Yugdrashta-Pathsrashta
Author:
Devraj Singh JadaunPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Available
"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी सौ वर्षों की यात्रा में समाज-जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। असंख्य तपोनिष्ठ कार्यकर्ताओं ने माँ भारती को परम वैभव पर पहुँचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। इनकी अहर्निश राष्ट्र-साधना ने समाज में समरसता, समानता, चरित्र-निर्माण, राष्ट्रभक्ति और सत्यनिष्ठ-सरल जीवन जीने के पथ को आलोकित किया है।
संघ-संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार, द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी व तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरसजी ने अपने त्यागपूर्ण, संयमित व प्रेरक जीवन से संघ के स्वयंसेवकों को 'राष्ट्र सर्वोपरि' का मूलमंत्र दिया। अपने स्वयं के सरल सौम्य जीवन से उन्होंने प्रेरित किया, जीवन की सार्थकता से परिचित करवाया और देशसेवा के लिए उद्यत किया।
यह पुस्तक इन तीन परमपूजनीय सरसंघचालकों के जीवन के ऐसे प्रसंगों का संकलन है, जो सदैव न केवल स्वयंसेवकों वरन् राष्ट्र के प्रति सरोकार रखनेवाले हर व्यक्ति को प्रेरित करेंगे, उनमें राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव जाग्रत् करेंगे।"
ISBN: 9789355624062
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Asamanya Vyavahar Ki Manogatiki
- Author Name:
J. F. Brown
- Book Type:

- Description: जे.एफ. ब्राउन द्वारा लिखी बहुचर्चित पुस्तक ‘द साइकोडायनैमिक्स ऑफ एबनॉर्मल बिहेवियर’ का पहला संस्करण 1940 में प्रकाशित हुआ था। तब से अब तक यह पुस्तक विशिष्ट बनी हुई है। एक बुनियादी पाठ्य पुस्तक के रूप में इसे कालजयी कृति का महत्त्व प्राप्त है। ‘असामान्य व्यवहार की मनोगतिकी’ इसी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद है। विषय की अधिकारी विद्वान डॉ. शोभना शाह ने अनुवाद करते हुए पारिभाषिक शब्दावली, तकनीकी विवरण और जटिल विवेचन की बहुलता के बाद भी सुगमता, स्पष्टता एवं सम्प्रेषणीयता का ध्यान रखा है। अनुवादक डॉ. शोभना शाह पुस्तक के महत्त्व को इन शब्दों में रेखांकित करती हैं, ‘‘यह पुस्तक फ्रायड के मनोविश्लेषण सिद्धान्त के आधार पर मानव मन की सूक्ष्म परतों को खोलती है और मानव विकास की विविध मनोगत्यात्मक अवस्थाओं की व्याख्या बड़े सरल और सुग्राही शब्दों में करती है। इस दृष्टि से यह एक अद्वितीय कृति है। ‘यद्यपि इस पुस्तक के बाद अनेक पुस्तकें लिखी गईं परन्तु इस पुस्तक का अपना विशिष्ट स्थान है। इसमें विविध असामान्यताओं की आधारभूत व्याख्या बड़े विश्वसनीय तरीके से सरल शब्दों में की गई है। इसे संभवतया असामान्य मानव व्यवहार पर बाद में लिखे गए साहित्य की दिशा-निर्देशक कहा जा सकता है। अनेक रूपों में एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
Vichar Se Vivek
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
प्लैंचेट, बाबागिरी, भानमती, भविष्यवाणी, तरह-तरह के कर्मकांड और परंपराएँ। अंधविश्वास का यह हजार पैरों का ऑक्टोपस समाज के लिए अत्यंत शोषणकारी है। इस पुस्तक के हर पन्ने पर इसी ऑक्टोपस से लड़ने का आह्वान है। इसे पढ़ने से पता चलता है कि अंधविश्वास का आपातकाल राजकीय आपातकाल से भी अधिक कठिन है। बंधनों का एहसास होने पर, मनुष्य उसके खिलाफ जंग छेड़ता है। लेकिन बंधन में ही सुख महसूस हो तो? वैचारिक स्वतंत्रता का आत्मतत्त्व छीनने वाले धार्मिक अंधविश्वास बिलकुल यही करते हैं।
