हुआ। इसमें वोलोशिनोव ने भाषा और विचारधारा के बीच के सम्बन्धों का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया, वह अपने कई विवादास्पद उपप्रमेयों और उपांगों के बावजूद, भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्सवाद को लागू करने का अभूतपूर्व उदाहरण था। न केवल दशकों बाद तक, मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में मार्क्सवादी भाषा-विज्ञान इसे एक सन्दर्भ-बिन्दु के रूप में देखता रहा और इसके द्वारा प्रस्तुत प्रस्थापनाओं तथा उठाए गए अनसुलझे प्रश्नों से जूझता रहा, बल्कि आज भी यह प्रक्रिया जारी है।
Amrutara Santana - Award Winning Novel
- Author Name:
Gopinath Mohanty +3
- Rating:
- Book Type:

- Description: Amrutara Santana is about the Kandhas or Kondhs, who number at least a million, spreadthrough at least a dozen districts. Mohanthy's unromanticised portrait of tribal society raises profound question on change. Do new roads really bring "development", or degradation of culture and community as they allow exploiters and denigrators of Adivasi culture to pour in?
4 Baal Upanyas
- Author Name:
Prakash Manu
- Book Type:

- Description: साहित्य अकादेमी के पहले बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित प्रकाश मनु बच्चों के सुविख्यात कथाकार हैं। बच्चे और किशोर पाठक उनकी कहानियों और बाल उपन्यासों को खूब रस ले-लेकर पढ़ते, सराहते और जीवन भर अपनी यादों के पिटारे में सहेजकर रखते हैं। प्रकाश मनु उस्ताद किस्सागो हैं, इसीलिए देश के कोने-कोने में फैले हजारों बच्चे उनके मुरीद हैं, जिन्हें उनकी लिखी कहानी की नई पुस्तकों और उपन्यासों का इंतजार रहता है। मनुजी की कलम का जादू इस कदर बाल पाठकों के मन को बाँध लेता है कि उनके साथ बहते हुए, कब वे देश-दुनिया की नई-नई और रोमांचक जगहों की सैर करके आ गए, उन्हें खुद पता नहीं चलता। ‘चार बाल उपन्यास’ प्रकाश मनुजी के दिलचस्प और भावनापूर्ण बाल उपन्यासों की नई पुस्तक है, जिसे पढ़कर बच्चे रोमांचित हो उठेंगे और खेल-खेल में बहुत कुछ सीखेंगे भी। पुस्तक में मनुजी के चार बड़े ही कौतुकपूर्ण बाल उपन्यास शामिल हैं—‘चिंकू-मिंकू और दो दोस्त गधे’, ‘भोलू पढ़ता नई किताब’, ‘सांताक्लाज का पिटारा’ तथा ‘गोलू भागा घर से’। ये चारों ऐसे उपन्यास हैं, जिनका जादू बाल पाठकों के दिलों पर तारी हो जाएगा, और जब तक वे उन्हें पूरा पढ़ नहीं लेंगे, पुस्तक उनके हाथ से छूटेगी नहीं। निस्संदेह ‘चार बाल उपन्यास’ एक ऐसा बहुरंगी, मनमोहक उपहार है, जिसे बच्चे हमेशा सँजोकर रखेंगे और बार-बार पढ़ना चाहेंगे।
Manushya Shasak Hai
- Author Name:
James Allen
- Book Type:

- Description: जेम्स एलन का जन्म 1864 में लीसेस्टर, इंग्लैंड में हुआ। अपनी पहली किताब, ‘फ्रॉम पॉवर्टी टू पॉवर’ पूरी करने के बाद वे इल्फ्राकूम्ब में रहने चले गए। जहाँ उन्होंने अपनी यह अमर कृति ‘जैसा मनुष्य सोचता है (As a Man Thinketh)’ लिखी जो कि उनकी कालजयी रचना है। यह पुस्तक 1902 में प्रकाशित हुई और इसे सेल्फ हेल्प किताबों की क्लासिक माना जाता है। इस पुस्तक को जेम्स एलन की पत्नी लिली ने प्रकाशित करवाया था। एलन का लेखक जीवन काफी छोटा रहा सिर्फ़ 9 साल का। 1912 में 48 वर्ष की उम्र में एलन इस दुनिया को छोड़ कर चले गए।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...