Kahaniyan Rishton Ki : Sahodar
Author:
AkhileshPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
अल्पना मिश्र हिन्दी कहानी के सूची-समाज में अनिवार्य रूप से शामिल नहीं हैं लेकिन वे उसकी सबसे मज़बूत परम्परा का एक विद्रोही और दमकता हुआ नाम हैं। उन्हें उखड़े और बाज़ार-प्रिय लोगों द्वारा सूचीबद्ध नहीं किया जा सका। कहानी का यह धीमा सितारा मिटनेवाला, धुँधला होनेवाला नहीं है, निश्चय ही यह स्थायी दूरियों तक जाएगा।</p>
<p>अल्पना मिश्र की कहानियों में अधूरे, तकलीफ़देह, बेचैन, खंडित और संघर्ष करते मानव जीवन के बहुसंख्यक चित्र हैं। वे अपनी कहानियों के लिए, बहुत दूर नहीं जातीं, निकटवर्ती दुनिया में रहती हैं। आज पाठक और कथाकार के बीच की दूरी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही है, अल्पना मिश्र की कहानियों में यह दूरी नहीं मिलेगी। आज बहुतेरे नए कहानीकार प्रतिभाशाली तो हैं पर कहानी तत्त्व उनका दुर्बल है, वे अपनी निकटस्थ, खलबलाती, उजड़ती, दुनिया को छोड़कर नए और आकर्षक भूमंडल में जा रहे हैं। इस नज़रिए से देखें तो अल्पना मिश्र उड़ती नहीं हैं, वे प्रचलित के साथ नहीं हैं, वे ढूँढ़ती हुई, खोजती हुई, धीमे-धीमे उँगली पकड़कर लोगों यानी अपने पाठकों के साथ चलती हैं।</p>
<p>‘ग़ैर-हाज़िरी में हाज़िर’, ‘गुमशुदा’, ‘रहगुज़र की पोटली’, ‘महबूब ज़माना और ज़माने में वे’, ‘सड़क मुस्तक़िल’, ‘उनकी व्यस्तता’, ‘मेरे हमदम मेरे दोस्त’, ‘पुष्पक विमान’ और ‘ऐ अहिल्या’ कहानियाँ इस संग्रह में हैं। इन सभी में किसी-न-किसी प्रकार के हादसे हैं। भूस्खलन, पलायन, छद्म आधुनिकता, जुल्म, दहेज हत्याएँ, स्त्री-शोषण से जुड़ी घटनाएँ अल्पना मिश्र की कहानियों के केन्द्र में हैं। इन सभी कहानियों में लेखिका की तरफ़दारी और आग्रह तीखे और स्पष्ट हैं। वे अत्याधुनिक अदाओं और स्थापत्य के लिए विकल नहीं हैं। उनकी कहानियाँ आलंकारिक नहीं हैं, वे उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मानवीय आन्दोलन का पक्ष रखती हैं और इस तरह सामाजिक कायरता से हमें मुक्त कराने का रचनात्मक प्रयास करती हैं। मुझे इस तरह की कहानियाँ प्रिय हैं।</p>
<p>—ज्ञानरंजन
ISBN: 9788126725595
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Sampoorana Kahaniyan : Akhilesh
- Author Name:
Akhilesh
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Description:
अखिलेश ने हिन्दी कहानी को एक नई तरतीब दी और पठनीयता की तमाम शर्तों को पूरा करते हुए उसे इस क़ाबिल बनाया है कि वह यथार्थ को अधिक निर्मम निगाह से देख सके। उनका कथाकार संसार की वास्तविकता को देखने के लिए अपने टेलिस्कोप और माइक्रोस्कोप उस बिन्दु पर स्थित करता है जहाँ से हमारे वक़्त की पीठ का नंगापन हर हाल में ज़्यादा तीखा दिखाई देता है।
ग़लत की भव्यता से अखिलेश की चिढ़ और सही की निरीहता के प्रति उनकी पक्षधरता उनके विवरणों तक में चयनात्मक भूमिका निभाती है जिसके चलते कहानी पूरी होने से पहले भी हमें कई बार अपना पक्ष चुनने के बारे में चेताती चलती है। वे यह भी सावधानी बरतते हैं कि हम बाहरी विवरणों के तमाशबीन भर होकर न रह जाएँ, और इसके लिए उनका कथाकार संत्रास के कुछ अमूर्त स्ट्रोक अनायास ही पाठक के अवचेतन तक पहुँचा देता है, जो तब ज़्यादा टीसते हैं जब हम पाठक की भूमिका से निकलकर वापस नागरिक-सामाजिक होने जाते हैं।
‘शापग्रस्त’ और ‘चिट्ठी’ जैसी उनकी कहानियों ने हिन्दी कहानी की फ़ार्मूलाबद्धता को उस समय भंग किया जब वह वैचारिक एकरैखिकता की झोंक में अपने आसपास फैले यथार्थ की बहुत सारी जटिलताओं को छोड़ती चल रही थी। तेजी से बदलने के लिए अकुलाते समाज के अधिकतम को पकड़ने के लिए जिस तरह की निगाह और भाषा-भंगिमा की ज़रूरत थी, अखिलेश ने उसे लगभग सबसे पहले सम्भव किया।
सत्ता और शक्ति की विभिन्न संरचनाओं को लगातार निर्मित और पोषित करने के अभ्यस्त हमारे मन-मस्तिष्क को अखिलेश ने अपनी विखंडनात्मक त्वरा से देखने का एक नया संस्कार दिया है। अखिलेश का कथाकार न सिर्फ़ मौज़ूदा यथार्थ को देखने में सफल रहा है बल्कि उसके आगामी तेवरों का संकेत भी दे पाया है।
यह संचयन कहानीकार के रूप में अखिलेश की विकास प्रक्रिया का ही नहीं, बीते क़रीब चार दशकों में एक संस्था के रूप में भारतीय समाज के बदलने-बढ़ने और बनने-टूटने के क्रम का भी साक्षी है।
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