समाज को एक सर्वांगीण संकट ने कस लिया है। हिंसा, द्वेष, धर्मांधता, भोगवाद के तूफान मँडरा रहे हैं। हमें अपने आपको ही खोजना होगा। बुद्धि को परखना होगा। मनुष्य की मदद केवल मनुष्य ही कर सकते हैं। और मनुष्य ही समाज का निर्माण करते हैं, उसको बदलते हैं।
‘विचार से विवेक’ में बदलाव की ऐसी ही कोशिशों का वर्णन है। ‘सोचो तो जानो?’ शीर्षक स्तंभ ‘दैनिक पुढारी’ एवं ‘दैनिक लोकमत’ (मराठवाड़ा, नागपुर, जलगाँव) में एक साथ नियमित प्रकाशित होता था। इस पुस्तक में उसी स्तंभ के आलेखों को संकलित किया गया है, साथ ही कुछ नए लेख भी शामिल किए गए हैं।
Manovigyan Ka Itihas
- Author Name:
Ramprasad Pandey
- Book Type:

- Description: Manovigyan Ka Itihas
Bharat Ke Gaon
- Author Name:
M.N. Shrinivas
- Book Type:

-
Description:
भारत, ब्रिटेन और अमेरिका के प्रमुख समाजशास्त्रियों द्वारा लिखे गए निबन्धों के इस संग्रह में भारत के चुनिन्दा गाँवों और उनमें हो रहे सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तनों के विवरण प्रस्तुत हैं। हर निबन्ध एक क्षेत्र के एक ही गाँव या गाँवों के समूह के गहन अध्ययन का परिणाम है। यह निबन्ध एक विस्तृत क्षेत्र का लेखा–जोखा प्रस्तुत करते हैं, उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिण में तंजौर तक और पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में बंगाल तक।
सर्वेक्षित गाँव सामुदायिक जीवन के विविध प्रारूप प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस विविधता में ही कहीं उस एकता का सूत्र गुँथा है जो भारतीय ग्रामीण दृश्य का लक्षण है। निबन्धों में गहरी धँसी जाति व्यवस्था और गाँव की एकता का प्रश्न हाल के वर्षों में बढ़े औद्योगिकीरण और शहरीकरण के ग्रामीण विकास के लिए सरकारी योजनाओं और शिक्षा के प्रभाव से जुड़े कुछ ऐसे पक्ष हैं जिनकी विद्वत्तापूर्ण पड़ताल हुई है। आज भी, भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी 80 प्रतिशत जनसंख्या उसके पाँच लाख गाँवों में रहती है, और उन्हें बदल पाने के लिए उनके जीवन की स्थितियों की जानकारी ज़रूरी है। ‘भारत के गाँव’ जिज्ञासु सामान्य जन और ग्रामीण भारत को जाननेवाले विशेषज्ञों के लिए ग्रामीण भारत का परिचय उपलब्ध कराती है।
Hindi Rashtravad
- Author Name:
Alok Rai
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी राष्ट्रवाद भारत की भाषाई राजनीति की एक चिंताकुल और सघन पड़ताल है, और यह पड़ताल होती है हिन्दी भाषा के मौजूदा स्वरूप तक आने के इतिहास के विश्लेषण के साथ।
जन की भाषा बनने की हिन्दी की तमाम क्षमताओं को स्वीकारते हुए किताब का ज़ोर यह समझने पर है कि वह हिन्दी जो अपनी अनेक बोलियों और उर्दू के साथ मिलकर इतनी रचनात्मक, सम्प्रेषणीय, गतिशीला और जनप्रिय होती थी, कैसे उच्च वर्ण हिन्दू समाज और सरकारी ठस्सपन के चलते इतनी औपचारिक और बनावटी हो गई कि तक़रीबन स्पन्दनहीन दिखाई पड़ती है! विशाल हिन्दीभाषी समुदाय की सृजनात्मक कल्पनाओं की वाहक बनने के बजाय वह संकीर्णताओं से क्यों घिर गयी! हिन्दुत्व की सवर्ण राजनीति की इसमें क्या भूमिका रही है, और स्वयं हिन्दीवालों ने अपनी कूपमंडूकता से उसमें क्या सहयोग किया है!
