
Uttar Bharat Mein Chamar Aur Dalit Aandolan Ka Itihas
Author:
Ramnarayan S. RawatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
‘उत्तर भारत में चमार और दलित आन्दोलन का इतिहास’ दलितों के उन संघर्षों का इतिहास है, जो उन्होंने अस्पृश्यता और बेगार-प्रथा के विरुद्ध और अपने राजनीतिक अधिकारों के लिए किए थे और जिनमें वे सफल हुए थे। यह पहली कृति है जिसमें दलितों के सन्दर्भ में औपनिवेशिक काल से लेकर आज़ादी के समय तक की गहरी छानबीन की गई है। इसमें प्रामाणिक तथ्यों के ज़रिये बतलाया गया है कि अधिकतर चमार हमेशा से किसान रहे हैं। लेकिन औपनिवेशिक इतिहासकारों ने उन्हें खालों के लिए मवेशियों को ज़हर देकर मारने वाला गठित अपराधी गिरोह बताया। इस मिथ्या धारणा को नकारने की ज़रूरत राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने भी नहीं समझी। दरअसल ब्राह्मणों ने सभी शिल्पकार और किसान जातियों के बारे में ऐसी धारणाएँ गढ़ी थीं जो लगभग प्रत्येक दलित जाति के लिए अस्पृश्यता का कारण बनता है। इनके विरुद्ध दलितों की विभिन्न स्तरों पर प्रतिक्रियाएँ और प्रतिरोध हुए लेकिन यह सब इतिहास में प्रायः अनुल्लिखित रहा, जिन्हें सामने लाकर यह पुस्तक एक ज़रूरी सन्दर्भ मुहैया कराती है।
डॉ. आंबेडकर से भी एक सदी पहले, उत्तर प्रदेश में शुरू हुए चमारों के अस्मिता-आन्दोलन, उन्नीसवीं सदी के दूसरे दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश में शुरू हुए किसान-आन्दोलन में दलितों के प्रतिनिधित्व और तीसरे दशक में चले आदि-हिन्दू महासभा के आन्दोलन पर इसमें विस्तार से विचार किया गया है। आदि-हिन्दू महासभा के आन्दोलन ने राजनीतिक संगठन के लिए सम्पूर्ण दलित जातियों के लिए एक मूल श्रेणी के रूप में ‘अछूत’ पहचान का निर्माण किया, जिसने नया दलित-इतिहास निर्मित किया और वे प्रमुख मुद्दे निर्धारित किए जो बीते आठ दशक से दलित राजनीति को आकार दे रहे हैं। बेशक यह दलित आन्दोलन को उसके मूल परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए एक आवश्यक पुस्तक है। पठनीय, विचारणीय और संग्रहणीय!
ISBN: 9789348157218
Pages: 328
Avg Reading Time: 11 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: हिंदू रूढीप्रिय का आहेत?ते मूर्तीपूजा का करतात?ते नेहमीच जातीयतावादी होते काय?ते शाकाहारी असणं अपेक्षित आहे काय?हिंदू प्रार्थना ही मुस्लिम वा ख्रिश्चन प्रार्थनेहून निराळी का आहे?मुस्लिम आक्रमकांच्या आगमनामुळे हिंदू संस्कृती नष्ट झाली आहे काय?हिंदू तत्त्वज्ञान आणि त्यासंबंधाने उपस्थित केल्या जाणाऱ्या अशा कळीच्या प्रश्नांची साध्या-सोप्या, स्पष्ट नि अखेरपर्यंत उत्कंठा कायम ठेवणाऱ्या पद्धतीनं दिलेली उत्तरं म्हणजे हे पुस्तक होय. देवदत्त पट्टनायक यांचं हे नवं पुस्तक हिंदूधर्मातील गुंतागुंतीच्या सिद्धांतांवरील माहितीचा खजिना आहे.‘श्रद्धा: हिंदूधर्मातील चाळीस समजुती' हे पुस्तक जगातील सर्वदूर पसरलेल्या विशाल धर्मातील पद्धती नि गुंतागुंत यांची उकल करून वाचकांच्या पुढ्यात ठेवते आणि एकूणच हिंदू धर्माकडे बघण्याचा नवा दृष्टिकोन बहाल करते. श्रद्धा देवदत्त पट्टनायक अनुवाद : डॉ. विजया देशपांडे Shradha | Devdutt Pattanaik Translated By : Dr. Vijaya Deshpande
Five Children and IT
- Author Name:
E. Nesbit
- Book Type:
- Description: FlyWings Classics brings you a World Classic Children's Fantasy Book Series - Five Children and IT by E. Nesbit - - - "Be careful what you wish. You may get it!" A group of children move from their native London to the wild Kent countryside. While playing in an old gravel pit, they discover a strange creature known as a Psammead or sand fairy, who grants them one wish per day. The ensuing adventures--frequently hilarious, sometimes dangerous, and always exciting--teach the children that imagination alone has no limit. Review :- ''Nesbit is the children's writer with whom I most identify.'' - J. K. Rowling , in O, The Oprah Magazine
Badalata Bharat - Paratantryatun mahasattekade
- Author Name:
Datta Desai
- Book Type:
- Description: बदलता भारत : पारतंत्र्यातून महासत्तेकडे... संपादन - दत्ता देसाई भारताचे बहुरूपदर्शक आणि समग्र चित्र रेखाटणारा संदर्भग्रंथ ! आपल्या देशाच्या स्वातंत्र्याची पंचाहत्तर वर्षे. असे स्वातंत्र्य आहे की जे जगात सर्वाधिक वर्चस्वशाली असणार्या ब्रिटिश सत्तेविरुध्द इथल्या कोट्यवधी जनतेने अथक संघर्ष करून मिळवले. जगाच्या इतिहासातील एक महान मुक्तिपर्व. एक असा गौरवशाली स्वातंत्र्यसंग्राम की ज्याने आधुनिक भारताला जन्म दिला आणि जगाच्या इतिहासावर आपली छाप उमटवली. असा इतिहास की ज्याने प्रत्येक देशप्रेमी व्यक्तीची मान आजही उंचावते. असे स्त्रीपुरुष 'नायक', नेते, समाजधुरीण, क्रान्तिकारक आणि महामानव की त्यांच्याविषयी आजही देशभर अपार आदर, प्रेम आणि अद्भुत आकर्षणही आहे. दोन शतकांचे विविध जनसमुदायांचे असे संघर्ष की ज्यांना अभिवादन केल्याशिवाय कोणीही भारतीय आजही पुढे जाऊ शकत नाही. या साऱ्याला मनोविकास प्रकाशन अभिवादन करत आहे 'बदलता भारत : पारतंत्र्यातून महासत्तेकडे... ' या आपल्या महाग्रंथाद्वारे! असा ग्रंथ की जो स्वातंत्र्य संग्रामाचा व स्वातंत्र्योत्तर देश उभारणीचा अनोख्या पद्धतीने अगदी मुळापासून वेध घेतो. ज्यात ‘रामायाण-महाभारत आणि भारतीय राष्ट्रवाद’, ‘छत्रपती शिवाजी, मराठेशाही आणि स्वातंत्र्याची वाटचाल’, ‘जालियनवाला बाग ते नमस्ते ट्रम्प’, ‘विवेकानंदांचा धर्म आणि त्यांची भारताची कल्पना’, ‘सावरकर-जीना आणि द्विराष्ट्रवाद’, ‘डावी कॉंग्रेस, उजवे राजकारण आणि सुभाषचंद्र बोस’, ‘चित्रपटांतून घडणारं भारतीयतेचं दर्शन’, ‘भारतीयता आणि बहुसांस्कृतिकता’ अशा विविध विषयांची सखोल मांडणी आहे. एक असा ग्रंथ की ज्याच्या दोन खंडातील आठ विभागात गुंफलेले साठ लेख आपल्याशी बोलतात - या सार्या गुंतागुंतीच्या आणि रोमांचकारी इतिहासावर. ते उकलतात या देशाचे असे अंतरंग की जे जितके विलोभनीय आहे तितकेच विषण्ण करणारेही आहे. विविध नामवंत लेखकांनी स्वतंत्र दृष्टिकोनांमधून आणि आपापल्या परिप्रेक्ष्यांतून भारतीय जीवनाच्या विविध क्षेत्रांचे आणि पैलूंचे केलेले परखड विश्लेषण! ज्यातून आपल्या समोर येतो भारताच्या भविष्याची निश्चित अशी दिशा उलगडणारा महाग्रंथ!! अनुक्रमणिका खंड : १ विभाग १ : आधुनिक भारताची जडणघडण : वाटा आणि वळणे १. बहुभाषिक राष्ट्र : इतिहास आणि भविष्य - अविनाश पांडे, रेणुका ओझरकर २. आर्यवादाचे औचित्य आणि भारतीय राष्ट्रवाद - हेमंत राजोपाध्ये ३. रामायण-महाभारताचे ‘लोकप्रिय’ राजकारण - श्रद्धा कुंभोजकर ४. प्रतिमांच्या कोंदणात अडकलेला मराठा इतिहास - प्राची देशपांडे ५. १८५७ : उठाव की स्वातंत्र्ययुद्ध? - अरविंद गणाचारी ६. इतिहासलेखन : दुहीचे की एकतेचे