Pakistani Aurat : Ajmayish Ki Aadhi Sadi
Author:
Zaheda HinaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 80
₹
100
Available
प्रस्तुत पुस्तक में जाहेदा हिना ने पाकिस्तान में औरतों की दशा-दिशा का प्रामाणिक विवरण दिया है। हमारे एशियाई मुल्कों में रंग-भेद, नस्ल-भेद आदि की समस्याओं पर जिस तरह मिलकर सोचने की प्रक्रिया शुरू हुई, उसके परिणामस्वरूप बहुत परिवर्तन आया है। लेकिन औरत की ज़िन्दगी के प्रति जो दृष्टि रही है, उसमें अपेक्षाकृत अभी वांछित परिवर्तन ने गति नहीं पकड़ी है। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, दोनों मुल्कों की स्त्रियों को यदि समान रूप से चेतनावान बनाया जाए तो यह भी दोनों मुल्कों को नज़दीक लाने की एक सार्थक कोशिश साबित हो सकती है। इसलिए डॉ. ताहिरा परवीन ने जाहेदा हिना की किताब का हिन्दी में यह जो अनुवाद किया है, उससे हमारा हिन्दी समाज यह जान सकेगा कि औरतों के प्रति नज़रिए के मामले में दोनों देशों की दशा एक-सी है। यह किताब हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की औरतों को मिलकर अपने आज़ाद वजूद के प्रति जागरूक बनाने के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी।
ISBN: 9789388211918
Pages: 72
Avg Reading Time: 2 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Ramuva-Kaluva-Budhiya Aur Rashtrawad
- Author Name:
Ram Milan
- Book Type:

-
Description:
‘रमुआ-कलुआ-बुधिया और राष्ट्रवाद’ पुस्तक एक गम्भीर विषय है। रमुआ-कलुआ-बुधिया दरअसल सिर्फ़ नाम न होकर आम-जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें कभी जाति के नाम पर कभी धर्म के नाम पर तो कभी राष्ट्रवाद के नाम पर छला जाता है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में आज जब भुखमरी, बेरोज़गारी एवं आर्थिक विफलता जैसे गम्भीर मुख्य मुद्दों को छद्म राष्ट्रवाद के सहारे कुचल देने का प्रायोजित षड्यंत्र चल रहा हो तो यह पुस्तक राष्ट्रवाद के विमर्श में आम जनमानस की आकांक्षाओ का प्रतिनिधित्व करती दिखाई पड़ती है।
देश में अफ़ीमचियों से भी अधिक ख़तरनाक छद्म राष्ट्रवादी आज गली-नुक्कड़ और चौराहों पर आसानी से देखे जा सकते हैं, या टेलीविज़न चैनलों और अख़बार के पन्नों पर तो इनकी भरमार है।
राष्ट्रवाद का आधार तर्क और वैचारिकता ही है। मनुष्य और पशु में मात्र ‘विचारों’ का अन्तर होता है। आज के परिवेश में जहाँ एक तरफ़ ‘विचारों’ की हत्या की जा रही हो तो ऐसी पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
राष्ट्रवाद की परिकल्पना जाति, धर्म, मज़हब, सम्प्रदाय, लिंग, भाषा, संस्कृति, क्षेत्र, उपनिवेश, राजनीति जैसे संकीर्ण दायरों को तोड़ते हुए सार्वभौमिक राष्ट्रवाद के सन्निकट दिखाई पड़ती है जिसके केन्द्र में निश्चित तौर पर रमुआ-कलुआ-बुधिया अर्थात् आम-जनमानस ही हैं।
सामाजिक विमर्श में रुचि रखनेवाले अध्येताओं, छात्रों एवं विद्वानों के लिए यह पुस्तक उपयोगी हो सकेगी।
सुबचन राम
प्रधान आयकर आयुक्त
भारत सरकार
Sochiye To Sahi
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
साने गुरुजी द्वारा ‘साधना’ पत्रिका की शुरुआत 15 अगस्त, 1948 को की गई थी। इसी पत्रिका की स्वर्ण जयंती (1 मई,1998) पर डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और जयदेव डोले को इसके संपादक पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। छह महीने बाद जयदेव डोले ने संपादक पद छोड़ दिया। इसके बाद 15 साल (20 अगस्त, 2013 तक) डॉ. दाभोलकर ने संपादक पद की जिम्मेदारी बखूबी निभाई। लगभग डेढ़ दशक के इस काल में उन्होंने दो सौ से ज्यादा संपादकीय लेख लिखे। उन्हीं लेखों में से चुनिंदा 60 लेखों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है जो मराठी में ‘समता संगर’ नाम से छपी थी।
जिस समय डॉ. दाभोलकर ‘साधना’ के संपादक बने, उस समय उनकी पहचान राज्य स्तर पर ‘अंधविश्वास निर्मूलन समिति’ के आंदोलन के प्रवर्तक के रूप में थी। समूचा महाराष्ट्र उनसे परिचित था। अंधविश्वास उन्मूलन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और जातिवाद आदि विषयों पर उनका यह लेखन अत्यंत प्रभावशाली रहा। इन विषयों पर लिखी उनकी किताबें भी बड़ी लोकप्रिय हुई थीं। यहाँ संकलित उनके ये संपादकीय स्पष्ट कथन, सीधे सवाल-जवाब और अपने व्यंग्य के लिए बहुत सराहे जाते हैं। लेकिन उनके अन्य लेखन की तरह इन आलेखों में भी जोर सामाजिक परिवर्तन पर ही है।
Dalit Rajneeti Aur Hindu Dharma
- Author Name:
Dr. Rani Shankar +1
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक भारतरत्न बाबा साहेब आंबेडकर के कथन की पुष्टि करती है कि वंशानुगत आधार पर दलित व सवर्ण में कोई अंतर नहीं है एवं तार्किक व्याख्या करते हुए सिद्ध करती है कि शासकों ने जातिगत आधार पर हिंदू धर्म को विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने उच्चजाति में श्रेष्ठता का झूठा दंभ भरने की कोशिश की कि वे तो उन्हीं की भाँति भारतीय मूल के लोगों पर शासन करने के लिए यूरोप से आए और निचली जाति में यह हीन भावना भर दी कि वे न केवल गोरे शासकों से, बल्कि उच्चजाति के लोगों से भी हीन हैं। इस प्रकार उन्होंने शासक वर्ग के रूप में अपने और बहुसंख्यक आबादी के बीच एक और श्रेणी बनाने की चेष्टा की, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। यही कारण है कि दलित नेता भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद नहीं किए जाते हैं। राजनीतिक मजबूरियों के कारण सरकारें देश में विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के गरीबों एवं दलितों की दशा में सुधार का दिखावा करने के लिए सैकड़ों आयोगों का गठन और उनकी रिपोर्टों पर कार्य करती रहेंगी, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं मिलने वाले। समस्या कहीं और है, समस्या भ्रष्टाचार है और यदि इसकी रोकथाम न की गई तो सभी प्रयास बेकार हैं। इस पुस्तक का उद्देसिये दलित वर्ग को सैकड़ों वर्षों तक अपमानित एवं शोषित रखने के कारणों की तर्कसंगत समीक्षा करना है। राजनीति से प्रेरित कारण सच्चाई से कितनी दूर हैं, यह बात पाठक इस पुस्तक से जान सकेंगे।
Clymet Change
- Author Name:
Sharad Singh
- Book Type:

- Description: This book has no description
Bharatvarsh Mein Jatibhed
- Author Name:
Kshitimohan Sen Shastri
- Book Type:

-
Description:
भारतवर्ष में सबसे ऊँची जाति ब्राह्मण है। ब्राह्मणों में ऊँच-नीच के असंख्य भेद हैं। प्रदेश-गत भेद भी गिनकर ख़तम नहीं किए जा सकते। इसलिए यह कहना असम्भव है कि ब्राह्मणों की कौन श्रेणी सबसे ऊँची है। दक्षिण भारत में स्पर्श-विचार और भी प्रबल है। वहाँ जिनके स्पर्श से ब्राह्मण लोग अपवित्र नहीं होते और जिनका जल ग्रहणीय होता है, वे ही अच्छी जातियाँ हैं। नीच जाति का छुआ जल ग्रहण करने योग्य नहीं होता। जिनके छूने से मिट्टी के बर्तन भी अपवित्र हो जाते हैं, वे और भी नीच हैं। उनके भी नीचे वे हैं जिनके छूने से धातु के पात्र भी अपवित्र हो जाते हैं। इनके भी नीचे वे जातियाँ हैं, जो यदि मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश करें तो मन्दिर अपवित्र हो जाता है। कुछ ऐसी भी जातियाँ हैं जिनके किसी ग्राम या नगर में प्रवेश करने पर समूचा गाँव-का-गाँव अशुद्ध हो जाता है।
आजकल इस छूआछूत के विषय में नाना स्थानों में लोक-मत हिल चुका है। जो लोग सौभाग्यवश ऊँची जाति में उत्पन्न हुए हैं, वे प्राय: इतना विचार पसन्द नहीं करते, और जो लोग दुर्भाग्यवश तथाकथित नीची जातियों में जन्मे हैं, वे अब अपने को एकदम हीन और पतित मानने को तैयार नहीं है, किन्तु नीची जातियों में अपने से नीच जातियों को दबाकर रखने का प्रयास प्राय: ही दिखाई दे जाता है।
स्वामी दयानन्द का कहना है कि ‘‘भारतवर्ष में असंख्य जातिभेद के स्थान पर केवल चार वर्ण रहें। ये चार वर्ण भी गुण-कर्म के द्वारा निश्चित हों, जनम से नहीं। वेद के अधिकार से कोई भी वर्ण वंचित न हो।’’
महात्मा गाँधी अस्पृश्यता के विरोधी हैं, किन्तु वर्णाश्रम व्यवस्था के विरोधी नहीं हैं। वर्णाश्रम मनुष्य के स्वभाव में निहित है, हिन्दू-धर्म ने उसे ही वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित किया है। जन्म से वर्ण निर्णीत होता है, इच्छा करके कोई इसे बदल नहीं सकता।
Choori Bazar Mein Ladki
- Author Name:
Krishna Kumar
- Book Type:

- Description: यह पुस्तक लड़कियों के मानस पर डाली जानेवाली सामाजिक छाप की जाँच करती है। वैसे तो छोटी लड़की को बच्ची कहने का चलन है, पर उसके दैनंदिन जीवन की छानबीन ही यह बता सकती है कि लड़कियों के सन्दर्भ में 'बचपन' शब्द की व्यंजनाएँ क्या हैं। कृष्ण कुमार ने इन व्यंजनाओं की टोह लेने के लिए दो परिधियाँ चुनी हैं। पहली परिधि है घर के सन्दर्भ में परिवार और बिरादरी द्वारा किए जानेवाले समाजीकरण की। इस परिधि की जाँच संस्कृति के उन कठोर और पैने औज़ारों पर केन्द्रित है जिनके इस्तेमाल से लड़की को समाज द्वारा स्वीकृत औरत के साँचे में ढाला जाता है। दूसरी परिधि है शिक्षा की जहाँ स्कूल और राज्य अपने सीमित दृष्टिकोण और संकोची इरादे के भीतर रहकर लड़की को एक शिक्षित नागरिक बनाते हैं। लड़कियों का संघर्ष इन दो परिधियों के भीतर और इनके बीच बची जगहों पर बचपन भर जारी रहता है। यह पुस्तक इसी संघर्ष की वैचारिक चित्रमाला है।
Sadharan Log, Asadharan Shikshak :Bharat Ke Asal Nayak
- Author Name:
S. Giridhar
- Book Type:

- Description: सरकारी स्कूल असल मायने में ‘पब्लिक स्कूल’ हैं। ये हर व्यक्ति के और हर जगह काम आते हैं—इसमें सबसे पिछड़े इलाक़ों के सबसे ज़्यादा वंचित लोग भी शामिल हैं। पिछले लगभग दो दशकों से एस. गिरिधर अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के साथ अपने काम के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में भ्रमण करते हुए सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को क़रीब से देखते रहे हैं। इन वर्षों में वे ऐसे सैकड़ों सरकारी स्कूल शिक्षकों से मिले हैं जो अपनी देखरेख में आने वाले बच्चों की ज़िन्दगियों को बेहतर बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध रहे हैं। ये वे शिक्षक हैं जो हर सीमा को लाँघने का साहस रखते हैं क्योंकि इनका मानना है कि हर बच्चा सीख सकता है।
Bharat Ke Madhya Varg Ki Ajeeb Dastan
- Author Name:
Pawan Kumar Verma
- Book Type:

-
Description:
भारत 1991 में जैसे ही आर्थिक सुधारों और भूमंडलीकरण की डगर पर चला, वैसे ही इस देश के मध्यवर्ग को एक नया महत्त्व प्राप्त हो गया। नई अर्थनीति के नियोजकों ने मध्यवर्ग को ‘शहरी भारत’ के रूप में देखा जो उनके लिए विश्व के सबसे बड़े बाज़ारों में से एक था। एक सर्वेक्षण ने घोषित कर दिया कि यह ‘शहरी भारत अपने आप में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े देश के बराबर है।’ लेकिन, भारतीय मध्यवर्ग कोई रातोंरात बन जानेवाली सामाजिक संरचना नहीं थी। उपभोक्तावादी परभक्षी के रूप में इसकी खोज किए जाने से कहीं पहले इस वर्ग का एक अतीत और एक इतिहास भी था। भारत के मध्यवर्ग की अजीब दास्ताँ में पवन कुमार वर्मा ने इसी प्रस्थान बिन्दु से बीसवीं शताब्दी में मध्यवर्ग के उद्भव और विकास की विस्तृत जाँच-पड़ताल की है। उन्होंने आज़ादी के बाद के पचास वर्षों को ख़ास तौर से अपनी विवेचना का केन्द्र बनाया है। वे आर्थिक उदारीकरण से उपजे समृद्धि के आशावाद को इस वर्ग की मानसिकता और प्रवृत्तियों की रोशनी में देखते हैं। उन्होंने रातोंरात अमीर बन जाने की मध्यवर्गीय स्वैर कल्पना को नितान्त ग़रीबी में जीवन-यापन कर रहे असंख्य भारतवासियों के निर्मम यथार्थ की कसौटी पर भी कसा है।
मध्यवर्ग की यह अजीब दास्ताँ आज़ादी के बाद हुए घटनाक्रम का गहराई से जायज़ा लेती है। भारत-चीन युद्ध और नेहरू की मृत्यु से लेकर आपातकाल व मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने की घोषणा तक इस दास्ताँ में मध्यवर्ग एक ऐसे ख़ुदग़र्ज़ तबक़े के रूप में उभरता है जिसने बार-बार न्यायपूर्ण समाज बनने के अपने ही घोषित लक्ष्यों के साथ ग़द्दारी की है। लोकतंत्र और चुनाव-प्रक्रिया के प्रति मध्यवर्ग की प्रतिबद्धता दिनोंदिन कमज़ोर होती जा रही है। मध्यवर्ग ऐसी किसी गतिविधि या सच्चाई से कोई वास्ता नहीं रखना चाहता जिसका उसकी आर्थिक ख़ुशहाली से सीधा वास्ता न हो। आर्थिक उदारीकरण ने उसके इस रवैये को और भी बढ़ावा दिया है।
पुस्तक के आख़िरी अध्याय में पवन कुमार वर्मा ने बड़ी शिद्दत के साथ दलील दी है कि कामयाब लोगों द्वारा समाज से अपने-आपको काट लेने की यह परियोजना भारत जैसे देश के लिए ख़तरनाक ही नहीं, बल्कि यथार्थ से परे भी है। अगर भारत के मध्यवर्ग ने दरिद्र भारत की ज़रूरतों के प्रति अपनी संवेदनहीनता ज़ारी रखी तो इससे वह भरी राजनीतिक उथल-पुथल की आफ़त को ही आमंत्रित करेगा। किसी भी राजनीतिक अस्थिरता का सीधा नुकसान मध्यवर्ग द्वारा पाली गई समृद्धि की महत्त्वाकांक्षाओं को ही झेलना होगा।
Andhavishwas Unmoolan : Vol. 3 : Siddhant
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।
'अंधविश्वास उन्मूलन : सिद्धांत' पुस्तक में गहन विचार-मंथन है। ईश्वर, धर्म, अध्यात्म, धर्मनिपेक्षता जैसे विषयों पर समाज-सुधारकों और विवेकवादी चिन्तकों ने समय-समय पर जो विचार व्यक्त किए, उनके मतभेदों को आन्दोलन के अनुभवों के आधार पर और व्यक्तिगत चिन्तन द्वारा परिभाषित किया गया है। ईश्वर के अस्तित्व पर विचार करते हुए लेखक का मुख्य उद्देश्य है कि—'व्यक्ति को विवेकशील बनाकर ही विवेकवादी समाज-निर्माण का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।'
अंधविश्वास के तिमिर से विवेक और विज्ञान के तेज की ओर ले जानेवाली यह पुस्तक परम्परा का तिमिर-भेद भी है और विज्ञान का लक्ष्य भी।
Reetikaleen Bharatiya Samaj
- Author Name:
Shashiprabha Prasad
- Book Type:

-
Description:
वीरकाव्य–प्रणेताओं को चरित कवि कहा गया है। क्योंकि उनके काव्य का उद्देश्य अपने चरितनायक के जीवन के विभिन्न पक्षों का यशोगान ही है।
सामान्यत: ‘रीतियुग के कवि’ से तात्पर्य रीतिमुक्त एवं रीतिभुक्त कवियों से है, क्योंकि साहित्य की दृष्टि से उन्हें ही आलोच्यकाल का प्रतिनिधि कवि माना गया है।
कवि भावलोक का प्राणी होता है। युग–जीवन उसके सृजन में प्रतिबिम्बित अवश्य होता है, किन्तु उसके चित्र को सम्यक् एवं पूर्णरूप से देखने के लिए काव्येतर स्रोतों से विवेच्य काल की सामाजिक परिस्थितियों का ज्ञान अपेक्षित है। इस दृष्टिकोण से पहले अध्याय में काव्येतर स्रोतों से तत्कालीन समाज की प्रतिमा निर्मित करने का प्रयास किया गया है। दूसरे अध्याय से काव्य–स्रोतों के आधार पर तत्कालीन समाज का अध्ययन आरम्भ होता है जिसमें समाज की सामान्य रचना को लिया गया है। इसमें समाज के भौतिक एवं धार्मिक विभाग, हिन्दुओं की वर्णाश्रम व्यवस्थाएँ और पारिवारिक रचना अन्तर्भुक्त हैं। तीसरे अध्याय में तत्कालीन समाज के राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन को देखने का प्रयत्न किया गया है। चौथे अध्याय में रहन–सहन के अन्तर्गत मानव जीवन की मूल आवश्यकताएँ, असन–वसन–आवास, और मनुष्य के सहज सौन्दर्यबोध से परिचालित शृंगार–प्रसाधन और अलंकरण के उपविभाग हैं। पाँचवें अध्याय में लोकजीवन के उल्लास एवं आह्लाद को वाणी देनेवाले संस्कार–पर्वादि का विवेचन किया गया है। छठे अध्याय में रीतिकालीन काव्य में चित्रित समाज के नारी–सम्बन्धी दृष्टिकोण की विवेचना की गई है। सातवें अध्याय में आलोच्यकाल के उन विश्वासों एवं प्रत्ययों का अध्ययन किया गया है जो हिन्दू जाति को एक अलग व्यक्तित्व और विवेच्य युग को अलग सत्ता प्रदान करते हैं। इसे जीवन–दृष्टि के नाम से अभिहित किया गया है, जिसके अन्तर्गत सम्बन्धित युग की विभिन्न प्रवृत्तियों, धर्म एवं धर्माभास, विश्वासों एवं अज्ञात आधारवाले विश्वासों, कर्मफलवाद, भाग्यवाद व पुनर्जन्म एवं सांस्कृतिक समन्वय आदि हैं।
सात अध्यायों में विभाजित शशिप्रभा प्रसाद की महत्त्वपूर्ण आलोच्य कृति है ‘रीतिकालीन भारतीय समाज’। अध्येताओं, शोध–छात्रों एवं पुस्तकालयों के लिए अत्यन्त उपयोगी पुस्तक।
Andhavishwas Unmoolan : Vol. 1 : Vichar
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