आज जब राष्ट्रवादी आग्रहों के और भी संकुचित और आक्रामक रूप हमारे सामने हैं, जिनमें भाषा के शुद्धिकरण की माँग भी बीच-बीच में सुनाई पड़ती है, इस विमर्श को पढ़ना, और हिन्दी के इतिहास की इस व्याख्या से गुज़रना ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
मूलत: अंग्रेज़ी में लिखित और बड़े पैमाने पर चर्चित इस किताब का यह अनुवाद स्वयं लेखक ने किया है, इसलिए स्वभावत: यह सिर्फ़ अनुवाद नहीं, मूल की पुनर्रचना है।
साथ ही पुस्तक में प्रस्तावित विमर्श की अहमियत को रेखांकित करने और उसे आज के संदर्भों से जोड़ने के मक़सद से समकालीन हिन्दी विद्वानों के दो आलेख भी शामिल किए गए है और लेखक से दो साक्षात्कार भी हैं जो इसके पाठकीय मूल्य को द्विगुणित कर देते हैं।
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita
- Author Name:
Acharya Mayaram 'Patang'
- Book Type:

- Description: ‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है। विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया! इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है। विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।
Goongi Rulaai Ka Chorus
- Author Name:
Ranendra
- Book Type:

- Description: भारतीय जन-जीवन का एक लम्बा दौर ऐसा भी रहा जिसमें हिन्दू और मुस्लिम धर्मों के अति-साधारण लोग बिना किसी वैचारिक आग्रह या सचेत प्रयास के, जीवन की सहज धारा में रहते-बहते एक साझा सांस्कृतिक इकाई के रूप में विकसित हो रहे थे। एक साझा समाज का निर्माण कर रहे थे, जो अगर विभाजन-प्रेमी ताकतें बीच में न खड़ीं होतीं तो एक विशिष्ट समाज-रचना के रूप में विश्व के सामने आता। हमारे गाँवों, कस्बों और छोटे शहरों में आज भी इसके अवशेष मिल जाते हैं। परम्परा का एक बड़ा हिस्सा तो उसके ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में हमारे पास है ही। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी उसी विरासत का हिस्सा है जो इस उपन्यास के केंद्र में है। खिलजी शासनकाल में देवगिरी के महान गायक गोपाल नायक और अमीर खुसरो के मेल से जिस संगीत की धारा प्रवाहित हुई, अकबर, मुहम्मद शाह रंगीले और वाजिद अली शाह के दरबारों से बहती हुई वह संगीत के अलग-अलग घरानों तक पहुँची। मैहर के बड़ो बाबा अलाउद्दीन खान की तरह इस उपन्यास के बड़ो नानू उस्ताद मह्ताबुद्दीन खान के यहाँ भी संगीत ही इबादत है। इसीलिए उत्तर प्रदेश के खुर्शीद जोगी और बंगाल के बाउल परम्परा के कमोल उनके घर से दामाद के रूप में जुड़े। लेकिन इक्कीसवीं सदी के भारत में विभाजन-प्रेम एक नशे के तौर पर उभर कर आता है। गुजरात में सदी के शुरू में जो हुआ वह अब यहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक मुख्यधारा का सबसे तेज़ रंग है। इस जहरीले परिवेश में नानू अयूब खान, अब्बू खुर्शीद जोगी, बाबा मदन बाउल और अंत में कमोल कबीर एक-एक कर खत्म कर दिए जाते हैं। बच जाती है एक रुलाई जो खुलकर फूट भी नहीं पाती। हलक तक आकर रह जाती है। यह उपन्यास इसी रुलाई का कोरस है। विभाजन को अपना पवित्रतम ध्येय मानने वाली वर्चस्वशाली विचारधारा के खोखलेपन और उसकी रक्त-रंजित आक्रामकता को रेखांकित करते हुए यह उपन्यास भारतीय संस्कृति के समावेशी चरित्र को हिन्दुस्तानी संगीत की लय-ताल के साथ पुनः स्थापित करने का प्रयास करता है।
Hindu Arthchintan Drishti Evam Disha
- Author Name:
Dr. Bajrang Lal Gupta
- Book Type:

- Description: किसी भी समाज की जीवन-दृष्टि और जीवन-मूल्यों से उसके जीवनादर्श बनते हैं। ये जीवनादर्श ही व्यक्ति व समाज के व्यवहार एवं जीवन को निर्देशित एवं नियमित करते हैं और समाज को पहचान भी देते हैं। किसी समाज के जीवन-मूल्य ही यह बताते हैं कि उस समाज का मानव, प्रकृति व विश्व के प्रति क्या दृष्टिकोण है और उस समाज में प्रकृति व मानव के संबंधों का स्वरूप क्या है। ये संबंध ही विश्व की विभिन्न समस्याओं के समाधान की दिशा निर्धारित करते हैं। यदि मानव और प्रकृति में सहयोगी भाव है तो प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन होता रहता है और यदि मानव प्रकृति का अपनी सुख-सुविधा के लिए शोषण करता है तो प्रकृति के समक्ष अस्तित्व का संकट आ खड़ा होता है। आज विश्व के