Pratinidhi Kavitayen : Raghuvir Sahay
Author:
Raghuvir SahayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
‘आज़ादी’ मिली। देश में 'लोकतंत्र’ आया। लेकिन इस लोकतंत्र के पिछले पाँच दशकों में उसका सर्जन करनेवाले मतदाता का जीवन लगभग असम्भव हो गया। रघुवीर सहाय भारतीय लोकतंत्र की विसंगतियों के बीच मरते हुए इसी बहुसंख्यक मतदाता के प्रतिनिधि कवि हैं, और इस मतदाता की जीवन-स्थितियों की ख़बर देनेवाली कविताएँ उनकी प्रतिनिधि कविताएँ हैं।</p>
<p>रघुवीर सहाय का ऐतिहासिक योगदान यह भी है कि उन्होंने कविता के लिए सर्वथा नए विषय-क्षेत्रों की तलाश की और उसे नई भाषा में लिखा। इन कविताओं को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि उन्होंने ऐसे ठिकानों पर काव्यवस्तु देखी है जो दूसरे कवियों के लिए सपाट और निरा गद्यमय हो सकती है। इस तरह उन्होंने जटिल होते हुए कवि-कर्म को सरल बनाया। परिणाम हुआ कि आज के नए कवियों ने उनके रास्ते पर सबसे अधिक चलने की कोशिश की।</p>
<p>रघुवीर सहाय की कविताओं से गुजरना देश के उन दूरदराज़ इलाक़ों से गुज़रना है जहाँ आदमी से एक दर्जा नीचे का समाज असंगठित राजनीति का अभिशाप झेल रहा है।
ISBN: 9788171789634
Pages: 162
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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लोकरंग में रची-बसी इस समाद्रित स्त्री कवि की शब्द और बिम्ब-सम्पदा के स्रोत अनन्त हैं। यहाँ लोकजीवन का कोई अनूठा प्रसंग विश्व-साहित्य के किसी मार्मिक प्रसंग की उँगली पकडक़र उसी तरंग में उठता है जिसमें चेखव की ‘तीन बहनें’ उठती थीं। मिलकर देखे एक सपने का तबोताब है इनमें!
मुहावरे, कहावतें, पढ़ा-सुना-भोगा हुआ– सब कुछ एक अलग कौंध में उजागर करती इन कविताओं में स्त्री-भाषा अपने पूरे ठस्से के साथ अपनी अलग-सी उपस्थिति दर्ज करती है।
Taseer
- Author Name:
Sulabha Kore
- Book Type:

- Description: A Collection Of Hindi Poems by Sulabha Kore
Dhoop Ka Tukda
- Author Name:
Amrita Preetam
- Book Type:

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अमृता प्रीतम की कविताओं में रमना, हृदय में कसकती व्यथा का घाव लेकर, प्रेम और सौन्दर्य की धूपछाँह-वीथी में विचरने के समान है, जहाँ वियोग तथा अतृप्ति के तीखे नुकीले काँटे भावना के सुकुमार चरणों को क्षत-विक्षत करते रहते हैं । ऐसी गहरी, दर्द में डूबी, प्राणिक संवेदनाओं के गीत कम ही देखने को मिलते हैं। अमृताजी धरती के जीवन के गीत भी गाती हैं । वह युग-संघर्ष के प्रति प्रबुद्ध होने के कारण प्रगतिशील भावधारा से प्रेरित हैं, किन्तु प्रेम के प्रति एकाग्र समर्पण ही उनकी जीवन-साधना तथा आत्म-विकास का एकान्त पथ है।
अमृताजी की कविताओं के अनुवाद से हिन्दी काव्य भाव-धनी, स्वप्न-संस्कृत तथा शिल्प-समृद्ध बनेगा। इन कविताओं से यह सहज ही प्रमाणित हो जाता है कि अमृताजी का स्थान पंजाबी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं में भी प्रथम श्रेणी के योग्य है । इस संग्रह से हिन्दी के नये कवियों को विशेष प्रेरणा मिलेगी। जिस गहरी भाव-संवेदना, सामाजिक यथार्थ तथा युग मानव की व्यथा का सच्चा चित्रण अमृताजी ने अपनी नारी-हृदय की जादू-तूली से इन कविताओं में किया है, वह उनकी कृति को एक अत्यन्त उच्च तथा व्यापक स्तर पर उठा देती है।
—सुमित्रानन्दन पंत
Kaju Ki Roti
- Author Name:
Pankaj Chaturvedi
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पंकज चतुर्वेदी की कविता उन पाठकों के दिल के बहुत क़रीब रहती है, जो समझते हैं कि कविता का सबसे ज़रूरी काम भाषा में अर्थ के जनसंहार को विफल करना है। सभी तरह की आततायी सत्ताएँ इस जनसंहार की हिस्सेदार होती हैं। भाषा को जुमलेबाज़ी में घसीटकर लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदला जा सकता है। विनाश को विकास की तरह दिखाया जा सकता है। अन्याय को न्याय की आभा दी जा सकती है। जनसंहार को राष्ट्रीय गौरव के अभिसार में बदला जा सकता है। झूठ को सच बनाया जा सकता है। कविता इस प्रपंच को उजागर कर शब्दों के सच्चे अर्थों का पुनर्जन्म घटित करती है।
रघुवीर सहाय की कविता ने इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभाया। उन्होंने देखा था कि शासक जब 'लोकतंत्र का अन्तिम क्षण है' कहकर हँसते हैं, तब वे लोकतंत्र के अर्थ का ही अन्त नहीं करते, हँसी को भी हत्या के उल्लास में बदल देते हैं। पंकज की कविता देख रही है कि नेता जब कहता है 'देश के लिए जी रहा हूँ', तब उसकी मुराद यह होती है कि उसके जीने में ही देश का जीना समझा जाए!
पंकज की कविता में दर्ज है कि आज असहमति को दबोचती हुई मुस्कान हिंसा के नहीं, मेहरबानी के रूप में प्रकट हो रही है। यह विफल लोकतंत्र का नहीं, फ़ासीवाद के उत्थान का लक्षण है।
रघुवीर सहाय से पंकज चतुर्वेदी तक हिन्दी कविता की यात्रा लोकतंत्र के अन्तिम क्षण से फ़ासीवाद के पहले क्षण तक की यात्रा है। खुली सड़क पर पूर्व-घोषित हत्या के कातर तमाशबीन अब सिर्फ़ तमाशा नहीं देखते, हत्यारों की जय-जयकार भी करते हैं।
भाषा के हर पाखंड को उजागर करने की ज़िद में पंकज की कविता, कविता जैसी न दिखने की हद तक कविता के आडम्बरों से परहेज़ करती है। दुस्साहस सरीखा यह साहस उनकी कविता को हमारे समय की सच्ची और पारदर्शी कविता होने की क़ुव्वत अदा करता है।
—आशुतोष कुमार
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