Dhoomketu Dhoomil Aur Sathottari Kavita
Author:
Meenakshi JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Unavailable
कविता जीवन की अभिव्यक्ति है, परन्तु उसकी सार्थकता जीवन से जुड़े रहने पर ही निर्भर है। यदि उसमें जीवन की सौन्दर्यमूलक और संवेदनशील अभिव्यक्ति नहीं है, मात्र काल्पनिकता है तो उसकी सार्थकता सन्दिग्ध हो जाती है। काव्य के माध्यम से सहृदय साहित्यकार अपनी अनुभूतियों को कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करते रहे हैं और पाठकों ने भी ऐसी अभिव्यक्तियों को सहर्ष स्वीकार किया है। साहित्य की विविध विधाओं में काव्य ही एक ऐसी विधा है, जो आदिकाल से लेकर आज तक सहज और स्वाभाविक रूप में निरन्तर प्रवहमान है। कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अभिव्यक्ति की क्षमता काव्य में होती है। इसीलिए महाकवि कालरिज ने कहा था—कविता श्रेष्ठतम शब्दों का श्रेष्ठतम क्रम में संयोजन है। दोहा, छन्द इसका सशक्त प्रमाण हैं। समय के साथ-साथ काव्य के भाव-बोध, वस्तु और शिल्प में भी परिवर्तन हुए हैं। आधुनिक हिन्दी काव्य में यह परिवर्तन छायावाद से ही परिलक्षित होने लगा था। छायावादी कवियों ने अनुभूतियों की गहराई के साथ ही अभिव्यक्ति को भी प्रांजलता प्रदान की। तदनन्तर प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता का दौर आया। स्वाधीनता के बाद हिन्दी कविता विभिन्न आन्दोलनों के दौर से गुज़रती रही। इन सब आन्दोलनों में साठोत्तरी काव्य के नाम से अभिहित कविता अपने बेबाक चित्रण के कारण आधुनिक हिन्दी काव्य में अपनी एक अलग पहचान बनाने में पूर्णतः सफल हुई है।</p>
<p>साठोत्तरी कविता में धूमिल की रचनाधर्मिता एक अहम् भूमिका रखती है। इनकी कविताओं में कथ्य का ही ठोस धरातल नहीं है, अपितु शिल्प की भी एक नई भंगिमा है। कथ्य, भाषा एवं संरचना की दृष्टि से उन्होंने परम्परागत प्रतिमानों को तोड़कर नए प्रतिमानों की रचना की। उनकी कविताएँ संसद से लेकर सड़क तक बिखरी हैं। भ्रष्ट राजनीति और सामाजिक दिशाहीनता को उन्होंने व्यंग्य और वक्तव्य के माध्यम से अत्यन्त सपाट लहज़े में व्यक्त किया है।
ISBN: 9788183613552
Pages: 244
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Nirmala Thakur
- Book Type:

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Description:
निर्मला ठाकुर की कविताएँ यह कहना चाहती हैं कि अनुभव रचना का एक ज़रूरी तत्त्व है। जीवनानुभव की रोशनी में बाहरी दुनिया को देखते हुए उन्होंने कविताओं को आकार दिया है। 'हँसती हुई लड़की' का केन्द्रीय सरोकार स्त्री है। स्त्री की बहुतेरी छवियाँ हैं। यहाँ जीवन का मार्मिक विस्तार है। ‘रूप—कई रूप’ कविता में ’नन्ही/मुन्नी दँतुली में हँसी—दूध की' से लेकर सन्ध्या की देहरी तक आ पहुँची स्त्री-जिजीविषा का वर्णन है। निर्मला ठाकुर ने बहुत संजीदगी के साथ आधी आबादी के संघर्षों व स्वप्नों को चित्रित किया है। ‘औरत की दुनिया’ इस सन्दर्भ में ख़ासतौर पर पढ़ी जानी चाहिए।
इन कविताओं का सशक्त पक्ष है ‘अबूझ की समझ’। यही कारण है कि इनमें सुसंवेद्य पारदर्शिता है। ‘बर्तन माँजती हुई स्त्री की फलश्रुति है—इधर देखो/मुखातिब हो ज़रा हमसे/मुख पर कौन सी छाया घनेरी/लिए बैठी हो/उठो न/चेहरा इधर कर/ऊपर उठाओ/समय का दर्पण तुम्हारे सामने है।’ कवयित्री ने स्त्री-जीवन के कोलाहल और अकेलेपन की शिनाख़्त की है।
रिश्ते, प्रकृति, रूपबोध व जनजीवन आदि कविताओं में शामिल हैं। 'स्वर्ग सुख' कविता पढ़कर निराला की वह ‘तोड़ती पत्थर’ याद आ सकती है। ‘जो करना’ आत्मकथात्मक है और बेहद मार्मिक।
भाषा-शिल्प की सहजता में विन्यस्त ये कविताएँ एक संवेदनशील मन का आईना हैं।
Prarthnaye Kuchh is Tarah se Karo
- Author Name:
Mukesh Nirvikar
- Book Type:

- Description: मुकेश निर्विकार की कविताओं में एक जागृत प्रतिरोध के साथ-साथ असीम जिजीविषा प्रतिबिम्बित होती है जो कवि और उसकी कविताओं की शक्ति है। —अश्वघोष, ('निकट' पत्रिका से) मुकेश निर्विकार की कविताओं की विशेषता है कि वह दार्शनिक धरातल पर चीज़ों को देखते हैं, मगर उससे कविता में कहीं भी उलझाव नहीं आने देते। बल्कि, दर्शन विसंगतियों को संघनित कर देखने के काम आता है। उनकी कविताएँ गूढ़ यथार्थ को बहुत पारदर्शी ढंग से सामने लाती हैं। कविताएँ कभी सृष्टि के रहस्यों पर बातें करती हैं तो कभी रोटी की मुश्किलों पर। कवि पूरे जीवन-जगत का सीधा मुकाबला करता है। —मनोज कुमार झा, ('पाखी' पत्रिका से) 'हत्यारी सदी में जीवन की खोज' की कविताओं के ज़रिए कवि ने अंधेरों की पुनर्रचना करते हुए निरन्तर अराजक हो रहे समय के क्रूर-यथार्थ को उजागर किया है। समग्र रूप में सभी कविताएँ जीवन के उजास की कविताएँ हैं। इनमें सर्वत्र एक गहरी आशावादिता के युगबोध का 'अंडर-करेन्ट' है। कई कविताओं का कथ्य तो विचलित कर देने वाला है। विलक्षण काव्य-भाषा के ज़रिए कवि ने ढेरों मौलिक बिम्ब रचे हैं, जिनकी सतरंगी छवियाँ किसी पाठक को सहज ही सम्मोहित कर देती है। मानवीय सरोकारों से जुड़ी और उनके कोमल भावों को दीमक की तरह चाटती क्रूर विसंगतियों का कवि ने सहज ही चित्रण किया है। रोज़ी-रोटी की तलाश में भटकता कामगार हो या महानगरीय जीवन के संत्रास को भोगता आम आदमी, कवि की नज़र हर तरफ है। जनसत्ता कुछ लोग कविता में जीवन की तलाश करते हैं। कुछ लोग कविता में जीवन को ढूँढ़ लेते हैं। मुकेश निर्विकार ने जि़न्दगी को कविता में इस तरह उतारा है कि उनकी कविताएँ दोनों तरह के लोगों के काम आती है। सरल और सहज शब्दों के ज़रिये भी उनकी कविताओं में कटाक्ष का स्वर बुलन्द है। अमर उजाला
Chautha Shabda
- Author Name:
Parmanand Srivastav
- Book Type:

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Description:
‘उजली हँसी के छोर पर’ (1960) और ‘अगली शताब्दी के बारे में’ (1981) संग्रहों के बाद परमानंद श्रीवास्तव की कविताओं का तीसरा संग्रह ‘चौथा शब्द’ एक दशक से कुछ अधिक के अन्तराल पर प्रकाशित हो रहा है। कविता के इतिहास में यह बीता हुआ दशक कविता के लिए ही कठिन समय बनकर उपस्थित नहीं हुआ, शब्द या अभिव्यक्ति के सभी रूपों और माध्यमों के लिए और सबसे अधिक मानवीय अस्तित्व के लिए, मनुष्य द्वारा अर्जित समस्त मूल्य सम्पदा के लिए चुनौती बनकर उपस्थित हुआ। यह दौर बीता नहीं है बल्कि आज और अधिक भयावह प्रश्नों और शंकाओं से घिरा है। परमानंद श्रीवास्तव ने कविता के बाहर भी शब्द के पक्ष में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में, मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया है और कविता के भीतर भी धीमी शान्त ऐन्द्रिकता, राग संवेदना और जीवन के प्रति सहज आसक्ति मात्र से सन्तुष्ट न होकर ऐसा उत्तेजक नाटकीय
शिल्प विकसित किया है जो कविता के पाठकों के रूप में अपने समाज के प्रति सीधा सम्बोधन है।
परमानंद श्रीवास्तव के इस संग्रह में ‘इन दिनों’, ‘साध्वियों’, ‘बटोर’ जैसी कविताएँ अपने कठिनतम समय के मुख्य संकट को न किसी शब्द-छल से छिपाती हैं, न ख़तरनाक ताक़तों को सीधे लक्ष्य करने से बचती हैं। इसके बाद भी परमानंद श्रीवास्तव कविता के अपने विन्यास या रूप-तंत्र के प्रति कितने सजग हैं, इसका अनुमान सहज ही किया जा सकता है। ‘चौथा शब्द’ में उनका अनुभव-संसार अधिक विस्तृत है और स्थितियों, चरित्रों तथा समय की त्रासदियों को देखने-समझने की दृष्टि भी अधिक विकसित और सचेत है। ‘वह अघाया हुआ आदमी‘, ‘फ़ुर्सत में’, ‘अपरिचित', ‘सहपाठी मिले एक दिन’ जैसी कविताएँ एक तरह के कथातन्तु का आश्रय लेती हैं जबकि ‘स्त्री सुबोधनी’ जैसी कविता मानवीय अनुभव और भाषा के स्रोतों तक जाने के लिए एक विलक्षण लोकरंग प्राप्त करती है। स्त्री की यातना के अनुभव प्रत्यक्ष कई कविताओं मे दर्ज हैं। यह कविता भी उसी अनुभव को अतीत की यातनापूर्ण यादों में जोड़कर देखने की सार्थक कोशिश है। परिप्रेक्ष्य-सम्पन्न कविताओं के लिए यह संग्रह ज़रूर ही पाठकों के बीच देर तक चर्चा में रहेगा और शायद आनेवाली कविता का संकेत भी देगा।
Bahadur Shah Zafar
- Author Name:
Bahadur Shah Zafar
- Book Type:

- Description: ख़ुदा के वास्ते ज़ाहिद उठा पर्दा न काबे का कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफ़िर-सनम निकले बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में नसीब ऐसा तो सोज़े-जिगर किसी को न हो कि जल के ख़ाक हो दिल और ख़बर किसी को न हो तू कहीं हो दिल-ए-दीवाना वहाँ पहुँचेगा शमा' होगी जहाँ परवाना वहाँ पहुँचेगा
Nadi Ghar
- Author Name:
Krishna Kishore
- Book Type:

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Description:
यह जीवन के साथ एक सहयात्री की तरह चलती जीवन जैसी ही लम्बी कविता है। किसी बड़ी भीतरी या बाहरी घटना-दुर्घटना की प्रतिक्रिया से उपजी हुई नहीं, बल्कि जीवन के रोजमर्रा के साथ बतियाती हुई कविता।
लेकिन जीवन से आक्रांत कविता नहीं, न ही उसके हर ओर फैले विराट वैभव से भयभीत। एक धीमी बतकही की तरह यह अपनी आँख से अपने आसपास के संसार को, व्यक्ति को, उसके इर्द-गिर्द बुने गुए रिश्तों के संजाल को, भीड़ को, भीड़ के बीच भटकती व्यर्थता को देखती हुई, और इन सबके बारे में कुछ कहती-सुझाती-बताती हुई।
'प्रार्थनारत ज़िन्दगी मुझे क्रोधित नहीं करती। क्योंकि मैं जानता हूँ। ये मजबूर लोग जो कुछ माँग रहे हैं। बस वही इन्हें नहीं मिलना है।' कवि इस कविता में जैसे संसार के बीच अपने होने का ऋण चुकता करते हुए अनेक चीजों की तरफ इशारा करता है। प्रकृति में निहित आखिरी उम्मीद को भी हमारे ध्यान में लाता है और हमारे समाज के भीतर की नकारात्मकता को भी जिसके चलते कई बार हमारा पल-पल व्यथा का बिम्ब होकर रह जाता है।
कवि इस कविता के बारे में अपनी बात रखते हुए कहता है कि नदी घर एक ऐसी यात्रा पर निकलने का प्रयास है जो इस दुनिया को उन ताकतों से मुक्ति दे जिनके चलते घर कारागार हो गए हैं और हमारा अपना वजूद एक बोझ
Jeevan Aisa Ho
- Author Name:
Rajesh Maheshwari
- Book Type:

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Description:
‘जीवन ऐसा हो’ राजेश माहेश्वरी का महत्त्वपूर्ण कविता-संग्रह है। इस संग्रह की कविताएँ पढ़कर स्पष्ट होता है कि राजेश माहेश्वरी जीवन के विशाल उपवन से अनुभवों के फूल और शूल संचित करते रहे हैं। फूल की सुरभि और शूल की चुभन इन कविताओं में सहज रूप से समाहित है। लक्ष्य है, हृदय को भावना-सम्पन्न और बुद्धि को विवेक-सम्मत बनाना।
कवि जब समाज में व्याप्त कदाचार, अन्याय और आलस्य देखता है तो उसकी कविता में दु:ख, आक्रोश और व्यंग्य घुल जाता है। वह कह उठता है—‘ग़रीब और शोषित जहाँ था/वहीं रहकर/आज भी शोषित है/और क्रान्ति की प्रतीक्षा में/प्रतिदिन ढह रहा है।’
उदात्त मानवतावाद ही राजेश माहेश्वरी का लक्ष्य है।
इन कविताओं में आस्था और विश्वास का बहुरंगी संसार है। अध्यात्म की धूपछाँह है। उद्देश्य यही है कि जीवन तुच्छताओं से मुक्त हो और परम गन्तव्य तक पहुँचे। मंगलकामना की शैली में कवि कह उठता है—
‘‘सागर से गहरी हो
प्रेम व त्याग की प्यास।
श्रम व कर्म के प्रति
हो हमारा समर्पण।।’’
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