समक्ष उपस्थित हुआ पर्यावरण संकट भी प्रकृति के अंधाधुंध शोषण के कारण ही है। भारतीय दृष्टिकोण प्रकृति के साथ मातृभाव से उसका पोषण और संरक्षण करने का है। इस पुस्तक ‘भारतीय सांस्कृतिक मूल्य’ में प्रख्यात चिंतक डॉ. बजरंग लाल गुप्ता ने किसी समाज की जीवन-दृष्टि और जीवन-मूल्यों के बारे में विस्तृत व्याख्या की है और बताया है कि किस प्रकार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के समाधान के लिए भारतीय जीवन-दृष्टि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। उन्होंने इस पुस्तक में समाज की विभिन्न समस्याओं के कारणों और उनके समाधान के विषय में विशद् विवेचन किया है। उन्होंने उन महापुरुषों के जीवन से संबंधित विभिन्न पहलुओं को भी लिपिबद्ध किया है, जिन्होंने समाज को प्रेरित किया और नई दिशा दी।
Mahabharatkalin Samaj
- Author Name:
Sukhmay Bhattacharya
- Book Type:

-
Description:
मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि श्रीमती पुष्पा जैन ने ‘महाभारतकालीन समाज’ का सुन्दर हिन्दी अनुवाद किया है। इस पुस्तक के लेखक श्री सुखमय जी भट्टाचार्य मेरे बहुत निकट के मित्र हैं। मैने स्वयं देखा है कि उन्होंने कितने परिश्रम से इस ग्रन्थ की रचना की थी, कितनी बार उन्हें ‘महाभारत’ का पारायण करना पड़ा है, कितनी बार उन्हें एक वक्तव्य का दूसरे वक्तव्य से संगति मिलान के लिए माथापच्ची करनी पड़ी है, यह सब मेरे सामने ही हुआ है। वे बड़े धीर स्वभाव के गम्भीर विद्वान हैं। जब तक किसी समस्या का समाधान तर्कसंगत और सन्तोषजनक ढंग से नहीं हो जाता, तब तक उन्हें चैन नहीं मिलता। बड़े धैर्य, अध्यवसाय और उत्साह के साथ उन्होंने इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया है। कार्य सचमुच कठिन था।
‘महाभारत’ भारतीय चिन्तन का विशाल विश्वकोश है। पंडितों में यह भी जल्पना-कल्पना चलती रहती है कि इसका कौन-सा अंश पुराना है, कौन-सा अपेक्षाकृत नवीन। कई प्रकार की समाज व्यवस्था का पाया जाना विभिन्न कालों में लिखे गए अंशों के कारण भी हो सकता है। फिर इस ग्रन्थ में अनेक श्रेणी के लोगों के आचार-विचार की चर्चा है। सब प्रकार की बातों की संगति बैठना काफ़ी कठिन हो जाता है। पं. सुखमय भट्टाचार्य जी ने समस्त विचारों और व्यवहारों का निस्संग दृष्टि से संकलन किया है। पाठक को अपने निष्कर्ष पर पहुँचने की पूरी छूट है। फिर भी उन्होंने परिश्रमपूर्वक निकाले अपने निष्कर्षों से पाठक को वंचित भी नहीं रहने दिया, इसीलिए यह अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद करके श्रीमती पुष्पा जैन ने उत्तम कार्य किया है। इस अनुवाद के लिए वे सभी सहृदय पाठकों की बधाई की अधिकारिणी हैं।
—हजारीप्रसाद द्विवेदी
Hamari Chunautiyan : Bhartiya Samaj Ke Samaksh Chunautiyan-1
- Author Name:
Badri Narayan
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक भारतीय समाज की वर्तमान चुनौतियों पर केन्द्रित है। इन चुनौतियों की जड़ें तो अतीत में हैं परन्तु इनका प्रभाव हमारे भविष्य तक जाता है। इन समकालीन चुनौतियों का प्रसार लोकतंत्र, परम्परा, विस्मरण एवं स्मृति-निर्माण तक फैला है। ये विमर्शपरक व्याख्यान गोविन्द बल्लभ पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद द्वारा आयोजित लोकप्रिय शृंखला ‘भारतीय समाज के समक्ष चुनौतियाँ’ के तहत संस्थान में दिए गए हैं। यह व्याख्यान-शृंखला अनवरत चल रही है। इस व्याख्यान-शृंखला का पहला खंड आज की चुनौतियों पर तो विमर्श करता ही है, साथ ही इन चुनौतियों के भीतर से ही समाधान का छायाचित्र भी निर्मित करता है।
Vishwas Aur Andhvishwas
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
विश्वास क्या है? कब वह अन्धविश्वास का रूप ले लेता है? हमारे संस्कार हमारे विचारों और विश्वासों पर क्या असर डालते हैं? समाज में प्रचलित धारणाएँ कैसे धीरे-धीरे सामूहिक श्रद्धा और विश्वास का रूप ले लेती हैं। टेलीविज़न जैसे आधुनिक आविष्कार के सामने मोबाइल साथ में लेकर बैठा व्यक्ति भी चमत्कारों, भविष्यवाणियों और भूत-प्रेतों से सम्बन्धित कहानियों पर क्यों विश्वास करता रहता है? क्यों कोई समाज लौट-लौटकर धार्मिक जड़तावाद और प्रतिक्रियावादी-पश्चमुखी राजनीतिक और सामाजिक धारणाओं की तरफ़ जाता रहता है?
