Pratinidhi kavitayein : Badri Narayan
Author:
Badri NarayanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
छोटे शहरों के रचनाकारों के बड़े केन्द्रों में उत्प्रवास और उनके मनोजगत में केन्द्र के सर्वग्रासी प्रसार और आधिपत्य के इस भयावह दौर में बद्री नारायण की कविता गुलाब के बरक्स कुकुरमुत्ते के बिम्ब को रचने वाली काव्य-परम्परा का विस्तार है। यह एक ऐसा समय है जब केन्द्र अपने अभिमत का उत्पादन ही नहीं कर रहा है, उसका प्रसार भी कर रहा है। वह कुछ हद तक अपनी मान्यताओं से अलग दिखती धारणाओं और काव्य-भंगिमाओं को भी लील जाने को आतुर है। इसलिए कोई भी अन्य काव्य-भंगिमा उसके लिए असहनीय हो गई है। वह तर्क से या कुतर्क से उसे ख़ारिज कर देने पर आमादा है। यह समय कविता-परिदृश्य के आन्तरिक जनतंत्र को बचाने के कठिन संघर्ष का समय है। बद्री की कविता वस्तुतः जनतांत्रिक समय में एक संवादी नागरिक होने की इच्छा की कविता है। </p>
<p>उनकी कविता भारतीय समाज के निम्नवर्ग के ऐसे मिथकों, आख्यानों और इतिहास के अलक्षित सन्दर्भों के पास जाती है जिनमें उनकी पीड़ाएँ, अवसाद और संघर्ष की अदीठ रह गई गाथाएँ छिपी हैं। बद्री की कविता में वर्चस्वशाली शक्तियों द्वारा स्वीकृति प्राप्त कर चुके प्रचलित मिथक लगभग नहीं हैं। अप्रचलित मिथकीय आख्यानों का पुनर्पाठ करने की कोशिश भी यहाँ नहीं है। इन कविताओं में तो ऐसी जातियों और मानव समूहों के अपने आख्यानों और जन-इतिहासों के चरित्र और गाथाएँ हैं जो उत्पादन की गतिविधियों से जुड़े होने के बावजूद समाज की परिधि पर नारकीय जीवन जीने को अभिशप्त हैं। बद्री की कविता उन बहुसंख्य मानव समूहों के सपनों, आकांक्षाओं, उनकी कमज़ोरियों और उनकी शक्ति का भाष्य तैयार करती है। वस्तुतः कवि का काव्य-व्यवहार ही इस कविता की राजनीति का साक्ष्य है ।</p>
<p>—राजेश जोशी
ISBN: 9789393768582
Pages: 142
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: विद्वान संपादक आज़ादी रै आंदोलण अर आज़ादी आयां पछै रै बिग्साव रै वेला री कोई आधी सदी रै ४० कवियां री टाळवीं कवितावां भेली कर र इण संग्रै नै कविता प्रेमियां सारू ग्रै जोग बनयो है।
Pratinidhi kavitayein : Ramdarash Mishra
- Author Name:
Ramdarash Mishra
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लगभग एक शताब्दी वय के हिन्दी विश्व के श्रेष्ठ कवि रामदरश मिश्र का कवि व्यक्तित्व प्रारम्भ से ही अभिभूत करने वाला और हिन्दी की चिन्तन प्रक्रिया और कविता के सौन्दर्यबोध को सींचने वाला रहा है। उन्हें मिले लगभग सभी बड़े पुरस्कार भी इस बात की गवाही देते हैं। कविता की बुनियादी ज़मीन गीत, कवित्त, मुक्तक में निष्णात रामदरश जी ने समय रहते नई कविता के स्थापत्य की कमान हाथ में ले ली थी और धीरे-धीरे वे अभिव्यक्ति और अन्दाजे बयां के उस शिखर पर पहुँच गए जहाँ अनुभूति और संवेदना का रसायन गाढ़ा हो उठता है। उनकी कविता में सारे मौसम अपने सौन्दर्य और संघर्ष के साथ सामने आते हैं। इसलिए आश्चर्य नहीं कि ऋतुओं पर लगभग सबसे ज्यादा कविताएँ उन्होंने लिखी हैं। ‘धरती छंदमयी होगी’ का स्वप्न देखने वाला यह कवि शताब्दी-भर के रचनात्मक समय को अपनी छाती से लगाए जैसे उसकी धड़कनों को बहुत पास से सुन रहा हो। ‘पथ के गीत’ से लेकर ‘समवेत’ तक की उनकी कविता यात्रा कविता की ऊर्ध्वमुखी यात्रा है। उसमें हमारी कवि परम्परा के साथ-साथ पिछली शताब्दी और इस सदी का समय प्रतिबिम्बित होता दिखता है। उनकी कविताओं में विश्वबन्धुता है, विराट का स्पन्दन है, जीवन के एक-एक पल को जीने की चाहत है। उनकी खूबी है कि वे एक कौंध, एक पुलक-भर से कविता रच लेते हैं और यही कौंध, पुलक, सुख, विषाद, विडम्बना और प्रश्नाकुलता उनकी कविताओं के क्रोमोज़ोम में अनुस्यूत है। यही वह कवि का सतत गंवई गार्हस्थ्य है जो यह कहने में गर्व का अनुभव करता है कि ‘हम पूरब से आए हैं’। सच कहें तो इन कविताओं में उनका समूचा कवि व्यक्तित्व समाहित है।
—ओम निश्चल
Dinkar Ki Sooktiyan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
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सूक्तियों की भूमिका अक्सर प्रेरक होती है। वे हमारी संवेदना और विचारों को स्पर्श कर परिष्कृत करने का काम करती हैं। वे किसी भी भाषा में लिखी गई हों, बोलचाल में इस तरह घुलमिल जाती हैं कि उद्देश्य हो या उपदेश उसकी पूर्व पीठिका की तैयारी में सहज ही उदाहरण बन व्यक्त हो जाती हैं, और बात की प्रामाणिकता तनिक बढ़ जाती है।
सूक्ति-संग्रह का रिवाज उर्दू में रहा है, मगर हिन्दी में यह यदा-कदा ही देखने को मिलता है। संस्कृत में भी एक समय सुभाषित-संचय की प्रथा ख़ूब बढ़ी थी। ऐसे शब्द-समूह, वाक्य या अनुच्छेदों को सुभाषित कहते हैं जिसमें कोई बात सुन्दर ढंग से या बुद्धिमत्तापूर्ण तरीक़े से कही गई हो। शायद इसी से प्रेरित हो कभी दिनकर जी ने भी कई सुभाषित रचे थे जो उनके ‘नये सुभाषित’ संग्रह में शामिल हैं। और दिनकर जी की मानें तो ‘वर्तमान संग्रह में नए सुभाषित से एक पंक्ति भी नहीं ली गई है। इस संग्रह की सभी सूक्तियाँ मेरे नाना काव्य-संग्रहों में से चुनी गई हैं।’ निस्सन्देह, ‘दिनकर की सूक्तियाँ’ एक राष्ट्रकवि की एक ऐसी कृति है जो विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक तो है ही, प्रखर चिन्तन और मानवतावादी दर्शन का एक अनुपम संग्रह भी है।
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