Granthi
Author:
Sumitranandan PantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 28
₹
35
Unavailable
महाकवि सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में ‘ग्रंथि’ उनकी कविता के अतुकान्त का सौन्दर्य स्वरूप खंडकाव्य है। यह रचना जनवरी 1920 में लिखी गई और पहली बार 1929 में प्रकाशित हुई। पंत जी की महत्त्वपूर्ण काव्य-रचना ‘उच्छ् वास की तरह ही यह कथात्मक कृति है। कथा-भाग बहुत थोड़ा है पर स्पष्ट है।</p>
<p>
ISBN: 9788171780631
Pages: 48
Avg Reading Time: 2 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: दग्ध हृदय की अत्यन्त तरल और सजल अभिव्यक्ति हैं तसलीमा नसरीन की ये कविताएँ—अनवद्य जल पद्य है यह। जैसे पानी को मुट्ठी में बाँधकर नहीं रखा जा सकता, पानी की यह पुकार भी कुछ वैसी ही है। यह प्रवाह आपको बहाता है, डुबाता है, इसमें आप तैरते हैं और यह सीधे हृदय में उतर जाता है। नितान्त व्यक्तिगत-सी लगती ये कविताएँ दरअसल राख हो रहे जीवन को सजल और प्राणवान बनाने का उपक्रम हैं और गहरी जिजीविषा से उपजी हैं। जीवन के प्रति अदम्य मोह और ललक से भरी हैं ये कविताएँ। देश से, परिवेश से और परिवार से वंचित, निर्वासित जीवन बिता रही तसलीमा की इन कविताओं में यद्यपि दुःख की एक सर्वग्रासी छाया है लेकिन यह भी है कि दु:ख को जीकर-बरतकर ही उदात्त और महत्तर की आत्मोपलब्धि की जा सकती है। तसलीमा कहती हैं : ‘कविता को जन्म देने के लिए स्त्री होना होता है पहले।’ स्त्री-पुरुष के लिंग-भेद को अस्वीकार करती तसलीमा जीवन को अविभाज्य रूप में देखती हैं और ख़ुद के जीवन को ही काव्य-वस्तु बनाकर जिए और सहे जा रहे की नितान्त अकपट तथा साहसपूर्ण अभिव्यक्ति करती है। स्वीकार-अस्वीकार से लेकर धिक्कार-हाहाकार तक ये कविताएँ वैसी ही हैं जैसे जल की धारा चट्टान से टकराती है, उसे डुबाती है, उसका अतिक्रमण करती है और कई बार थककर चट्टान पर ही सिर रखकर सुस्ताती भी है। इन कविताओं में अपने प्रकृत रूप में उपस्थित हैं तसलीमा नसरीन।
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