Bharat Ke Madhya Varg Ki Ajeeb Dastan
Author:
Pawan Kumar VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
भारत 1991 में जैसे ही आर्थिक सुधारों और भूमंडलीकरण की डगर पर चला, वैसे ही इस देश के मध्यवर्ग को एक नया महत्त्व प्राप्त हो गया। नई अर्थनीति के नियोजकों ने मध्यवर्ग को ‘शहरी भारत’ के रूप में देखा जो उनके लिए विश्व के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक था। एक सर्वेक्षण ने घोषित कर दिया कि यह ‘शहरी भारत अपने आप में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े देश के बराबर है।’ लेकिन, भारतीय मध्यवर्ग कोई रातोंरात बन जानेवाली सामाजिक संरचना नहीं थी<strong>।</strong> उपभोक्तावादी परभक्षी के रूप में इसकी खोज किए जाने से कहीं पहले इस वर्ग का एक अतीत और एक इतिहास भी था<strong>।</strong> भारत के मध्यवर्ग की अजीब दास्ताँ में पवन कुमार वर्मा ने इसी प्रस्थान बिन्दु से बीसवीं शताब्दी में मध्यवर्ग के उद्भव और विकास की विस्तृत जाँच-पड़ताल की है<strong>।</strong> उन्होंने आज़ादी के बाद के पचास वर्षों को ख़ास तौर से अपनी विवेचना का केन्द्र बनाया है<strong>।</strong> वे आर्थिक उदारीकरण से उपजे समृद्धि के आशावाद को इस वर्ग की मानसिकता और प्रवृत्तियों की रोशनी में देखते हैं<strong>।</strong> उन्होंने रातोंरात अमीर बन जाने की मध्यवर्गीय स्वैर कल्पना को नितान्त ग़रीबी में जीवन-यापन कर रहे असंख्य भारतवासियों के निर्मम यथार्थ की कसौटी पर भी कसा है<strong>।</strong></p>
<p>मध्यवर्ग की यह अजीब दास्ताँ आज़ादी के बाद हुए घटनाक्रम का गहराई से जायज़ा लेती है<strong>।</strong> भारत-चीन युद्ध और नेहरू की मृत्यु से लेकर आपातकाल व मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने की घोषणा तक इस दास्ताँ में मध्यवर्ग एक ऐसे ख़ुदग़र्ज़ तबक़े के रूप में उभरता है जिसने बार-बार न्यायपूर्ण समाज बनने के अपने ही घोषित लक्ष्यों के साथ ग़द्दारी की है<strong>।</strong> लोकतंत्र और चुनाव-प्रक्रिया के प्रति मध्यवर्ग की प्रतिबद्धता दिनोंदिन कमज़ोर होती जा रही है<strong>।</strong> मध्यवर्ग ऐसी किसी गतिविधि या सच्चाई से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता जिसका उसकी आर्थिक ख़ुशहाली से सीधा वास्ता न हो<strong>।</strong> आर्थिक उदारीकरण ने उसके इस रवैये को और भी बढ़ावा दिया है<strong>।</strong></p>
<p>पुस्तक के आख़िरी अध्याय में पवन कुमार वर्मा ने बड़ी शिद्दत के साथ दलील दी है कि कामयाब लोगों द्वारा समाज से अपने-आपको काट लेने की यह परियोजना भारत जैसे देश के लिए ख़तरनाक ही नहीं, बल्कि यथार्थ से परे भी है<strong>।</strong> अगर भारत के मध्यवर्ग ने दरिद्र भारत की ज़रूरतों के प्रति अपनी संवेदनहीनता ज़ारी रखी तो इससे वह भरी राजनीतिक उथल-पुथल की आफ़त को ही आमंत्रित करेगा<strong>।</strong> किसी भी राजनीतिक अस्थिरता का सीधा नुकसान मध्यवर्ग द्वारा पाली गई समृद्धि की महत्त्वाकांक्षाओं को ही झेलना होगा<strong>।</strong></p>
<p>
ISBN: 9788126716388
Pages: 209
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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कुशेरा के नेत्रोपचार करनेवाले गुरव बंधु हों, निःसन्तानों को सन्तान प्रदान करानेवाली पार्वती माँ हों, या एक ही प्रयास में व्यसनमुक्त करानेवाले शेषराव महाराज हों, थोड़ा-सा विचार करें, तो समझ में आता है कि लोग असहाय होते हैं। अतः वे दैववादी बनते हैं। इसी से अंधविश्वास का जन्म होता है। समाज जागरूक नहीं है। लोग अविवेकी, व्याकुल हैं, यह बिल्कुल सच है; लेकिन क्या लोगों की इस कमज़ोरी का इस्तेमाल उनकी लूट करने के लिए किया जाए? क्या लोगों की पीड़ा से अपनी झोली भरी जाए?
लोग श्रद्धा रखते हैं, देवाचार माननेवाले हैं, इसका यह मतलब नहीं कि लोग मूर्ख हैं और इसी कारण वे श्रद्धा, देवाचार, नैतिकता, पवित्रता आदि से सम्बन्धित बन्धनों का पालन करते हैं। हम देवताओं की ओर जाते हैं, वह चमत्कार के डर से नहीं बल्कि प्रेमभाव के कारण होता है। लेकिन प्रेम में भय और दहशत का कोई स्थान नहीं है। इस श्रद्धा में जो चीज़ें ग़ैरज़रूरी और अतार्किक हैं, उनका परीक्षण क्यों न किया जाए? कालबाह्य मूल्यों के प्रभावहीन होने से तथा नवविचारों के प्रभावी व्यवहार से लोग परिवर्तन चाहते हैं। हम जब ऐसा कहते हैं कि हिन्दू धर्म की बुनियादी मूल्य-व्यवस्था ही असमानता पर आधारित है, तो वास्तव में यह विधान भूतकाल को सम्बोधित करके किया गया होता है। जन्म से जातीय वरीयता का पुनरुज्जीवन आज कोई नहीं चाहता। प्रत्येक धर्म में मूल नीति तत्त्व बहुतांश रूप में समान हैं। प्रखर नास्तिक भी इसे स्वीकार करेगा। धर्म जब कर्मकांड मात्र रह जाता है, तब उसका विकृतिकरण होता है। क्या चमत्कार धर्मश्रद्धा का हिस्सा है?
स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, "जिस शुद्ध हिन्दू धर्म का सम्मान मैं करता हूँ, वह चमत्कार पर आधारित नहीं है। चमत्कार एवं गूढ़ता के पीछे मत पड़ो। चमत्कार सत्य-प्राप्ति के मार्ग में आनेवाला सबसे बड़ा रोड़ा है। चमत्कारों का पागलपन हमें नादान और कमज़ोर बनाता है।"
इसी वैचारिक पृष्ठभूमि में 'महाराष्ट्र अन्धश्रद्धा निर्मूलन समिति' विगत 24 वर्षों से कार्यरत है। अपने नि:स्वार्थ कार्यकर्ताओं के साथ उसने इस दौरान अनेक बार आन्दोलन किए हैं, अनेक बार अपनी जान जोखिम में डालकर और अपनी जेब से पैसा ख़र्च करके समाज में चल रहे अन्धविश्वासों के व्यापार का विरोध किया है। इस पुस्तक में ऐसे ही कुछ आन्दोलनों की रपट है। इन घटनाओं का विवरण पढ़कर पाठक स्वयं ही समझ सकता है कि अन्धविश्वासों से यह जंग कितनी ख़तरनाक लेकिन कितनी ज़रूरी है।
Asamanya Vyavahar Ki Manogatiki
- Author Name:
J. F. Brown
- Book Type:

- Description: जे.एफ. ब्राउन द्वारा लिखी बहुचर्चित पुस्तक ‘द साइकोडायनैमिक्स ऑफ एबनॉर्मल बिहेवियर’ का पहला संस्करण 1940 में प्रकाशित हुआ था। तब से अब तक यह पुस्तक विशिष्ट बनी हुई है। एक बुनियादी पाठ्य पुस्तक के रूप में इसे कालजयी कृति का महत्त्व प्राप्त है। ‘असामान्य व्यवहार की मनोगतिकी’ इसी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है। विषय की अधिकारी विद्वान डॉ. शोभना शाह ने अनुवाद करते हुए पारिभाषिक शब्दावली, तकनीकी विवरण और जटिल विवेचन की बहुलता के बाद भी सुगमता, स्पष्टता एवं सम्प्रेषणीयता का ध्यान रखा है। अनुवादक डॉ. शोभना शाह पुस्तक के महत्त्व को इन शब्दों में रेखांकित करती हैं, ‘‘यह पुस्तक फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त के आधार पर मानव मन की सूक्ष्म परतों को खोलती है और मानव विकास की विविध मनोगत्यात्मक अवस्थाओं की व्याख्या बड़े सरल और सुग्राही शब्दों में करती है। इस दृष्टि से यह एक अद्वितीय कृति है। ‘यद्यपि इस पुस्तक के बाद अनेक पुस्तकें लिखी गईं परन्तु इस पुस्तक का अपना विशिष्ट स्थान है। इसमें विविध असामान्यताओं की आधारभूत व्याख्या बड़े विश्वसनीय तरीके से सरल शब्दों में की गई है। इसे संभवतया असामान्य मानव व्यवहार पर बाद में लिखे गए साहित्य की दिशा-निर्देशक कहा जा सकता है। अनेक रूपों में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Sukhi Parivar Samriddha Rashtra
- Author Name:
Acharya Mahapragya +1
- Book Type:

- Description: परिवार व राष्ट्र के विकास के माध्यम से ही एक शांतिपूर्ण, सुखी व समृद्ध समाज का विकास हो सकता है। सुविख्यात जैन मुनि आचार्य महाप्रज्ञ तथा पूर्व राष्ट्रपति भारत-रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का समाज के प्रति समर्पण और उसकी उन्नति के प्रति चिंता सर्वविदित है; परंतु विसंगतियों के बावजूद उसके सशक्त होने की क्षमता पर भी उन्हें पूरा भरोसा है। इस विचार-प्रधान पुस्तक ‘सुखी परिवार, समृद्ध राष्ट्र’ में इन दो विशिष्ट व्यक्तियों के परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति सरोकारों को रेखांकित किया गया है। लेखकद्वय का विचार है कि एक उत्तम राष्ट्र का निर्माण करने के लिए इसके बीज परिवार में ही बोए जाने चाहिए। कोई ऐसा व्यक्ति ही, जिसका पालन-पोषण उचित मूल्यों की शिक्षा देनेवाले परिवार में हुआ हो, राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझ सकता है। ऐसा नागरिक ‘निष्ठा से काम करो और निष्ठा से सफलता पाओ’ के सिद्धांत को अपनाएगा। केवल आर्थिक विकास और सैन्य-शक्ति से राष्ट्र उन्नत नहीं होगा, बल्कि इसके लिए मूल्यपरक समाज-जीवन का वातावरण बनाना होगा। यह दर्शन ही इस पुस्तक का मूल सिद्धांत है।
Clymet Change
- Author Name:
Sharad Singh
- Book Type:

- Description: This book has no description
Andhvishwas : Prshnchihn Aur Purnviram
- Author Name:
Parsharam Rao Arde +1
- Book Type:

- Description: चमत्कारी कहलानेवाले बाबा क्या सच में चमत्कार करते हैं? आखिर क्या कारण है कि विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के इतने प्रसार के बाद भी समाज में अंधविश्वासों की जगह बची हुई है? क्यों लोग आज भी अपने दु:खों का, अपनी बीमारियों का इलाज ढूँढ़ने गुरुओं-साधुओं की शरण में जाते हैं? वशीकरण और सम्मोहन क्या वास्तव में होते हैं? कुछ लोग भूतों को देखने तक का दावा करते हैं, इसका आधार क्या है? देवी-देवता या भूतों का संचार ज्यादातर स्त्रियों में ही होता है, ऐसा क्यों? पुनर्जन्म की सच्चाई क्या है? मृतात्मा का आह्वान क्या बला है? और ज्योतिष जिस पर तर्कपरायण लोग भी विश्वास करते पाए जाते हैं, वह क्या है? ‘अंधविश्वास उन्मूलन आन्दोलन’ के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर की यह किताब इन सभी सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर देती है। प्रश्नोत्तर शैली में तैयार इस पुस्तक में उन प्रश्नों को संकलित किया गया है, जो साधारण लोगों ने अलग-अलग संवाद शिविरों और व्याख्यान-सत्रों के दौरान प्रस्तुत किए। उन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में यह पुस्तक तैयार हुई इसमें हमें अंधविश्वासों के कारण और निवारण, दोनों प्राप्त होते हैं।
Kinnar : Abujh Rahasyamay Jeevan
- Author Name:
Sharad Dwivedi
- Book Type:

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Description:
‘किन्नर : अबूझ रहस्यमय जीवन’ में किन्नरों के दर्द, उनकी खूबी, उनके संस्कार, संस्कृति व परम्पराओं को समाहित किया गया है।
थर्ड जेंडर अर्थात किन्नर कानूनी दायरे में नहीं आते। इनसान होने के बावजूद किन्नर उपेक्षित हैं। इनके हित में कानून तो बने लेकिन उसका जमीनी स्तर पर पालन नहीं हो रहा है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि किन्नर न स्त्री हैं और न ही पुरुष। फिर उन्हें कोई आरक्षण अथवा कानून का लाभ कैसे दिया जाए? यह स्थिति भारत सहित विश्व के लगभग सभी देशों में है। आखिर यह बड़ी विडम्बना है ना! यहाँ व्यक्ति को बिना किसी गलती की सजा दी जा रही है। उन्हें धार्मिक, सांस्कृतिक पहचान दिलाने की कागजी कार्रवाई शुरू हुई। लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
यह पुस्तक किन्नरों से आत्मीय जुड़ाव कराती है। साथ ही किन्नरों के अधिकार व सम्मान के लिए पुरजोर आवाज उठाने को प्रेरित भी करती है।
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