Dr. Rammanohar Lohia Ka Samajwadi Darshan
Author:
Tarachand DixitPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
डॉ. लोहिया का समाजवादी चिन्तन देश-प्रेम एवं जन-कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत है<strong>,</strong> उसका दर्शन नितान्त मौलिक है। जहाँ वे मार्क्स या गांधी से असहमत हैं<strong>, </strong>उन्होंने अत्यन्त निर्भीकता एवं ईमानदारी से अपनी असहमति व्यक्त की है। उन्होंने समाजवाद पर अत्यन्त गहराई से सोचा-समझा है। उनके समर्थकों का दावा है कि समाजवाद का अस्थिपंजर तो बहुत पहले से तैयार हो गया था<strong>, </strong>डॉ. लोहिया ने इसमें ‘फ्लैश एंड ब्लड’ डालकर इसको एक नया जीवन दिया है। उनका समाजवादी दर्शन मानवतावाद की पूर्ण अभिव्यक्ति है। उनके सिद्धान्त और कर्म वे आधार हैं जिन पर एक नवीन विश्व-व्यवस्था<strong>, </strong>नवीन संस्कृति और नवीन सभ्यता के कल्याणकारी भवन निर्मित हो सकते हैं और उनमें सम्पूर्ण मानवता जाति<strong>, </strong>धर्म<strong>, </strong>वंश<strong>, </strong>लिंग<strong>, </strong>संस्कृति<strong>, </strong>सम्पत्ति आदि की भिन्नता (कटुता) से मुक्त हो निवास कर सकती है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि लोहिया जी भारत के ही नहीं<strong>, </strong>अपितु विश्व के मौलिक राजनीतिक विचारकों में प्रतिष्ठित स्थान रखते हैं।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में न तो डॉ. लोहिया की अन्धविश्वास के साथ प्रशंसा की गई है और न ही किसी पूर्वग्रह के साथ आलोचना। जहाँ उनकी प्रशंसा अपेक्षित है वहाँ प्रशंसा की गई है और जहाँ आलोचना आवश्यक है वहाँ आलोचना। इस प्रकार इस दृष्टि को सामने रखकर डॉ. लोहिया के सम्बन्ध में सम्यक् विचार प्रस्तुत किए गए हैं।</p>
<p>इस पुस्तक में डॉ. लोहिया के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त समाजवाद की विशिष्टताओं को देते हुए डॉ. लोहिया द्वारा चलाए गए समाजवादी आन्दोलन का भी उल्लेख किया गया है। डॉ. लोहिया की सामाजिक साधना<strong>, </strong>समाजवादी राज्य का स्वरूप एवं उसके प्रशासनिक ढाँचे का तुलनात्मक ढंग से उल्लेख किया गया है। भाषा-विषयक विचारों और लोहिया की मौलिक अधिकार-सम्बन्धी धारणा का विश्लेषण भी किया गया है। विश्व की समाजवादी विचारधारा को डॉ. लोहिया की देन<strong>, </strong>विश्व-समाजवाद का नवदर्शन<strong>, </strong>संयुक्त राष्ट्रसंघ का पुनर्गठन<strong>, </strong>विश्व सरकार<strong>, </strong>विश्व विकास समिति<strong>, </strong>अन्तरराष्ट्रीय जाति-प्रथा उन्मूलन<strong>, </strong>साक्षात्कार का सिद्धान्त<strong>, </strong>निशस्त्रीकरण आदि विषयों से सम्बन्धित उनकी विचारधाराएँ स्पष्ट की गई हैं। मार्क्स<strong>, </strong>गांधी और डॉ. लोहिया के समाजवादी दर्शनों का तुलनात्मक विवेचन कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि किस प्रकार मार्क्स और गांधी-दर्शनों का संशोधन एवं समन्वय कर डॉ. लोहिया ने उन्हें पूर्ण किया और एक नया सन्तुलन और सम्मिलन का दर्शन जन-मानस को दिया।
ISBN: 9788180317484
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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तेलगू के ख्यात लेखक तापी धर्माराव के लेखन का आधार इतिहास व किंवदन्तियों का वैज्ञानिक अन्वेषण है। प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर उन्होंने सामाजिक यथार्थ की पुस्तकें लिखी हैं। स्थापित रूढ़ मान्यताओं के पैरवीकारों को थोड़ी आपत्ति अवश्य हो सकती है, लेकिन इन मुद्दों पर विचार करने के लेखकीय आग्रह को वे टाल नहीं सकते।
