Jo Nadi Hoti
Author:
Pragya RawatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Unavailable
प्रज्ञा रावत का हिन्दी कविता-संसार में प्रवेश एक विरल घटना है। घर-परिवार के तमाम कार्यभार के बीच अपने निजी एकान्त में निरन्तर सृजनशील प्रज्ञा ने कभी अपने को प्रक्षेपित नहीं किया, बल्कि श्लाघनीय निस्पृहता के साथ अपना रचना-कर्म जारी रखा। निजी अनुभवों के ताप से सिद्ध ऐसी प्रखर कविताएँ पहले कभी लिखी नहीं गईं। इनके सर्वथा नए एवं विलक्षण जीवन-प्रसंग भाषा को नई गृहस्थी प्रदान करते हैं, जहाँ कविता नया कलेवर, नया परिपाक एवं आभरण ग्रहण करती है।</p>
<p>प्रज्ञा रावत की कविताएँ अपने अनूठे सम्भार एवं रूप-विधान के लिए अलग से सराही जाएँगी। दुर्लभ बिम्बों एवं अनगिनत लयों का सम्पुंजन इन्हें एक पृथक् व्यक्तित्व प्रदान करता है। प्रज्ञा की कविताएँ अपने सौष्ठव एवं संरचनागत दृढ़ता के लिए सहृदय समालोचकों द्वारा पहले भी समादृत हो चुकी हैं। यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि प्रज्ञा रावत सभी स्त्री रचनाकारों से भिन्न नितान्त नवीन एवं स्वतंत्र स्वत्व से समृद्ध कवयित्री हैं। यहाँ न तो स्त्री-विमर्श का कोई अतिरंजित स्वर है, न ही कोई अन्य ग्रन्थि। जो है, जीवन का सहज स्वीकार और अभिव्यक्ति है, बहुत कुछ सुभद्राकुमारी चौहान की तरह। इसलिए प्रज्ञा रावत का यह संग्रह एक नए रचना उन्मेष के तौर पर स्वीकार किया जाएगा।</p>
<p>—अरुण कमल
ISBN: 9788183615259
Pages: 84
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Chautha Shabda
- Author Name:
Parmanand Srivastav
- Book Type:

-
Description:
‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960) और ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981) संग्रहों के बाद परमानंद श्रीवास्तव की कविताओं का तीसरा संग्रह ‘चौथा शब्द’ एक दशक से कुछ अधिक के अन्तराल पर प्रकाशित हो रहा है। कविता के इतिहास में यह बीता हुआ दशक कविता के लिए ही कठिन समय बनकर उपस्थित नहीं हुआ, शब्द या अभिव्यक्ति के सभी रूपों और माध्यमों के लिए और सबसे अधिक मानवीय अस्तित्व के लिए, मनुष्य द्वारा अर्जित समस्त मूल्य सम्पदा के लिए चुनौती बनकर उपस्थित हुआ। यह दौर बीता नहीं है बल्कि आज और अधिक भयावह प्रश्नों और शंकाओं से घिरा है। परमानंद श्रीवास्तव ने कविता के बाहर भी शब्द के पक्ष में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में, मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया है और कविता के भीतर भी धीमी शान्त ऐन्द्रिकता, राग संवेदना और जीवन के प्रति सहज आसक्ति मात्र से सन्तुष्ट न होकर ऐसा उत्तेजक नाटकीय
शिल्प विकसित किया है जो कविता के पाठकों के रूप में अपने समाज के प्रति सीधा सम्बोधन है।
परमानंद श्रीवास्तव के इस संग्रह में ‘इन दिनों’, ‘साध्वियों’, ‘बटोर’ जैसी कविताएँ अपने कठिनतम समय के मुख्य संकट को न किसी शब्द-छल से छिपाती हैं, न ख़तरनाक ताक़तों को सीधे लक्ष्य करने से बचती हैं। इसके बाद भी परमानंद श्रीवास्तव कविता के अपने विन्यास या रूप-तंत्र के प्रति कितने सजग हैं, इसका अनुमान सहज ही किया जा सकता है। ‘चौथा शब्द’ में उनका अनुभव-संसार अधिक विस्तृत है और स्थितियों, चरित्रों तथा समय की त्रासदियों को देखने-समझने की दृष्टि भी अधिक विकसित और सचेत है। ‘वह अघाया हुआ आदमी‘, ‘फ़ुर्सत में’, ‘अपरिचित', ‘सहपाठी मिले एक दिन’ जैसी कविताएँ एक तरह के कथातन्तु का आश्रय लेती हैं जबकि ‘स्त्री सुबोधनी’ जैसी कविता मानवीय अनुभव और भाषा के स्रोतों तक जाने के लिए एक विलक्षण लोकरंग प्राप्त करती है। स्त्री की यातना के अनुभव प्रत्यक्ष कई कविताओं मे दर्ज हैं। यह कविता भी उसी अनुभव को अतीत की यातनापूर्ण यादों में जोड़कर देखने की सार्थक कोशिश है। परिप्रेक्ष्य-सम्पन्न कविताओं के लिए यह संग्रह ज़रूर ही पाठकों के बीच देर तक चर्चा में रहेगा और शायद आनेवाली कविता का संकेत भी देगा।
Urvashi Punah
- Author Name:
Puja Saxena
- Book Type:

- Description: Poems
Mughal Badshahon Ki Hindi Kavita
- Author Name:
Manager Pandey
- Book Type:

-
Description:
यह आश्चर्यजनक लगेगा, लेकिन तथ्य है, कि बाबर से लेकर बहादुरशाह जफ़र तक, लगभग सभी मुग़ल बादशाह शायर और कवि भी थे; और उन्होंने फ़ारसी-उर्दू में ही नहीं, ब्रजभाषा और हिन्दी में भी काव्य-रचना की।
यह पुस्तक प्रमाण है कि जिस भी बादशाह को राजनीति और युद्धों से इतर सुकून के पल नसीब हुए, उन्होंने कवियों-शायरों को संरक्षण देने के अलावा न सिर्फ़ कविताएँ-ग़ज़लें लिखीं, अपने आसपास ऐसा माहौल भी बनाया कि उनके परिवार की महिलाएँ भी काव्य-रचना कर सकें। लिखित प्रमाण है कि बाबर की बेटी गुलबदन बेगम और नातिन सलीमा सुल्ताना फ़ारसी में कविताएँ लिखती थीं। हुमायूँ स्वयं कवि नहीं था, लेकिन काव्य-प्रेम उसका भी कम नहीं था। अकबर का कला-संस्कृति प्रेम तो विख्यात ही है, वह फ़ारसी और हिन्दी में लिखता भी था। ‘संगीत रागकल्पद्रुम’ में अकबर की हिन्दी कविताएँ मौजूद हैं। जहाँगीर, नूरजहाँ, फिर औरंगजेब की बेटी जेबुन्निसाँ, ये सब या तो फ़ारसी में या फ़ारसी-हिन्दी दोनों में कविताएँ लिखते थे। कहा जाता है कि शाहजहाँ के तो दरबार की भाषा ही कविता थी। दरबार के सवाल-जवाब कविता में ही होते थे। दारा शिकोह का दीवान उपलब्ध है, जिसमें उसकी ग़ज़लें और रुबाइयाँ हैं। अन्तिम मुग़ल बादशाह जफ़र की शायरी से हम सब परिचित हैं। उल्लेखनीय यह कि उन्होंने हिन्दी में कविताएँ भी लिखीं जो उपलब्ध भी हैं।
कहना न होगा कि हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक डॉ. मैनेजर पाण्डेय द्वारा सम्पादित यह संकलन भारत में मुग़ल-साम्राज्य की छवि को एक नया आयाम देता है; इससे गुज़रकर हम जान पाते हैं कि मुग़ल बादशाहों ने हमें क़िले और मक़बरे ही नहीं दिए, कविता की एक श्रेष्ठ परम्परा को भी हम तक पहुँचाया है।
ANDHERE SE ADAWAT
- Author Name:
Deepak Kumar
- Book Type:

- Description: Poems
Shabri
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

- Description: ‘शबरी’ में कवि आधुनिकता के अधिक पास होते हैं। उन्होंने लिखा है—‘वाल्मीकि ने सामाजिक वर्ण-व्यवस्था से ऊपर व्यक्ति के आध्यात्मिक स्वत्व एवं असंग कर्म को प्रतिष्ठापित किया और शबरी वही बीज चरित्र है। चरित्र की दृष्टि से शबरी मंत्र चरित्र लगती है'—अपनी छोटी-सी उपस्थिति में सार-भूत। ‘शबरी’ काव्य विचारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। एक दलित स्त्री को अपने कर्म-श्रम के ज़रिए ऊपर उठाकर ऋषि मतंग जिस भूमि पर प्रतिष्ठित करते हैं, उससे पौराणिकता की रक्षा भी होती है और वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उठती आज की आवाज़ को भी बल मिलता है।
Kahin Door Jakar Dam Todne Ka Man Hota Hai
- Author Name:
Saumitr
- Book Type:

- Description: Book
Kavita Ka Shuklapaksh
- Author Name:
Bachchan Singh
- Book Type:

-
Description:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ सिर्फ़ इसलिए हिन्दी का एक गौरव ग्रन्थ नहीं है कि उसने पहली बार साहित्य की समग्र परम्परा का एक वयस्क और उत्तरदायी परिप्रेक्ष्य से निदर्शन कराया, बल्कि इसलिए भी कि उसमें शुक्ल जी की गहरी रसिकता, सावधान और सटीक पहचान और सजग सुरुचि से चुनी हुई कविताओं या कवितांशों का एक विलक्षण संकलन भी है।
इस संकलन से शुक्ल जी का निजी रागबोध और काव्य-दृष्टि प्रगट होती है, साथ ही हिन्दी कविता-संसार की जटिल लम्बी परिवर्तन-कथा भी शुक्ल जी के विश्लेषण और चयन से विन्यस्त होती है। महत्त्वपूर्ण आलोचक डॉ. बच्चन सिंह ने अपने सहकर्मी डॉ. अवधेश प्रधान के साथ शुक्ल जी के चयन के आधार पर हिन्दी की एक ‘गोल्डन ट्रेजरी’ एकत्र की है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह हिन्दी काव्य की, छायावाद-पूर्व की सम्पदा से आकलित, एक रत्न-मंजूषा है। इस संकलन की एक और विशेषता की ओर भी ध्यान देना चाहिए—कविताओं में रूप का नैरन्तर्य और परिवर्तन। कुछ लोगों का विचार है कि साहित्य का इतिहास रूपों और उनके परिवर्तन का इतिहास होता है। शुक्ल जी को यह एकांगिता स्वीकार्य नहीं है। शुरू से ही रूपों के नैरन्तर्य, परिष्कार और परिवर्तन के प्रति वे सतर्क हैं। इन परिवर्तनों को वे कभी शब्द-शक्तियों के आधार पर, कभी क्रियारूपों और लय के आधार पर पहचानते हैं। इसमें केवल ‘श्रेष्ठ’ और ‘प्रिय’ का मनचाहा संकलन नहीं है, बल्कि ‘विविध’ और ‘प्रतिनिधि’ का सावधान चयन है जिसमें उत्कृष्ट काव्य-खंडों के साथ कुछ कमज़ोर काव्य-प्रयोग भी है जिनका ऐतिहासिक मूल्य है—काव्य-वस्तु और काव्य-भाषा के विकास की दृष्टि से। इसमें सफल काव्य-सृष्टि की ‘सिद्धावस्था’ के साथ असफल काव्य-प्रयत्नों की ‘साधनावस्था’ भी मौजूद है।
इस इतिहास-यात्रा में जगमगाते शिखरों के साथ कुछ गुमनाम घाटियाँ भी शामिल हैं। आप केवल ‘इतिहास’ में उद्धृत काव्य-रचनाओं को एक क्रम में देख जाएँ तो हिन्दी काव्यधारा का एक व्यापक और प्रतिनिधिमूलक गतिशील प्रवाह-चित्र सामने आ जाता है। यह संचयन ऐसी ही विविधवर्णी चित्रमाला है।
Raidas Bani
- Author Name:
Shukdev Singh
- Book Type:

-
Description:
‘रैदास-बानी’ का सम्पादन मध्यकालीन साहित्य की ग्रन्थ-विधा की सारी जटिलताओं को समेटते हुए पहली बार किया गया है। यह ग्रन्थावली नहीं ग्रन्थ है। निर्गुण साहित्य को ग्रन्थ करने के लिए ग्रन्थ जैसे—साखी, सबद, रमैनी सबदी, अंगु, उनसठ से चौरासी तक जैसे गुरुदेव को अंग; राग जैसे सोरठ, आसावरी प्राय सोलह, महला, घरु, बीजक, बानी, गुरु ग्रन्थ सर्वंगी, गुणगंजनामा, पद-संग्रह की विधाओं को समझते हुए जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, आमेर, उदयपुर, नागरी प्रचारिणी सभा, साहित्य सम्मेलन, इंडिया ऑफ़िस लाइब्रेरी, तमाम जगह के हस्तलेखों और उनके फ़ोटो-चित्रों की सहायता ली गई है। इस क्रम में प्रो. डेविड लोरंजन, पीटर फ़्राइलैंडर, जोजेफ़ सोलर से सहयोग लिया गया है। सबसे सहमति/असहमति लेकिन निष्कर्ष केवल अपने।
रैदास, दादू ग्रन्थों, सर्वंगी पोथियों, बानी, पंचबानी संग्रहों गुरुग्रन्थ यहाँ तक कि सूर पद संग्रह में सात पदों के साथ उपस्थित हैं। कबीर के बराबर। इस सामग्री के साथ रैदासी डेरों में भी उनसे जुड़े पद मिल जाते हैं। पदों की संख्या में हेर-फेर, पंक्तियों को बढ़ाना-घटाना-हटाना लेकिन यह अज्ञान और आलस्य के कारण नहीं, सिद्धान्त और सम्प्रदाय के हठ और मठ के कारण है। इसे समझने के लिए भी एक परम्परा है जो भक्तमालों, जनमसाख, परिचयी गोष्ठी, तिलक, बोध, सागर, नामक सैकड़ों पोथियों में प्राप्त है। इस पुस्तक में इस पूरी परम्परा का समझ-बूझ कर प्रयोग किया गया है।
साखी, सबदी, हरिजस, आरती जैसे रूपों के पीछे दर्शन क्या है? किसी राग में किसी पद के होने का मतलब क्या है? इस विज्ञान को समझे बिना यह सम्पादन सम्भव नहीं था। भक्तमालों और नागरी दासों के पद-प्रसंगों में यह सामग्री मिलती है। इन सबकी छान करते हुए इस पुस्तक की बीन तय की गई है।
Kavita Abhi Zinda Hai
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: रमेशराज की मुक्तछंद कविताएँ
Bahati Ho Tum Nadi Nirantar
- Author Name:
Shyam Sunder Tiwari
- Book Type:

- Description: This book has no description
Tuzya Othanvarchya Kavita
- Author Name:
Nayan Savita
- Book Type:

- Description: The most romantic poetry collection
Ummeed
- Author Name:
Aasteek Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
'उम्मीद' 'थरथराहट' के बाद आस्तीक वाजपेयी का नया कविता-संग्रह है। यहाँ प्रकाशित कविताएँ मनुष्य के अकेलेपन, उसकी विफलता, समृद्धि और उम्मीद के ऐसे इलाकों में प्रवेश कर उन्हें आलोकित करती हैं जो अब तक लगभग अछुए थे। नाउम्मीदी की कालिमा में ये कविताएँ उम्मीद की चमकीली दरारों की ओर इशारा करती हैं। वे दरारें जिनकी ओर हमारा ध्यान बिल्कुल भी नहीं गया था। इन कविताओं का एक इंगित यह भी है कि ऐसी कोई नाउम्मीद मुमकिन नहीं जिसमें उम्मीद की दरारें न हों, मानो हर नाउम्मीद के सीने में उम्मीद की धड़कन निरन्तर उपस्थित रहती हो। ये कविताएँ अकेलेपन का पूरी निष्ठा से सामना करते मनुष्य के थरथराते दस्तावेज़ हैं। जो अनायास ही अकेलेपन की समृद्धि को सामने ले आते हैं। इस संग्रह के चरित्र महाभारत से लेकर कवि के अपने आसपास से आते हैं। संग्रह की शुरुआत महाकाव्यात्मक चरित्रों से होती है।
जनमेजय, दुर्योधन, ऋष्यशृंग, भीम, बलराम जैसे विराट व्यक्तित्वों में ये कविताएँ उन स्थलों को चिह्नित करती हैं जहाँ वे अपनी विराटता को तजने पर बाध्य होते हैं। और इसी रास्ते ये कविताएँ कवि के आत्मीयों में वे स्थल प्रकाशित कर देती हैं जहाँ वे चरित्र अचानक विराट हो उठते हैं। आस्तीक की कविताओं का विस्तार 'महाभारत' से कवि के अन्तरंग तक होने के फलस्वरूप हम, उनके पाठक, अगर एक ओर महाकाव्य का अन्तरंग अनुभव कर पाते हैं तो दूसरी ओर हमें खुद अपने अन्तरंग के विराट होने का भी अहसास होने लगता है। हम जिस समाज में रह रहे हैं, वह हमारे अस्तित्व के विराट आयाम को उद्घाटित होने को प्रतिरोध देता है। अगर यह तथ्य किसी भी हद तक सही है तो हमारा यह मानना उचित ही है कि ऐसे समाज में आस्तीक की कविताएँ मनुष्य को, भले ही क्षण को ही, अपना विराट आयाम अनुभव करने का अवकाश प्रदान करती हैं और इस तरह गहन मानवीय मूल्यों को पुनर्प्रतिष्ठित करने की दिशा में बढ़ती हैं।
Bach Rahega Jo
- Author Name:
Matacharan Mishra
- Book Type:

- Description: Poems
Koi To Jagah Ho
- Author Name:
Arun Dev
- Book Type:

-
Description:
अरुण देव अपने संयत स्वर और संवेदनशील वैचारिकता के नाते समकालीन हिन्दी कविता में अपनी जगह बना चुके हैं। यह संकलन उनकी काव्य-दक्षता और संवेदना के और प्रौढ़ तथा सघन होने का प्रमाण है। ये कविताएँ आशंका के बारे में हैं, उम्मीद के बारे में हैं। स्मरण-विस्मरण के बारे में, स्त्रियों के बारे में और प्रेम के बारे में हैं। स्त्रियों के बारे में अरुण देव की कविताएँ अपनी वैचारिक ऊर्जा और ईमानदार आत्मान्वेषण के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं। उनकी कविताओं में, प्रेम आत्मान्वेषण करता दिखता है, ख़ुद के बारे में असुविधाजनक सवालों से कतराता नहीं।
अरुण देव की कविताओं में पूर्वज भी हैं, और किताबें भी, जो—‘नहीं चाहतीं कि उन्हें माना जाए अन्तिम सत्य’। ये कविताएँ उस सत्य के विभिन्न आख्यानों से गहरा संवाद करती कविताएँ हैं जो लाओत्जे और कन्फूशियस के संवाद में ‘झर रहा था/पतझर में जैसे पीले पत्ते बेआवाज’।
अरुण देव की कविताओं से गुज़र कर कहना ही होगा, ‘अब भी अगर शब्दों को सलीके से बरता जाए/उन पर विश्वास जमता है’।
—पुरुषोत्तम अग्रवाल
Amma Se Batein Aur Kuch Lambi Kavitayan
- Author Name:
Bhagwat Rawat
- Book Type:

- Description: भगवत रावत का काव्य-संसार विविधवर्णी और बहुआयामी है। वे हिन्दी के ऐसे कवि हैं जिन्होंने अपने आत्मीय देसी मुहावरे में कविता को सम्भव किया। छोटी कविताओं से लेकर अनेक लम्बी और प्रयोगमूलक कविताओं तक फैला हुआ उनका काव्य-फलक अत्यन्त व्यापक है। उनकी कविताओं का संसार हमारे समाज के निम्नवर्ग से लेकर मध्यवर्ग तक के उन अति साधारण लोगों की जीवन छवियों का ऐसा रचनात्मक दस्तावेज है जो दुनिया में बची हुई मनुष्यता का जीवन्त साक्ष्य है। यथार्थ की ठोस जमीन पर खड़ी उनकी कविता न तो किसी छद्म क्रान्ति का शंखनाद है, न सबकुछ के नष्ट हो जाने की उदासी और अवसाद। उनमें करुणा की ऐसी ऊर्जा है जिसमें जीवन की महक और उसकी खनक छिपी हुई है। भगवत रावत की कविता रूप और कथ्य के अनेक स्तरों से गुज़रती हुई अपना संसार रचती है। इस दृष्टि से उनकी लम्बी कविताएँ विशेष रूप से द्रष्टव्य हैं। इन कविताओं में उन्होंने बौद्धिकता और आधुनिक जीवन की जटिलताओं को आत्मसात् कर जो सहजता और आत्मीयता अर्जित की है, वह समकालीन हिन्दी कविता की विरल उपलब्धि है। ‘अम्मा से बातें’, ‘नकद उधार’, ‘जो भी पढ़ रहा या सुन रहा है इस समय’, ‘लड़का अजूबा’ से लेकर ‘सुनो हिरामन’ और ‘अथ रूपकुमार कथा’ आदि कविताएँ अपनी तरह के अकेले उदाहरण हैं। उनकी लम्बी कविता ‘कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और’ ने भी न सिर्फ़ साहित्यिक समाज बल्कि व्यापक पाठक समुदाय को आन्दोलित किया है। इन कविताओं को जाने-समझे बिना भगवत रावत के कवि स्वभाव को सम्पूर्णता में पहचानना शायद सम्भव नहीं होगा। यह संग्रह इस दृष्टि से भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
Akshat
- Author Name:
Pushpita Awasthi
- Book Type:

-
Description:
style="line-height: 10px;">तुम
मेरी एकमात्र पुस्तक हो
मेरे मन का धर्मग्रन्थ तुम
मेरी एकमात्र कविता हो
मेरे सृजन के सच्चे दस्तावेज़
तुम मेरा एकमात्र विश्वास हो
मेरी आत्मा के वास्तविक सहचर
प्रेम का यही अकुंठ भाव इन कविताओं का मूल स्वर है। यह प्रेम-कविताओं का संग्रह है जिनकी कमी इधर आकर बहुत खलने लगी है। कविता के केन्द्र से प्रेम का हटना बेशक जीवन का अनुगमन ही है, क्योंकि जीवन का केन्द्र भी आज प्रेम नहीं है, लेकिन इसीलिए प्रेम अपनी तमाम पारदर्शिताओं, स्वच्छताओं और उदात्तताओं के साथ और भी ज़रूरी हो जाता है। वह एक अमूर्त भाव है लेकिन दुनिया में उसका अभाव हमें किसी चीज़ की तरह कचोटता है, जिसे इतनी तमाम चीज़ों की उपस्थिति भी पूर नहीं पाती।
ये कविताएँ हमें प्रेम की याद दिलाती हैं, उसकी उस ताक़त की याद दिलाती हैं जो हमें देह में देह को और आत्मा में आत्मा को अनुभव करने की क्षमता देता है, हमें ज़्यादा सहनशील, सहिष्णु और संसार को ज़्यादा रहने लायक़ बनाता है।
तुम
मेरे पास
सुख की तरह हो
जैसे जड़ों के पास ज़मीन
तुम्हारा स्पर्श मुझे छूता है
जैसे सूरज छूता है पृथ्वी।
Man Kastoori Re
- Author Name:
Anju Sharma
- Book Type:

- Description: Book
Kuchh Pate Kuchh Chitthiyan
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

-
Description:
रघुवीर सहाय का यह पाँचवाँ कविता-संग्रह है। आमतौर पर हिन्दी का हर कवि उम्र के हर अगले पड़ाव पर थका, ऊबा और ठस जान पड़ता है लेकिन ‘कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ’ का कवि इसका आश्चर्यजनक अपवाद है। काव्यानुभव और सामाजिक चेतना—इन दो को अलग-अलग खानों में न बाँटने और व्यक्ति और कवि को एक समग्र इकाई बनाने की पुरानी प्रतिज्ञा के अनुसार प्रस्तुत संग्रह तक कवि का विकास देखा जा सकता है।
इस कवि में प्रखर ऐन्द्रिक संवेदन प्रखर राजनीतिक-सामाजिक चेतना का आनुषंगिक है। इसलिए इसके यहाँ यथार्थ न कोरा सतही यथार्थ रहने पाता है, न नकारात्मकता का पर्याय बनने पाता है। प्रस्तुत कविता-संग्रह इस बात की याद फिर से दिलाएगा कि रघुवीर सहाय ने आग्रहपूर्वक सच्चाइयों की चिकनी ‘काव्यात्मक’ सतह को अस्वीकार किया है और जहाँ औरों को कविता नहीं दिखती, वहाँ कविता को पहचाना है।
यह संग्रह एक विशेष अर्थ में कवि की यात्रा के अगले दौर की पूर्वसूचना भी देता है। पहले की अपेक्षा इन कविताओं में तमाम मानवीय कार्यव्यापारों की अर्थ-छवियाँ अधिक विस्तृत भूमि पर फैली हैं और कवि का सम्बन्ध ठोस वस्तुगत संसार से प्रगाढ़तर है। अपने को निरन्तरता में नया करते जानेवाले अपनी रचना-प्रक्रिया के प्रति सजग और आत्मचेता इस कलाकार के “नागर मन की भावप्रवणता, सूक्ष्मदर्शिता और तटस्थ निर्ममता अब नए परिचय की मोहताज नहीं। सहज सौन्दर्य और सूक्ष्म अनुभूति से निर्मित रघुवीर सहाय का काव्य-संसार जितना निजी है उतना ही हम सबका है—एक गहरे और अराजनैतिक अर्थ में जनवादी। भीड़ से घिरा एक व्यक्ति जो भीड़ बनने से इनकार करता है और उससे भाग जाने को ग़लत समझता है, रघुवीर सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व है।’’
—भारतभूषण अग्रवाल की यह टिप्पणी आज भी उल्लेखनीय है।
जहाँ तक कवि का प्रश्न है, वह मानता है कि उसे यह जानने से शक्ति नहीं मिलती कि उसने अपने को कहाँ जोड़ा है। उसका सर्जनात्मक सुख यह जानने में है कि उसने अपने को कहाँ तोड़कर एक नई बस्ती बसाई है और कमोबेश वह यह भी दिखा सके कि वह नई सृष्टि उसकी पुरानी बस्ती को उजाड़कर बनी है तो क्या कहने।
Siyasat Bhi Allahabad Mein Sangam Nahati Hai
- Author Name:
Jaikrishna Rai 'Tushar'
- Book Type:

- Description: हिन्दी ग़ज़ल में कहन की, कंटेंट की विविधता की आज़ादी है यद्यपि अब उर्दू शायरी भी सिर्फ़ इश्क़ मोहब्बत नहीं रही। यह बदलाव ही साहित्य को समाज से जोड़ता है। एक अच्छा शेर हमेशा याद रहता है- शोख इठलाती हुई परियों का है ख़्वाब ग़जल झील के पानी में उतरे तो है महताब गज़ल उसकी आँखों का नशा, जुल्फ़ की खुशबू, टीका रंग और मेंहदी रचे हाथों का आदाब ग़ज़ल मैंने ग़ज़ल को परिभाषित करने की कोशिश की है। आज ग़ज़ल की लोकप्रियता का ये आलम है कि हिन्दी के साथ अन्य भारतीय भाषाओं यहाँ तक कि बोलियों में भी लिखी और कही जा रही है। मैंने भी विविध विषयों पर ग़ज़ल कही है। कभी मीराँ, कभी तुलसी, कभी रसखान लिखता हूँ ग़ज़ल में गीत में पुरखों का हिन्दुस्तान लिखता हूँ ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ स्त्री सौन्दर्य का उपमान आज बदल गया है, स्त्री आज जमीन से अन्तरिक्ष तक अपने पराक्रम को दिखा रही है। अब वह घरों के दालान और आँगन की शोभा नहीं है न चूड़ी है, न बिन्दी है, न काजल, माँग टीका है ये औरत कामकाजी है ये चेहरा इस सदी का है आशा है यह संकलन आप सभी को पसन्द आएगा। जयकृष्ण राय 'तुषार'
Khul Gaya Hai Dwar Ek
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

-
Description:
अशोक वाजपेयी को पहले ‘देह और गेह का कवि’ कहा गया था। यह कहना निराधार नहीं था, लेकिन शनै:-शनै: उनकी दैहिक और गैहिक भावना का ऐसा विस्तार हुआ कि उसमें प्रकृति ही नहीं, सम्पूर्ण पृथ्वी सिमट आई। वे नई कविता के आख़िरी दौर के कवि हैं। उसके बाद से हिन्दी कविता में कई प्रकार के बदलाव हुए, पर उन्होंने अपना मार्ग कभी नहीं बदला। कारण यह कि उनकी कविता में स्वयं ऐसे आयाम प्रकट होते गए कि उन्हें कभी उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। उनकी काव्य-यात्रा एक लम्बी काव्य-यात्रा है, जिसमें कवि ने कई मंज़िलें पार की हैं। आज उनकी कविता के बारे में दिनकर के शब्दों में यही कहा जा सकता है कि ‘वर्षा का मौसम गया, बाढ़ भी साथ गई, जो बचा आज वह स्वच्छ नीर का सोता है...।’
अशोक जी हमेशा ऊँचे सरकारी पदों पर रहे, लेकिन यह प्रीतिकर आश्चर्य की बात है कि उनकी कविता का नायक अभिजन न होकर साधारण जन है। इस साधारण जन को वे नज़दीक से जानते हैं और उसकी समस्त पीड़ाओं के साथ उसकी इतिहास-निर्मात्री शक्ति से भी परिचित हैं। स्वभावत: उनमें नक़ली क्रान्ति के लिए कोई बेचैनी नहीं है, जैसी कथित प्रगतिशीलों और जनवादियों में देखी जाती है। उनकी तरह वे समाज को साहित्य के ऊपर नहीं रखते, बल्कि साहित्य के अनुशासन में ही समाज और इसके अन्य पक्षों को स्वीकार करते हैं। साधारण जन का शत्रु कौन है? यह कवि से छिपा नहीं है, इसलिए बिना कविता को छोड़े वह उससे उसे आगाह करता है। आशा है, यह चयन हिन्दी के बृहत्तर पाठक-समुदाय को पसन्द आएगा, क्योंकि यह उसी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह उसे समकालीन हिन्दी कविता का एक ऐसा दृश्य भी दिखलाएगा, जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...