
Bharatvarsh Mein Jatibhed
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
176
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
352 mins
Book Description
भारतवर्ष में सबसे ऊँची जाति ब्राह्मण है। ब्राह्मणों में ऊँच-नीच के असंख्य भेद हैं। प्रदेश-गत भेद भी गिनकर ख़तम नहीं किए जा सकते। इसलिए यह कहना असम्भव है कि ब्राह्मणों की कौन श्रेणी सबसे ऊँची है। दक्षिण भारत में स्पर्श-विचार और भी प्रबल है। वहाँ जिनके स्पर्श से ब्राह्मण लोग अपवित्र नहीं होते और जिनका जल ग्रहणीय होता है, वे ही अच्छी जातियाँ हैं। नीच जाति का छुआ जल ग्रहण करने योग्य नहीं होता। जिनके छूने से मिट्टी के बर्तन भी अपवित्र हो जाते हैं, वे और भी नीच हैं। उनके भी नीचे वे हैं जिनके छूने से धातु के पात्र भी अपवित्र हो जाते हैं। इनके भी नीचे वे जातियाँ हैं, जो यदि मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश करें तो मन्दिर अपवित्र हो जाता है। कुछ ऐसी भी जातियाँ हैं जिनके किसी ग्राम या नगर में प्रवेश करने पर समूचा गाँव-का-गाँव अशुद्ध हो जाता है।</p> <p>आजकल इस छूआछूत के विषय में नाना स्थानों में लोक-मत हिल चुका है। जो लोग सौभाग्यवश ऊँची जाति में उत्पन्न हुए हैं, वे प्राय: इतना विचार पसन्द नहीं करते, और जो लोग दुर्भाग्यवश तथाकथित नीची जातियों में जन्मे हैं, वे अब अपने को एकदम हीन और पतित मानने को तैयार नहीं है, किन्तु नीची जातियों में अपने से नीच जातियों को दबाकर रखने का प्रयास प्राय: ही दिखाई दे जाता है।</p> <p>स्वामी दयानन्द का कहना है कि ‘‘भारतवर्ष में असंख्य जातिभेद के स्थान पर केवल चार वर्ण रहें। ये चार वर्ण भी गुण-कर्म के द्वारा निश्चित हों, जनम से नहीं। वेद के अधिकार से कोई भी वर्ण वंचित न हो।’’</p> <p>महात्मा गाँधी अस्पृश्यता के विरोधी हैं, किन्तु वर्णाश्रम व्यवस्था के विरोधी नहीं हैं। वर्णाश्रम मनुष्य के स्वभाव में निहित है, हिन्दू-धर्म ने उसे ही वैज्ञानिक रूप में प्रतिष्ठित किया है। जन्म से वर्ण निर्णीत होता है, इच्छा करके कोई इसे बदल नहीं सकता।