क्या यह संसार किसी ईश्वर द्वारा की गई रचना है? या अपने कार्य-कारण के नियमों से चलनेवाला एक यंत्र है? ईश्वर के होने या न होने से हमारी सोच तथा जीवन-शैली पर क्या असर पड़ेगा? वह हमारे लिए क्या करता है और क्या नहीं करता? क्या वह ख़ुद ही हमारी रचना है? मन क्या है, उसके रहस्य हमें कैसे प्रकाशित या दिग्भ्रमित करते हैं? फल-ज्योतिष और भूत-प्रेत हमारे मन के किस ख़ाली और असहाय कोने में सहारा बनकर आते हैं? क्या अन्धविश्वासों का विरोध नैतिकता का विरोध है? क्या धार्मिक जड़ताओं पर कुठाराघात करना सामाजिक व्यक्ति को नीति से स्खलित करता है? या इससे वह ज्यादा स्वनिर्भर, स्वायत्त, स्वतंत्र और सुखी होता है?
स्त्रियों के जीवन में अन्धविश्वासों और अन्धश्रद्धा की क्या भूमिका होती है? वे ही क्यों अनेक अन्धविश्वासों की कर्ता और विषय दोनों हो जाती हैं? इस पुस्तक की रचना इन तथा इन जैसे ही अनेक प्रश्नों को लेकर की गई है। नरेंद्र दाभोलकर के अन्धविश्वास या अन्धश्रद्धा आन्दोलन की वैचारिक-सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पृष्ठभूमि इस पुस्तक में स्पष्ट तौर पर आ गई है जिसकी रचना उन्होंने आन्दोलन के दौरान उठाए जानेवाले प्रश्नों और आशंकाओं का जवाब देने के लिए की।
Sadharan Log, Asadharan Shikshak :Bharat Ke Asal Nayak
- Author Name:
S. Giridhar
- Book Type:

- Description: सरकारी स्कूल असल मायने में ‘पब्लिक स्कूल’ हैं। ये हर व्यक्ति के और हर जगह काम आते हैं—इसमें सबसे पिछड़े इलाक़ों के सबसे ज़्यादा वंचित लोग भी शामिल हैं। पिछले लगभग दो दशकों से एस. गिरिधर अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के साथ अपने काम के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में भ्रमण करते हुए सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को क़रीब से देखते रहे हैं। इन वर्षों में वे ऐसे सैकड़ों सरकारी स्कूल शिक्षकों से मिले हैं जो अपनी देखरेख में आने वाले बच्चों की ज़िन्दगियों को बेहतर बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहे हैं। ये वे शिक्षक हैं जो हर सीमा को लाँघने का साहस रखते हैं क्योंकि इनका मानना है कि हर बच्चा सीख सकता है।
Bharat 2047
- Author Name:
Braj Kishore Kuthiala
- Book Type:

- Description: दीर्घकाल तक भारतवर्ष का विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्रों में सम्मानित स्थान था। कालांतर में आक्रांताओं के कारण भारत की प्रतिष्ठा धूमिल हुई। स्वाधीनता के पश्चात् देश का पुनरुत्थान एवं विकास तीक्रगति से हुआ है। स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आगामी 25 वर्षों के पश्चात् अर्थात् स्वाधीनता के 100वें वर्ष में भारत कैसा होगा? कैसा होना चाहिए? हमारे संकल्प कया हैं ? ये सब संवाद एवं विमर्श इस पुस्तक का मुख्य विषय है, जिसमें राष्ट्र जीवन के विभिन्न आयामों पर बुद्धिशील वर्ग के 16 प्रतिनिधियों ने सपनों के भारत और संभावित वास्तविकता पर लेखन के माध्यम से संवाद किया है। ग्रामीण जीवन से लेकर वैश्विक भारत, धर्म-संस्कृति के साथ-साथ टेक्नोलॉजी, वित्तीय व्यवस्थाओं व राष्ट्रीय सुरक्षा आदि से संबंधित 100 वर्ष की आयु के भारत के स्वरूप की कल्पना शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। कुल मिलाकर भारतीय समाज का सामूहिक सपना इन प्रकाशनों में प्रस्तुत है। पंचनद शोध संस्थान द्वारा आयोजित इस संवाद में राष्ट्र के बौद्धिक योद्धाओं ने मन की बात की है। संस्थान मानता है कि आलेखों में केवल सपना या कल्पना नहीं है, इसे कार्ययोजना भी माना जा सकता है।
Dalit Rajneeti Aur Hindu Dharma
