Samkaleen Marathi Anudit Kavita
Author:
Sunil Baburao KulkarniPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
मराठी कविता की 600 वर्ष की दीर्घ इतिहास परम्परा है। हर काव्य प्रवाह में उत्थान, ठहराव और अवसान के बाद पुनरुत्थान यह कालक्रम निरन्तर चलता रहता है। मध्यकाल में भक्ति परम्परा के माध्यम से निर्मित हुआ श्रेष्ठ संत काव्य मराठी कविता का महत्त्वपूर्ण उत्थान पर्व रहा है। 1920 से 1945 का काल एक अर्थ में थोपे गए रोमांटिसिज्म के कारण अवनति के काल के रूप में जाना जाता है। इस सांकेतिक शरणागतता तथा उसके कारण निर्मित तत्कालीन परिस्थिति को पहला आघात बा.सी. मर्ढेकर ने दिया।</p>
<p>स्वातंत्र्योत्तर काल के पहले दशक की कविताओं को नई कविता कहा जाता है। इस काल में बा.सी. मर्ढेकर और वि.दा. करन्दीकर की कविताओं में परिवेश के इर्द-गिर्द घूमती हुई कविताओं की परिपाटी पर चलने वाली कविताओं के सृजन का प्रयास दिखाई देता है। वैश्वीकरण के कारण होने वाले बदलावों का अप्रत्यक्ष प्रभाव 1990 के बाद की कविताओं पर रहा है। इस काल के कवियों पर आसपास के परिवेश, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भाषिक पर्यावरण का प्रभाव होता है।</p>
<p>प्रस्तुत उपक्रम में इस काल में आकार लेने वाले नये सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक परिवेश के माध्यम से मराठी कविता में आए नव प्रवाहों पर संक्षिप्त रूप में प्रकाश डालते हुए हिन्दी भाषिक विद्यार्थियों को मराठी कविता का परिचय कराने का प्रयास इस विषय पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य रहा है।</p>
<p>इस दृष्टि से कविता का सृजन करने वाले पिछले तीन दशकों में मराठी कवियों की संख्या विशेष लक्षणीय है। ये कवि महाराष्ट्र के कोने-कोने में व्याप्त हैं। ग्रामों से शहरों तक में निवास करने वाले ये कवि अपने परिवेश की सुगंध को कायम रख कविताएँ लिख रहे हैं।</p>
<p>संकलन की कविताओं और कवियों का चयन करते समय यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखी गई है कि चयनित कवि मूलत: मराठवाड़ा प्रांत से ही सम्बन्धित हों। इन सभी कवियों के मराठवाड़ा की मिट्टी में पले-बढ़े होने के कारण इनकी कविताओं में मिट्टी की सोंधी सुगन्ध के साथ-साथ मराठवाड़ा की भूमि पर घटित सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक गतिविधियों का यथार्थ चित्र अंकित हुआ है। उसे जानने और समझने में छात्रों को निश्चित रूप से सहायता मिलेगी, ऐसा हमें पूरा विश्वास है।
ISBN: 9789393768834
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का पहला कविता-संग्रह है जो पहली बार 1941 में प्रकाशित हुआ था। मुहब्बत और इन्क़लाब का जो अटूट अपनापा आगे चलकर फ़ैज़ की समूची शायरी की पहचान बना, उसकी बुनियाद इस संग्रह में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इसमें बीसवीं सदी के तीसरे-चौथे दशक की उनकी तहरीरें शामिल हैं, जब फ़ैज़ युवा थे और उनका दिलो-दिमाग़ एक तरफ़ ‘ग़मे-जानाँ’ से तो दूसरी तरफ़ ‘ग़मे-दौराँ’ से एक साथ वाबस्ता हो रहा था। स्वाभाविक ही है कि इस संग्रह के शुरुआती हिस्से में ग़मे-जानाँ का रंग गहरा नज़र आता है, जो आख़िरी हिस्से में