यह पुस्तक विवाह संस्कार के स्वरूप और विकास का बख़ूबी मनोविश्लेषण करती है। नर तथा नारी के सम्बन्धों के समाज पर पड़े प्रभाव के कारण बहुतेरी कुप्रथाएँ भी प्रचलित हो जाती हैं और उचित जानकारी के अभाव में यह यथावत् रहती हैं। यदि समाज के सम्मुख इन कुप्रथाओं को उजागर किया जाए तो इसके नैतिक स्वरूप में परिवर्तन सम्भव है। समस्याओं की यथावत् पहचान कर उन्हें स्पष्ट कर दिया जाए तो स्वयमेव उनके नैतिक स्वरूप में अन्तर आ जाता है। ऐसा ही सार्थक प्रयास तापी धर्माराव ने अपनी इस समाज–मनोविज्ञान की पुस्तक में किया है।
Jharkhand Ki Adivasi Kala Parampara
- Author Name:
Manoj Kumar Kapardar
- Book Type:

- Description: प्राकृतिक संपदाओं और सौंदर्य से परिपूर्ण झारखंड कला की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है। दशकों पहले जब हजारीबाग के पास इसको के शैलचित्रों की खोज हुई थी, तब दुनिया ने जाना कि हमारे पूर्वज कितने कुशल चितेरे थे । ऐसी अनेक आकृतियों एवं निशानों से पटी पड़ी है झारखंड की धरती अब शोधकर्ता भी प्रकृति की इस अद्भ्रुत रचना का मर्म समझने में लगे हैं। संताल समाज के लोगों द्वारा सदियों से 'जादोपटिया कला' के प्रति खासा रुझान देखा गया है। इनके चित्रों में जीवन का जितना गहरा सार है, उतना ही गहरा रेखाओं का विस्तार है । यह कला संताली समाज में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रही है। झारखंड का जनजातीय समाज इतना हुनरमंद है कि अपनी जरुरत की चीज से लेकर अन्य समाज की जरुरतों को भी पूरा करने में वह सक्षम है। शिल्पकला, चित्रकला और देशी उत्पादों से जरूरत के असंख्य सामान तैयार करने में जनजातीय समाज के कौशल का कोई सानी नहीं है। इनके घरों की दीवारों पर इतनी अद्भ्रुत चित्रकारी होती है कि उसकी मिसाल दुर्लभ है | मिट्टी, गेरू और पत्तों से बने रंण इतने सजीव तरीके से दीवारों पर उभरते हैं कि लगता है, सारा गाँव ही कलाकारों का गाँव है । इनकी कलाकृतियों में सिर्फ हुनर ही नहीं दिखता, बल्कि विभिन्न आकृतियों के माध्यम से समाज को संदेश भी देते हैं कि देखो, हमारा जीवन फूल, पत्ती, पशु-पक्षी और प्रकृति से कितनी गहराई से जुड़ा है।
Abhishapt : Masoom Chehre
- Author Name:
Jaan Kunnappally
- Book Type:

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Description:
‘मनुष्य! कितना सुन्दर शब्द है!’—मैक्सिम गोर्की ने कहा था लेकिन सब जानते हैं कि सारे मनुष्य ‘सुन्दर’ शब्द से अलंकृत होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर पाते। सुन्दरता की तीव्र इच्छा रखते हुए भी देश के हज़ारों मनुष्य असुन्दर जीवन जीने के लिए बाध्य होते हैं।
हमारे संविधान में सभी नागरिकों के लिए समान रूप से अधिकारों की सुरक्षा का प्रावधान है, लेकिन हज़ारों-लाखों नागरिक ऐसे हैं जो इस तथ्य से अवगत नहीं हैं। बड़ी संख्या में ऐसे दलित, पीड़ित, शोषित इनसान हैं जो मानव अधिकारों से बिलकुल वंचित हैं। ये निरन्न, निर्वस्त्र, निस्सहाय लोग भी मानव कहलाने योग्य हैं। उनके प्रति मानवोचित बर्ताव करना सभ्य समझे जानेवाले समाज का धर्म है। उपेक्षा और अवहेलना का पात्र बनकर सामाजिक जीवन के अँधेरे बन्द कमरों में ढकेले गए पशु समान जीवन बितानेवाले इन निरीहों को मानवता के महान आसन पर आसीन कराना अनिवार्य है।
इस महान उद्देश्य से प्रेरित होकर मलयालम के मशहूर पत्रकार जॉन कुन्नप्पल्लि ने सात मर्मस्पर्शी लेख लिखे। जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित कुछ ज्वलन्त समस्याओं का गहन अध्ययन तथा विशद विश्लेषण इनमें किया गया है। उन्होंने यथार्थ की ठोस धरती पर खड़े होकर तथ्यों का अनावरण किया है जिसमें असत्य या अतिशयोक्ति का रंग नहीं पोता गया।
इस तरह देखें तो मलयालम से हिन्दी में अनूदित यह पुस्तक सामयिक मुद्दों के सन्दर्भ में चिन्तन और विश्लेषण-दृष्टि के स्तर पर जो पृष्ठभूमि तैयार करती है, वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है। सुविज्ञ पाठकों के लिए एक संग्रहणीय पुस्तक है ‘अभिशप्त मासूम चेहरे’।
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