Purua Pachuvan
Author:
Kailash GautamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
कैलाश गौतम भोजपुरी जनपद के किसान मन कवि हैं। ऋतुओं से किसान जीवन का लगाव, किसान जीवन में धर्म का मतलब, किसान-परिवार की संकल्पना और खेती-किसानी की मुश्किलें, कहिए तो किसान जीवन के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू उनकी कविता का बड़ा भाग गढ़ते हैं। सत्ताओं की तानाशाही, उनका गैर-जम्हूरी चरित्र कैलाश जी की कविता के व्यंग्य के निशाने पर होता है। उनका यह संग्रह भोजपुरी समाज को नजदीक से जानने-समझने का मौका उपलब्ध कराता है।...यह कविता-संग्रह यथार्थ के मार्मिक और सच्चे विवरण के लिए, जबरदस्त भाषा के लिए और संवेदनशील नजर के लिए पढ़ा जाना चाहिए।
ISBN: 9789395737876
Pages: 152
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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कविता के विषयों को लेकर भी उनके यहाँ एक कैलाइडोस्कोप की बहुबिम्बदर्शी विविधता है जो उनकी हर चीज़ में दिलचस्पी के दख़ल की पैदाइश है और इस ज़िद की कि सब कुछ में जो कविता है, उसका कुछ हिस्सा हासिल करना ही है। दुनिया उनके आगे बाज़ीचा-ए-इत्फ़ाल नहीं, उसमें जन्म ले चुके आदमी का कौतूहल और कशमकश है। विष्णु खरे को भी कवियों का कवि कहकर दाख़िल-दफ़्तर कर देना सुविधाजनक है लेकिन वे उन सजगों के कवि हैं जिनकी तादाद अन्दाज़ से कहीं ज़्यादा है। भारतीय आदमी और मानव के लिए उनकी प्रतिबद्धता असन्दिग्ध है लेकिन वे सारे ऐहिक और अपौरुषेय व्यापार, माया और लीला, यथार्थ और मिथक को जानने के प्रयास के प्रति भी वचनबद्ध हैं, क्योंकि हर बार उसे नई तरह से जानना चाहे बिना आदमी और अस्तित्व के पूरे बखेड़े को समझने की कोशिश अधूरी ही रहेगी। इसमें अनुभववाद या दूर की कौड़ी लाने का लाघव-प्रदर्शन नहीं है, समूचे जीवन से वाबस्तगी की बात है।
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- Description: अर्चना नायडू की कविताओं का संकलन
Tarapath
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Sumitranandan Pant
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Description:
‘तारापथ’ का यह परिवर्धित संस्करण पंत जी के समग्र काव्य-साहित्य का प्रतिनिधित्व करता है। ‘वीणा’ से लेकर अधुनातन कृति ‘संक्रान्ति’ तक के काव्य-संग्रहों से उनकी रचनाओं का सुरुचिपूर्ण चयन इसमें प्रस्तुत किया गया है। इस संकलन की विशेषता यह है कि इसमें पंत जी की नवीनतम कृतियों का प्रतिनिधित्व पाठकों को मिलेगा।
पंत जी ने इस युग को एक ‘महासंक्रान्ति युग’ कहा है। इस महासंक्रान्ति काल की कविता में आस्था और लोकमंगल को प्रतिष्ठित करना किसी भी साधारण प्रतिभा और जीवन-दृष्टि के कवि के बूते के बाहर की बात है। जबकि विघटन, विशृंखलता, नैतिक मूल्यों का ह्रास चारों ओर दिखाई पड़ रहा है, उसमें महाकवि पंत का यह स्वप्न (‘मुझे स्वप्न दो, मुझे स्वप्न दो’) एक महान जीवन और विराट आस्था की परिकल्पना करता है। यही वह सन्देश है, जो समस्त पंत-काव्य के अन्दर-ही-अन्दर प्रवाहित होता हुआ हमें मिलता है।
उनका समस्त काव्य अन्तर्मुखता का काव्य न होकर आत्मोत्कर्ष का काव्य है। यह आत्मोत्कर्ष अपनी समग्र संरचना में एक सार्वभौमिक शुभेच्छा तक ले जाता है। इसीलिए उनका काव्य अतीतोन्मुख न होकर वर्तमान के फलक पर भविष्योन्मुखी काव्य है। यह सार्वभौमिक शुभेच्छा ही वह तत्त्व है, जिसके भीतर से कवि पंत ने विश्व-मानव और नव-मानव की परिकल्पना को अपनी कविता में सार्थक किया है। अपनी सम्पूर्ण काव्य-सम्पदा के भीतर से उन्होंने एक नए और निजी अध्यात्म की रचना की है। यह अध्यात्म अपनी मंगलकामना में निजी होते हुए भी ‘स्व’ भावना से पूर्णतया मुक्त है।
Yaadon Ke Aaine Mein
- Author Name:
Ozair E. Rahman
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Description:
उजैर ई. रहमान की ये ग़ज़लें और नज़्में एक तजरबेकार दिल-दिमाग़ की अभिव्यक्तियाँ हैं। सँभली हुई ज़बान में दिल की अनेक गहराइयों से निकली उनकी ग़ज़लें कभी हमें माज़ी में ले जाती हैं, कभी प्यार में मिली उदासियों को याद करने पर मजबूर करती हैं, कभी साथ रहनेवाले लोगों और ज़माने के बारे में, उनसे हमारे रिश्तों के बारे में सोचने को उकसाती हैं और कभी सियासत की सख़्तदिली की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करती हैं। कहते हैं, ‘साज़िशें’ बन्द हों तो दम आए, फिर लगे देश लौट आया है।’ इन ग़ज़लों को पढ़ते हुए उर्दू ग़ज़लगोई की पुरानी रिवायतें भी याद आती हैं और ज़माने के साथ क़दम मिलाकर चलनेवाली नई ग़ज़ल के रंग भी दिखाई देते हैं।
संकलन में शामिल नज़्मों का दायरा और भी बड़ा है। ‘चुनाव के बाद' शीर्षक एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ देखें :
सामने सीधी बात रख दी है/देशभक्ति तुम्हारा ठेका नहीं/ज़ात-मज़हब बने नहीं/बुनियाद/बढ़के इससे है कोई धोखा नहीं/कहते अनपढ़-गँवार हैं इनको/नाम लेते हैं जैसे हो गाली/कर गए हैं मगर ये ऐसा कुछ/हो न तारीफ़ से ज़बान ख़ाली। यह शायर का उस जनता को सलाम है जिसने चुनाव में अपने वोट की ताक़त दिखाते हुए एक घमंडी राजनीतिक पार्टी को धूल चटा दी। इस नज़्म की तरह उजैर ई. रहमान की और नज़्में भी दिल के मामलों पर कम और दुनिया-जहान के मसलों पर ज़्यादा ग़ौर करती हैं। कह सकते हैं कि ग़ज़ल अगर उनके दिल की आवाज़ हैं तो नज़्में उनके दिमाग़ की। एक नज़्म की कुछ पंक्तियाँ हैं :
देश है अपना, मानते हो न/दुःख कितने हैं, जानते हो न/पेड़ है इक पर डालें बहुत हैं/डालों पर टहनियाँ बहुत हैं/तुम हो माली नज़र कहाँ है/देश की सोचो ध्यान कहाँ है।
Khud Se Jirah
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Vinod David
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Sugandh Ki Awaaz Me
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- Description: अशोक शाह के अनुभव का संसार बहुत विस्तृत है और उनमें बहुत कुछ को अपनी कविता में ले आने की आकुलता और बेचैनी है। आत्मिक सवालों से जूझने के साथ ही अनेक सामाजिक, आर्थिक, विकास की नयी धारणाओं, स्त्री, पर्यावरण, समय, ईश्वर और दर्शन जैसे अनेक विषयों पर नये तरह से सोचने और कहने की बेचैनी इन कविताओं में लक्ष्य की जा सकती है। वो यादों में जीने वाले, रीति-रिवाजों की बेडिय़ों में जकड़े रहने वाले, अतीत की रखवाली करते रहने वाले और यादों में ही दफ्न हो जाने वाले व्यक्ति नहीं होना चाहते। इस संग्रह में एक लम्बी कविता है—समय और मेरी कहानी। यह कविता अपने आपको जानने की कोशिश से शुरू होकर मानव जीवन की विकास यात्रा के अनेक सवालों से जूझती कविता है। अमीबा जैसे एककोशीय जीव से बहुकोशीय जीवों से होती हुई मनुष्य के धरती पर आने की यह एक लम्बी कथा है। मनुष्य द्वारा आग को खोजने और उसके साथ ही प्रकृति और स्वयं उसकी ही देह में होने वाले परिवर्तनों के अनेकानेक संदर्भ यहाँ हैं। यह कविता मनुष्य की पूरी जीवन यात्रा पर सवाल खड़े करती है। यहाँ तक कि औद्योगिक क्रांति पर भी उसका संदेह है कि वह उसकी दूसरी बड़ी बेवकूफी हो सकती है। यह जि़न्दगी जो आदमी बनकर ठहर गयी है, यह आगे कौन से रूप धरेगी? उसे पता नहीं है, लेकिन वह इस बात के प्रति पूरी तरह आश्वस्त है कि कुछ भी अमिट नहीं है। जीवन निरन्तर परिवर्तनशील है। अशोक शाह की नज़र जीवन की विडम्बनाओं को कई स्तरों पर छूती है। यहाँ तक कि उसे पता है कि ईश्वर मात्र हमारे स्वार्थ, डर और महत्वाकांक्षाओं की प्रतिमूर्ति भर है। अशोक शाह की इन पंक्तियों से इन कविताओं के मिजाज को समझने का कोई इशारा शायद मिल सकता है : मैं ही दुनिया का पहला और आखिरी पाठ हूँ अभी-अभी पढ़ा है और बयां कुछ भी नहीं। —राजेश जोश
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