-
Description:
अंधविश्वास उन्मूलन और डॉ. नरेंद्र दाभोलकर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। निरन्तर 25 वर्षों की मेहनत का फल है यह। अंधविश्वास उन्मूलन का कार्य महाराष्ट्र में विचार, उच्चार, आचार, संघर्ष, सिद्धान्त जैसे पंचसूत्र से होता आ रहा है। भारतवर्ष में ऐसा कार्य कम ही नज़र आता है।
'अंधविश्वास उन्मूलन : विचार' पुस्तक में अंधविश्वास उन्मूलन से सम्बन्धित बुनियादी बातों का ज़िक्र है। इसमें 'वैज्ञानिक दृष्टिकोण', 'विज्ञान की कसौटी पर फलित ज्योतिष', 'वास्तुशास्त्र नहीं वास्तुश्रद्धाशास्त्र', 'छद्म विज्ञान अर्थात् स्यूडो साइंस', 'मनोविकार', 'भूतप्रेत बाधा या भूतावेश', 'सम्मोहन', 'देवी सवारना' जैसे विषयों पर विचार और विवेचन किया गया है जिससे यथार्थ और भ्रम का सदियों पुराना अन्तर स्पष्ट होता है।
लेखक के आत्मप्रत्यय और चेतना की नींव पर खड़ी यह पुस्तक अंधविश्वास के तिमिर से विवेक और विज्ञान के तेज की ओर ले जानेवाली परम्परा का तिमिर-भेद भी है और विज्ञान का लक्ष्य भी।
Goongi Rulaai Ka Chorus
- Author Name:
Ranendra
- Book Type:

- Description: भारतीय जन-जीवन का एक लम्बा दौर ऐसा भी रहा जिसमें हिन्दू और मुस्लिम धर्मों के अति-साधारण लोग बिना किसी वैचारिक आग्रह या सचेत प्रयास के, जीवन की सहज धारा में रहते-बहते एक साझा सांस्कृतिक इकाई के रूप में विकसित हो रहे थे। एक साझा समाज का निर्माण कर रहे थे, जो अगर विभाजन-प्रेमी ताकतें बीच में न खड़ीं होतीं तो एक विशिष्ट समाज-रचना के रूप में विश्व के सामने आता। हमारे गाँवों, कस्बों और छोटे शहरों में आज भी इसके अवशेष मिल जाते हैं। परम्परा का एक बड़ा हिस्सा तो उसके ऐतिहासिक प्रमाण के रूप में हमारे पास है ही। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी उसी विरासत का हिस्सा है जो इस उपन्यास के केंद्र में है। खिलजी शासनकाल में देवगिरी के महान गायक गोपाल नायक और अमीर खुसरो के मेल से जिस संगीत की धारा प्रवाहित हुई, अकबर, मुहम्मद शाह रंगीले और वाजिद अली शाह के दरबारों से बहती हुई वह संगीत के अलग-अलग घरानों तक पहुँची। मैहर के बड़ो बाबा अलाउद्दीन खान की तरह इस उपन्यास के बड़ो नानू उस्ताद मह्ताबुद्दीन खान के यहाँ भी संगीत ही इबादत है। इसीलिए उत्तर प्रदेश के खुर्शीद जोगी और बंगाल के बाउल परम्परा के कमोल उनके घर से दामाद के रूप में जुड़े। लेकिन इक्कीसवीं सदी के भारत में विभाजन-प्रेम एक नशे के तौर पर उभर कर आता है। गुजरात में सदी के शुरू में जो हुआ वह अब यहाँ की सामाजिक-सांस्कृतिक मुख्यधारा का सबसे तेज़ रंग है। इस जहरीले परिवेश में नानू अयूब खान, अब्बू खुर्शीद जोगी, बाबा मदन बाउल और अंत में कमोल कबीर एक-एक कर खत्म कर दिए जाते हैं। बच जाती है एक रुलाई जो खुलकर फूट भी नहीं पाती। हलक तक आकर रह जाती है। यह उपन्यास इसी रुलाई का कोरस है। विभाजन को अपना पवित्रतम ध्येय मानने वाली वर्चस्वशाली विचारधारा के खोखलेपन और उसकी रक्त-रंजित आक्रामकता को रेखांकित करते हुए यह उपन्यास भारतीय संस्कृति के समावेशी चरित्र को हिन्दुस्तानी संगीत की लय-ताल के साथ पुनः स्थापित करने का प्रयास करता है।
Andhvishwas : Prshnchihn Aur Purnviram
- Author Name:
Parsharam Rao Arde +1
- Book Type:

- Description: चमत्कारी कहलानेवाले बाबा क्या सच में चमत्कार करते हैं? आखिर क्या कारण है कि विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के इतने प्रसार के बाद भी समाज में अंधविश्वासों की जगह बची हुई है? क्यों लोग आज भी अपने दु:खों का, अपनी बीमारियों का इलाज ढूँढ़ने गुरुओं-साधुओं की शरण में जाते हैं? वशीकरण और सम्मोहन क्या वास्तव में होते हैं? कुछ लोग भूतों को देखने तक का दावा करते हैं, इसका आधार क्या है? देवी-देवता या भूतों का संचार ज्यादातर स्त्रियों में ही होता है, ऐसा क्यों? पुनर्जन्म की सच्चाई क्या है? मृतात्मा का आह्वान क्या बला है? और ज्योतिष जिस पर तर्कपरायण लोग भी विश्वास करते पाए जाते हैं, वह क्या है? ‘अंधविश्वास उन्मूलन आन्दोलन’ के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर की यह किताब इन सभी सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर देती है। प्रश्नोत्तर शैली में तैयार इस पुस्तक में उन प्रश्नों को संकलित किया गया है, जो साधारण लोगों ने अलग-अलग संवाद शिविरों और व्याख्यान-सत्रों के दौरान प्रस्तुत किए। उन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में यह पुस्तक तैयार हुई इसमें हमें अंधविश्वासों के कारण और निवारण, दोनों प्राप्त होते हैं।
Mahabharatkalin Samaj
- Author Name:
Sukhmay Bhattacharya
- Book Type:

-
Description:
मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि श्रीमती पुष्पा जैन ने ‘महाभारतकालीन समाज’ का सुन्दर हिन्दी अनुवाद किया है। इस पुस्तक के लेखक श्री सुखमय जी भट्टाचार्य मेरे बहुत निकट के मित्र हैं। मैने स्वयं देखा है कि उन्होंने कितने परिश्रम से इस ग्रन्थ की रचना की थी, कितनी बार उन्हें ‘महाभारत’ का पारायण करना पड़ा है, कितनी बार उन्हें एक वक्तव्य का दूसरे वक्तव्य से संगति मिलान के लिए माथापच्ची करनी पड़ी है, यह सब मेरे सामने ही हुआ है। वे बड़े धीर स्वभाव के गम्भीर विद्वान हैं। जब तक किसी समस्या का समाधान तर्कसंगत और सन्तोषजनक ढंग से नहीं हो जाता, तब तक उन्हें चैन नहीं मिलता। बड़े धैर्य, अध्यवसाय और उत्साह के साथ उन्होंने इस कठिन कार्य को सम्पन्न किया है। कार्य सचमुच कठिन था।
‘महाभारत’ भारतीय चिन्तन का विशाल विश्वकोश है। पंडितों में यह भी जल्पना-कल्पना चलती रहती है कि इसका कौन-सा अंश पुराना है, कौन-सा अपेक्षाकृत नवीन। कई प्रकार की समाज व्यवस्था का पाया जाना विभिन्न कालों में लिखे गए अंशों के कारण भी हो सकता है। फिर इस ग्रन्थ में अनेक श्रेणी के लोगों के आचार-विचार की चर्चा है। सब प्रकार की बातों की संगति बैठना काफ़ी कठिन हो जाता है। पं. सुखमय भट्टाचार्य जी ने समस्त विचारों और व्यवहारों का निस्संग दृष्टि से संकलन किया है। पाठक को अपने निष्कर्ष पर पहुँचने की पूरी छूट है। फिर भी उन्होंने परिश्रमपूर्वक निकाले अपने निष्कर्षों से पाठक को वंचित भी नहीं रहने दिया, इसीलिए यह अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस ग्रन्थ का हिन्दी में अनुवाद करके श्रीमती पुष्पा जैन ने उत्तम कार्य किया है। इस अनुवाद के लिए वे सभी सहृदय पाठकों की बधाई की अधिकारिणी हैं।
—हजारीप्रसाद द्विवेदी
Hindi Rashtravad
- Author Name:
Alok Rai
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी राष्ट्रवाद भारत की भाषाई राजनीति की एक चिंताकुल और सघन पड़ताल है, और यह पड़ताल होती है हिन्दी भाषा के मौजूदा स्वरूप तक आने के इतिहास के विश्लेषण के साथ।
जन की भाषा बनने की हिन्दी की तमाम क्षमताओं को स्वीकारते हुए किताब का ज़ोर यह समझने पर है कि वह हिन्दी जो अपनी अनेक बोलियों और उर्दू के साथ मिलकर इतनी रचनात्मक, सम्प्रेषणीय, गतिशीला और जनप्रिय होती थी, कैसे उच्च वर्ण हिन्दू समाज और सरकारी ठस्सपन के चलते इतनी औपचारिक और बनावटी हो गई कि तक़रीबन स्पन्दनहीन दिखाई पड़ती है! विशाल हिन्दीभाषी समुदाय की सृजनात्मक कल्पनाओं की वाहक बनने के बजाय वह संकीर्णताओं से क्यों घिर गयी! हिन्दुत्व की सवर्ण राजनीति की इसमें क्या भूमिका रही है, और स्वयं हिन्दीवालों ने अपनी कूपमंडूकता से उसमें क्या सहयोग किया है!
आज जब राष्ट्रवादी आग्रहों के और भी संकुचित और आक्रामक रूप हमारे सामने हैं, जिनमें भाषा के शुद्धिकरण की माँग भी बीच-बीच में सुनाई पड़ती है, इस विमर्श को पढ़ना, और हिन्दी के इतिहास की इस व्याख्या से गुज़रना ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
मूलत: अंग्रेज़ी में लिखित और बड़े पैमाने पर चर्चित इस किताब का यह अनुवाद स्वयं लेखक ने किया है, इसलिए स्वभावत: यह सिर्फ़ अनुवाद नहीं, मूल की पुनर्रचना है।
साथ ही पुस्तक में प्रस्तावित विमर्श की अहमियत को रेखांकित करने और उसे आज के संदर्भों से जोड़ने के मक़सद से समकालीन हिन्दी विद्वानों के दो आलेख भी शामिल किए गए है और लेखक से दो साक्षात्कार भी हैं जो इसके पाठकीय मूल्य को द्विगुणित कर देते हैं।
Sapiens A Graphic History, Volume 1- Maanav Jaati ka Janm
- Author Name:
Yuval Noah Harari
- Book Type:

- Description: इस महागाथा का यह पहला खंड युवाल नोआ हरारी की अंतरराष्ट्रीय बेस्टसेलर पुस्तक पर आधारित और खूबसूरती से रेखांकित मानव जाति का चित्र इतिहास है। यह कहानी बताती है कि कैसे तुच्छ बन्दर पृथ्वी का शासक बन गया, जो आज परमाणु विखंडन, चाँद तक उड़ने और जीवन के गुणसूत्रों तक को बदलने की क्षमता रखता है। हरारी बतौर मार्गदर्शक, कुछ और किरदार जैसे आद्य ऐतिहासिक बिल, डॉ. फ्रिक्शन और जासूस लोपेज़ के साथ आप इतिहास के बीहड़ में भ्रमण के लिए आमंत्रित हैं। मनष्यु का उद्विकास एक रियलिटी टीवी शो की तरह कल्पित किया गया है। सेपियंस और नियंडरथल्स के मुठभेड़ को प्रसिद्ध आधुनिक कलाकृतियों के ज़रिए कहा गया है तथा मैमथ और घुमावदार दांतों वाले बाघों की विलुप्ति को जासूसी मूवी की तरह दिखाया गया है। सेपियंस: चित्र इतिहास एक विलक्षण रचना है— मनुष्यता की विलक्षण मजेदार कथा, हाज़िरजवाबी की तनक, हास्य और ऊर्जा से भरपूर ।
Vidhyarthiyon Ke Liye Gita
- Author Name:
Acharya Mayaram 'Patang'
- Book Type:

- Description: ‘गीता’ कालजयी ग्रंथ है। यह भक्ति के साथ-साथ कर्म की ओर प्रवृत्त करती है। अपने कर्तव्य-पथ से भटक रहे अर्जुन को श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान देकर ही कर्म-पथ पर प्रवृत्त किया। इसलिए हमारे जीवन में गीता का बहुत व्यावहारिक उपयोग है, महती योगदान है। विद्यार्थी काल में ही गीता का भाव समझ गए तो यह जीवन में पग-पग पर काम आएगा। जीने की कला आ जाएगी। आपत्तियों तथा कष्टकर परिस्थितियों में निराशा नहीं घेरेगी। अपने-पराए और मित्र-शत्रु के मोह से मुक्त होने का ज्ञान हो जाएगा। अधिकांश लोग सेवानिवृत्त होकर गीता पढ़ते हैं। जब सारा जीवन मोह, लोभ, काम, क्रोध और अहंकार की भेंट चढ़ गया, दुःख और संतापों का ताप सह लिया, तिल-तिल कर मरते रहे, फिर गीता पढ़ी तो क्या लाभ हुआ? पाप और पुण्य कर्मों का फल तो भोगना निश्चित ही हो गया! इस पुस्तक को विशेष रूप से छात्रों-विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गीता के हर अध्याय में जो महत्त्वपूर्ण श्लोक हैं, जिन्हें स्मरण किया जा सके, गाया जा सके, उन्हें संकलित किया गया है। स्पष्ट है कि यह संपूर्ण गीता नहीं है, बल्कि मात्र प्रेरणा है। इसे पढ़कर छात्र सन्मति पाएँ, नैतिक मूल्यों का पालन करते हुए सन्मार्ग पर चलकर जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचें, यही इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य है। विद्यार्थियों के चरित्र-निर्माण तथा कर्तव्य-पथ पर सतत चलने की प्रेरणा देनेवाली एक अनुपम पुस्तक।
Vivek Ki Aawaj: Andhvishwas Unmulan Par Dus Bhashan
- Author Name:
Narendra Dabholkar
- Book Type:

- Description: तर्कवाद और अन्धविश्वास के उन्मूलन के लिए आन्दोलन की शुरुआत अन्धविश्वास के उन्मूलन से हुई थी। हालाँकि यह आन्दोलन अन्धविश्वास के उन्मूलन से शास्त्रीय विचार, शास्त्रीय विचार से वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र से धर्मनिरपेक्षता, धर्मनिरपेक्षता से तर्कवाद और मानवतावाद की ओर बढ़ना चाहता है तो स्वाभाविक रूप से, ‘तर्कवाद’ का मूल्य अन्धविश्वास विरोधी आन्दोलन के व्यापक दर्शन का हिस्सा है। विवेकवाद का दर्शन क्या है? विवेकवाद सुखी जीवन का दर्शन है। लेकिन साथ ही यह खुशी भौतिक, बौद्धिक, भावनात्मक, नैतिक और रचनात्मक है। दूसरी ओर, यह खुशी पूरी मानव जाति, सभी जानवरों और प्रकृति के अनुकूल है। दूसरी ओर, जब यह सुख अस्तित्व में आता है, तो साध्य-साधन की शुचिता का पालन किया जाता है। अतः इतने सन्तुलित और व्यापक अर्थ में ‘विवेकवाद’ सुखी जीवन का दर्शन है।
Jal Thal Mal
- Author Name:
Sopan Joshi
- Book Type:

-
Description:
हर प्राणी प्रकृति के अपार रसों का एक संग्रह होता है। मिट्टी, पानी और हवा के उर्वरकों का एक गठबन्धन। फिर चाहे वह एक कोशिका वाला बैक्टीरिया हो या विराटाकार नीला व्हेल। जब किसी जीव की मृत्यु होती है, तब यह रचना टूट जाती है। सभी रस और उर्वरक अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं, फिर दूसरे जीवी को जन्म देते हैं।
हर प्राणी सभी रसों का उपयोग नहीं कर सकता। हर जीव जितना हिस्सा भोग सकता है उतना भोगता है, जो नहीं पुसाता उसे त्याग देता है। यही ‘कचरा’ या ‘अपशिष्ट’ दूसरे जीवों के लिए ‘संसाधन’ बन जाता है, किसी और के काम आता है। दूसरे जीवों से लेन-देन किए बिना कोई भी प्राणी जी नहीं सकता। हम भी नहीं। प्रकृति में कुछ भी कूड़ा-करकट नहीं होता। न कचरा, न मैला, न अपशिष्ट ही।
हमारा भोजन मिट्टी से आता है। प्रकृति का नियम है कि मिट्टी से निकले रस वापस मिट्टी में जाने चाहिए। जहाँ का माल है, वहीं लौटना चाहिए। हम जो भी खाते हैं, वह अगले दिन मल-मूत्र बन के हमारे शरीर से निकल जाता है। सहज रूप में उसका संस्कार मिट्टी में ही होना चाहिए। खाद्य पदार्थ की फिर से खाद बननी चाहिए।
किन्तु आधुनिक स्वच्छता व्यवस्था हमारे मल-मूत्र को पानी में डालने लगी है। इससे हमारे जल-स्रोत दूषित हो रहे हैं, मिट्टी बंजर हो रही है। हमारा मल-मूत्र भी चौगुना हुआ है। लेकिन उसे ठिकाने लगाने के तरीक़े चौगुने नहीं हुए हैं। हमारी स्वच्छता आज प्रकृति के साथ युद्ध बन चुकी है।
यह किताब जल-थल-मल के इस बिगड़ते रिश्ते को क़ुदरत की नज़र से देखती है। इसमें उन लोगों का भी वर्णन है जिनके लिए सफ़ाई प्रकृति को बिगाड़ने का नहीं, निखारने का तरीक़ा है। उनकी स्वच्छता में शुचिता है, सामाजिकता है। जल, थल और मल का सुगम संयोग है।
Ek Safar Hamsafar Ke Sath…
- Author Name:
Arjun Ram Meghwal +1
- Book Type:

- Description: "भारतीय दर्शन के अनुसार वैवाहिक संस्कार सोलह संस्कारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण होता है । इस संस्कार के द्वारा जब दापत्य जीवन की शुरुआत होती है और किसी पुरुष को पत्नी के रूप में हमसफर का साथ मिलता है तो जीवन के अहम पड़ावों में हमसफर की प्रकृति और उसके स्वभाव के कारण पुरुष सफलता के शिखर पर पहुँचता है । जब वह पीछे मुड़कर अपने जीवन को देखता है तो यह स्पष्ट है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता में उसकी पत्नी का हर मोड़ पर सबसे बड़ा योगदान होता है। मैं भी मेरे जीवन में बाल्यकाल व किशोरावस्था से निकलकर वैवाहिक जीवन की जटिलताओं को समझता हुआ, गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव को देखता हुआ आगे बढ़ा तो मैंने पाया कि मेरे जीवन की सफलता में यदि सबसे बड़ा योगदान किसी का है तो वह है मेरी धर्मपत्नी पानादेवी का। रेते के धोरों (टीलों ) से निकलकर, जीवन के उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए सफलता की इस यात्रा को मैं मेरी धर्मपत्नी पानादेवी के समर्पण के बिना पूरी नहीं कर सकता था। यह पुस्तक ' एक सफर हमसफर के साथ' समर्पित है मेरी अर्धांगिनी को ।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...