Nadi Ghar
Author:
Krishna KishorePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 236
₹
295
Available
यह जीवन के साथ एक सहयात्री की तरह चलती जीवन जैसी ही लम्बी कविता है। किसी बड़ी भीतरी या बाहरी घटना-दुर्घटना की प्रतिक्रिया से उपजी हुई नहीं, बल्कि जीवन के रोजमर्रा के साथ बतियाती हुई कविता।</p>
<p>लेकिन जीवन से आक्रांत कविता नहीं, न ही उसके हर ओर फैले विराट वैभव से भयभीत। एक धीमी बतकही की तरह यह अपनी आँख से अपने आसपास के संसार को, व्यक्ति को, उसके इर्द-गिर्द बुने गुए रिश्तों के संजाल को, भीड़ को, भीड़ के बीच भटकती व्यर्थता को देखती हुई, और इन सबके बारे में कुछ कहती-सुझाती-बताती हुई।</p>
<p>'प्रार्थनारत ज़िन्दगी मुझे क्रोधित नहीं करती। क्योंकि मैं जानता हूँ। ये मजबूर लोग जो कुछ माँग रहे हैं। बस वही इन्हें नहीं मिलना है।' कवि इस कविता में जैसे संसार के बीच अपने होने का ऋण चुकता करते हुए अनेक चीजों की तरफ इशारा करता है। प्रकृति में निहित आखिरी उम्मीद को भी हमारे ध्यान में लाता है और हमारे समाज के भीतर की नकारात्मकता को भी जिसके चलते कई बार हमारा पल-पल व्यथा का बिम्ब होकर रह जाता है।</p>
<p>कवि इस कविता के बारे में अपनी बात रखते हुए कहता है कि नदी घर एक ऐसी यात्रा पर निकलने का प्रयास है जो इस दुनिया को उन ताकतों से मुक्ति दे जिनके चलते घर कारागार हो गए हैं और हमारा अपना वजूद एक बोझ
ISBN: 9789390971718
Pages: 101
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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वे मानते हैं कि दैनिक यथार्थ के साथ कविता का रिश्ता नज़दीक का भी हो सकता है और दूर का भी और दोनों ही तरह वह जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकता है—सवाल है, कविता कितने सच्चे और उदार अर्थों में हमें आदमी बनाने की ताक़त रखती है। कविता उनके लिए जीवन का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं, जीवन का सबसे आत्मीय प्रसंग है—कविता, जो अपने चारों तरफ़ भी देखती है और अपने को सामने रखकर भी। उनकी कविताओं में हमें बहुत सतर्क क़िस्म की भाषा का इस्तेमाल मिलता है; वह कभी बहुत गहराई से किसी ऐतिहासिक या दार्शनिक अनुभव की तहों में चली जाती है और कभी इतनी सरल दिखती है कि वह हमें अपने बहुत क़रीब नज़र आती है। बहुआयामी स्तरों पर भाषा से यह लड़ाई और प्यार कुँवर नारायण को चुनौती देता है, ख़ास तौर पर एक ऐसे वक़्त में जब कविता का एक बड़ा हिस्सा एक ही तरह की भाषा में अपने को अभिव्यक्त किए चला जा रहा है।
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Description:
गहरी से गहरी बात को आसानी से कह देने का जटिल हुनर जाननेवाले राहत भाई से मेरा बड़ा लम्बा परिचय है। मुशायरे या कवि-सम्मेलन में वे कमल के पत्ते पर बूँद की तरह रहते हैं। पत्ता हिलता है, झंझावात आते हैं, बूँद पत्ते से नहीं गिरती। कई बार कवि और शायर कार्यक्रम शुरू होने से पहले मंच पर आसन जमा लेते हैं, लेकिन इस नए कॉरपोरेट ज़माने में चूँकि कवि-सम्मेलन या मुशायरा एक शो या इवैंट की तरह हैं, तो शुरुआत से पहले आम तौर से शायर हज़रात मंच के पीछे खड़े रहते हैं। नाम के साथ एक-एक करके