साधन? - जास्वंदी वांबुरकर विभाग २ : राजकीय इतिहास : विरोधाभास आणि वास्तव ७. राष्ट्रउभारणी : मुस्लिमांचे योगदान आणि भारतीयत्व - बशारत अहमद ८. भेदभावाच्या कोंडीत सापडलेला मुस्लीम राष्ट्रवाद - सरफराज अहमद ९. फाळणीआणि जीना-सावरकर - श्याम पाखरे १०. नेताजींचे‘गूढ’, कॉंग्रेस आणि उजवे राजकारण - रवी आमले ११. लोकशाही समाजवादाची वेगळी वाट - संजय मं गो १२. कम्युनिस्ट पक्ष : चढउताराचा आलेख - अशोक चौसाळकर १३. जालियनवाला बाग ते नमस्ते ट्रम्प : विरोधाभासी भारत - एस पी शुक्ला विभाग ३ : साहित्य-कला : भारतीय स्वातंत्र्याचे दर्शन १४. शोध सांगितिक भारतीयतेचा - नीला भागवत १५. मराठी कविता :स्वातंत्र्याचे उद्गार - रणधीर शिंदे १६. रंगभूमी : ‘राष्ट्रीय करमणूक’ की सामाजिक कल्लोळाचा वेध? - मकरंद साठे १७. भारतीयतेच्या शोधात हिंदी कादंबरी - सूर्यनारायण रणसुभे १८. संग्रहालये-स्मारकातील संस्कृती - दीपक घारे १९. दृश्यकला आणि बदलती भारतीय अभिव्यक्ती - नूपुर देसाई २०. लोकप्रिय भारतीय आरसा : हिंदी चित्रपट! - अशोक राणे विभाग ४ : लोकशाही, राजकीय बहुलता आणि राष्ट्रीय सुरक्षा २१. नागरिकत्व, राष्ट्र आणि लोकशाही : नवी आव्हाने - गणेश देवी २२. भारतीय लोकशाहीचे वेगळेपण ! - सुहास पळशीकर २३. राज्य कायद्याचे, पण न्याय किती? - उद्धव कांबळे २४. उपखंडातील भळभळती जखम : काश्मीर - प्रताप आसबे २५. पूर्वोत्तर भारत : सप्तभगिनी आणि सापत्नभाव - गायत्री लेले २६. शक्तिमान शेजारी आणि राष्ट्रवादांमधील तणाव - परिमल माया सुधाकर २७. भारतीय लष्कर आणि राष्ट्रीय सुरक्षा - विजय खरे २८. गुप्तचर यंत्रणा : सुशासन की सत्तेचे केंद्रीकरण? - अनंत बागाईतकर २९. संघराज्य,स्वायत्तता आणि अर्थपूर्ण लोकशाही - जयंत लेले ३०. स्वातंत्र्य - गोपाळ गुरु अनुक्रम खंड : २ विभाग १ : धर्म आणि संस्कृती : एकवचनी की बहुवचनी? १. विवेकानंद : वेष भगवा, स्वप्न समाजवादी भारताचे! - दत्तप्रसाद दाभोळकर २. धम्मक्रांतीचे सांस्कृतिक राजकारण - रावसाहेब कसबे ३. जमातवाद, दंगली आणि एकात्मता - इरफान इंजिनीयर ४. बदनाम धर्मनिरपेक्षता : एकात्म भारत घडणार कसा? - किशोर बेडकीहाळ ५. भारतीयता आणि सांस्कृतिक विविधता? - शांता गोखले ६. लोकसंस्कृतीचे सामर्थ्य आणि स्वातंत्र्य! - तारा भवाळकर ७. वेध विद्रोही जनसंस्कृतीचा - सचिन गरुड विभाग २ : राष्ट्रीयतेची साधने आणि स्वातंत्र्याची माध्यमे ८. हंटर ते नवे शैक्षणिक धोरण : विद्यार्थीकेंद्री शिक्षणाचा अभाव - डॉ.हेमचंद्र प्रधान ९. उच्चशिक्षण : सामाजिककडून आर्थिक मक्तेदारीकडे! - मिलिंद वाघ १०. राष्ट्रीय संस्था : देशाचा गौरवास्पद आधार - श्रीरंजन आवटे ११. विज्ञान-तंत्रज्ञान : भारत मागे पडतोय? - डी रघुनंदन १२. जनतेचे आरोग्य आणि राष्ट्राचे ‘स्वास्थ्य' - अनंत फडके १३. मैदान : क्रीडासंस्कृतीचे आणि राष्ट्रवादाचे? - पराग फाटक, ओंकार डंके १४. प्रसारमाध्यमांचे स्वातंत्र्य आणि राष्ट्रवादाचे कंपनीकरण - अभिषेक भोसले विभाग ३ : भारतीय विकासाचे पेच आणि पर्याय १५. वसाहत ते ‘अच्छे दिन' : विकासाचा पेच कायमचाच - शमा दलवाई १६. टाटा-बिर्ला ते अंबानी-अदानी : स्वातंत्र्योत्तर साटेलोटे-राज्य! - सचिन रोहेकर १७. शेतीची कोंडी आणि ‘इंडिया विरुद्ध भारत' - जयदीप हर्डीकर १८. ‘माता', ‘मंदिरे' आणि भारतीय जल-सिंचन! - प्रदीप पुरंदरे १९. सहकार : मार्ग जुना, दृष्टी नवी - गजानन खातू २०. सार्वजनिक क्षेत्र आणि खासगीकरणाचे ग्रहण - संजीव चांदोरकर २१. ‘विकासा'पलीकडचा