Sab kuchh Hona Bacha Rahega
Author:
Vinod Kumar ShuklaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
इस कविता-संग्रह में वह दृष्टि है जो समय को झरती हुई पत्तियों की जगह फूटती हुई कोंपलों में देखने का हौसला रखती है। विनोद कुमार शुक्ल की कविताएँ शब्दों को ध्वजा की तरह फहरानेवाली कविताएँ नहीं हैं। अनुभवों को हमारे पास छोड़कर स्वयं अदृश्य हो जानेवाली या अपने अद्भुत वाक्य-विन्यास की मौलिकता से स्वयं का दर्ज़ा प्राप्त कर लेनेवाली भाषा इन कविताओं की विशेषता है।... मंगल ग्रह सूना है। पृथ्वी के पड़ोस में सन्नाटा है। संकट में पृथ्वी के लोग कहाँ जाएँगे, कहकर उनकी कविताएँ हमारी संवेदना को जिन महत्तम आयामों से जोड़ती हैं, वह समकालीन कविता के लिए अभूतपूर्व है। जिस भाषा को राजनीतिज्ञों ने झूठा और कवियों ने अर्थहीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, उसी से विनोद कुमार शुक्ल सच्चाई और जीवन में शेष हो चली आस्था की पुनर्रचना कैसे कर लेते हैं, यह एक सुखद आश्चर्य का विषय है। इसमें बच्चे हैं मज़दूरनियों के, जो दूध से पहले माँ के स्तनों पर आए पसीने का स्वाद चखते हैं। उन्हीं के शब्दों में कहें तो यह कविता की दुर्लभ प्रजाति है जिसमें ऊबा हुआ पाठक ताज़गी से भरी कुछ गहरी साँसें ले सकता है।...इस पत्थर समय को मोम की तरह तराशते चले जाने की ताक़त और निस्संगता के स्रोत विनोद कुमार शुक्ल की ग़ैर-साहित्यिक पृष्ठभूमि और रुझानों में हैं। यह उनकी वैज्ञानिक समझ और संवेदना का दुर्लभ संयोग है और गहरी जीवनासक्ति कि पेड़, पत्थर, पानी, हवा हमें अपने पूर्वजों की तरह लगने लगते हैं (जो कि वे सचमुच हैं)।...एक अद्भुत आत्मीय संस्पर्श है इस दृष्टि में कि जिन चीज़ों पर वह पड़ती है, वे जीवित हो उठती हैं और अपने अधिकारों की माँग करने लगती हैं। इस तरह संग्रह की सम्पूर्णता में देखा जाए तो यही लगता है कि लाशों से भरे समय का सामना करती ये कविताएँ मृत्यु को न सिर्फ़ मनुष्य की नियति मानने से इनकार करती हैं बल्कि जीने के लिए ज़रूरी सामान भी जुटाती हैं।</p>
<p>—नरेश सक्सेना
ISBN: 9789392757013
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Siyaram Mishra
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- Description: बेर भीलनी के' काव्य की रचना खण्डशः हुई है। राम-कथा में भीलनी का प्रसंग युग सापेक्ष तथा मनोनुकूल प्रतीत होता है। भगवान् राम ने दरिद्रनारायण भक्त को गले से लगाया, अपने कर-कमलों से उसके आँसू पोंछे तथा द्रवीभूत हुए इसका सम्पूर्ण जीवन्त निदर्शन भीलनी प्रसंग में प्राप्त हो जाता है। शूद्रा भीलनी के प्रति राम की करुणा,धर्म का अस्पष्ट रूप तथा राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने की ललक, तथा लोकेषणा इन सब तत्त्वों ने मिलकर 'बेर भीलनी के' खण्ड काव्य के सृजन को बल प्रदान किया है। प्रत्येक रचना का अपना एक प्रयोजन हुआ करता है। रचना के पीछे भी निश्चित ही प्रयोजन-दृष्टि रहती है। इसमें निम्नवर्ग की एक साधारण स्त्री के आत्मिक एवं आध्यात्मिक संघर्ष की ऐसी कथा है, जो रामायण के शीर्षस्थ पात्रों, चरित्रों में भी अपनी पहचान बनाये रखती है। रामायण में प्रयुक्त अन्य साधारण पात्र, अपनी प्रयुक्ति के बाद रचना के गतिशील फलक में विलीन हो जाते हैं परन्तु शबरी जिस क्षण वाल्मीकि के द्वारा राम-गाथा में प्रयुक्त होती है उस समय तक वह अत्यन्त उच्च भाव-भूमि प्राप्त किये हुए होती है। रचनात्मक प्रयुक्ति के क्षण में शबरी के लिए राम स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। साधना की यह परावस्था ही शबरी को सारे रामायणकालीन पात्रों में विशिष्ट बनाती है। कवि की मानवीय दृष्टि ने ही शबरी के साधारणत्व को असाधारणत्व प्रदान किया। जिस युग की यह कथा है उस समय सामाजिक स्तर पर भले ही वर्ण-व्यवस्था का विधान रहा हो पर व्यक्ति, कर्म के द्वारा वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा कर सकता था। 