- Author Name:
Dr. Rani Shankar +1
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक भारतरत्न बाबा साहेब आंबेडकर के कथन की पुष्टि करती है कि वंशानुगत आधार पर दलित व सवर्ण में कोई अंतर नहीं है एवं तार्किक व्याख्या करते हुए सिद्ध करती है कि शासकों ने जातिगत आधार पर हिंदू धर्म को विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने उच्चजाति में श्रेष्ठता का झूठा दंभ भरने की कोशिश की कि वे तो उन्हीं की भाँति भारतीय मूल के लोगों पर शासन करने के लिए यूरोप से आए और निचली जाति में यह हीन भावना भर दी कि वे न केवल गोरे शासकों से, बल्कि उच्चजाति के लोगों से भी हीन हैं। इस प्रकार उन्होंने शासक वर्ग के रूप में अपने और बहुसंख्यक आबादी के बीच एक और श्रेणी बनाने की चेष्टा की, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। यही कारण है कि दलित नेता भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद नहीं किए जाते हैं। राजनीतिक मजबूरियों के कारण सरकारें देश में विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के गरीबों एवं दलितों की दशा में सुधार का दिखावा करने के लिए सैकड़ों आयोगों का गठन और उनकी रिपोर्टों पर कार्य करती रहेंगी, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं मिलने वाले। समस्या कहीं और है, समस्या भ्रष्टाचार है और यदि इसकी रोकथाम न की गई तो सभी प्रयास बेकार हैं। इस पुस्तक का उद्देसिये दलित वर्ग को सैकड़ों वर्षों तक अपमानित एवं शोषित रखने के कारणों की तर्कसंगत समीक्षा करना है। राजनीति से प्रेरित कारण सच्चाई से कितनी दूर हैं, यह बात पाठक इस पुस्तक से जान सकेंगे।
Sapiens A Graphic History, Volume 1- Maanav Jaati ka Janm
- Author Name:
Yuval Noah Harari
- Book Type:

- Description: इस महागाथा का यह पहला खंड युवाल नोआ हरारी की अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर पुस्तक पर आधारित और खूबसूरती से रेखांकित मानव जाति का चित्र इतिहास है। यह कहानी बताती है कि कैसे तुच्छ बन्दर पृथ्वी का शासक बन गया, जो आज परमाणु विखंडन, चाँद तक उड़ने और जीवन के गुणसूत्रों तक को बदलने की क्षमता रखता है। हरारी बतौर मार्गदर्शक, कुछ और किरदार जैसे आद्य ऐतिहासिक बिल, डॉ. फ्रिक्शन और जासूस लोपेज़ के साथ आप इतिहास के बीहड़ में भ्रमण के लिए आमंत्रित हैं। मनष्यु का उद्विकास एक रियलिटी टीवी शो की तरह कल्पित किया गया है। सेपियंस और नियंडरथल्स के मुठभेड़ को प्रसिद्ध आधुनिक कलाकृतियों के ज़रिए कहा गया है तथा मैमथ और घुमावदार दांतों वाले बाघों की विलुप्ति को जासूसी मूवी की तरह दिखाया गया है। सेपियंस: चित्र इतिहास एक विलक्षण रचना है— मनुष्यता की विलक्षण मजेदार कथा, हाज़िरजवाबी की तनक, हास्य और ऊर्जा से भरपूर ।
Man-Man Ke Sawal
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
मनोविकार एक ऐसा विषय है जिसको लेकर भारतीय समाज में कई तरह के अन्धविश्वास व्याप्त हैं। मानसिक बीमारियाँ भी शरीर की अन्य व्याधियों की ही तरह होती हैं, इस तथ्य को आज भी भारत के लोग स्वीकार नहीं कर पाते। शिक्षित समाज का व्यवहार भी इस मामले में कुछ अलग नहीं है। पहले तो वे हर मनोविकार को पागलपन से जोड़ देते हैं, और इसे छिपाने की कोशिश करने लगते हैं। दूसरे ऐसे अनेक मनोरोग जो व्यक्ति के जीवन पर दीर्घकालीन प्रभाव डालते रहते हैं, उन्हें इलाज के योग्य ही नहीं माना जाता। यही वजह है कि हमारे यहाँ मनोरोग-विशेषज्ञों की भी भारी कमी है, और उनके स्थान पर झाड़-फूँक और गंडा-ताबीज का बोलबाला है।