गांधीमार्ग - पराग चोळकर २२. पर्यावरणीय संकट आणि विकासाचा शाश्वत पर्याय - के जे जॉय विभाग ४ : नवा भारत घडवणाऱ्या शक्ती २३. आदिवासींचा न संपलेला स्वातंत्र्यलढा! - देवकुमार आहिरे २४. भटक्या-विमुक्तांचे राष्ट्र कोणते? - नारायण भोसले २५. जातीचे द्वैत आणि राष्ट्रवादातील दुभंग - दिलीप चव्हाण, देवेंद्र इंगळे २६. बदलते जातवास्तव आणि अस्मितांचे राजकारण - शैलेंद्र खरात २७. अनिवासी भारतीय : ‘काळे पाणी' ते ‘गोरे' पाणी? - आनंद करंदीकर २८. कामगार चळवळीचे बदलते स्वरूप आणि नवी दिशा - अजित अभ्यंकर २९. सती ते पद्मावती : जोहार स्त्रियांचाच! - माया पंडित ३०. महिलांचे राजकीय नेतृत्व : बदल घडवेल? - संध्या नरे-पवार
Khandit Bharat
- Author Name:
Dr Rajendra Prasad
- Book Type:
- Description: "आधुनिक भारत के मनीषी, तत्त्वज्ञानियों और चिंतकों में देशरत्न राजेंद्र प्रसाद का प्रथम स्थान है। परदु:खकातरता, त्याग और सेवा- भाव उनके स्वाभाविक गुण थे। भारत की एकता और अखंडता बनाए रखना उनके लिए अत्यंत महत्त्व की बात थी। सन् 1940 के लाहौर अधिवेशन में मुसलिम लीग ने जब देश के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया तो यह गंभीर चिंता और चर्चा का विषय बन गया। अनेक प्रमुख व्यक्तियों ने इस पर अपने विचार एवं योजनाएँ प्रस्तुत कीं तथा अपने-अपने ढंग से इस समस्या के समाधान सुझाए। 1945 में इसी बात को ध्यान में रखकर राजेंद्र बाबू ने अंग्रेजी में पुस्तक लिखी-' इंडिया डिवाइडेड'; खंडित भारत उसी का हिंदी अनुवाद है। पाकिस्तान की माँग से संबद्ध उस समय तक प्रकाशित प्राय: संपूर्ण साहित्य के विस्तृत अध्ययन के बाद लिखी गई इस पुस्तक की मुख्य विशेषता है कि इसमें लेखक के विचार पाठकों पर आरोपित नहीं किए गए। तथ्यों, आँकड़ों, तालिकाओं, नक्शों और ग्राफों की सहायता से भारतीय प्रायदीप के विभाजन से संबंधित संपूर्ण सामग्री उपस्थित कर देश के बँटवारे के पक्ष-विपक्ष में इस प्रकार तर्क प्रस्तुत किए गए हैं कि पाकिस्तान की व्यवहार्यता अथवा अव्यवहार्यता के विषय में पाठक स्वयं अपनी राय बना सकें। विभाजन के समर्थकों एवं विरोधियों-दोनों के लिए ' खंडित भारत' एक आदर्श ग्रंथ माना गया। यद्यपि देश को विभाजित हुए साठ वर्ष से ऊपर बीत चुके हैं, इतिहासकारों की दृष्टि में आज भी यह पुस्तक महत्वपूर्ण है और प्रत्येक भारतीय के लिए पठनीय है।
Rajkahini-The Princely Tales of Rajasthan
- Author Name:
Abanindranath Tagore
- Book Type:
- Description: Rajkahini-The Princely Tales of Rajasthan is an English translation of Abanindranath Tagore's Bengali classic Rajkahini. It is a collection of nine stories that are replete with episodes and incidents involving the royalty of Rajasthan. Expectedly, therefore, bravery, nobility palace intrigues, wars, skirmishes, feuds betrayal, caste, religion, marriage, motherhood and progeny, all play a dynamic role as the fictionalized social and political history of early Rajasthan is unfurled. Authoring Rajkahini as a literary expression of the legends and tales of the Rajput kings can also be considered a part of the postcolonial action to etch out a narrative that could draw the far part of the nation closer to the Bengali readership.
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