Beautiful Poem (Series-4)
Author:
Dr.Sanjay RoutPublisher:
ISL PUBLICATIONSLanguage:
EnglishCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 170
₹
200
Available
A beautiful collection of poetry by renowned author Dr.Sanjay Rout. This book is written in simple language, which is easy to understand. The content is supreme and very useful for the people who want to improve their thoughts and understand various things
ISBN: 8222665225
Pages: 166
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी में समकालीन कवयित्रियों की जो पीढ़ी पिछले पन्द्रह-बीस वर्षों से सक्रिय है और अपनी जगह बना चुकी है, सुमन केशरी उन्हीं की समवयस्क हैं। इस हिसाब से उनका पहला काव्य-संकलन देर से आ रहा है, हालाँकि कविताएँ वे काफ़ी पहले से लिख रही हैं। इस देरी की क्या वजह हो सकती है? शायद यह कि अभी भी भारतीय समाज में आम औरत पर परिवार और बच्चों के पालने के इतने दबाव हैं कि उसकी सर्जनात्मकता के पूर्ण प्रस्फुटन में अन्तराल आते रहते हैं। सम्भवतः यही कारण है कि अपनी एक कविता में सुमन केशरी यह कहती हैं—सृजन के बीहड़ों में मैंने क़दम रखा। कई साल बाद। रो...रोकर...। यह काव्य-पंक्ति सिर्फ़ एक कवयित्री का वक्तव्य-भर नहीं है, बल्कि इसके गहरे सामाजिक आशय हैं। भारतीय समाज में औरत के लिए घर के बाहर की सृजनात्मक दुनिया अभी भी एक बीहड़ प्रदेश है।
इस संग्रह की एक अन्य विशेषता इसमें हिन्दी कविता की कई स्मृतियों का मौजूद होना है। इनको पढ़ते हुए कभी निराला की ‘राम की शक्तिपूजा’ की याद आती है तो कभी विजयदेव नारायण साही की कविताएँ। आधुनिक हिन्दी काव्य-परम्परा का एक मिज़ाज भारतीय मिथकों को नए प्रसंग में जाँचने-परखने का भी रहा है। इस संग्रह में भी ऐसी कई कविताएँ हैं। पर ऐसी कविताएँ भी यहाँ हैं जो हमारे समकालीन अनुभवों का हिस्सा हैं, जैसे ‘सिपाही’, जिसमें अनाम से दिखनेवाले वर्दीधारी की ज़िन्दगी की वे परतें खुलती हैं जिनके बारे में हम अक्सर सजग नहीं होते। जिन्हें हम रोज़ गली-मुहल्ले, सड़क, बाज़ार या सीमा पर देखते हैं, मगर सिर्फ़ उनकी उपस्थिति के बारे में जानते हैं, उनके एहसासों से वाक़िफ़ नहीं होते। इसी तरह ‘बा और बापू’ कविता गांधी और कस्तूरबा के निजी सम्बन्धों को एक नई व्याप्ति देती है जहाँ एक ऐतिहासिक लड़ाई में शामिल हो व्यक्ति एक ऐसी विडम्बना में उलझकर रह जाते हैं जहाँ निजी दुखान्त को प्राप्त होता है।
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Renu Hussain
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- Description: रेणु हुसैन की कविताओं की जो दुनिया है, उसकी केन्द्रीय धुरी है प्रेम। उनकी कविताओं के विषय अपनी पूरी विविधताओं के बावजूद घूम-फिर कर इसी धुरी पर लौट आते हैं लेकिन प्रेम की यह धुरी किसी भी मायने में एकांगी या एकरूपीय नहीं है, बल्कि अपनी पूरी सघनता और विस्तार के साथ बहुआयामी और बहुरूपीय है। आज के समय में जब प्रेम की चारों तरफ़ से घेरा जा रहा है। ‘लव जेहाद’ जैसे फ्रेज़ेज का सायास निर्माण किया जा रहा है, यहाँ प्रेम से पोषित रेणु हुसैन की ये कविताएँ व्यवस्था तथा ऐसे शब्दों के समक्ष मुस्कुराती हुई दिखाई देती हैं। रेणु हुसैन की कविताओं की एक दूसरी धुरी है घर और स्त्री। बात चाहे जो हो रेणु जी की कविताओं में घूमघामकर घर और स्त्री आ ही जाते हैं। लेकिन उनकी कविताओं में स्त्री जितना घर के भीतर है, उतनी वह घर के बाहर नहीं है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि घर के भीतर की स्त्री घर के बाहर नहीं देखती। देखती है लेकिन कम देखती है, मगर जब देखती है तो उसका फ़लक बहुत विस्तृत होता है। इस संग्रह में बहुत-सी कविताएँ इस बात का सशक्त उदाहरण हैं। घर और स्त्री से जुड़ी रेणु जी की कविताएँ इस बात का पता देती हैं कि घर के भीतर स्त्री जितनी है उतना ही स्त्री के भीतर घर। लेकिन रेणु जी की कविताओं में घर और स्त्री का यह सम्बन्ध उन अर्थों में बिल्कुल नहीं है जिन अर्थों में वह जाना जाता है। इन कविताओं में घर बिल्कुल अलग तरीक़े से आता है। अगर घर कहीं किसी रूप में स्त्री को बाँध रहा है तो उतना ही वह उसे आज़ाद भी कर रहा है। स्त्री जितना घर के बाहर जाती है, उतना ही लौटकर घर में वापिस आती है लेकिन अपनी पूरी ठसक, आज़ादी और सम्मान के साथ। ऐसा लगता है कि जैसे स्त्री और घर दोनों एक दूसरे के भीतर लगातार यात्रा कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा में स्त्री लगातार घर से आगे निकलती दिखाई देती है। रेणु हुसैन की कविताओं को देखकर लगता है कि जैसे पेड़ में पत्ते फूटते हैं और फूल आते हैं, ठीक उसी तरह ये कविताएँ काग़ज़ पर चली आई हैं। इन कविताओं में छलक पड़ता और सजीव हो उठता-सा रोमानीपन लगातार हमें अपनी तरफ़ खींचता है। इन कविताओं की भाषा में एक अलग क़िस्म का नयापन और अनोखापन है जो मुसलसल एक वाक्य से दूसरे में गूँजता और दृश्यमान होता हुआ दिखाई देता है। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए लगातार ऐसा लगता रहता है मानो शब्द और वाक्य कवयित्री ने चुने नहीं हैं, बल्कि वे चुन लिए गए हैं भावों के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति के लिए। रेणु हुसैन की कविताएँ और उनकी भाषा हमें इस बात का पता देती हैं कि ये रेणु हुसैन की कविताएँ हैं और रेणु हुसैन की भाषा। —रजनी अनुरागी
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