Vivek Ki Pratibaddhata
Author:
Narendra DabholkarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Society-social-sciences0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अर्थात् कार्यकारण भाव। चमत्कार अर्थात् वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव। यह सम्बन्ध प्रकाश और अँधेरे के समान है। एक का होना याने अनिवार्यतः दूसरे का ना होना। विज्ञान में चमत्कार नहीं होते। चमत्कार या तो रासायनिक, भौतिक प्रक्रिया होती है या हाथ की सफ़ाई होती है। बदमाशी भी हो सकती है और प्रसंग के अनुसार प्रकृति की अनसुलझी पहेली भी चमत्कार में शामिल होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण जीवन में स्वीकारने का अर्थ है, आज या कल समझ में आनेवाली वैज्ञानिक विचार-पद्धति पर समाज का विश्वास होना।</p>
<p>चमत्कारों को चुनौती देने की भूमिका को ठीक से समझना चाहिए। संविधान ने हर व्यक्ति को उपासना, अलौकिक जीवन, आध्यात्मिक कल्याण की आज़ादी दी है, इसका सम्मान करना चाहिए। लेकिन चमत्कार पर विश्वास करना, उसकी जाँच-पड़ताल का विरोध और ऐसे चमत्कारों का प्रसार करते रहना, यह धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता। भारतीय समाज बहुत जल्द भयग्रस्त हो जाता है। दैववादी मानसिकता के कारण लोग संकट को भाग्य का परिणाम मानते हैं। कई लोगों को लगता है कि दैवी-शक्ति प्राप्त कोई बाबा या कोई धार्मिक तीर्थ उन्हें कठिनाई से उबार लेगा। इस मानसिकता में रहनेवाला समाज स्वाभिमानशून्य, भगौड़ा, डरपोक और बुद्धि को रेहन पर रखनेवाला होता है। स्वाभिमानी, प्रयत्नवादी और निर्भय समाज बनाने के लिए चमत्कार का विरोध आवश्यक है।</p>
<p>मानसिक ग़ुलामी की सबसे बड़ी भयानकता यह है कि उस अवस्था में व्यक्ति की बुद्धि से प्रश्न पूछना तो दूर की बात है, व्यक्ति की बुद्धि, निर्णय-शक्ति, सम्पूर्ण विचार-क्षमता ये सभी बातें चमत्कार के आगे शून्य हो जाती हैं। व्यक्ति दासता में चला जाता है और फिर परिवर्तन की लड़ाई अधिक कठिन हो जाती है।</p>
<p>इस किताब में दाभोलकर जी के 2003 से 08 के दौरान लिखे आलेख शामिल हैं जो उन्होंने अन्धविश्वास और अवैज्ञानिकता के विरोध में विभिन्न मोर्चों और आन्दोलनों में काम करते हुए लिखे। उनके आन्दोलन का एकमात्र उद्देश्य एक विवेकशील मन का निर्माण था ताकि भारतीय लोग अपनी भौतिक लाचारगी और लिप्साओं के कारण धन्धेबाजों का शिकार न हों। उनके लेखन को पढ़ते हुए हम इक्कीसवीं सदी के भारत की धार्मिक-आध्यात्मिक-आर्थिक-सामाजिक विडम्बनाओं से भी परिचित होते हैं।
ISBN: 9789389598506
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर भारत के नेतृत्व को लेकर जो प्रशंसा की जाती है और हम ख़ुद भी जो सारे विश्व को पीछे छोड़ देने का दम भरते हैं, वह पूरी तरह से दिवास्वप्न है। वास्तविकता यह है कि हम इन दोनों ही क्षेत्रों में सिर्फ़ उपभोक्ता हैं, उत्पादक नहीं। हम अपने यहाँ इन ऊर्जाओं के लिए बस मार्केट बना रहे हैं। यही सच्चाई है। पुस्तक देश-विदेश के तमाम वैकल्पिक ऊर्जा सम्बन्धी आँकड़ों का तार्किक विश्लेषण कर, तकनीकी विशेषज्ञों के समय-समय पर व्यक्त मतों का निहितार्थ निकालते हुए, जर्मनी, आस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे विकसित देशों के विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों एवं वर्ल्ड बैंक आदि से प्राप्त जानकारियों एवं अनुभवों के निष्कर्ष के आधार पर राष्ट्रहित में लिखी गई है। इस पुस्तक का उद्देश्य है सरकार और जनसाधारण तक यह सन्देश पहुँचाना कि हमें अपने ढंग से वैकल्पिक ऊर्जा के उत्पादन और संरक्षण का प्रयास करना चाहिए।
Uttar-Poorva Bharat Ke Vikas Mein Neist Ki Praudyogikiyan
- Author Name:
Dr. Mohan Lal +1
