Gule-E-Nagma
Author:
Firak GorakhpuriPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-असरो</p>
<p>जब ये ध्यान आएगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था।’</p>
<p>‘फ़िराक़’ की शायरी इस धरती की सोंधी-सुगन्ध, नदियों की मदमाती चाल, हवाओं की नशे में डूबी मस्ती में ढूँढ़ी जा सकती है। ‘फ़िराक़’ प्रायः कहा करते थे कि कलाकार का मात्र भारतवासी होना पर्याप्त नहीं है, वरन् उसके भीतर भारत को निवास करना चाहिए।</p>
<p>भारत की शायरी की पहचान भारतीयता से होनी चाहिए। भारतीयता का एक विशिष्ट काव्य प्रतिमान है।</p>
<p>‘फ़िराक़’ की शायरी ने जीवन पर अमृत वर्षा कर दी और उसे ऐसा मधुर संगीत प्रदान किया, जिससे देवताओं के पवित्र नेत्र भीग जाएँ। ‘फ़िराक़’ की शायरी जीवन के लिए पाकीज़ा दुआ बन गई।</p>
<p>'फ़िराक़' ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक़ दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक़ भी। इस नए आशिक़ की एक बड़ी स्पष्ट विशेषता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पाई जाती है जो उर्दू शायरी में पहले नज़र नहीं आती थी।</p>
<p>‘फ़िराक़’ के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे ‘मीर’ के यहाँ उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती। अतएव, उनके आशिक़ में एक तरफ़ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ़ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
ISBN: 9788180319938
Pages: 280
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Tum Se Mein Tak
- Author Name:
Abha Jha
- Book Type:

- Description: तुम' से 'मैं' तक an eternal jeurney 'तुम' से 'मैं' तक- An eternal journey by Abha Jha is a bilingual compilation of her spontaneous understanding from her own experiences of life in the form of quotes and short poems which can pave path for others to understand themselves better. It's a journey which anyone who is set on embarking the journey of self will resonate with and get motivated from. Her writing style denotes a sense of freedom depicted through the free verse she writes in, without the use of any punctuation mark in her poetry.
Pakistani Urdu Shayari Vol. 1
- Author Name:
Narendra Nath
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Mat Kaato Van
- Author Name:
Rameshraaj
- Book Type:

- Description: पर्यावरण सुरक्षा को लेकर एक बेहतरीन चिंतन से युक्त बालगीत संग्रह - मत काटो वन विगत पचास वर्षों से साहित्य की सेवा में लीन सुकवि रमेशराज ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में अनवरत लिखा है। व्यंग्य, लेख, निबंध, लघुकथा, कहानी, गीत, ग़ज़ल से लेकर हाइकु, जनक छंद, रसिया, लांगुरिया, कहमुकरी, चतुष्पदी, कवित्त, घनाक्षरी, दोहे, मुक्तछंद कविताएं, तेवरी, अर्थात् हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर शास्त्रसम्मत तरीके से अपनी क़लम का जादू बिखेरा है। मौलिक प्रयोगों के अंतर्गत अनेक छंदों को तोड़कर अनेक छंदों का निर्माण किया है। लीक से हटकर दो मौलिक छंद -”नव कुंडलिया राज छंद” तथा “सर्प कुंडली राज छंद” भी छंदकाव्य में जोड़े हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुकवि रमेशराज ने बच्चों को संस्कारवान बनाने हेतु ढेरों बालगीत भी लिखे हैं। छह बालगीत संग्रहों के उपरांत आपका सातवां बालगीत संग्रह - “मत काटो वन” रचनाएं प्रकाशन बेंगलुरु से प्रकाशित है। इस संग्रह के समस्त बालगीत बच्चों को सामाजिक दायित्वों और पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रेरणा देते हैं। संग्रह के कई गीत कभी कुल्हाड़ी से तो कभी आदमी से 'न काटे जाने के प्रति' निवेदन करते हैं तो कई गीतों में बच्चे बादल का रूप धारण कर मरुथल में बरसकर धरा को हरा-भरा करने को लालायित दिखते हैं। बच्चे कभी दीन-दुखियों के प्रति करुणा का भाव प्रस्तुत करते हैं तो कभी सैरसपाटे के बाद पढ़ाई करने के लिए सजग हो उठते हैं। ये बच्चे रावण को तो जलाना चाहते हैं, किंतु उनकी दृष्टि में वह रावण है विषमता, भूख, गरीबी का रावण। इस रावण को ही वे जलाकर अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करने की ओर अग्रसर होना चाहते हैं। कुल मिलाकर “मत काटो वन” सुकवि रमेशराज के बालगीतों का ऐसा सद्यः प्रकाशित संग्रह है जो बच्चों को सदाचरण, सामाजिक दायित्वों के प्रति प्रेरित करता है। जिसके अंतर्गत बच्चे समझदार बनकर असंगतियों विकृतियों, हिंसा आदि को समाप्त करने की एक जानदार कोशिश करते है। आशा है विगत बालगीत संग्रहों की भांति यह बालगीत संग्रह - “ मत काटो वन” भी साहित्य जगत में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज़ कराएगा।
Nivedita
- Author Name:
Sheodam Singh Bhadoriya ‘Shiv’
- Book Type:

- Description: ‘निवेदिता’ डॉ. शिवदान सिंह भदौरिया ‘शिव’ का वाग्देवी को निवेदित कविता-संग्रह है। डॉ. शिव की कविताओं का विचारजगत व्यापक है, उसमें अगर एक तरफ़ देश और दुनिया की विविध समकालीन समस्याएँ हैं तो दूसरी तरफ़ मानव जीवन के विविध पहलुओं को छूनेवाले सार्वकालिक प्रश्न भी हैं। कविताओं के इस छोटे से संग्रह में अपने दिक्काल के बाहर और भीतर, पास और दूर को, उसके जीवनस्रोतों को एक साथ देखने और परखने की सफल कोशिश हुई है। अभी-अभी जन्मे विचार चूजों से लेकर झकझोरकर अशान्त कर देनेवाले साम्प्रदायिक धर्मोन्माद के सुनामी और उसके महाविनाश तक, काव्य दर्पण सम्मुख अपना कलेजा खोलकर उसे हू-ब-हू देखने से लेकर तर्क की कुल्हाड़ी से वाक्यों की डालियाँ गिराकर, फिर विवेक-रन्दा चलाकर गोल शहतीरों से महल बनाने तक, अनगिनत राहगीरों के पैरों की मार खानेवाले धूलकण से लेकर अपने तन की मिट्टी में न जाने कितने कुदालों की मार सह लहलहाती फ़सलें उगानेवाली औरत तक इन कविताओं का प्रसार है। कवि के वैज्ञानिक दृष्टिकोण, अन्तःकरण तक झाँककर देखने की प्रवृत्ति और प्रश्नात्मक स्वभाव के चलते कविताओं में न केवल मौलिकता है, बल्कि उन्हें सर्वथा नवीन व्यक्तित्व मिला है। माँ कहकर रो पड़ती नवजात रचना, आकाश में बिखरे तारों के अन्दर से विद्युत चुम्बकीय तरंग बन बाहर निकलने की इच्छुक किरणें, अर्थ की खोज में घर की पौड़ी लाँघकर अनन्त की ओर निकलते शब्द, डायरेक्ट साहब मि. सूरज के आने का वक़्त होते ही महुए-सी झरकर बिछ गई रिसेप्शनिस्ट सुबह, जोंक की तरह चिपटती दवा की सिरिंज, हिन्दी कविता को नयापन देते कुछ ऐसे ही उदाहरण हैं। ‘निवेदिता’ की कविताएँ कथ्य की तरह शिल्पगत विविधता के लिए भी उल्लेखनीय हैं। कविताएँ न केवल अपने आकार-प्रकार और प्रयोगशील शैली से बल्कि क्रियात्मक, चित्रात्मक और जीवन्त भाषा से भी हिन्दी कविता को धनी बनाती हैं।
Orhan Aur Anya Kavitayen
- Author Name:
Shriprakash Shukla
- Book Type:

-
Description:
‘आँधी में टूटकर गिरा हुआ मकान/तूफ़ान में सूखकर रेत हुई नदी/थककर गिरा हुआ आदमी/ज़्यादे भरोसे का होता है/अपनी-अपनी सम्भावनाओं में/समर्पित सफलता से/ज़्यादा मूल्यवान होती है/तनी हुई विफलता।’ श्रीप्रकाश शुक्ल के कविता-संग्रह ‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ में शामिल कविता ‘तनी हुई विफलता’ की ये पंक्तियाँ रचनाकार के पक्ष को स्पष्ट कर देती हैं। प्रत्येक सजग और समर्थ रचनाकार बार-बार निजी और सामाजिक अनुभवों को चेतना की कसौटी पर कसता है। इसे ‘पुन:पाठ’ कहें या ‘अर्थान्तर’ सच्चाई यही है कि हर शब्द एक अनुभव माँगता है और हर अनुभव एक जीवन। इस आन्तरिक प्रक्रिया से गुज़रकर जो कवि समय को व्यक्त कर रहे हैं, उनमें श्रीप्रकाश शुक्ल महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रस्तुत संग्रह को पढ़ते हुए यह लगना अनायास नहीं कि ‘बनारस’ इसकी केन्द्रीयता है। बनारस के अनेक प्रसंग, स्थान और स्वभाव कविताओं में निहित व निनादित हैं।...और एक ‘सनातन नगर’ के बहाने कवि ने आधुनिकता के श्वेत-श्याम आवासों को टटोला है। श्रीप्रकाश शुक्ल में यह कहने का साहस व सलीका भी है कि, ‘सब कुछ बहुवचन में नहीं सोचा जा सकता।’ अपने तरीक़े से सोचते हुए उन्होंने ‘ओरहन’, ‘एक कवि की तलाश में’, ‘हमारे समय का एक शोकगीत’, ‘एक स्त्री घर से निकलते हुए भी नहीं निकलती है’ व ‘छठ की औरतें’ जैसी कई उदाहरणीय कविताएँ रची हैं।
इस संग्रह में ‘स्त्री’ को लेकर कुछ बेहद ख़ास कविताएँ हैं। बिना शब्दों का डमरू बजाए। निजी देसी मुहावरे में श्रीप्रकाश ‘लरिकोर’ जैसी अनूठी कविता लिखते हैं। भाषा के स्वीकृत विन्यास को सतर्क चुनौती देते हुए रची गई ये कविताएँ हमें संवेदनाओं के एक सघन संसार में ले जाती हैं, जहाँ अपेक्षित भाषाई मुखरता के साथ एक आत्मसंवादी स्वर भी है जिसमें प्रकृति के साहचर्य से दूर जाते समाज की चालाकियों का पर्दाफ़ाश भी है।
Danuphak Phool Jakan
- Author Name:
Vidyanand Jha
- Book Type:

- Description: देसक इतिहास आइ अपन निर्दयतम दौर सँ गुजरि रहल अछि जखन भाषा मे अपन अन्त:करणक रक्षा क' सकब एक कठिन चुनौती बनल अछि। मैथिलीक बहुलांश कवि-समुदाय केँ हमरा लोकनि आइ जत' रौरव के उत्सव मनबैत देखबा लेल अभिशप्त छी, विद्यानंद ने तँ अपन जनानुभव सँ एकात भेला अछि आ ने अभिव्यक्तिक जरब उठेबा मे कनियो थकमकाइत छथि। देसवासीक नियति केँ प्रभावित केनिहार हरेक प्रपंच पर हुनका लग अपन कविता छनि। नाना प्रकारक मानवीय आ प्राकृतिक उत्पातक बीच ओ साधारण जन पर पड़ैत एकर प्रभावे केँ उचित-अनुचितक दिशानिर्देशक मानैत रहला अछि। स्मृति सेहो कोना उपस्थित होइत छैक, से हम सब एत' बारंबार देखि सकै छी। हुनक काव्यानुभवक अनुरूपे हुनकर ई संग्रह सेहो विविधता आ व्यापकता सँ भरल अछि। समकालीन कविताक लेल अवश्ये ई एक महत्त्वपूर्ण बात थिक जे हमर ई कवि अपन हरेक नव संग्रह मे पछिला संग्रह सँ आगू बढ़ल देखाइत छथि। हुनकर पाठक लोकनि से एहू संग्रह मे देखि सकता। —तारानंद वियोगी # विद्यानंदक कविता मे आत्म निरीक्षणक एक टा अद्भुत पद्धति छनि। अस्तित्ववादक आधुनिक परम्पराक देशज आ लौकिक सहज विमर्श सँ जेना बियाह होइत हो। जतबे भावोत्तेजित ततबे निरीह, शांत, आ प्रतीतिकर। खेतिहर, गामक लोक, ऑरवेल, अम्बेडकर आ महात्मा गांधी—एहन अनेक पात्र हिनक काव्य मे सजीव भ'क' संवाद करैत अछि। कवि केँ धन्यवाद जे ओ अपन काव्य रचना मे सतत सत्यपरक, तथ्यपरक आ साहित्यिक सौन्दर्यपरक संतुलनक संग समुचित संसार गढ़ैत रहलाह अछि। —देव नाथ पाठक
Wah Aadami Naya Garam Coat Pahinkar Chala Gaya Vichar Ki Tarah
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
विनोद कुमार शुक्ल की कविता, उस पूरे काव्यानुभव को एक विकल्प देती है जिसके हम अभ्यस्त हैं। हम जैसे सिर्फ़ एक क़दम उठाकर एक ऐसी दुनिया में आ जाते हैं जो बहुत बड़ी है, जहाँ चाहें तो उड़ा भी जा सकता है। यह कविता आपको बदल देती है। आपके पढ़ने और आपके जीने, दोनों की आदत को।
वह पहले आपको एक अलग भाषा देती है, फिर देखने का, महसूस करने का एक अलग तरीक़ा। एक सामर्थ्य जो हमें अपने आसपास मौजूद तमाम चीज़ों के प्रति नए सिरे से जीवित कर देती है। विनोद कुमार शुक्ल न आपको विचार देते हैं, न सन्देश, बस दुनिया में होने का एक हल्का, सरल और मानवीय ढंग देते हैं, एक विज़न, जहाँ वह सब ख़ुद चला आता है, जिसे मनुष्यों, पेड़ों, हवाओं, आसमानों, आदिवासियों, समुद्रों, नदियों, मिट्टियों, पत्तियों, चिड़ियाओं, लड़कियों, बादलों और मज़दूरों की इस दुनिया में होना चाहिए।
‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’ विनोद कुमार शुक्ल का दूसरा कविता संकलन है जो 1981 में प्रकाशित हुआ था। काफ़ी समय से यह अनुपलब्ध था।
Prithvi Mere Purvajon Ka Teela
- Author Name:
Sameer Varan Nandi
- Book Type:

- Description: इन दिनों कविता में उक्ति-वैचित्र्य की सराहना का दौर चल रहा है। उक्ति-वैचित्र्य कविता का गुण ज़रूर है, लेकिन जिसे काव्य का जीवन कहा गया है, उस वक्रोक्ति से बहुत अलग भी है। उक्ति-वैचित्र्य फड़कती बात कहने का चमत्कार है, कविता केवल फड़कती उक्तियों के समुच्चय को नहीं कहा जा सकता। कविता में कहन के अनूठेपन का महत्त्व है अवश्य, लेकिन जो कहा जा रहा है, उसकी सघनता और वैचारिक स्पन्दनशीलता के बाद ही। समीर वरण नन्दी की कविताओं में कहन का अनूठापन है, गहरे अनुभवों और उन अनुभवों को वैचारिक सघनता देनेवाले आत्मसंघर्ष तथा कठोर आत्मानुशासन के साथ। यह आत्मानुशासन इतना कठोर है कि इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कवि का यह दूसरा ही संग्रह है। साथ ही, इतना गहरा, रोमांचक आत्मविश्वास है कवि समीर में कि वे भूल से भी कहीं समकालीन सराहना के लालच में अपने मिज़ाज और मुहावरे से समझौता नहीं करते। उक्ति-वैचित्र्य के लालच में पड़ने के बजाय समीर कवि-कर्म की मूल और सार्वभौम प्रतिज्ञा निभाते हैं; अपने अन्तस और बाह्य को, उनके परस्पर मुखामुखम को, प्रेम और मृत्यु को, इनके संवाद को कविता का विषय बनाते हैं। उनके मुहावरे में बांग्लादेश, बिहार, दिल्ली और हिमालय की स्मृतियों को देश की जातीय स्मृतियों से संवाद करते सुना जा सकता है। प्रेम, मृत्यु, समकालीनता के सवाल—किसी भी सन्दर्भ में समीर देशी-विदेशी समकालीनों का या वरिष्ठों का अघोषित अनुवाद करते नहीं दिखते। वे अपनी ख़ुद की काव्य-भाषा का सन्धान करते हैं, हिन्दी काव्य-भाषा का विस्तार करते हैं। प्रेम में कामना हो या समर्पण—उसे कहने का समीर का ढंग निराला है। कामना को उनकी कविता यों बखानती है—‘थोड़ी सी धूप काम-लोलुप हो कर तुमसे लिपटी हुई थी/देखा तो वही मेरे आगे बाधा बनी हुई थी’। समर्पण के लिए, समीर की कविता चुनती है न्यूनतम शब्द, लेकिन ऐसे जिनमें आँखों के सामने आ जाता है—विराट, मार्मिक सांस्कृतिक स्मृति का बिम्ब, कृष्ण की हथेली पर दाह-संस्कार का सौभाग्य पानेवाले सूतपुत्र कर्ण का बिम्ब—‘तुम अपनी हथेली आगे करो और मैं उस पर अपनी चिता सजा दूँ’। कवि समीर के लिए जातीय सांस्कृतिक स्मृति किसी ख़ास तरह के विषय को सँवारने की सामग्री नहीं, वह उसकी कविता-देह की मांस-मज्जा और रक्त में प्रवाहित है। व्यक्ति समीर ने कभी अपने दु:खों के दाग़ों को तमगों की तरह नहीं पहना, उसने रिश्ते निभाए हैं, निभाव के लिए संघर्ष किए हैं, अपनी ही कविता के भिक्खु की तरह एत्थ के मौन में डूबते हुए। ऐसे जीवन से सम्भव हुए कवि समीर के लिए स्वाभाविक ही है कि मृत्यु भावुकता या अन्तबोध का विषय नहीं, समय की निरन्तरता में पुरखों द्वारा की जा रही प्रतीक्षा में स्वयं को स्थापित करने का बोध है—‘और सबसे लम्बी लकड़ी जो अलग रखी थी/उसे पिता, पितामह और प्रपितामह/जलाकर आग तापते हुए/कर रहे हैं मेरी प्रतीक्षा’। इस संग्रह की कविताओं से गुज़रना सघन, समृद्ध, अद्वितीय काव्यानुभव से गुज़रना है। —पुरुषोत्तम अग्रवाल
Maine Garha Hai Apna Purush
- Author Name:
Anupam Singh
- Book Type:

-
Description:
अनुपम सिंह इक्कीसवीं सदी की सम्भावना पूर्ण स्त्री-कविता की प्रखर आवाज़ हैं। उनकी कविताओं में एक छोटी लड़की झाँकती है जो पूरे सजग भाव से अपने आसपास सब कुछ देख रही है लेकिन सम्भवत: चुप करा दी गई है। यह चुप्पी कविताओं में आकर खुलती है और पूरी बेबाकी के साथ अपने जीवन, परिवेश और व्यवस्था को तार-तार कर देती है।
अनुपम की कविताएँ गहरे दुख की कविताएँ हैं। दुख जो स्त्री-जीवन में शोकगीत बनकर बसा है; दुख, जिसे हर किसान, शोषित-पिछड़े वर्ग का व्यक्ति और स्त्रियाँ अपने जीवन का स्थायी भाव मान चुके हैं।
जीवन की त्रासदी के इस मानचित्र का एक बड़ा हिस्सा स्त्रियों और उनके अभिशप्त जीवन के नाम है। वे स्त्रियाँ जो कठिन श्रम करते हुए, अधिकारविहीन और निरानन्द जीवन जीती हैं और हर बार जिस परिवार, समाज में वे जीती आई हैं उससे बेदख़ल कर दी जाती हैं। अनुपम ने ऐसी कई नाइंसाफ़ियों को क़रीब से देखा और महसूस किया है। अपमान और अवहेलना के अनेक ऐसे अध्याय जिनको समाज ने सामान्यीकृत करके स्वीकार कर लिया, फिर चाहे त्वचा के रंग पर ताना देने का प्रचलन हो या परिवार में ही बच्चियों की पीठ पर हाथ फेरते पुरुषों की वासना। सब उस व्यवस्था में विन्यस्त है। ‘थोड़ा कहे को बहुत समझना’ के कौशल से इन कविताओं में एक परा-इतिहास की रचना हुई है। स्त्री-कविता की धार इसी से है कि उसने दूर देखने वाले बाइस्कोप का लेंस बदल दिया है। वह अपने आस-पास के छोट-बड़े आख्यानों से इतिहास को परा-इतिहास के रूप में पहचान रही है। एक समानांतर दुनिया।
अनुपम सिंह ने इन कविताओं में एक और वर्जित क्षेत्र में प्रवेश किया है। उन्होंने स्त्री देह के रहस्यों, उसकी इच्छा-आकांक्षा और यौनिकता के अनुभवों को बड़े करीने से काग़ज़ पर उतारा है। ऐसा करने के लिए भाषा को भी नए सिरे से साधना पड़ता है। अनुपम ने यह कठिन काम किया। उनकी भाषा लोक और शास्त्र के बीच आवाजाही करती हुई स्त्री-जीवन में यौन-अनुभवों के सुख और आनन्द को सहेजती है। इन कविताओं की सघन बिम्बात्मक प्रस्तुति उस अनुभव की उद्दामता को बचा ले जाती है। यहाँ दो स्त्रियों के प्रेम में होने के अनुभव को भी उसकी मुलायमियत और पूरे सम्मान के साथ रचा गया है। इस अर्थ में यौनिकता के सवाल स्त्री-अस्मिता की नए सिरे से शिनाख़्त करने की कोशिश है जहाँ मन और देह अलग नहीं हैं।
—रेखा सेठी
Pran-Bhang Tatha Anya Kavitayen
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

- Description: ं वर्तमान संग्रह को अपनी प्रारम्भिक रचनाओं का संग्रह बनाना चाहता था और इसका मुख्य रूप वही है भी। किन्तु पुरानी बहियों को उलटते-पलटते समय कुछ कविताएँ और मिल गईं, जिन्हें प्रारम्भिक रचनाएँ तो नहीं कहा जा सकता; किन्तु जो उसी न्याय से प्रकाश में आने के योग्य हैं, जिस न्याय से कवि की प्रारम्भिक रचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं।' दिनकर जी के इस कथन से स्पष्ट है कि यह उनकी प्रारम्भिक कविताओं का संग्रह है। बावजूद इसके यह उनका एक ऐसा संग्रह भी है जिसके महत्त्व को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में उल्लेख किया है। प्रस्तुत संग्रह में एक लघु खंड काव्य 'प्रण-भंग' नाम से है जो महाभारत युद्ध में घटित श्रीकृष्ण के शस्त्र-ग्रहण की घटना पर आधारित है जिसे दिनकर जी ने खुद 'जयद्रथ-वध' के अनुकरण पर लिखा गया माना है। इस खंड काव्य में परम्परा और आधुनिकता का अन्तर्विरोध अपनी तार्किकता के साथ है। यही नहीं, इसमें भक्ति भी अपनी आस्था के साथ रूपायित हुई है। ‘प्रण-भंग’ के अलावा संग्रह की स्फुट कविताओं–‘शहीद अशफाक के प्रति’, ‘वायसराय की घोषणा पर’, ‘महात्मा गांधी’, ‘शहीदों के नाम पर’, ‘मूक बलिदान’, ‘तपस्या’, ‘शहीद’ आदि–में हम स्वर्णिम अतीत के प्रति संवेदनशीलता और अपने यथार्थ के प्रति अन्तर्विरोध को गहरे लक्षित कर सकते हैं। वहीं पुस्तक के अन्त में संगृहित अट्ठाईस क्षणिकाओं में सामाजिक पीड़ा और सांस्कृतिक चिन्तन है, तो सत्ता की शोषक-प्रवृत्ति के प्रति धारदार नज़रिया भी है जिसे इन पंक्तियों में देखा जा सकता है–‘राजा/तुम्हारे अस्तबल के/घोड़े मोटे हैं।/प्रजा भूखी और नंगी है।/घोड़ों को कोई अभाव नहीं।/लेकिन लोगों को हर तरफ़ की तंगी है।’ ‘प्रण-भंग और अन्य कविताएँ’ संग्रह के बारे में दिनकर जी के ही शब्दों को लेकर कहें तो यह उनके 'सम्पूर्ण काव्य-यात्रा पर प्रकाश डालता है
Dhool Ki Jagah
- Author Name:
Mahesh Verma
- Book Type:

-
Description:
“महेश वर्मा महत्त्वपूर्ण युवा कवि हैं जो एक अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके में रहकर भी अपनी कहानी-करनी में अग्रगामी हैं। उनके यहाँ निजी और सामाजिक के बीच इधर बढ़ती दूरी से अलग छिटककर उन्हें निरन्तरता में देखने की कोशिश है। वे भाषा और जीवन में बार-बार अपनी कविता गढ़ते हैं जो उनकी कविता में मानवीयता का इज़ाफ़ा करती है और उसकी प्रासंगिकता बनाए रखती है।”
—अशोक वाजपेयी
Yama
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत पुस्तक ‘यामा’ में महादेवी की काव्य-यात्रा के चार आयाम संगृहीत हैं—‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’ तथा ‘सांध्यगीत’ जो भाव और चिन्तन-जगत् की क्रमबद्धता के कारण महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक आयाम में नवीनता तथा विशिष्टता का परिचय दिया गया है, फिर भी अपेक्षाकृत मानवीकरण एवं प्रतीकात्मकता पर बल दिया गया है। प्रकृति के स्थूल सौन्दर्य में भी प्रायः महादेवी ने मानवीय भावनाओं व क्रिया-कलापों का साक्षात्कार किया।
Cheentiyon Ke Paanv
- Author Name:
Satyamohan Verma
- Book Type:

-
Description:
आज कोई भी संवेदनशील प्राणी युग, देश की विसंगतियों से अछूता नहीं रह सकता। प्रतिक्रिया प्रायः व्यंग्यात्मक होती हैं—निर्ममता और क्रूरता लिये हुए। सत्यमोहन की प्रतिक्रिया व्यंग्यात्मक होकर भी कोमल है, उनके व्यक्तित्व—चरित्र के अनुकूल। उनसे जब भी मिला हूँ उनके मृदु स्वभावी होने की छाप मेरे मन पर पड़ी है।
—डॉ. हरिवंश राय बच्चन
सब पार्थिव और अपार्थिव दीवारों के ख़िलाफ़ हैं। सत्यमोहन भी इस ‘मुक्तिबोध’ के प्रति लापरवाह नहीं हैं। जीवन के प्रति यह स्वस्थ दृष्टिकोण है। वे ऐसा कुछ लिखते हैं, जो सबका जाना-समझा और अनुभूत होता है।
—पं. भवानी प्रसाद मिश्र
सत्यमोहन की प्रसन्न सकारात्मकता उनकी संक्रामक आत्मीयता का मूल है। दूब जैसे भीतर ही भीतर फैलती है वैसे ही उनकी रचनात्मकता विभिन्न विधाओं में फैलती है। वे जीवन के पात्र को कभी आधा ख़ाली नहीं देखते—आधा भरा हुआ देखते हैं। वे सफलता की तुलना में सार्थकता को श्रेयस्कर मानते हैं।
—प्रो. कांति कुमार जैन
सत्यमोहन से 'सर्जना-77' के दौरान पहचान हुई और 'गंगा' के प्रकाशन के समय प्रगाढ़ता बढ़ी। वे बेहद शालीन और प्रिय व्यक्तित्व के धनी हैं। उनकी रचनाएँ समय सापेक्ष हैं। छोटी-छोटी कविताओं में वे बड़ी बात कह जाते हैं। उनकी गजलें उद्वेलित करती हैं और उनका तरन्नुम बेहद प्रभावी है।
—कमलेश्वर
सत्यमोहन की साहित्य और रंगकर्म की गतिविधियों में उत्साही और सक्रिय सहभागिता रही है। उम्र के इस पड़ाव पर साहित्यिक जागरूकता और संलग्नता बनाए रखना प्रशंसनीय उपलब्धि है। उम्मीद है कि उनकी कल्पनाशील और आस्थावान रुचियाँ अभी भी जीवन्त रहेंगी।
—प्रो. मनोहर वर्मा
सत्यमोहन जी के लेखन में साफ़-सुथरी भाषा और सम्प्रेषण क्षमता है। उनकी रचनात्मकता की उड़ान काफ़ी ऊँची है। वे इस पड़ाव पर भी सक्रिय हैं यह क्या कम है, उनके जीवन की अपेक्षाएँ पूरी हों यही हमारी कामना है।
—डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव
Chhainya-Chhainya
- Author Name:
Gulzar
- Book Type:

-
Description:
उनके पास लगभग उतने ही शब्द हैं, ठीक जितने ‘आम आदमियों’ के शब्दकोश में होते हैं । उनके पास लगभग नियत जीवन-हृदय हैं जैसे आम आदमियों की जिन्दगी में होते हैं। उनके पास क़रीब-क़रीब वही इच्छाएँ हैं जो किसी भी आदमी के निजीपन में उसे तरंगित या उद्वेलित कर सकती हैं। हिन्दी फ़िल्मों की लोकप्रियता में संगीत के जादू से मिलकर जो मनहरणकारी क्रिया सम्पन्न होती है, उसका मूल भी यही बिन्दु है। लेकिन, गुलज़ार इसी मनहरणकारी व्यवसाय में अपनी संवेदन-शीलता से रिश्तों का अनूठा स्पर्श देने में कामयाब होते हैं। यही उनकी सबसे बड़ी खूबी बन जाती है। चाँद, रात, शाम, सुबह या सूरज उनके जरिए नई अर्थवत्ता ग्रहण करते चलते हैं। मुहावरों के नवप्रयोग होते हैं, प्रकृति की सूक्ष्म व्यंजनाएँ खुल जाती हैं। शायद इसलिए कि शब्दों की ध्वन्यात्मकता को उन्होंने अपने ढंग से परख लिया है। उनके पास लोक रस, गंध और स्पर्श सुरक्षित हैं। वे स्मृतियों और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते हैं। उदासी का तहलका मचाने वाली खामोशी की सर्जना करते हैं। गुलज़ार के शब्द, लोक-हृदय के उफानों, सुखों, इच्छाओं तथा यथार्थ के प्रति उत्पन्न आवेगों को इस तरह बाँटते प्रतीत होते हैं कि हम उन्हें देखने, सुनने, महसूसने लगते हैं। उनकी काव्य-यात्रा प्रकृति और मन के बीच अपने आपको खो देने की प्रबल इच्छा से संपन्न होती है। ‘बंदिनी’ सेΓ‘इजाज़त’ के बाद ‘सत्या’ और ‘फ़िलहाल’ तक गुलज़ार ऐसी निर्बन्ध परंपरा में बदलते हैं जो हमें लगातार अपने साथ ले चलने के लिए खींचती है। हमारी अनुभूतियों को उठाती है और उन्हें बेजान होने से बचने का अवसर प्रदान करती है। वह स्पर्श करती है, गूँजती है और अपने भीतर खो जाने की माँग करती है।
फ़िल्मों के सौदे में भी गुलज़ार उम्र उधेड़ के, साँस तोड़ के लम्हे देते हैं। ‘छैंया-छैंया’ गुलज़ार के प्रेमियों के लिए उन्हीं लम्हों का ताजा गुच्छा है।
Aab Katek Chup Rahoo
- Author Name:
Deep Narayan
- Book Type:

-
Description:
दीप नारायण अपन जीवनक भोगल यथार्थकेँ अपन शब्द-शिल्प, उद्भावना आ कुशल अभिव्यक्तिक माध्यमे समकालीन मैथिली कविताक क्षेत्रमे अपन बेछप उपस्थिति दर्ज कएलनि अछि।
—तारानन्द वियोगी
दीप नारायणक कवितासँ समकालीन मैथिली कवितामे निस्संदेह सम्भावनाक एकटा नव बाट फुजैत अछि।
—नारायणजी
दीप नारायण मैथिलीक लोकप्रिय कवि छथि। मैथिली कविता आ समकालीन भारतीय कविता हिनक लेखनीसँ समृद्ध हैत।
—विद्यानन्द झा
दीप नारायण, सरल सुबोध भाषामे दैनिक जीवनक बहुत रास शब्द जकर अंकुरण मिथिलाक माटिपानिमे भेलैक, ओकरा अपन रचनात्मक कौशलसँ प्रभावी अर्थ दए, ‘आब कतेक चुप रहू’ लिखि एकटा सार्थक काज कएलनि अछि। प्रयुक्त प्रतीक-विम्बमे मानवीय-संवेदनाक अन्तर्वर्ती सौन्दर्य कवितासभकेँ विशिष्ट बनबैत छैक।
लोक–संवेदनाक एहि कविक लिखबाक अपनहि ढ’ब-ढर्रा छनि। जीवनक भोगल यथार्थकेँ अनुभूतिक र’हीसँ र’हिक’ मानवीय संवेदनाक प्रतीति गढ़बामे निष्णात कवि दीप नारायणक कविताक बगएमे फूटल बकार समकालीन मैथिली कविताक एक विशिष्ट हाक भ’ सकैत अछि।
अपन मौलिक शिल्पगत वैशिष्ट्यसँ काव्य-जगतमे फूट पहिचानक संग ई प्रतिष्ठित होएताह से हमर विश्वास अछि।
—कीर्ति नारायण मिश्र
Shoodra
- Author Name:
Tribhuvan
- Book Type:

- Description: Hindi poems Shoodra by Tribhuvan
Indraprasth
- Author Name:
Upendra Kumar
- Book Type:

- Description: poetry
Nadi Ghar
- Author Name:
Krishna Kishore
- Book Type:

-
Description:
यह जीवन के साथ एक सहयात्री की तरह चलती जीवन जैसी ही लम्बी कविता है। किसी बड़ी भीतरी या बाहरी घटना-दुर्घटना की प्रतिक्रिया से उपजी हुई नहीं, बल्कि जीवन के रोजमर्रा के साथ बतियाती हुई कविता।
लेकिन जीवन से आक्रांत कविता नहीं, न ही उसके हर ओर फैले विराट वैभव से भयभीत। एक धीमी बतकही की तरह यह अपनी आँख से अपने आसपास के संसार को, व्यक्ति को, उसके इर्द-गिर्द बुने गुए रिश्तों के संजाल को, भीड़ को, भीड़ के बीच भटकती व्यर्थता को देखती हुई, और इन सबके बारे में कुछ कहती-सुझाती-बताती हुई।
'प्रार्थनारत ज़िन्दगी मुझे क्रोधित नहीं करती। क्योंकि मैं जानता हूँ। ये मजबूर लोग जो कुछ माँग रहे हैं। बस वही इन्हें नहीं मिलना है।' कवि इस कविता में जैसे संसार के बीच अपने होने का ऋण चुकता करते हुए अनेक चीजों की तरफ इशारा करता है। प्रकृति में निहित आखिरी उम्मीद को भी हमारे ध्यान में लाता है और हमारे समाज के भीतर की नकारात्मकता को भी जिसके चलते कई बार हमारा पल-पल व्यथा का बिम्ब होकर रह जाता है।
कवि इस कविता के बारे में अपनी बात रखते हुए कहता है कि नदी घर एक ऐसी यात्रा पर निकलने का प्रयास है जो इस दुनिया को उन ताकतों से मुक्ति दे जिनके चलते घर कारागार हो गए हैं और हमारा अपना वजूद एक बोझ
Jal Padya
- Author Name:
Taslima Nasrin
- Book Type:

- Description: दग्ध हृदय की अत्यन्त तरल और सजल अभिव्यक्ति हैं तसलीमा नसरीन की ये कविताएँ—अनवद्य जल पद्य है यह। जैसे पानी को मुट्ठी में बाँधकर नहीं रखा जा सकता, पानी की यह पुकार भी कुछ वैसी ही है। यह प्रवाह आपको बहाता है, डुबाता है, इसमें आप तैरते हैं और यह सीधे हृदय में उतर जाता है। नितान्त व्यक्तिगत-सी लगती ये कविताएँ दरअसल राख हो रहे जीवन को सजल और प्राणवान बनाने का उपक्रम हैं और गहरी जिजीविषा से उपजी हैं। जीवन के प्रति अदम्य मोह और ललक से भरी हैं ये कविताएँ। देश से, परिवेश से और परिवार से वंचित, निर्वासित जीवन बिता रही तसलीमा की इन कविताओं में यद्यपि दुःख की एक सर्वग्रासी छाया है लेकिन यह भी है कि दु:ख को जीकर-बरतकर ही उदात्त और महत्तर की आत्मोपलब्धि की जा सकती है। तसलीमा कहती हैं : ‘कविता को जन्म देने के लिए स्त्री होना होता है पहले।’ स्त्री-पुरुष के लिंग-भेद को अस्वीकार करती तसलीमा जीवन को अविभाज्य रूप में देखती हैं और ख़ुद के जीवन को ही काव्य-वस्तु बनाकर जिए और सहे जा रहे की नितान्त अकपट तथा साहसपूर्ण अभिव्यक्ति करती है। स्वीकार-अस्वीकार से लेकर धिक्कार-हाहाकार तक ये कविताएँ वैसी ही हैं जैसे जल की धारा चट्टान से टकराती है, उसे डुबाती है, उसका अतिक्रमण करती है और कई बार थककर चट्टान पर ही सिर रखकर सुस्ताती भी है। इन कविताओं में अपने प्रकृत रूप में उपस्थित हैं तसलीमा नसरीन।
Dhoomil Ki Shreshth Kavitayan
- Author Name:
Brahma Dev Mishra +1
- Book Type:

- Description: ‘धूमिल की श्रेष्ठ कविताएँ’ अत्यन्त प्रखर और हिन्दी काव्य-जगत में नई हलचल पैदा करनेवाले सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ की कविताओं का प्रथम सम्पादन है। एक लम्बी भूमिका के साथ सम्पादकों ने उनकी श्रेष्ठ कविताओं का चयन किया है, साथ ही भाषा के माध्यम से गाँव को शहर की होड़ में लानेवाले कवि की कविताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी भी प्रस्तुत की है। लक्ष्य, धूमिल की अनगढ़ भाषा और नए मुहावरे को पाठकों तक सहजता से पहुँचाना है। सम्पादकों की दृष्टि में धूमिल का सर्जनात्मक व्यक्तित्व उनकी कविता में सक्रियता से मुखर है। ‘धूमिल को उनके कथ्य और भाषा के स्वीकृत स्वरूप के लिए जानना चाहिए, न कि प्रयोगात्मक शैलीकार के रूप में।’
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...