Shreshth Kahaniyan : Mannu Bhandari
Author:
Mannu BhandariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 76
₹
95
Unavailable
“कथा-साहित्य में अक्सर ही नारी का चित्रण पुरुष की आकांक्षाओं (दमित आकांक्षाओं) में प्रेरित होकर किया गया है।” मन्नू भंडारी ने कहीं लिखा है। लेखकों ने या तो नारी की मूर्ति को अपनी कुंठाओं के अनुसार विकृतियों से तोड़-मरोड़ दिया है, या अपनी स्वप्न-नारी की तस्वीर उतारी है। वह देवी और दानवी के दो छोरों के बीच टकराती ‘पहेली’ नहीं, हाड़-मांस की मानवी भी है, इसे प्रायः सभी एक सिरे नज़रअन्दाज़ करते रहे हैं। साहित्य की युगों पुरानी कथा-रूढ़ियों के मलबे के नीचे से नारी के मौलिक व्यक्तित्व का अन्वेषण, उसके चरित्र का यथार्थ निरूपण-जैसी गहरी अन्तर्दृष्टि और निस्संग विश्लेषण की अपेक्षा रखता है।</p>
<p>वह मन्नू के पास है या नहीं—यह अभी कह पाना बहुत कठिन है। लेकिन मन्नू की कहानियों की दो विशेषताएँ उसे अपने समकालीनों से अलग करती हैं...व्यर्थ के भावोच्छ् वास में नारी के आँचल का दूध और आँखों का पानी दिखाकर उसने पाठकों की दया नहीं वसूली...वह एकदम यथार्थ के धरातल पर नारी का नारी की दृष्टि से अंकन करती है...लेकिन अन्य ‘यथार्थवादियों' की तरह शिल्पगत परिमार्जन या कहानी के आधारभूत कलात्मक संयम को भी हाथ से नहीं जाने देती...वे ‘परफ़ेक्ट’ कहानियाँ हैं...आधुनिक पाठक की कला-रुचि पर खरी उतर सकनेवाली कहानियाँ हैं, पुराने पाठक के लिए रोचक और सहज...</p>
<p>भ्रम और सेक्स के दुहरे जटिल-शोषण के संस्कारों के जाल से नारी के मौलिक और स्वतंत्र व्यक्तित्व को खोज निकालने के लिए जिस साहस और निर्भीकता की आवश्यकता है, वे ही मन्नू के सबसे सशक्त हथियार हैं...‘भारतीय नारी’ और ‘नारी की एकनिष्ठ गरिमा’ के नाम पर कुछ झूठे सन्तोष आख़िर उसे कब तक दबाए रहेंगे? क्या ‘यह भी सच’ नहीं है कि अपनी पूरी ईमानदारी से भावना के धरातल पर दो पुरुषों को भी नारी प्यार करती है! क्या यह आवश्यक ही है कि एक प्यार की स्वीकृति स्वयं को झूठा सिद्ध करके ही सम्भव हो? क्यों नारी एक की भोग्या बनकर दूसरे हर व्यक्ति के लिए जूठी हो जाती है, नीचे गिर जाती है? एक ऐसी ऊँचाई भी तो हो सकती है जहाँ शरीर का एक से अधिक सम्बन्ध बहुत नगण्य होकर दीखे...जहाँ नारी के शील को लेकर काठ की हाँडी की तरह एक बार शेष हो जाने की धारणाएँ प्रचलित हों, उस समाज में ये साहसिक प्रयोग कम ख़तरनाक नहीं हैं...और इन लांछनाओं का प्रारम्भ उसकी ‘गीत का चुम्बन’ कहानी से ही शुरू हो गया था...</p>
<p>लेकिन नारी-अस्तित्व के पारिवारिक और सामाजिक पक्ष के प्रति भी मन्नू पूर्ण सजग है... नागरिक सभ्यता की मशीनी ज़िन्दगी में ‘क्षय’ होती युवती, खुला आकाश खोजने वह भागे भले ही प्रकृति की गोद में, परन्तु शीघ्र ही यह भी महसूस करती है कि जिसे उसने उलझनों, घुटन से दूर खुला विस्तार समझा था, वह वास्तव में रुँधे पानी की मच्छर-पोषित काहिया सतह है... आकाश वहीं खोजना होगा जहाँ प्रवाह है...भँवर है तो क्या हुआ?</p>
<p>रूढ़िविद्रोही कथानकों, भावधरातलों का चयन, स्वानुभूति की प्रामाणिक सहजता मन्नू की शक्ति भी है, और सीमा भी...
ISBN: 9788171197743
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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