अपने मौजूदा हालात से सामंजस्य न बिठा पाने की स्थिति को मानसिक तनाव कहा जाता है, इस परिभाषा की रोशनी में देखें तो हमारे आसपास कोई भी ऐसा नहीं है जो आज की बदलती हुई सामाजिक-पारिवारिक-नैतिक और आर्थिक परिस्थितियों के चलते तनाव से पूरी तरह मुक्त हो। तनाव की शुरुआती अवस्थाओं से लेकर सिज़ोफ्रेनिया और पागलपन तक मनोविकारों की एक लम्बी शृंखला होती है। इसलिए यह जरूरी है कि इस समस्या को गंभीरता से लिया जाए और तनाव कम करने की आध्यात्मिक विधियाँ बेचनेवाले गुरुओं और बाबाओं की शरण में जाने के बजाय इसे वैज्ञानिक ढंग से देखा-समझा जाए।
तार्किक जीवन-पद्धति के जुझारू पैरोकार नरेंद्र दाभोलकर की यह पुस्तक इसी विषय पर केन्द्रित है। इस पुस्तक का लेखन उन्होंने मनोविकार विशेषज्ञ हमीद दाभोलकर के साथ संयुक्त रूप से किया है। इस तरह एक तरफ़ जहाँ हम इसमें मानसिक विकारों की संरचना का वैज्ञानिक परिचय पाते हैं, वहीं भारतीय समाज में मनोरोगों को लेकर जो धार्मिक-सामाजिक और आध्यात्मिक अन्धविश्वास व्याप्त हैं, उनकी विसंगतियों को भी समझ पाते हैं। साथ ही मनोविकारों और उनके उपचार, मन के व्यवहार, बच्चों और स्त्रियों के मनोविकार तथा व्यसनों से जुड़े मानसिक दोषों को भी तर्कसंगत रूप में यहाँ विश्लेषित किया गया है?
Ek Safar Hamsafar Ke Sath…
- Author Name:
Arjun Ram Meghwal +1
- Book Type:

- Description: "भारतीय दर्शन के अनुसार वैवाहिक संस्कार सोलह संस्कारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । इस संस्कार के द्वारा जब दापत्य जीवन की शुरुआत होती है और किसी पुरुष को पत्नी के रूप में हमसफर का साथ मिलता है तो जीवन के अहम पड़ावों में हमसफर की प्रकृति और उसके स्वभाव के कारण पुरुष सफलता के शिखर पर पहुँचता है । जब वह पीछे मुड़कर अपने जीवन को देखता है तो यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता में उसकी पत्नी का हर मोड़ पर सबसे बड़ा योगदान होता है। मैं भी मेरे जीवन में बाल्यकाल व किशोरावस्था से निकलकर वैवाहिक जीवन की जटिलताओं को समझता हुआ, गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव को देखता हुआ आगे बढ़ा तो मैंने पाया कि मेरे जीवन की सफलता में यदि सबसे बड़ा योगदान किसी का है तो वह है मेरी धर्मपत्नी पानादेवी का। रेते के धोरों (टीलों ) से निकलकर, जीवन के उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए सफलता की इस यात्रा को मैं मेरी धर्मपत्नी पानादेवी के समर्पण के बिना पूरी नहीं कर सकता था। यह पुस्तक ' एक सफर हमसफर के साथ' समर्पित है मेरी अर्धांगिनी को ।
Vedanta Va Jeevan Prabandhan
- Author Name:
Dr. Vikrant Singh Tomar
- Book Type:

- Description: ऋषियों की भूमि भारत, जहाँ वेद और उपनिषदों का प्रादुर्भाव हुआ। ऐसे शास्त्र, जिन्होंने न केवल मनुष्य को उसके जीवन के मुख्य उद्देश्य के बारे में अवगत कराया, बल्कि उसके साथ ही उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मार्ग भी बताया और प्रशस्त किया। वेदांत मनुष्य के जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य ‘स्वाआत्मानुभूति’ का राजमार्ग है। इस पुस्तक के प्रारंभिक तीन अध्यायों में वेदांत का प्रारंभिक परिचय कराने का प्रयास किया गया है और अंतिम तीन अध्यायों में जीवन प्रबंधन के वैदिक मॉडल पर चर्चा की गई है। इस पुस्तक के प्रथम अध्याय ‘वेदांत की रूपरेखा’ में वेदांत के सृजन का कारण और उसके उद्देश्यों को उल्लेखित किया गया है। दूसरे अध्याय ‘चार पुरुषार्थ’ में मनुष्य के जीवन के चार प्रमुख लक्ष्यों का उल्लेख है। तीसरे अध्याय ‘शास्त्र में भारतीय दर्शन’ में विभिन्न शास्त्रों का संक्षेप में वर्णन है, जो उन लक्ष्यों को प्राप्त करने का मार्ग सुझाते हैं। चौथे अध्याय ‘वर्ण व्यवस्था’ में उस मार्ग पर चलने की व्यक्तिगत तैयारी का मार्गदर्शन है। पाँचवाँ अध्याय ‘आश्रम व्यवस्था’ उन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु वृहद् सामाजिक संरचना प्रस्तुत करता है। छठे अध्याय ‘सोलह संस्कार’ में मील के वे पत्थर हैं, जो हमें बताते हैं कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।