- Book Type:

- Description: "किसी भी राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन न केवल उसका गौरव होते हैं, वरन् उसकी वास्तविक संपत्ति भी होते हैं। ऐसे संसाधनों में मुख्य रूप से महत्त्वपूर्ण पौधे, पशु, पारंपरिक संपदाएँ और खनिज शामिल हैं। देश की 38 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में से उत्तर- पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण प्रयोगशाला है- उत्तर-पूर्व विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (नॉर्थ- ईस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी - निस्ट)। यह प्रयोगशाला पूर्वोत्तर क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय प्रयोगशाला के रूप में अपनी विशेषज्ञताओं और क्षमताओं को बढ़ाते हुए विकास की ओर अग्रसर रही है। वस्तुतः इस संस्थान का उद्देश्य पूर्वोत्तर भारत में उपलब्ध विपुल प्राकृतिक संपदाओं का दोहन करते हुए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को विकसित करना, संबंधित क्षेत्र में विशिष्टता हासिल करना एवं आवश्यक क्षेत्र में अवसंरचना सुविधा प्रदान करना है। यह हर्ष का विषय है कि इस लब्धप्रतिष्ठ संस्थान ने अपनी स्थापना से अभी तक 125 से अधिक जनोपयोगी स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं जो कृषि, औषध, वी.एस. के. सीमेंट, तेल से संबंधित रसायनों, जैव-चिकित्सा, पेट्रो रसायनों से संबंधित हैं। इन कार्यों द्वारा देश के सामाजिक- आर्थिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्र में अतुलनीय अवदान कर करोड़ों रुपयों का राजस्व भी प्राप्त किया है। 'उत्तर-पूर्व भारत के विकास में निस्ट की प्रौद्योगिकियाँ' विषयक बहुरंगी पुस्तक में निस्ट का परिचयात्मक विवेचन, अनुसंधान समूह, विकसित प्रौद्योगिकियों का विहंगावलोकन, नूतन प्रौद्योगिकियाँ, उद्यमिता एवं अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों पर रोचक हिंदी भाषा में सचित्र तकनीकी जानकारी प्रदान करने का सुप्रयास किया गया है, जिससे सभी वर्गों के सुधी पाठकगण लाभान्वित हो सकें।"
Aadhunik Bharat Mein Jati
- Author Name:
M.N. Shrinivas
- Book Type:

-
Description:
अथक अध्ययन और शोध के परिणामस्वरूप एम.एन. श्रीनिवास के निबन्ध आकार ग्रहण करते हैं। भारतीय समाज की नब्ज़ पर उनकी पकड़ गहरी और मज़बूत है। उनके लेखन में इतिहास और बुद्धि का बोझिलपन नहीं है। प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत निबन्धों में समाजशास्त्र व नृतत्त्वशास्त्र विषयक समस्याओं के व्यावहारिक पक्षों पर रोशनी डाली गई है। लेखक समस्याओं की तह में जाना पसन्द करता है और उसके विश्लेषण का आधार भी यही है।
हर समाज की अपनी मौलिक संरचना होती है। जिस संरचना को उस समाज के लोग देखते हैं, वह वैसी नहीं होती जैसी समाजशास्त्री शोध और अनुमानों के आधार पर प्रस्तुत करते हैं। भारतीय समाजशास्त्रियों ने जाति- व्यवस्था के जटिल तथ्यों को ‘वर्ण’ की मर्यादाओं में समझने की भूल की और जिसके चलते सामाजिक संरचना का अध्ययन सतही हो गया। गत सौ-डेढ़ सौ वर्षों के दौरान जाति-व्यवस्था का असर कई नए-नए कार्यक्षेत्रों में विस्तृत हुआ है और उसकी ऐतिहासिक व मौजूदा तंत्र की नितान्त नए दृष्टिकोण से विश्लेषण करने की माँग एम.एन. श्रीनिवास करते हैं। हमारे यहाँ जाति-व्यवस्था की जड़ें इतनी गहरी हैं कि बिना इसके सापेक्ष परिकलन किए मूल समस्याओं की बात करना बेमानी है। एम.एन. श्रीनिवास का मानना है कि समाज-वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए राजनीतिक स्तर के जातिवाद तथा सामाजिक एवं कर्मकांडी स्तर के जातिवाद में फ़र्क़ करना ज़रूरी है।
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