पहुँचते-पहुँचते ग़मे-दौराँ के रंग में मिल जाता है। और तब फ़ैज़ लिखते हैं, ‘मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरी महबूब न माँग’। गोकि इस सोच की शिनाख़्त शुरुआती हिस्से की तहरीरों में भी नामुमकिन नहीं है। मगर अहम बात यह है कि फ़ैज़ एलान करते हैं कि ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ एक ही तजुर्बे के दो पहलू हैं। यही वह एहसास है, जिससे उनकी शायरी तमाम सरहदों को लाँघती हुई पूरी दुनिया के अवाम की आवाज़ बन गई है। ‘नक़्श-ए-फ़रियादी’ इस एहसास का घोषणापत्र है।
Pratinidhi Kavitayein : Uday Prakash
- Author Name:
Uday Prakash
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- Description: उदय प्रकाश की कविताओं में एक आंतरिक लय है, जिसमें संवेदना और विचार एक सन्तुलित गूँथ में गति करते प्रतीत होते हैं। जिस तरह कहानियों में उन्होंने पारम्परिक शिल्प को तोड़कर अपनी कहन गढ़ी, उनकी कविताएँ भी लगातार अपने को बदलती चलती हैं। हर कविता का कथ्य जैसे अपना शिल्प साथ लेकर आता है। कहीं वे चित्र खींचते हैं, कहीं सीधे संबोधित करते हैं, कहीं कहानी सुनाते हैं, कहीं लम्बे विवरणात्मक वाक्यों में अपनी बात कहते हैं, कहीं शुद्ध छंद रच देते हैं। सत्ता, सत्ता की नाटकीय मुद्राएँ, सामान्यतः पूरे समाज और विशेषतः बौद्धिक तबक़े का नैतिक स्खलन, स्त्रियों के दुख, नागर विडम्बनाएँ, जीवन-पद्धति की तरह व्यवहार करनेवाले राजनीतिक-सामाजिक भ्रष्टाचरण, प्रकृति की पीड़ा, अति-उत्साही आधुनिकता के हाथों परम्परा का ग़ैर-ज़रूरी क्षरण उनकी कवि-चेतना को विचलित करते हैं; स्वार्थ-विद्ध चालाक-चतुर भंगिमाओं का मसख़रापन अक्सर। इस चयन में संकलित उनकी कविताओं से आप कवि उदय प्रकाश को अच्छे ढंग से जान सकते हैं और उनके वैविध्य को भी।
Shanti Parv
- Author Name:
Ashish Tripathi
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Description:
आशीष त्रिपाठी की कविताएँ हमारे समय की कई आन्तरिक परतों को भेदते और उधेड़ते हुए, उसके अन्तर्विरोधों और विडम्बनाओं से होकर अपने समय का वास्तविक चेहरा तलाश करने की कोशिश करती हैं। संग्रह में शामिल कविता ‘काला सूर्य’ में कवि देख पाता है कि इस समय जब उजाले की वह भाषा, जिसकी संधि में करोड़ों लोगों की निर्मलता समाई हुई थी, उस पर कालिमा के शब्द और वाक्य छाते जा रहे हैं। उस भाषा में प्रश्न करने के अधिकार और असहमति को बेदख़ल कर दिया गया है। उजले सूर्य आकाशगंगा से और उजली ऋचाएँ भाषा से बाहर फेंक दी गई हैं। धीरे-धीरे सब कुछ गिर रहा है। यह सिर्फ़ भाषा का संकट नहीं है। भाषा की नब्ज़ में समाज के शरीर की सारी व्याधियों का हालचाल छिपा है। कवि इस नब्ज़ पर अपनी उँगलियाँ रखकर, हमें हमारे आसपास घटित प्रकट-अप्रकट को दिखाने का उपक्रम करता है। ‘काला सूर्य’ विराट कास्मिक बिम्ब की अनुगूँजों से भरी कविता है।
आशीष की कविता की भाषा का तापमान अक्सर बहुत संयत बना रहता है। भावों की रास कवि के हाथ से कभी छूटती नहीं। उसका आलोचकीय विवेक हमेशा जागृत रहता है। उसकी विविधता उसके विषयों और दृश्यों में प्रकट होती है। वह बहुत महीन आब्ज़र्वेशन से प्रकट के भीतर छिपे अप्रकट को विचक्षणता से दिखा देते हैं। आशीष की कविता को पढ़ते हुए जितना उसे सुना जा सकता है, उतना ही उसे देखा भी जा सकता है। वह जितनी शब्द में है उतनी ही दृश्य में भी है।