उनको पुकारा जाता है, तब मंच पर आते हैं। जिस शायर के लिए ख़ूब देर तक ख़ूब सारी तालियाँ बजती रहती हैं, उनका नाम है राहत इन्दौरी। एक अध्यापक जैसे सादा लिबास में वे आते हैं, जो बिलकुल शायराना नहीं होता। तालियों के प्रत्युत्तर में वे हल्का सा झुककर सामईन को आदाब करते हैं और बैठने के लिए अपनी सुविधा की जगह देखते हैं, वैसे उन्हें पालथी मारकर बैठने में भी कोई गुरेज़ नहीं होता। एक बेपरवाही भी शाइस्तगी के साथ मंच पर बैठती है, जब राहत भाई बैठते हैं। आम तौर से हथेली को गद्दे से टिका देते हैं। मैं कई बार उनके गाढ़े साँवले सीधे हाथ को, जिसको वे टिकाते हैं, देर तक देखता रहता हूँ, उसकी अँगूठियों को निहारता हूँ और उँगली अँगूठे के पोरों को देखता हूँ कि कितनी ख़ुश होती होगी वह क़लम जब इस हाथ से अशआर निकलते होंगे। ऐसे अशआर जिनकी ज़िन्दगी बहुत तवील है, बहुत लम्बी है।
राहत साहब जब माइक पर आते हैं तो लगता है कि ये ज़मीन से जुड़ा हुआ आदमी कुछ इस तरह खड़ा है कि ज़मीन ख़ुश है और वो जब हाथ ऊपर उठाते हैं तो लगता है कि आसमान छू रहे हैं। वे तालियों से बहुत ख़ुश हो जाएँ या अपने अशआर सुनाते वक़्त तालियों की अपेक्षा रखें, ऐसा नहीं होता। उनका अन्दाज़, उनके अल्फाज़, उनकी अदायगी, ज़बान पर उनकी पकड़, उनकी आवाज़ का थ्रो, उनके हाथों का संचालन, माइक से दूर और पास आने की उनकी कला, शब्द की अन्तिम ध्वनि को खींचने का उनका कौशल, एक पंक्ति को कई बार दोहराकर सोचने का समय देने की होशियारी, एक भी शब्द कहीं ज़ाया न हो जाए इसकी सावधानी, न कोई भूमिका और न उपसंहार, अगर होते हैं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ अशआर। बहुत नहीं सुनाते हैं, लेकिन जो सुना जाते हैं, वह कम नहीं लगता। क्योंकि वे जो सुना गए, उस पर सोचने के लिए कई गुना वक़्त ज़रूरी होता है। वे सामईन को स्तब्ध कर देते हैं। वे अपने जादू की तैयारी नहीं करते, लेकिन जब डायस पर आ जाते हैं तो उनका जादू सिर चढ़कर बोलता है। राहत इन्दौरी का होना एक होना होता है। वे अपनी निज की अनोखी शैली हैं, दुनिया-भर के सैकड़ों शायर उनका अनुकरण करते हैं, लेकिन सिर्फ़ कहन की शैली से क्या होता है, शैली के पीछे सोच और समझ का व्यापक भंडार भी तो होना चाहिए।
‘जुगनुओं ने फिर अँधेरों से लड़ाई जीत ली, चाँद, सूरज घर के रौशनदान में रखे रहे' ये शे’र ये बताता है कि उनके अन्दर इतना हौसला है कि कायनात से चाँद-सूरज को उठाकर वे अपने रौशनदान में रख सकते हैं। रौशनदान दोनों तरफ़ उजाला करता है। घर के अन्दर भी और घर के बाहर भी। अगर वे सूरज, चाँद हैं तो। मुझे लगता है कि राहत इन्दौरी एक रौशनदान हैं, जो आभ्यन्तर लोक को भी देदीप्यमान करते हैं तो बहिर्लोक को भी चुँधिया देते हैं। बहुत लम्बी चर्चा की जा सकती है राहत भाई के बारे में वो कवि-सम्मेलनों और मुशायरों के लिए एक राहत हैं, एक धरोहर हैं क्योंकि वे सामईन की चाहत हैं। मैं दुआ करता हूँ कि राहत भाई कवि-सम्मेलन और मुशायरों को स्तरीय बनाए रखने में अपना योगदान दीर्घकाल तक देते रहें...!
—अशोक चक्रधर
I Love You (Hindi Translation )
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Zid
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