Phoolo Ka kurta
Author:
YashpalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 60
₹
75
Unavailable
यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज़्यादा तरल रूप में, ज़्यादा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर आते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आ रही है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवन—ये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है।</p>
<p>‘फूलो का कुर्ता’ कहानी-संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं : ‘आतिथ्य’, ‘भवानी माता की जय’, ‘शिव-पार्वती’, ‘ख़ुदा की मदद’, ‘प्रतिष्ठा का बोझ’, ‘डरपोक कश्मीरी’, ‘धर्मरक्षा और ज़िम्मेवारी’।
ISBN: 9788180314407
Pages: 127
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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रवीन्द्र कालिया ने साठ के दशक में ‘सिर्फ़ एक दिन’, ‘नौ साल छोटी पत्नी’, ‘गड़े शहर का आदमी’ और ‘काला रजिस्टर’ जैसी कहानियों से शिल्प और संवेदना दोनों स्तरों पर हिन्दी कहानी की परम्परा को रूमान और भावुकता के दलदल से बाहर निकालकर उसे यथार्थ की ठोस ज़मीन पर खड़ा होने में मदद की थी। इसका सबूत इस संग्रह की कहानियाँ हैं।
रवीन्द्र कालिया की ये कहानियाँ मनुष्य की जिजीविषा, उसके संकल्प और अदम्य विसंगतिबोध को अपना विषय बनाती हैं और विलक्षण कलात्मकता और अचूक राजनीतिक दृष्टि के साथ उनका निर्वाह करती हैं। इन कहानियों के बच्चे, बूढ़े, युवक, युवतियाँ यहाँ तक कि पशु-पक्षी और पौधे भी कथाकार की आत्मा का स्पर्श पाकर मानवीय उद्यम और नियति में साझा करनेवाले प्रतिनिधि चरित्र बन जाते हैं। इस नज़रिए से सबसे उल्लेखनीय कहानी ‘सुन्दरी’ है। सुन्दरी नाम की घोड़ी एक दुर्घटना में अपनी एक आँख गँवा देने के बाद विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर नाचने की पात्रता खो देती है, लेकिन इसे अपनी नियति मानने से इनकार कर देती है। शुभ और अशुभ में यक़ीन करनेवाला मानव समुदाय और उसे बेहद प्यार करनेवाला उसका मालिक जहीर जो ख़ुद भी उसी दुर्घटना में एक आँख गँवा बैठा है, अपनी व्यावहारिकता के चलते उसके हठ का कारण नहीं समझ पाता, लेकिन जहीर के बच्चे अपनी अन्तश्चेतना में सुन्दरी के निकट होने के कारण इसे समझ जाते हैं। अनेक स्तरों पर बुनी गई यह कहानी सहज ही पशु-पक्षियों पर लिखी गई, विश्व साहित्य की अविस्मरणीय कहानियों में रखी जा सकती है।
एक और कहानी ‘गौरैया’ है जो कथाकार के सहज मानवीय राग-विराग से गुज़रती हुई अचानक हमारे दौर की साम्प्रदायिक कुटिलता का पर्दाफ़ाश करनेवाली सशक्त कहानी बन जाती है। ‘बोगेनविलिया’ शीर्षक कहानी का नन्हा सा पौधा आज़ाद हिन्दुस्तान के अमानवीय विकास के शिकार करोड़ों लोगों की पीड़ा को हमारी संवेदना तक पहुँचाने का माध्यम बनता है। दूसरी तरफ़ ‘एक होम्योपैथी कहानी', ‘बुढ़वा मंगल' और ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ जैसी कहानियाँ हैं। इनमें पहली कहानी एक उपभोक्तावादी समाज में ठीक-ठाक कमाई कर रहे एक युवक और युवती की है जो परिस्थितिवश अपने स्वाभाविक आवेगों का गला घोंटने पर विवश हैं। ‘डाक्टर और मरीज़’ की भूमिका को अनेक कोणों में दिखानेवाली इस कहानी को हमारे दौर की एक यथार्थवादी प्रेम कहानी भी कहा जा सकता है। ‘बुढ़वा मंगल’ सिर्फ़ एक साधारण बूढ़े की असाधारण जीवनाकांक्षा की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें स्वाधीनता पूर्व की तथाकथित त्यागी और बलिदानी पीढ़ी का रहस्य भी उजागर हुआ है। जबकि ‘रूप की रानी चोरों का राजा' में बिलकुल ताज़ा सामाजिक-राजनीतिक हालात का जायजा लिया गया
है।रवीन्द्र कालिया की ये कहानियाँ साधारण स्थितियों, घटनाओं और चरित्रों की असाधारणता को रेखांकित करती हैं और हमारी संवेदना पर दस्तक देने के साथ हमारी विचार शक्ति और कल्पना को उकसाकर उन्हें हल्की सी चुनौती भी देती हैं। इसी प्रक्रिया में ये हमें संस्कारित करती हैं और मनुष्य की ताक़त पर हमारे विश्वास को और मज़बूत करती हैं।
—कृष्णा मोहन
Sukh Chalak Hai
- Author Name:
Dr. Saroj Kumar
- Book Type:

- Description: Book
Halant
- Author Name:
Hrishikesh Sulabh
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-
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हृषीकेश सुलभ के कथा संकलन ‘हलंत’ की कहानियाँ हिन्दी की यथार्थवादी कथा-परम्परा का विकास प्रस्तुत करती हैं। इन कहानियों में भारतीय समाज की परम्परा, जीवनदृष्टि, समसामयिक यथार्थ और चिन्ताओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ विकृतियों और विसंगतियों का भी चित्रण है। मनुष्य की सत्ता और प्रवृत्ति की भीतरी दुर्गम राहों से गुज़रते हुए भविष्य के पूर्वाभासों और संकेतों को रेखांकित करने की कलात्मक कोशिश इन कहानियों की अलग पहचान बनती है। यथार्थ के अन्त:स्तरों के बीच से ढेरों ऐसे प्रसंग स्वत:स्फूर्ति उगते चलते हैं, जो हमारे जीवन की मार्मिकता को विस्तार देते हैं। संचित अतीत की ध्वनियाँ यहाँ संवेदन का विस्तार करती हैं और इसी अतीत की समयबद्धता लाँघकर यथार्थ जीवन की विराटता को रचता है।
हृषीकेश सुलभ की कहानियाँ भाषा और शिल्प के स्तर पर नए भावबोधों के सम्प्रेषण की नई प्रविधि विकसित करती हैं। नई अर्थछवियों को उकेरने के क्रम में इन कहानियों का शिल्प पाठकों को कहीं आलाप की गहराई में उतारता है, तो कहीं लोकलय की मार्मिकता से सहज ही जोड़ देता है। जीवन के स्पन्दन को कथा-प्रसंगों में ढालती और जीवन की संवेदना को विस्तृत करती ये कहानियाँ पाठकों से आत्मीय और सघन रिश्ता बनाती हैं।
हृषीकेश सुलभ के कथा-संसार में एकान्त के साथ-साथ भीड़ की हलचल भी है। सपनों की कोमल छवियों के साथ चिलचिलाती धूप का सफ़र है। पसीजती हथेलियों की थरथराहट है, तो विश्वास से लहराते हाथों की भव्यता भी है। भावनाओं और संवेदनाओं के माध्यम से अपना आत्यन्तिक अर्थ अर्जित करती इन कहानियों में क्रूरता और प्रपंच के बीच भी जीवन का बिरवा उग आता है, जो मनुष्य की संवेदना के उत्कर्ष और जिजीविषा की उत्कटता को रेखांकित करता है।
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