कहना न होगा कि आशीष की कविता में एक क़िस्म का नाटक उसके अन्तरतल में लगातार बना रहता है। नाटक उसकी कविता की सरंचना में विन्यस्त है। ‘तुम्हारा अभिनय’, ‘गहनों की दुकान’, ‘मुखौटा’ आदि कई कविताएँ इसकी गवाही देती हैं। जीवन में जटिलताएँ बढ़ रही हैं और वो व्यक्ति के व्यवहार को भी पहले के बनिस्बत अधिक जटिल बना रही हैं। आशीष की कविता इन जटिलताओं को उकेरते हुए भी अपनी बनक में सहज बनी रहती है।
आशीष की कविताएँ एक ऐसा गीत भी हैं जिसमें ‘बातों की कुल्हाड़ी से समय के पहाड़ के कटते जाने’ और ‘पनछुछही और ठंडी चाय की सबसे अच्छी चुस्कियाँ’ भी हैं।
—राजेश जोशी
Aatma Ki Aankhein : Dinkar Granthmala
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
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Description:
‘आत्मा की आँखें' में संकलित हैं डी.एच. लॉरेन्स की वे कविताएँ जो यूरोप और अमेरिका में बहुत लोकप्रिय नहीं हो सकीं, लेकिन दिनकर जी ने उन्हें चयनित कर अपनी सहज भाषा-शैली में इस तरह अनुवाद किया कि नितान्त मौलिक प्रतीत होती हैं।
डी.एच. लॉरेन्स की कविताओं के अनुवाद के पीछे जो मुख्य बातें थीं, उनके बारे में ख़ुद दिनकर जी का कहना है कि ‘इन सभी कविताओं की भाषा बुनियादी हिन्दी है। लॉरेन्स की जिन कविताओं पर ये कविताएँ तैयार हुई हैं, उनकी भाषा भी मुझे बुनियादी अंग्रेज़ी के समान दिखाई पड़ी–सरल, मुहावरेदार, चलतू और पुरजोर जिसमें बनावट का नाम भी नहीं है। कविताओं की भाषा गढ़ने के लिए लॉरेन्स छेनी और हथौड़ी का प्रयोग नहीं करते थे। जैसे ज़िन्दगी वे उसे मानते थे जो हमारी सभ्यतावाली पोशाक के भीतर बहती है। उसी तरह, भाषा उन्हें वह पसन्द थी जो बोलचाल से उछलकर क़लम पर आ बैठती है। बुद्धि को वे बराबर शंका से देखते रहे और कला में पच्चीकारी का काम उन्हें नापसन्द था। मैंने ख़ासकर उन्हीं कविताओं को चुना है जो भारतीय चेतना के काफ़ी आस-पास चक्कर काटती हैं।’ इस तरह देखें तो ‘आत्मा की आँखें’ नए आस्वाद और सहज सम्प्रेष्य कविताओं का एक अनूठा संकलन है।
Hindi Kavya
- Author Name:
Dr. Puneet Bisaria +1
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- Description: हिंदी काव्य उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप प्रदेश के समस्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों हेतु पुनर्गठित एकीकृत हिंदी पाठ्यक्रम की स्नातक प्रथम सेमेस्टर हेतु पाठ्यक्रम समिति के संयोजक एवं सदस्यों द्वारा तैयार की गई एकमात्र निर्धारित पाठ्यपुस्तक है, जिसके पाठ्यक्रम को तैयार करते समय इस तथ्य को दृष्टिगत रखने का प्रयास किया गया कि स्नातक प्रथम सेमेस्टर के विद्यार्थी हिंदी काव्य के समस्त कालों के लगभग 1300 वर्षों तक विस्तीर्ण इतिहास, महत्त्वपूर्ण कवियों तथा उनकी प्रतिनिधि रचनाओं से उच्च कक्षा के प्रथम सोपान में ही परिचित हो सकें एवं आगामी कक्षाओं में आने हेतु हिंदी साहित्य की मूलभूत काव्य परंपरा को जान सकें।
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