Khudgarziyan Poems
Author:
VaishaliPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
"वैशाली, इनकी अलमारी में अंग्रेज़ी साहित्य और मास कम्यूनिकेशन की दो—दो स्नातकोत्तर उपाध्यि इठला रही थीं, तभी ढेर सारे आलेखनों और कविताओं के पन्नों ने इन्हें झुके रहना सिखाया…
पिछले एक दशक से कॉपी राइटिंग क्षेत्र में सक्रिय हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के लिए कई सारे चुनावी और अन्य प्रचार अभियान भी लिख चुकी हैं…
विषय कोई भी हो, उसमें जान डालने की कला को इन्होंने वक्त के साथ निखारा…
प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा रखती हैं ये, और राष्ट्रवाद पर कई गाने और टीवी व सोशल मीडिया की फिलमे भी लिख चुकी हैं…
और हर सृजन ने इन्हें देशभक्ति का एक नया मतलब समझाया…
मघ्यमवर्गीय गुजराती परिवार में इनका जन्म हुआ…
कर्म ही र्घम इनके जीवन का मूल—मंत्र है…
इसी मंत्र ने उनको एक छोटे से शहर से राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया…
कविता लिखने की इनकी शैली मे सरलता है। हल्के—फल्के शब्दों के प्रयोग से ये अपनी बात ईमानदारी स कह जाती हैं। यही सरलता और सहजता से आगे भी लिखते रहना है, और भी बहुत कुछ सीखते रहना है…
जय हिंद…
ISBN: 9789353224998
Pages: 102
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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कमाल की औरतें हैं वो जो कितना कुछ सहकर बनी रहीं; कमाल की औरतें हैं वो जिन्होंने अपने मन की किसी हौंस के लिए सारे ज़माने को ठेंगे पर रख उड़ा दिया; कमाल की औरतें हैं वो जो अपनी हर ख़ूबी को छिपाकर पति को बड़ा बनने का मौक़ा देती रहीं; कमाल की औरतें हैं वो जो बच्चों के मज़ाक़ का विषय बनती, रहीं फिर भी उन्हें असीसती रहीं; और कमाल की औरतें हैं वो जो हमारी छोटी या बड़ी बहनें हैं, बुआ हैं, दादी फुआ हैं, जिनकी ज़िन्दगी का कितना समय इस इन्तज़ार में बीत गया कि नैहर से बुलावा आएगा कि उनके भाई-पिता-माँ-भाभियाँ, भतीजे-भतीजियाँ उन्हें गले से लगा सुनेंगे उनके दुख, पूछेंगे कि कैसी बीत रही है, कि कोई दुख तो नहीं है तुम्हें...
कमाल की औरतें संग्रह में सब तरह की औरतें मौजूद हैं—पीड़ित, अकेली, विद्रोही, दाम्पत्य को छिन्न-भिन्न करने को आतुर भी, और दाम्पत्य में खप जाने को तत्पर भी—जिन्हें शैलजा पाठक की भाव-प्रवण भाषा में अभिव्यक्ति मिली है—बिलकुल ऐसे जैसे दोपहर बाद के सुस्ताते समय की बतकहियों में।
इनमें से कई औरतें हैं जिन्हें प्रचलित स्त्री-विमर्श अच्छे से जानता है, लेकिन कुछ हैं जिनके दुख पर आधुनिक दृष्टि उस तरह नहीं पड़ी। यह अच्छी बात है कि उन्हें लेकर इस संग्रह में पर्याप्त कविताएँ हैं। समय से पहले बूढ़ी होती बहनें-बुआएँ—नैहर और ससुराल के बीच की धूल उड़ाती पगडंडियों पर जिनके असंख्य दुख अदेखे ग़ायब हो जाते हैं—इन कविताओं में उन्हें पढ़ना दुख के किसी टापू पर अचानक पहुँच जाने जैसा है...स्तब्धकारी!
Nepathy Mein Hansi
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है । हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं । घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है । दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में .शायद इसके कुछ संकेत मिलें । शायद इसीलिए इन कविताओं में 'मूड्स' की बहुत भिन्नताएं हैं । निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है । और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं । ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है ।
Gayatri-Madhubala
- Author Name:
Dr. A.N. Lal Shrivastav +1
- Book Type:

- Description: Collection of Poems
Dushchakra Mein Srashta
- Author Name:
Viren Dangwal
- Book Type:

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Description:
कविता में यथार्थ को देखने-पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीक़ा अलग, अनूठा और बुनियादी क़िस्म का रहा है। उनकी कविता ने समाज के साधारण जनों और हाशियों पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्योरे और दृश्य हमें दिए हैं, वे सबसे अधिक बेचैन करनेवाले हैं। कविता की मार्फ़त वीरेन ने ऐसी बहुत-सी चीज़ों और उपस्थितियों के संसार का विमर्श निर्मित किया जो प्राय: अनदेखी थीं। इस कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा थी और उसकी बुनावट में ठेठ देसी क़िस्म के ख़ास और आम अनुभवों की संश्लिष्टता थी। सन् 1991 में प्रकाशित उनके पहले कविता-संग्रह ‘इसी दुनिया में’ से ही ये बातें बिलकुल स्पष्ट हो गई थीं। वीरेन की विलक्षण काव्य-दृष्टि पर्जन्य, वन्या, वरुण, द्यौस जैसे वैदिक प्रतीकों और ऊँट, हाथी, गाय, मक्खी, समोसे, पपीते, इमली जैसी अति लौकिक वस्तुओं की एक साथ शिनाख़्त करती हुई अपने समय में एक ज़रूरी हस्तक्षेप करती है ।
वीरेन डंगवाल का यह कविता-संग्रह–‘दुश्चक्र में स्रष्टा’–जैसे अपने विलक्षण नाम के साथ हमें उस दुनिया में ले जाता है जो इन वर्षों में और भी जटिल, और भी कठिन हो चुकी है और जिसके अर्थ और भी बेचैन करनेवाले बने हैं। विडम्बना, व्यंग्य, प्रहसन और एक मानवीय एब्सर्डिटी का अहसास वीरेन की कविता के कारगर तत्त्व रहे हैं। इन कविताओं में इन काव्य-युक्तियों का ऐसा विस्तार है जो घर और बाहर, निजी और सार्वजनिक, आन्तरिक और बाह्य को एक साथ समेटता हुआ ज़्यादा बुनियादी काव्यार्थों को सम्भव करता है। विचित्र, अटपटी, अशक्त, दबी-कुचली और कुजात कही जानेवाली चीज़ें यहाँ परस्पर संयोजित होकर शक्ति, सत्ता और कुलीनता से एक अनायास बहस छेड़े रहती हैं और हम पाते हैं कि छोटी चीज़ों में कितना बड़ा संघर्ष और कितना बड़ा सौन्दर्य छिपा हुआ है।
Pratinidhi Kavitayen : Bharatbhushan Agrawal
- Author Name:
Bharatbhushan Agrawal
- Book Type:

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Description:
भारतभूषण अग्रवाल की कविता बिना किसी नाटकीयता, बिना कोई चीख़-पुकार मचाए ईमानदारी से अपनी सच्चाई को देखती-परखती कविता है। उसमें रूमानी आवेग से लेकर मुक्त हास्य, विद्रूप से लेकर अनुराग और कोमलता की कई छवियाँ, सभी शामिल हैं। कामकाजी मध्यवर्ग की विडम्बनाएँ, संवेदनशील व्यक्ति के ऊहापोह, शहराती ज़िन्दगी के रोज़मर्रा के सुख-दु:ख आदि को भारत जी ईमानदारी और पारदर्शिता से अपनी कविता में जगह देते हैं। उनमें अपनी विशिष्टता का रत्ती-भर भी आग्रह नहीं है। बल्कि अगर आग्रह है तो अपनी सीधी-सादी, सरल जान पड़ती लेकिन दरअसल जटिल साधारणता का। यह आग्रह उनकी आवाज़ को और सघन तथा उत्कट बनाता है।
उनकी कविता अपने को महत्त्वाकांक्षा के किसी विराट लोक में विलीन नहीं करती। वह अपनी उत्सुकताओं और बेचैनियों को जतन से नबेरती है। वह कविता में विकल्प इतना नहीं खोजती जितना सच्चाई की ही कई अन्यथा अलक्षित रह जानेवाली परतों को। कविता में कवि का यह अहसास बराबर मौजूद है कि सच्चाई और ज़िन्दगी कविता से कहीं बड़ी और व्यापक हैं और वे कविता में अँट नहीं पा रही हैं।
Kagaz Par Aag
- Author Name:
Vasant Sakargaye
- Book Type:

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Description:
‘निर्भयता एक ज़िद है/हर डर के विरुद्ध’ कहने वाले वसंत सकरगाए अपनी कविताओं में इस निर्भयता को पूरी ज़िद के साथ निभाते भी हैं। सफ़ेदपोश समाज के अँधेरे कोने हों या राजनीति की दम्भी और जन-निरपेक्ष मुद्राएँ, उनका कवि अपनी बात बिना किसी डर के और साफ़-साफ़ शब्दों में कहता है।
इस संग्रह में शामिल वे कविताएँ जो उन्होंने देश के वर्तमान राजनीतिक हालात को देखते हुए लिखीं; उनके सरोकारों को भी दिखाती हैं, और उनकी निडरता को भी रेखांकित करती हैं। ‘बुलडोजर हमारा राष्ट्रीय यंत्र’, ‘पत्र वापसी के लिए आवेदन-पत्र’, ‘मेरे घर छापा पड़ा’ और ‘कान’ जैसी कविताएँ बताती हैं कि कवि ने इक्कीसवीं सदी के भारत के राजनीतिक-सामाजिक समय को कितनी स्पष्ट पक्षधरता और पीड़ा के साथ लेकिन बिना किसी भय के देखा है। उनकी इन जैसी कविताओं का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ कवि अरुण कमल कहते हैं कि “ये कविताएँ ब्रेष्ट और नागार्जुन की याद दिलाती हैं और सिद्ध करती हैं कि सही समझ, निर्भीकता और ईमानदारी से ही प्रतिरोध संभव है।”
प्रकृति, लोक, जन-गण की बोली-भाषा और उनमें रचे-बसे जीवन को वे जैसे वर्तमान की भयावहता के समक्ष एक विकल्प की तरह लेकर चलते हैं; और कवि के अपने संसार को भी जो उनके लिए एक सम्पूर्ण जगत है। आलोचक विजय बहादुर सिंह के शब्दों में “कविता ज़मीन की ही चिन्ता न करे बल्कि ज़मीन से अँखुवे की तरह फूटे और लहलहाए भी..., यह आपका कवि करता है।... अच्छा लगा कि आप कोई भंगिमा लेकर नहीं बल्कि जीवन के गवाह कवि के रूप में आते हैं।”
यह संग्रह निश्चय ही बृहत् हिन्दी समाज का ध्यान आकर्षित करेगा।
Padmavat
- Author Name:
Acharya Ramchandra Shukla
- Book Type:

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Description:
हिन्दी के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित प्रस्तुत पुस्तक ‘पद्मावत’ एक प्रेमाख्यान है जिसमें प्रेम-साधना का सम्यक् प्रतिपादन किया गया है। इसमें प्रेमात्मक इतिवृत्ति की रोचकता है, गम्भीर भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति व उदास चरित्रों का विशद चित्रण है।
सिंहल द्वीप के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री पद्मावती परम सुन्दरी थी और उसके योग्य वर कहीं नहीं मिल रहा था। पद्मावती के पास हीरामन नाम का एक तोता था, जो बहुत वाचाल एवं पंडित था और उसे बहुत प्रिय था।
पद्मावती के रूप एवं गुणों की प्रशंसा सुनते ही राजा रतनसेन उसके लिए अधीर हो उठे और उसे प्राप्त करने की आशा में जोगी का वेश धारण कर घर से निकल पड़े।
सिंहल द्वीप में पहुँचकर राजा रतनसेन जोगियों के साथ शिव के मन्दिर में पद्मावती का ध्यान एवं नाम जाप करने लगे। हीरामन ने उधर यह समाचार पद्मावती से कह सुनाया, जो राजा के प्रेम से प्रभावित होकर विकल हो उठी। पंचमी के दिन वह शिवपूजन के लिए उस मन्दिर में गई, जहाँ उसका रूप देखते ही राजा मूर्च्छित हो गया और वह भली-भाँति उसे देख भी नहीं सका। जागने पर जब वह अधीर हो रहे थे, पद्मावती ने उन्हें कहला भेजा कि दुर्ग सिंहलगढ़ पर चढ़े बिना अब उससे भेंट होना सम्भव नहीं है। तदनुसार शिव से सिद्धि पाकर रतनसेन उक्त गढ़ में प्रवेश करने की चेष्टा में ही सबेरे पकड़ लिए गए और उन्हें सूली की आज्ञा दे दी गई। अन्त में जोगियों द्वारा गढ़ के घिर जाने पर शिव की सहायता से उस पर विजय हो गई और गन्धर्वसेन ने पद्मावती के साथ रतनसेन का विवाह कर दिया।
विवाहोपरान्त राजा रतनसेन चित्तौड़ लौट आए और सुखपूर्वक रानी पद्मावती के साथ रहने लगे।
दूसरी तरफ़ बादशाह अलाउद्दीन रानी पद्मावती के रूप-लावण्य की प्रशंसा सुनकर मुग्ध हो जाता है और विवाह करने को आतुर हो उठा।
इसके बाद राजा रतनसेन से मित्रता कर छलपूर्वक उन्हें मरवा दिया। पति का शव देखकर रानी पद्मावती सती हो गईं।
अन्त में जब अलाउद्दीन अपनी सेना के साथ चित्तौड़गढ़ पहुँचता है तो रानी पद्मावती की चिता की राख देखकर दु:ख एवं ग्लानि का अनुभव करता है।
इस महाकाव्य में प्रेमतत्त्व-विरह का निरूपण तथा प्रेम-साधना का सम्यक् प्रतिपादन तथा सूक्तियों, लोकोक्तियों, मुहावरे तथा कहावतों का प्रयोग बड़े ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
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