Ummid Ab Bhi Baqui Hai
Author:
Ravishankar UpadhyayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
युवा कवि रविशंकर उपाध्याय से मेरी पहली और शायद अन्तिम भी, भेंट मेरी पिछली बनारस-यात्रा (30 अप्रैल, 2014) में लाल बहादुर शास्त्री हवाईअड्डा पर हुई थी। उन्होंने अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि वे एक कवि हैं। इससे पहले उनकी कविताएँ यहाँ-वहाँ छपी थीं, शायद उन पर मेरी निगाह पड़ी हो पर मैं उन्हें रजिस्टर नहीं कर सका था। यह भेंट प्रचंड गर्मी के बीच हुई थी, जब वे मेरी अगवानी में हवाईअड्डा आए थे। रास्ते-भर उनसे काफ़ी बातें होती रहीं। अब याद करता हूँ तो दो बातें मेरी स्मृति में ख़ास तौर से दर्ज हैं। पहली समकालीन हिन्दी कविता के बारे में उनकी विस्तृत और गहरी जानकारी और दूसरी, कुछ कवियों और कविताओं के बारे में उनकी अपनी राय। इन दोनों बातों ने मुझे प्रभावित किया था।</p>
<p>बाद में विश्वविद्यालय में जो कार्यक्रम हुआ, उसमें उनकी कविताएँ भी मैंने सुनीं और उन कविताओं की एक अलग ढंग की स्वरलिपि मेरे मन में अब भी अंकित है। मैं शायद दो दिन विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में रुका था और इस बीच लगातार उनसे मिलना होता रहा। उनसे मेरी अन्तिम भेंट विश्वविद्यालय परिसर में विश्वनाथ मन्दिर के बाहर एक चाय की दुकान पर हुई थी, जहाँ उनके कुछ गुरुजन भी थे। वहाँ मैंने उनकी कविता में जो एक गहरी ऐन्द्रियता और एक ख़ास तरह की गीतात्मकता है, उस पर चर्चा की थी। पर ये दो शब्द उनकी कविता की पूरी तस्वीर नहीं पेश करते। अब जब उनका पहला संग्रह आ रहा है और कैसी विडम्बना कि उनके न होने के बाद आ रहा है। इसे पढ़कर पाठकों को उनका ज़्यादा प्रामाणिक परिचय मिलेगा। रविशंकर के बारे में कहने के लिए बहुत-सी बातें हैं पर मैं चाहता हूँ कि यह संग्रह ही लोगों से बोले-बतियाए। मैं इस युवा कवि की स्मृति को नमन करता हूँ!</p>
<p>—केदारनाथ सिंह</p>
<p>
ISBN: 9788183616881
Pages: 88
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: विनय दुबे कविता से खेलते हैं, जैसे कोई बच्चा खेलता है, लेकिन खिलौनों से नहीं, किसी खेल के औज़ार से जैसे—हॉकी या बल्ला, जिससे चाहें तो हथियार का काम भी लिया जा सकता है। खेल-खेल में बनती दिखती ये कविताएँ इसीलिए पढ़ने-सुनने के थोड़ी देर बाद धारदार शस्त्र की तरह चमकती प्रतीत होती हैं। विनय दुबे, जैसा उन्होंने स्वयं कहा, चीज़ों को ‘गम्भीरता’ से नहीं, ‘कॉमिकली’ लेते थे। बड़ेपन और ताक़त के आरोपित मुलम्मे से ढकी चीज़ों को जैसे वे अपने जीवन में शरारत से हिला-डुलाकर देखते रहे होंगे, वैसे ही उनकी कविताएँ भी देखती हैं। मसलन ‘मैं शिकायत करूँगा’ शीर्षक कविता में ईश्वर से उनका सम्बोधन—‘‘प्रधानमंत्री जी से आपकी शिकायत करने जा रहा हूँ कि जो/ईश्वर है वह मेरी नहीं सुनता है।’’ जिस चीज़ पर उनकी कविता अन्ततः भरोसा करती है, वह है स्थानीयता और मामूलीपन, उसी के पक्ष में उसकी तमाम मुद्राएँ हैं। वे उस विचार से भी आतंकित नहीं जो पूँजी की तरह बर्ताव करने लगता है, न अन्तरराष्ट्रीयता से, न धन बल से, न सत्ता बल से। ‘‘मेरा प्रेम होशंगाबाद के अमरूद हैं/...दिल्ली की राजनीति नहीं है। कोई सद्भावना यात्रा भी नहीं है प्रधानमंत्री जी की।’’ तमाम ताक़तों के ख़िलाफ़ उनकी कविताएँ आधा-सा हँसता हुआ एक विदूषकीय मुखौटा गढ़ती हैं, कोई विमर्श नहीं, क्योंकि विमर्श फिर एक-एक सत्ता की तरह पेश आने लगता है। उनकी कविता का अटूट विश्वास प्रेम है, जहाँ वह बार-बार लौटती है, कुछ ऐसे निष्कर्षों के साथ—‘हमारे समय का सबसे बड़ा झूठ/शासन है हमारे समय का सबसे बड़ा अन्याय/प्रशासन है हमारे समय का सबसे बड़ा फ़रेब/दिल्ली है’ (‘दुखी है कबीरदास’ कविता से)
Gujrat Ke Baad
- Author Name:
Jagannath Prasad Das
- Book Type:

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Description:
कविता संवेदना और विचार के सहमेल से यथार्थ को उसकी समग्र सम्भावना के साथ व्यक्त करती है। जगन्नाथ प्रसाद दास की कविताओं को पढ़ते हुए निरन्तर अनुभव होता है कि कविता समकालीन यथार्थ के साथ परम्परा के संघर्ष को भी प्रकट करती है। ‘गुजरात के बाद’ की कविताएँ गहन आत्मानुभूति से उपजी हैं। परिवेश का प्रभाव तो है ही, कवि ने स्मृतियों को टटोलते हुए अर्थ की पूँजी सहेजी है।
इन कविताओं में उम्मीद का उजाला है। यह उजाला विषाद के क्षणों में भरोसा दिलाता है। कवि ने हमारे समय के संकटों को कई जगह संकेतित किया है। ‘अरण्य’ की पंक्तियाँ हैं : “वनस्पति की सघनता को भेदकर/लकड़हारे की पदचाप सुनाई पड़ती है/सहज कलरव का अविरल छन्द/हठात् थम जाता है/इतिहास की अन्तिम कथा-सा।”
जगन्नाथ प्रसाद दास की इन मूलत: ओड़िया कविताओं का अनुवाद करते समय राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कविता की बहुअर्थी प्रकृति का ध्यान रखा है।
Dayare Hayaat Mein
- Author Name:
Kumar Nayan
- Book Type:

- Description: अपने एह्सासात से कारईन व सामईन को रफ़्ता-रफ़्ता मदहोश बना देनेवाले कुमार नयन की शायरी के कई रंग हैं। उनकी ग़ज़लें इश्क़ो-मुहब्बत से सराबोर हैं तो हालाते-हाजरा की मंज़रकशी करती हुई अवाम की दुखती रगों को छूती भी हैं। अपने वक़्त और समाज के तक़ाज़ों को पूरा करती हुई नाइंसाफ़ी, ज़ुल्मो-सितम, बन्दिशों के ख़िलाफ़ चुप्पी तोड़ने की शाइस्तगी से तरफ़दारी भी करती हैं। ग़ज़ल कहनेवालों की भीड़ में कुमार नयन अपनी ज़ुबान और शेरों के मफ़हूम से पहचाने जा सकते हैं। दरअस्ल इनकी ज़ुबान ख़ालिस हिन्दवी ज़ुबान है और शायर भी ख़ालिस गँवई हिन्दुस्तानी जिसका लहज़ा सरल व सहज होने के बावजूद अन्दाज़े-बयाँ क़ाबिलेतारीफ़ और ख़यालात दिलों में हलचल मचानेवाले हैं।
Beautiful Poem (Series-2)
- Author Name:
Dr.Sanjay Rout
- Book Type:

- Description: Beautiful Poem(Series-2) is a wonderful book by Dr. Sanjay Rout and it's a series of beautiful poems which are not just words, but they have the power to change our lives. A book that can help you find yourself and at the same time make your life meaningful and impactful.
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