Jal Thal Mal
Author:
Sopan JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
हर प्राणी प्रकृति के अपार रसों का एक संग्रह होता है। मिट्टी, पानी और हवा के उर्वरकों का एक गठबन्धन। फिर चाहे वह एक कोशिका वाला बैक्टीरिया हो या विराटाकार नीला व्हेल। जब किसी जीव की मृत्यु होती है, तब यह रचना टूट जाती है। सभी रस और उर्वरक अपने मूल स्वरूप में लौट जाते हैं, फिर दूसरे जीवी को जन्म देते हैं।</p>
<p>हर प्राणी सभी रसों का उपयोग नहीं कर सकता। हर जीव जितना हिस्सा भोग सकता है उतना भोगता है, जो नहीं पुसाता उसे त्याग देता है। यही ‘कचरा’ या ‘अपशिष्ट’ दूसरे जीवों के लिए ‘संसाधन’ बन जाता है, किसी और के काम आता है। दूसरे जीवों से लेन-देन किए बिना कोई भी प्राणी जी नहीं सकता। हम भी नहीं। प्रकृति में कुछ भी कूड़ा-करकट नहीं होता। न कचरा, न मैला, न अपशिष्ट ही।</p>
<p>हमारा भोजन मिट्टी से आता है। प्रकृति का नियम है कि मिट्टी से निकले रस वापस मिट्टी में जाने चाहिए। जहाँ का माल है, वहीं लौटना चाहिए। हम जो भी खाते हैं, वह अगले दिन मल-मूत्र बन के हमारे शरीर से निकल जाता है। सहज रूप में उसका संस्कार मिट्टी में ही होना चाहिए। खाद्य पदार्थ की फिर से खाद बननी चाहिए।</p>
<p>किन्तु आधुनिक स्वच्छता व्यवस्था हमारे मल-मूत्र को पानी में डालने लगी है। इससे हमारे जल-स्रोत दूषित हो रहे हैं, मिट्टी बंजर हो रही है। हमारा मल-मूत्र भी चौगुना हुआ है। लेकिन उसे ठिकाने लगाने के तरीक़े चौगुने नहीं हुए हैं। हमारी स्वच्छता आज प्रकृति के साथ युद्ध बन चुकी है।</p>
<p>यह किताब जल-थल-मल के इस बिगड़ते रिश्ते को क़ुदरत की नज़र से देखती है। इसमें उन लोगों का भी वर्णन है जिनके लिए सफ़ाई प्रकृति को बिगाड़ने का नहीं, निखारने का तरीक़ा है। उनकी स्वच्छता में शुचिता है, सामाजिकता है। जल, थल और मल का सुगम संयोग है।
ISBN: 9789388183369
Pages: 210
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: दीर्घकाल तक भारतवर्ष का विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्रों में सम्मानित स्थान था। कालांतर में आक्रांताओं के कारण भारत की प्रतिष्ठा धूमिल हुई। स्वाधीनता के पश्चात् देश का पुनरुत्थान एवं विकास तीक्रगति से हुआ है। स्वाधीनता के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर आगामी 25 वर्षों के पश्चात् अर्थात् स्वाधीनता के 100वें वर्ष में भारत कैसा होगा? कैसा होना चाहिए? हमारे संकल्प कया हैं ? ये सब संवाद एवं विमर्श इस पुस्तक का मुख्य विषय है, जिसमें राष्ट्र जीवन के विभिन्न आयामों पर बुद्धिशील वर्ग के 16 प्रतिनिधियों ने सपनों के भारत और संभावित वास्तविकता पर लेखन के माध्यम से संवाद किया है। ग्रामीण जीवन से लेकर वैश्विक भारत, धर्म-संस्कृति के साथ-साथ टेक्नोलॉजी, वित्तीय व्यवस्थाओं व राष्ट्रीय सुरक्षा आदि से संबंधित 100 वर्ष की आयु के भारत के स्वरूप की कल्पना शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। कुल मिलाकर भारतीय समाज का सामूहिक सपना इन प्रकाशनों में प्रस्तुत है। पंचनद शोध संस्थान द्वारा आयोजित इस संवाद में राष्ट्र के बौद्धिक योद्धाओं ने मन की बात की है। संस्थान मानता है कि आलेखों में केवल सपना या कल्पना नहीं है, इसे कार्ययोजना भी माना जा सकता है।
Bharat Ke Gaon
- Author Name:
M.N. Shrinivas
- Book Type:

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Description:
भारत, ब्रिटेन और अमेरिका के प्रमुख समाजशास्त्रियों द्वारा लिखे गए निबन्धों के इस संग्रह में भारत के चुनिन्दा गाँवों और उनमें हो रहे सामाजिक–सांस्कृतिक परिवर्तनों के विवरण प्रस्तुत हैं। हर निबन्ध एक क्षेत्र के एक ही गाँव या गाँवों के समूह के गहन अध्ययन का परिणाम है। यह निबन्ध एक विस्तृत क्षेत्र का लेखा–जोखा प्रस्तुत करते हैं, उत्तर में हिमाचल प्रदेश से लेकर दक्षिण में तंजौर तक और पश्चिम में राजस्थान से लेकर पूर्व में बंगाल तक।
सर्वेक्षित गाँव सामुदायिक जीवन के विविध प्रारूप प्रस्तुत करते हैं, लेकिन इस विविधता में ही कहीं उस एकता का सूत्र गुँथा है जो भारतीय ग्रामीण दृश्य का लक्षण है। निबन्धों में गहरी धँसी जाति व्यवस्था और गाँव की एकता का प्रश्न हाल के वर्षों में बढ़े औद्योगिकीरण और शहरीकरण के ग्रामीण विकास के लिए सरकारी योजनाओं और शिक्षा के प्रभाव से जुड़े कुछ ऐसे पक्ष हैं जिनकी विद्वत्तापूर्ण पड़ताल हुई है। आज भी, भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी 80 प्रतिशत जनसंख्या उसके पाँच लाख गाँवों में रहती है, और उन्हें बदल पाने के लिए उनके जीवन की स्थितियों की जानकारी ज़रूरी है। ‘भारत के गाँव’ जिज्ञासु सामान्य जन और ग्रामीण भारत को जाननेवाले विशेषज्ञों के लिए ग्रामीण भारत का परिचय उपलब्ध कराती है।
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