Vansha : Mahabharat Kavita
Author:
Harprasad DasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
हरप्रसाद दास अपनी आधुनिक दृष्टि, गहन परम्परा-बोध और अपने विशिष्ट ओड़िया स्वर के लिए पहचाने जाते हैं। ‘वंश’ में संकलित कविताएँ उनकी सुदीर्घ काव्य-साधना का एक अद्वितीय उदाहरण हैं।</p>
<p>वास्तव में यह ‘महाभारत’ के प्राय: सभी चरित्रों के गम्भीर अन्तर्मन्थन की एक सुघड़ काव्य-शृंखला है। सत्तर कविताओं के माध्यम से कवि ने ‘महाभारत’ की जो पुनर्रचना की है, उसका प्रयोजन कथा का तकनीकी आधुनिकीकरण भर नहीं है। ‘महाभारत’ की कथा-वस्तु या उसके चरित्रों की अन्त:प्रकृति में सतही बदलाव लाने की कोई चेष्टा यहाँ नहीं है। यह पुनर्पाठ आधुनिक और आत्मसजग कवि के द्वारा, ‘महाभारत’ के साथ सृजनात्मक अन्तर्पाठीयता का एक रिश्ता बनाने की कोशिश है। उस समय में इस समय को जोड़ देने के जोड़-तोड़ से क़तई अलग, यह साभ्यतिक संकट की त्रासदी के अनुभव और अवबोध की कविता है, जिसे वे कथा के प्राचीन रूपाकार में कुछ इस तरह रचते हैं कि हम पूरे ‘महाभारत’ को अपने सामयिक अनुभव की विडम्बनाओं और व्यर्थ हताशाओं की तरह घटता देखते हैं।</p>
<p>अपने लोक-जीवन के दैनिक समय में जीते-मरते लोगों के बीच, परिवेश की पास-पड़ोस की छवियों के रूबरू होते हुए, हम पाते हैं कि ‘महाभारत’ हमारे लिए महज़ किसी दूरस्थ क्लासिकी ऊँचाई या गहराई का प्रतीक या रूपक-भर नहीं है। लोक-जीवन की साधारण साम्प्रतिकता में, परिवार के संस्कारों में, क़िस्सों की तरह रचा-बसा ‘महाभारत’, हरप्रसाद की सर्जना के माध्यम से, हमारी आन्तरिकता का एक मार्मिक दस्तावेज़ बन जाता है। साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि ‘वंश’ की रचना में क्लासिकी और लोक का ऐसा अनूठा समन्वय है जो मनुष्य के आस्तित्विक संकट को सहज लोक-वाणी में सम्प्रेषित करता है।</p>
<p>
ISBN: 9788126726127
Pages: 260
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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केदारनाथ सिंह की कविताएँ समय में देर तक टिकनेवाली कविताएँ हैं। केदार की कविताओं की दुनिया एक ऐसी दुनिया है जिसमें रंग, रोशनी, रूप, गन्ध, दृश्य एक-दूसरे में खो जाते हैं। पर यही दुनिया है, जिसमें कविता का 'कमिटमेंट' खो नहीं जाता; वहाँ हमें कविता के मूल सरोकार, कविता की बुनियादी चिन्ता, कविता का कथ्य या सन्देश (बेशक स्थूल अर्थ में नहीं) पूरी तीव्रता के साथ ध्वनित या स्पन्दित रहता है।
केदार की कविता किसी अर्थ में एकालाप नहीं, वह हर हालत में एक सार्थक संवाद है। वह एक पूरे समय की व्यवस्था और उसकी क्रूर जड़ता या स्तब्धता को विचलित करती है। चुप्पी और शब्द के रिश्ते को वह बख़ूबी पहचानती है और उसे एक ऐसी काव्यात्मक चरितार्थता या विश्वसनीयता देती है, जिसके उदाहरण कम मिलते हैं।
Jab Aadivasi Gata Hai
- Author Name:
Jamuna Bini
- Book Type:

- Description: जब आदिवासी गाता है की कविताओं में आदिम और आधुनिक, परम्परा और परिवर्तन, प्यार और प्रतिरोध तथा संगीत और सिसकी एक साथ उपस्थित हैं। पूर्वोत्तर के अरुणाचली-आदिवासी समाज और संस्कृति की नैसर्गिक धड़कन इन कविताओं में आसानी से महसूस की जा सकती है, साथ ही वह सोच भी जो कथित मुख्यधारा से परे, अब तक अलक्षित-उपेक्षित पड़े हाशिये के समाजों में अस्मिता की बढ़ती चेतना के साथ मुखर होती गई है। इन कविताओं का एक छोर प्रकृति से सुदीर्घ साहचर्य, और सहस्राब्दियों के अनुभव और यत्न से निर्मित संस्कृति के प्रति कवि के सहज गौरवबोध से बना है, जबकि दूसरा छोर उन सवालों से जो पूरी दुनिया को केवल मुनाफ़े की नज़र से देखने वाली शक्तियों को सम्बोधित हैं। जमुना बीनी की रचनात्मकता का यह वितान, वस्तुतः समकालीन हिन्दी कविता का एक नया प्रस्थान है।
Amrit Manthan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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‘अमृत मंथन’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संकलन है।
इस पुस्तक में दिनकर जी की कुछ कविताएँ 1945 से 1948 के बीच लिखी गई थीं, जो तत्कालीन परिस्थितियों की दस्तावेज़ हैं तथा राष्ट्रकवि की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता को हमारे सामने लाती हैं।
इन कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तित्वों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ देशी एवं विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है।
इन कविताओं की विशेषता है—इनकी प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और सहज भाव-सम्प्रेषण।
हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक उत्तम साधन है।
Mutthi Me Chand
- Author Name:
Yashodhra Bhatnagar
- Book Type:

- Description: Book
Bachi Hui Prithavi
- Author Name:
Leeladhar Jagudi
- Book Type:

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Description:
नई कविता के सशक्त कवि लीलाधर जगूड़ी का एक उल्लेखनीय संग्रह है—‘बची हुई पृथ्वी’। इस संग्रह की कविताएँ पाठकों को शब्दों की चित्रात्मकता से प्रभावित भी करेंगी और जीवन की नई अर्थवत्ता से सम्मोहित भी।
ये कविताएँ शाब्दिक कलाबाज़ियों से मुक्त और जीवन के सही सन्दर्भों से जुड़ी हुई हैं। इन कविताओं में रचनाकार का प्रश्न गौण हो जाता है और कविताएँ स्वतः जीवन का कड़वा यथार्थ भोगती नज़र आती हैं, प्रतीक ख़ुद-ब-ख़ुद बोलने लगते हैं, शब्द मस्तिष्क पर छा जाते हैं और कथ्य हृदय को सहज ही स्पर्श करने लगता है। पाठक महसूस करेंगे कि ये कविताएँ बहुत कुछ कहनेवाले मौन की तरह मुखर हैं; जिनमें मानवीय संवेदनाएँ भी हैं, विवशताओं का त्रिकोण भी है और इस नियति को अस्वीकार करती मनःस्थितियों का आक्रोश भी।
प्रस्तुत संग्रह की कविताओं में कवि अँधेरे और सन्नाटे से घिरी अपनी ‘बची हुई पृथ्वी’ पर इसलिए उगने को अधीर प्रतीत होता है कि उसके अन्दर ‘जूझने’ का हौसला भी है ताकि आसपास की ‘वर्तमान पृथ्वी’ उसे इसीलिए आकर्षक लगी है कि वह ‘मिट्टी की गन्ध’ से भरी है।
Kahin Bahut Door Se Sun Raha Hoon
- Author Name:
Shamsher Bahadur Singh
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शमशेर की कविता का स्थायी मूल्य है, स्वच्छ और निर्मल कविता की परख। इसी नाते शमशेर रूपवादी आलोचकों की तरह, परम्परावादी या यथास्थितिशील नहीं हैं। आधुनिक कविता की स्थायी मूल्यदृष्टि की खोज वह कवि के अनुभव और काव्य के उपकरणों की ज़रूरत के अनुसार करते हैं। इस कसौटी पर वे बड़े कड़े हैं। वे परम्परा की श्रेष्ठतम कविता, कला और सौन्दर्य की ‘प्राचीन या आधुनिक’ हार्दिकताओं को विकसित करते हैं। विकास की उनकी ज़मीन व्यापक है। शमशेर हिन्दी-उर्दू के दोआब के कवि हैं।
ग़ालिब और निराला की मार्मिक भाषाओं के स्वरूप और नाद को शमशेर ने अपनी कविता में आत्मसात् कर लिया है। शमशेर का कलाकार कवि अपनी कला-प्रयोगशाला में तल्लीन रहनेवाला एक वैज्ञानिक कवि है। वह प्रयोगशाला में ‘अत्याधुनिक मर्म की सूचनाएँ’ खोजता रहता है। पतनशील आधुनिक सभ्यता के बाज़ार की चीख़-पुकार से असन्तुष्ट...शमशेर आत्मज्ञान से विकसित होती कविता या कला के विज्ञान को टटोलते चलते हैं।
शमशेर का खोजी सौन्दर्य संगीत की स्वच्छ और निर्मल ऊँचाइयों से कभी निराश नहीं होता। शमशेर के लिए नया रूप लेती मानवीय कला, ऊँची कला का आईना है। वे जानते हैं कि कब पूँजीपति या सत्ता उनकी कविता या कला को संरक्षण देते हैं। शमशेर की ख़ामोशी में एक एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग बनती है, जहाँ कलानुभव का इतिहास, भूले-बिसरे मित्रों की यादें, और अपनी मौत का विडम्बना-भरा प्रसंग घुल-मिल जाता है—कोलाज जैसा। घुल-मिल जाने के अनेक कलानुभवों को वे व्यंग्य की शैली में चित्रित करते हैं और कभी रंगमंच पर ‘जात्रा’ या ‘बाउल’ से लीला करते नज़र आते हैं।
‘काल से होड़ लेता शमशेर’ में
—विष्णुचन्द्र शर्मा
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