Manav Aur Sanskriti
- Author Name:
Shyamacharan Dube
- Book Type:

-
Description:
मानवीय अध्ययनों में ‘नृतत्त्व’ अथवा ‘मानवशास्त्र’ का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस विषय का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ है और अब तो यह अनेक स्वयंपूर्ण उपभागों में विभाजित होता जा रहा है। प्रस्तुत पुस्तक नृतत्त्व की उस शाखा की परिचयात्मक रूपरेखा है जो मानवीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करती है।
मानव और संस्कृति में विद्वान लेखक ने सांस्कृतिक नृतत्त्व के सर्वमान्य तथ्यों को भारतीय पृष्ठभूमि में प्रस्तुत करने का यत्न किया है। इस सीमित उद्देश्य के कारण, जहाँ तक हो सका है, समकालीन सैद्धान्तिक वाद-विवादों के प्रति तटस्थता का दृष्टिकोण अपनाया गया है।
हिन्दी के माध्यम से आधुनिक वैज्ञानिक विषयों पर लिखने में अनेक कठिनाइयाँ हैं। प्रामाणिक पारिभाषिक शब्दावली का अभाव उनमें सबसे अधिक उल्लेखनीय है। इस पुस्तक में प्रचलित हिन्दी शब्दों के साथ अन्तरराष्ट्रीय शब्दावली का उपयोग स्वतंत्रतापूर्वक किया गया है।
‘मानव और संस्कृति में’ सात खंडों में विषय के उद्घाटन के बाद मानव का प्रकृति, समाज, अदृश्य जगत, कला और संस्कृति से सम्बन्ध दर्शाया गया है। अन्त में भारत के आदिवासियों के समाज-संगठन पर प्रकाश डाला गया है और उसकी समस्याओं पर विचार किया गया है।
पुस्तक अद्यतन जानकारी से पूर्ण है और लेखक ने अब तक की खोजों के आधार पर जो कुछ लिखा है, वह साधिकार लिखा है।
Yadon Se Rachi Yatra : Vikalp Ki Talash
- Author Name:
Puran Chandra Joshi
- Book Type:

-
Description:
‘यादों से रची यात्रा’ विश्व में समाजवाद की प्रथम प्रयोग–भूमि रूस का यात्रा–वृत्तान्त है और विश्व के प्रथम समाजवाद के विकास और बाद में विघटन का समाजशास्त्र भी। लेकिन इस यात्रा का महत्त्व रूस तक ही सीमित नहीं है। बीसवीं सदी में रूस के समाजवादी प्रयोग का आकर्षण और प्रभाव विश्वव्यापी था। पश्चिम के संकटग्रस्त पूँजीवादी देशों के लिए रूसी समाजवाद एक सार्थक विकल्प प्रस्तुत कर एक गम्भीर चुनौती बन गया और इस कारण आत्मपरीक्षण और किसी हद तक सुधारों का प्रेरक भी। साथ ही रूस औपनिवेशिक दासता से ग्रस्त एशियाई तथा अन्य देशों के लिए अपनी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुकूल गैर–पूँजीवादी विकल्पों की तलाश के लिए एक विश्वसनीय प्रेरणास्रोत भी बना। इस प्रकार पश्चिम और पूर्व दोनों के प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों के लिए रूस यात्रा एक सर्जनात्मक चिन्तन यात्रा बन गई।
लेखक द्वारा अतीत का यह पुनरवलोकन जितना मौलिक है, उतना ही समसामयिक महत्त्व का भी है। यह वर्तमान सन्दर्भ में विश्वास के गहरे संकट के मूल कारणों के प्रश्न को हाशिये से केन्द्र में लाकर वैचारिक यात्रा को सकारात्मक दिशा देता है।
समाजशास्त्र के विकास में यात्रा–वृत्तान्तों की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बहुत कम विचार हुआ है। ‘यादों से रची यात्रा : विकल्प की तलाश’ पुस्तक ‘यात्रा’ को समाजशास्त्रीय निरीक्षण और विवेचन से जोड़कर एक नया अर्थ देती है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...