Mansarovar Vol. 7 : Sadgati Aur Anya Kahaniyan
Author:
PremchandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
Awating description for this book
ISBN: 9789393603265
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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यह बात सच है कि पैदाइश और परवरिश का माहौल ज़िन्दगी भर ज़ेहन पर हावी रहता है। और अगर तालीम का रंग भी इनमें शामिल हो जाए तो सोच का मुकम्मल ख़ाक़ा तैयार हो जाता है। ज़किया ज़ुबैरी की कहानियों का संग्रह ‘साँकल’ पढ़ते हुए बारहा यही महसूस होता है। इन कहानियों पर राजेन्द्र यादव की यह राय दुरुस्त है कि, ‘उनकी कहानियाँ ऐसे नारी मन के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित हैं जो अभी भी भारत को अपने भीतर बसाए हुए है। वे द्वन्द्व और नॉस्टेल्जिया की कहानियाँ हैं।’
ज़किया औरतों की ज़िन्दगी में आहिस्ता से दाख़िल होकर उनके मन की परतों को खोलती हैं। भीतरी तहों में दबे सच कभी ‘बाबुल मोरा’ की लिसा, तो कभी ‘मेरे हिस्से की धूप’ की शम्मो के रूप में सामने आते हैं। अगर लेखिका की संवेदना परखनी हो तो ‘मारिया’, ‘साँकल’, ‘लौट आओ तुम’ जैसी कहानियाँ पढ़नी चाहिए।
सरोकार के साथ भाषा लेखिका की बहुत बड़ी ताक़त है। बड़ी सहजता से पूरा मंज़र सामने खड़ा हो जाता है, ‘किसी से डर न ख़ौफ़—बिन्दास! छोटी-छोटी आँखों को टेढ़ी करके बात किया करती, बात-बात पर खिलखिलाकर हँस देती और हँसते हुए झूल-सी जाती। वो जो कपड़े पहने होती, ऊँचे-नीचे, बेमेल-से, कहीं-कहीं से सिलाई खुले हुए कपड़ों से जवानी झाँक रही होती। वह एक ऐसी बेटी थी जिसके कारण घर में कंकरों की आमद बनी रहती।’ बेहद दिलचस्प कहानियों का संग्रह।
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