Allahabad Bhi !
Author:
Sheshnath PandeyPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
शेषनाथ पाण्डेय के कथा-संकलन ‘इलाहाबाद भी!’ की कहानियाँ हमारे समय का साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं। पूँजी और बाज़ार के वर्चस्व ने इस समय को इस तरह जकड़ रखा है कि मनुष्य अपनी संवेदनाएँ खोकर निरन्तर हिंसक बनता जा रहा है। यह हिंसा जीवन के उन सारे मूल्यों और भावपक्ष को निगलती जा रही है, जिससे एक सुन्दर और मानवीय गरिमा से पूरित संसार का स्वप्न साकार हो सकता था। इस हिंसा को बिना किसी अतिरेक या अतिनाटकीयता के इन कहानियों में अभिव्यक्त करने के लिए इस युवा कथाकार ने मानव-मन की आन्तरिक उथल-पुथल का सहारा लिया है। जीवन के कई ऐसे पक्ष इन कहानियों में उजागर हुए हैं, जिनके आपसी टकराव से मनुष्य के भीतर अन्तर्द्वन्द्व उपजते हैं और असम्भव घटित हो जाता है।</p>
<p>‘इलाहाबाद भी!’ की कहानियाँ यथार्थ की जटिलता से टकराती हैं और अपने सादगी भरे अन्दाज़ में अपने कहन के कारण हमारे भीतर रच-बस जाती हैं। शेषनाथ पाण्डेय गाँव और महानगर दोनों के यथार्थ से परिचित हैं। गाँव से महानगर तक की यात्रा और महानगर में ज़िन्दगी की डोर को थामे रहने के संघर्षों ने उन्हें, जो जीवनानुभव सौंपा है, वह उनकी कहानियों का मूलाधार है। यह सब उनकी कहानियों में इस तरह विन्यस्त है कि उसे अलग करके देख पाना सम्भव नहीं। यथार्थ को रचनात्मक स्पर्श से पुनर्नवा करने का यह हुनर उनकी विशेषता है। इन कहानियों की भाषा सहज और सम्प्रेषणीय है। हिन्दी कहानी का समकालीन परिदृश्य विविधताओं से भरा हुआ है और मुझे भरोसा है कि शेषनाथ पाण्डेय की ये कहानियाँ पाठकों का ध्यान आकर्षित करेंगी।</p>
<p>—हृषीकेश सुलभ
ISBN: 9789392186356
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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जैसे-जैसे ज़़िन्दगी बदली है, वैसे-वैसे काशी की कहानी भी बदली है—अगर नहीं बदला है तो कहानी कहने का अन्दाज़। जातक, पंचतंत्र और लोकप्रचलित कथाशैलियाँ जैसे उनके कहानीकार के ख़ून में हैं। कई कहानियाँ तो चौपाल या अलाव के गिर्द बैठकर सुनने का सुख देती हैं।
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