Encouragement Short Stories (Volume-5)
Author:
Dr.Sanjay RoutPublisher:
ISL PUBLICATIONSLanguage:
EnglishCategory:
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Price: ₹ 76.5
₹
90
Available
In a world that can often feel overwhelming, Encouragement Short Stories (Volume-5) by author Dr.Sanjay Rout is the perfect reminder that hope and resilience are always within our reach.
Through a collection of heartwarming and inspiring tales, Dr.Sanjay weaves together narratives that showcase the power of determination, perseverance, and the human spirit. From stories of ordinary people who find the courage to overcome incredible obstacles to tales of individuals who discover new paths in life after experiencing loss and adversity, Encouragement Short Stories (Volume-5) is a powerful testament to the power of hope.
With Dr.Sanjay's expert storytelling and keen eye for detail, readers will be transported to new worlds and meet unforgettable characters. And with each story, they'll be reminded of their own incredible strength and capacity to achieve greatness - no matter what challenges they may face.
Whether you're in need of a dose of inspiration or simply enjoy heartwarming stories that make you smile, Encouragement Short Stories (Volume-5) is a must-read. So pick up a copy today and discover the incredible power of hope and perseverance.
ISBN: 9781716226694
Pages: 165
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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किसी भी सम्बन्ध को परिणति तक पहुँचाने की हड़बड़ी उनके यहाँ नहीं है। सम्बन्धों के महीन रेशों को वे हल्के इशारों से कहे-अनकहे शब्दों में, बिम्बों में थामती हैं। वे ‘बियाबान में’ कहानी की नायिका का अपने लेखन के साथ का रिश्ता हो या रश्मि किरण के साथ का, ‘परिदृश्य’ कहानी की सीमी का अनामिका और उसके भाई के साथ धीरे-धीरे अस्तित्व में आया सम्बन्ध हो, मकड़ी के जाले की सुन्दर संरचना के निमित्त, बाबू देवीदीन सहाय का अपनी रूह के साथ पहली बार स्थापित हुआ सम्बन्ध हो या अनामिका का गंगा के कछार के साथ शेष दूसरे फ़्लैप पर...का तादात्म्य हो—ये सम्बन्ध जितनी देर के लिए, जितने भी, जैसे भी होते हैं, अपनी सम्पूर्ण सत्ता के साथ होते हैं। गंगा का कछार अलग मौसम में, किसी दूसरे समय पर, किसी अलग मनःस्थितियों में अलग ही रूप धर ले सकता है।
‘भूलभुलैयाँ’ जैसी कहानी में वे भव्य अतीत के कोनों-अँतरों को तलाशती हैं। इस प्रक्रिया में अतीत के साथ-साथ सम्भावित का भी एक लोक खुलता चला जाता है। बनारस की साकिन नूर मंज़िल हवेली के उस प्राचीन वैभव—जब ‘हर कमरे में लोग अंगूर के गुच्छों की तरह’ होते थे—के बरक्स बची थीं किले की दीवार जैसे कन्धोंवाले सैयद हैदर की बड़ी बेटी कुलसूम बानो, जिन्हें नूर मंज़िल जैसी विशाल हवेली में बन्द रहने के बावजूद नाचने और नाचते-नाचते लट्टू की तरह एक जगह सिमट आने के तथा छत की काई लगी काली मुँडेर से डैनों की तरह बाजुओं को फैलाकर उड़ने के एहसास से कोई वंचित नहीं कर पाया था।
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उनके यहाँ हिन्दी के पूर्ववर्ती कथाकारों की अनुगूँज के साथ ख़ुद उनके रोयों की तरह संवेदनशील और उड़ानक्षम भाषा का विरल संयोजन है। चीज़ों को देखने का, उसे भाषा में सहेजने का सारा का ढंग अनोखा है। चीज़ें और उनके आस-पास वही है जिसे हम सब रोज़ देखते हैं या नहीं देखते। उन्हें सारा के साथ उनकी आँख से देखना आज की हिन्दी कहानी के परिदृश्य में एक अलग तरह का देखना है। ‘ऊपर का आकाश डालों से घटाटोप हो उठा और ज़मीन पर बरगद ने जड़ों के महल खड़े किए, कई-कई महल, एक-दूसरे की अनुगूँज की तरह।’
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