'बेर भीलनी के' की कथा में भी यही वर्ण-मुक्त होने की चेष्टा है। यह ठीक है कि इसके लिए व्यक्ति को संघर्ष करना ही होता था। जिस समाज में हम रह रहे हैं उसमें वर्ग-व्यवस्था प्रधान है। वर्ग-मुक्त होने की हमारी सबसे प्रमुख समस्या है। सामाजिक वर्ग-व्यवस्था और वैयक्तिक कर्म विधान में एकता की चेष्टा सदा से कवि, विचारक, दार्शनिक और सधारक होते आये हैं। आज की वर्ग-व्यवस्था वाली सामाजिकता का श्रम-विधान के द्वारा सुलझाने की चेष्टा निरन्तर की जा रही है। हमारा समाज श्रम और कर्म दोनों ही क्षेत्रों में वैसे ही भटक गया है जैसे कि तपते मरुस्थल में कोई साथी खो जाता है। 'इस छोटे से खण्डकाव्य में मैं अपनी बात को केवल संकेत में ही कह सका हूँ क्योकि मुख्य रूप से इसे किसी इतर प्रयोजन के लिए ही मुझसे लिखवाया गया, छन्दोबद्ध भी लिखा तथा रचना की संरचना में वैचारिकता भी कम ही आने दी। फिर भी अपने मूल प्रयोजन में यह रचना भी मेरे कवि का उतना ही प्रतिनिधित्व करती है जितनी की अन्य काव्य-कृतियाँ।
Kuchh Aur Nazmein
- Author Name:
Gulzar
- Book Type:

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Description:
गुलज़ार के गीत हिन्दी फ़िल्मों की गीत परम्परा में अपनी पहचान ख़ुद हैं, प्रवृत्ति के साथ उनके कवि का जैसा अनौपचारिक और घरेलू रिश्ता है, वैसा और कहीं नहीं मिलता। जितने अधिकार से गुलज़ार क़ुदरत से अपने कथ्य और मन्तव्य के सम्प्रेषण का काम लेते रहे हैं, वैसा भी और कोई रचनाकार नहीं कर पाया है। न फ़िल्मों में और न ही साहित्य में।
इस किताब में वे नज़्में शामिल हैं जिनमें से ज़्यादातर को आप इस किताब में ही पढ़ सकते हैं, यानी कि ये गीतों के रूप में फ़िल्मों के मार्फ़त आप तक कभी नहीं पहुँचीं। इसमें गुलज़ार की कुछ लम्बी नज़्में भी शामिल हैं, कुछ छोटी और कुछ बहुत छोटी जिन्हें उन्होंने ‘त्रिवेणी’ नाम दिया है। इनको पढ़ना एक अलग ही तजुर्बा है।
Log Bhool Gaye Hain
- Author Name:
Raghuvir Sahay
- Book Type:

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Description:
रघुवीर सहाय की कविताओं में हम एक ऐसे आधुनिक मानस को देख पाते हैं जो बौद्धिक और रागात्मक अनुभूतियों से सन्तुष्ट होकर अपने लिए एक सुरक्षित संसार की सृष्टि नहीं कर लेता; उसमें रहने लगना कवि के लिए एक भयावह कल्पना है। आज के पतनशील समाज में ऐसे अनेक सुरक्षित संसार विविध कार्य–क्षेत्रों में बन गए हैं—साहित्य में भी—और इनमें बूड़ जाने का ख़तरा पिछले कुछ वर्षों में बढ़ते–बढ़ते तीव्रतम हो गया है। परन्तु (बातचीत में रघुवीर सहाय कहते हैं कि) समाज कविताओं से भरा पड़ा है : सड़क पर चलते ही हम उनसे टकराएँगे और हर कविता एक नया परिचय कराएगी। इस संग्रह की रचनाएँ कवि के निरन्तर बढ़ते हुए परिचयों के पीछे उसकी सामाजिक चेतना के विकास का भी संकेत देती हैं : कवि की चिन्ता है कि उस विकास के बिना कविता लिखते जाने का कोई मतलब ही नहीं होगा।
आज के पतनशील समाज के प्रति कवि की दृष्टि विरोध की है, परन्तु वह अपने काव्यानुभव से जानता है कि वह रचना जो पाठक के मन में पतन का विकल्प जाग्रत् नहीं करती, न साहित्य की उपलब्धि होती है न समाज की। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की परम्परा में वह उस शक्ति को बचा रखने को आतुर है जो उसने ‘दूसरा सप्तक’ और ‘सीढ़ियों पर धूप में’ पाई थी और जिस पर आए हुए ख़तरे को उसने ‘हँसो, हँसो जल्दी हँसो’ में दिखाया था। वह मानता है कि यही खोज नए समाज में न्याय और बराबरी की सच्ची लोकतंत्रीय समझ और आकांक्षा जगाती है और ऐसे समाज की रचना के लिए साहित्यिक और साहित्येतर क्षेत्रों में संघर्ष का आधार बनती है। जहाँ कहीं जन की यह शक्ति पतनोन्मुख संस्कृति के माध्यमों द्वारा भ्रष्ट की जा रही हो वहाँ वह चेतावनी देता है और जहाँ वह बची रहने पर भी देखी नहीं जा रही हो, उसकी पहचान कराता है। वह बचाने के लिए तोड़ता है और तोड़ने के लिए तोड़ने के व्यावसायिक उद्देश्य का विरोध करता है। पीड़ा को पहचानने की कोशिश वह ऐसे करता है कि उसी समय पीड़ा का सामाजिक अर्थ भी प्रकट हो जाए—वह मानता है कि सामाजिक चेतना का कोई अक्षर भंडार नहीं हो सकता, उसकी समृद्धि लोकतंत्र के पक्ष में संघर्ष से करती रहनी पड़ती है और इसी तरह सामाजिक नैतिकता की भी। ये कविताएँ इसी परम्परा की आज के दौर की अभिव्यक्तियाँ हैं।
Amrushatakam
- Author Name:
Kamleshdutt Tripathi
- Book Type:

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Description:
‘अमरुशतकम्’ संस्कृत काव्य का एक गौरव-ग्रन्थ है। उसमें ऐन्द्रियता और शृंगार की, प्रेम और रति की अपार सूक्ष्मताएँ और छबियाँ ऐसे अद्भुत काव्य-कौशल से उकेरी गई हैं कि उनका मूल संस्कृत के अलावा हिन्दी अनुवाद में भी आस्वाद सम्भव है। यह संचयन एक बार फिर याद दिलाता है कि भारतीय शृंगार की परम्परा विश्व स्तर पर एक अनोखी परम्परा है जिसमें बखान, उन्मीलन, सांकेतिकता, अन्वय आदि के अनेक पक्ष कविता में सहज सम्भव होते रहे हैं। हम इस पुस्तक के पुनर्प्रकाशन से उस विरासत की ओर आधुनिक काव्य-रसिकों का ध्यान खींचने की चेष्टा कर रहे हैं।
Tumhen Saunpta Hun
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

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Description:
पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी कविता के परिदृश्य में त्रिलोचन की कविता का महत्त्व असाधारण रूप से बढ़ा है। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि इस महत्ता की स्वीकृति में पेशेवर साहित्य मर्मज्ञों और तथाकथित अकादमियों का योगदान न के बराबर रहा है। अगर पिछले कुछ वर्षों की लघु-पत्रिकाएँ उठाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट लगेगा कि युवा कवियों ने अपने समय की सांस्कृतिक जड़ता के ख़िलाफ़ त्रिलोचन की रचनाशीलता में एक नई ताज़गी और ऊर्जा का अनुभव किया है, अपने समय की रचनात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए उनकी रचनाएँ एक योद्धा के रूप में उनके सामने उभरीं। ‘तुम्हें सौंपता हूँ’ उनकी कविताओं का एक विशिष्ट संग्रह है, जिसमें उनकी सन् 1935 से 83 तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएँ शामिल हैं। इतने लम्बे कालक्रम में बिखरी इन कविताओं में आप कवि के रचनात्मक विकास की अनेक मंज़िलों से साक्षात्कार करेंगे। वास्तव में त्रिलोचन की कविताएँ दु:खों और विपदाओं के अपार समुद्र में मानवीय सौन्दर्य, प्रेम, आशा और स्वप्न का एक ऐसा घनीभूत पुंज हैं जो हमारे भीतर जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है। छोटी-
बड़ी इक्यासी कविताओं का यह संग्रह कवि के व्यक्तित्व के कुछ ऐसे आयामों को भी सामने लाता है, जिनसे हिन्दी जगत प्राय: अपरिचित ही रहा है।
इस संग्रह के शान्ति पर्व वाले खंड में त्रिलोचन के चार काव्य रूपक भी शामिल किए गए हैं जो उन्होंने दूसरे महायुद्ध के नरसंहार की पृष्ठभूमि में लिखे थे। जीवन को विध्वंस की आग में झोंकनेवाली शक्तियों के ख़िलाफ़ त्रिलोचन की कविताएँ किसी गुरिल्ला सैनिक की तरह हमारे भीतर प्रवेश करती हैं। यह उनकी कविताओं का ऐसा प्रतिनिधि संग्रह है जिसमें पूर्व संकलनों की कोई कविता भरसक नहीं आने पाई है।
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