Uttami ki Maa
Author:
YashpalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 60
₹
75
Available
यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज़्यादा तरल रूप में, ज़्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आ रही है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी <br />है।</p>
<p>‘उत्तमी की माँ’ कहानी-संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : ‘उत्तमी की माँ’, ‘नमक हराम’, ‘पतिव्रता’, ‘आत्म-अभियोग’, ‘करुणा’, ‘भगवान् के पिता के दर्शन’, ‘न कहने की बात’, ‘भगवान का खेल’, ‘करवा का व्रत’, ‘नक़ली माल’ और ‘पाप का कीचड़’।
ISBN: 9788180314346
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी कहानी को जिन लेखकों ने अपनी रचनाशीलता से समृद्ध किया है, उनमें पंकज मित्र का नाम प्रमुख है। एक ख़ास तरह की देशज स्थानीयता के साथ वे ज़िन्दगी के तमाम रंगों को प्रकट कर देते हैं।
‘ज़िद्दी रेडियो’ पंकज मित्र का नया कहानी-संग्रह है। इसकी 10 कहानियाँ भारतीय समाज के वर्तमान की गहरी पड़ताल करती हैं। विशेषकर भूमंडलीकरण और उन्मुक्त पूँजीवाद के बाद परिवार से बाज़ार तक रिश्तों के बदलते समीकरणों पर लेखक ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है। अपने स्वभाव और बचे-खुचे जीवन के लिए ज़िद करते स्वप्नमय बाबू, क़र्ज़ की दहशत और उसके लोलुप आकर्षण के मारे बिलौटी महतो, ऊलजुलूल जीवन में उलझे बंटी, बबली, विचित्र विस्थापन के शिकार अनिकेत बाबू—ऐसे अनेक चरित्रों से सम्पन्न ये कहानियाँ आम आदमी का सच्चा चित्रण करती हैं।
पंकज मित्र इन कहानियों के ज़रिए कुछ ज़रूरी बहसें उठाते हैं। फिर भी, कहीं भी ऊपरी सतह पर तैरती सैद्धान्तिकी यहाँ नज़र नहीं आती। सहज सरस भाषा, आंचलिकता जिसका प्रभावी गुण है, में लिखी ये कहानियाँ पाठक को नई शताब्दी की सक्रिय सामाजिकता के बीच ला खड़ा करती हैं।
Rajnaitik Kahaniyan
- Author Name:
Volga
- Book Type:

- Description: ये कहानियाँ उस राजनीति का पर्दाफ़ाश करती हैं जो भारतीय समाज में स्त्री-शरीर के इर्द-गिर्द बुनी गई हैं। संविधान और क़ानून से लेकर परिवार और व्यक्ति की मानसिकता तक में इस राजनीति के सूत्र गुँथे हैं। लेखिका का मानना है कि शरीर के शोषण से स्त्री को मानसिक रूप से दमित रखना, उसके व्यक्तित्व के विकास को रोककर उसके शरीर को नियंत्रित रखना एक गहरी राजनीति है जो पुरुष-प्रधान समाजों के मूल्यों के साथ गुँथी हुई है। अपना निजी काम समझकर जिसमें स्त्रियाँ अपनी पूरी ऊर्जा उँडेल देती हैं, वे काम दरअसल उनके लिए नहीं होते। समाज की धारणा यह है कि शरीर तथा मन, दो अलग-अलग इकाइयाँ हैं, और वह अवसर के अनुसार कभी मन तो कभी शरीर को अहमियत देने लगता है। लेखिका का कहना है कि हम अपने शरीर से अलग नहीं हैं, अब इस बात को स्पष्ट रूप से कहना अनिवार्य है।
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